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कार्तिकेय

कार्तिकेय
भारतीय माइथोलॉजी के सबसे चर्चित योद्धा देवताओं के सेनापति कार्तिकेय यानी मुरूगन हैं। मुरूगन वे देवता हैं जो उत्तर भारत में घर घर में विराजमान महादेव शिव जी के बड़े बेटे हैं और एक मात्र ऐसे देवता है जिनकी उत्तर भारत के साथ-साथ दक्षिण भारत में भी उनकी बराबर की पूजन होती है। कार्तिकेय का वाहन मोर है और अनका अस्त्र ओम के आकार का शूल है। देवताओं के सेनापति होने से उनके पास अनेक अस्त्र की कल्पना की गयी है। यूं तो विष्णुजी की पूजन भी उत्तर भारत के साथ दक्षिण भारत में की जाती है और लक्ष्मी की पूजन भी दोनों ही जगह की जाती है ।
कार्तिकेय के दक्षिण भारत पहुंच कर मुरूगन स्वामी के रूप मे ंपहचान बनाने के बारे में रोचक कथा है कि वे शिव के बड़े बेटे वे और छोटे बेटे गणेश हैं। एक बार देवर्शि नारद कैलाश धाम पर शिवजी के परिवार में अतिथ बन कर स्वर्ग से कल्पवृक्ष से एक ऐसा अनूठा फल लेकर आए जो बहुत मीठा और बहुत ही आरोग्य वर्धक था । शिव के दोनों बेटों में यह बहस छिड़ गई कि यह फल किसे लेना है, तो न्याय करते हुए शिवजी ने हंसते हुए कहा कि -आप दोनों जन पृथ्वी और सूर्य के चक्कर लगाकर आओ । जो सबसे पहले पृथ्वी के तीन चक्कर लगाकर लौटेगा उसे यह फल दिया जाएगा ।
इतना सुनते ही कार्तिकेय ने अपने प्रिय मोर को बुलाया और उस पर बैठकर तेज गति से पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिए चल पड़े। इधर अपने मोटे पेट की वजह से चलने में असमर्थ गणेश जी ने अपने वाहन चूहा को बुलाया और वे जब परिक्रमा के लिए चलने का सोचने लगे तो समझ गए कि कभी भी वे पृथ्वी की परिक्रमा कार्तिकेय से पहले नहीं कर पाएंगे। तब उन्होंने निर्णय किया कि उनके लिए असली पृथ्वी और असली सूर्य अपने माता और पिता है । तो गणेशजी ने चूहा का छोड़ा और एक चटटान पर बैठे अपने माता व पिता की परिक्रमा करने लगे।
जब उनकी मां पार्वती ने पूछा कि तुमने धरती के बजाय हमारी परिक्रमा क्योंकि तो गणेश बोले कि- मेरे लिए तो आप ही पृथ्वी हैं आप ही स्वर्ग हैं आप ही सारे धाम हैं ।
यह सुनकर पार्वती ने शिवजी की सहमति से गणेश का उत्तर सही पाया और वह अनूठा फल गणेश जी को दे दिया।
उधर परिक्रमा करके लौटे कार्तिकेय ने देखा कि उनसे बाद में चले गणेश वहां से हटे ही नहीं हैं और अपनी ही जगह बैठे फल खा रहे हैं, तो उन्होंने अपनी मां के प्रति उत्साह व्यक्त किया । माता पार्वती ने कहा कि गणेश ने बुद्धि का परिचय दिया और अपने माता पिता को ही पृथ्वी व सूर्य मान कर हमारी परिक्रमा कर ली है, नियमानुसार इसका तर्क सही है और तुमसे पहले परिक्रमा करने के कारण यह इस फल का सही हकदार है। लेकिन कार्तिकेय इससे संतुश्ट नही हुये उन्होंने कहा कि -पृथ्वी से आशय धरित्री पृथ्वी थी , आपने माता-पिता की परिक्रमा लगाने की आपने कोई शर्त नहीं रखी थी। इस तरह आपने छोटे भाई के लिए लाड़ में आकर अपने छोटे बेटे के प्रति अलग से पक्षपात किया है, और मेरे प्रति आपने यह अलग भाव दर्शाया है । यह ठीक नहीं है दो बेटों में बात करना ठीक नहीं होता है।
पार्वती ने बहुत समझाने की कोशिश की लेकिन कार्तिकेय नहीं माने और अपने मोर पर बैठकर वे हिमालय छोड़कर समुद्र की तरफ बढ़ चले । विध्ंयाचल पार करके दक्षिण भारत में पहुंचने पर उन्होंने पाया कि चारों ओर घने जंगल थे । वे घने जंगलों के बीच में मोर से उतरे और आसपास रहने वाले वनवासी लोगों के बीच रहने लगे ।वनवासियों ने उन्हे प्यार का नाम दिया’-मुरूगन स्वामी!
वहां उन्होंने बहुत सारे जंगल कटवा कर खेत बनाए, बहुत सारे यज्ञ और युद्ध भी किए,क्योंकि कुछ बुरे लोग सीधे सादे वनवासियों को परेशान करते थे ऐसे दुष्टों के साथ कार्तिकेय ने बहुत युद्ध किए और उन्हें पराजित किया ।
कहा जाता है कि तारकासुर नाम के राक्षस से जब सारे देवी देवता परेशान थे और वह सामान्य लोगों को ठीक से जीवन नहीं जीने दे रहा था तो सब ने स्वामी कार्तिकेय को याद किया था। शिव के बेटे कार्तिकेय का लालन-पालन सप्त ऋषि की छह पत्नी कृतियों ने किया । उनके पालन के कारण उनका नाम कार्तिकेय रखा गया और उन्हें छह मुंह के कारण षडानन कहा गया । ऐसे कार्तिकेय देवताओं के सेनापति माने जाते हैं। उन्होंने इधर तारकासुर का वध किया था।
कार्तिकेय दक्षिण भारत में मुरूगन स्वामी के नाम से जाने जाते हैं। उनकी सभी तस्वीरें किशोर अवस्था के एक बच्चे की तरह मिलती हैं जिसके बारे में कहा जाता है कि उन्हे देवताओं ने वरदान दिया है क्येांकि जिस असुर के लिए उन्होने जन्म लिया था वह केवल किशोरावस्था के युवक के हाथों मारा जाना था। कार्तिकेय हमेशा मोर के पास शूल और धनुष बाण के साथ दिखाई देते हैं । दक्षिण भारत में मान्यता है कि जो व्यक्ति कार्तिकेय की पूजन करता है,उस पर शिव पार्वती सहित गणेश खुद ही खुद ही प्रसन्न होते हैं। दक्षिण भारत के यात्रियों के साथ ही मुरूगन मलेशिया ,सिंगापुर और थाईलैंड तक पहुंचे । मलेशिया में बहुत बड़ा एक विशाल मंदिर मुरूगन का पाया गया है, जहां सोने के रंग से मड़ी हुई एक विशाल एक सौ फिट ऊंची प्रतिमा बनाई गई है जो वहां की बातू गुफाओं के पास में स्थापित की गई हैं ।
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