कलयुगी सीता--भाग(१) Saroj Verma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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कलयुगी सीता--भाग(१)

बात उस समय की है, जब मैं छै-सात साल का रहा हूंगा,अब मेरी उर्म करीब चालीस साल है,वो उस समय का माहौल था,जब लोगों को शहर की हवा नहीं लगी थी,जब लोग कहीं से अगर दूर की रिश्तेदारी निकल आए तो बहुत मान -सम्मान के साथ अपने घर में रात गुजारने देते थे,सब अपना ही अपना था पराया कुछ भी नही,अगर गांव में किसी पड़ोसी के यहां चले जाओ तो लोग तुरंत चूल्हा जलवा कर ताजा खाना बनवाते थे।
मुझे याद है बचपन में जब किसी के घर शाम को जल्दी चूल्हा जल जाता था, तो हम लोग पास-पड़ोस से ही कण्डो-उपलो में आग मांग लाते थे कि अगर घर में माचिस ना हो, और लोग खुशी-खुशी ये सब करते थे ताकि प्यार बना रहे।
तब शादियां तीन-तीन दिन की होती थीं, बारातियों की तीन-तीन दिन तक खातिरदारी होती थीं ,बैलगाड़ियों और ट्रैक्टर से बारात जाती थीं, ऐसी ही एक बारात में बचपन में गया था और वो थी राघव काका की बारात, बारात क्या कहेंगे, शादी तो उनकी पहले हो गई थी और गौना (विदाई) तीन साल बाद तो मैं उनके गौने में आया था, वही मेंरी पहली मुलाकात हुई थी उनसे, जिनकी कहानी मैं आप सब से कहने वाला हूं।
गौना करवाने आए थे तो, बारातियों के नाम पर हम दस-बारह लोग थे, बारात जहां ठहराई गई थी, वो खेत था, जहां आठ-दस पेड़ आम के और कुछ कटहल के पेड़, कुछ चिल्ला के पेड़ थे, नहाने के लिए कुआं था और साथ में ट्यूबबेल लगी हुई, कुंए की पास वाली जगह जहां नमी थी वहां खीरा और करेले की न कुछ बेले लगी थी , कुछ दो -चार भिण्डी के पौधे थे, कुछ हरी मिर्च भी लगी थीं,बस बाकी खेत सूखा पड़ा था क्योंकि अप्रैल का महीना था,खेतों की कटाई हो चुकी थी और उस साल गजब की गर्मी थी, हमारे पीने के लिए पांच-छै मटके पानी भरकर रखें जाते और हम दिनभर में पी जाते, और दिनभर आम के पेड़ों की हवा में चारपाई में पड़े रहते।
गर्मियों की छुट्टियां और ये बारात , मुझे तो जैसे दोहरा खजाना मिल गया था, मैं तो खुश था लेकिन पूडियां खाकर मेरा मन भर गया था,हम घर से भी पकवान खाकर आए थे और रास्ते में भी पकवान, यहां भी पकवान,एक दिन तो मैंने बिता लिया, पकवानो के साथ, लेकिन अब मुझे दाल-चावल और मां के बनाये खाने की याद आने लगी।
तभी मैंने पिता जी से कहा ,कि कुछ कच्चे आम तोड़ दे, आम तो टूट गये, लेकिन चटनी कहां से बने, तभी किसी ने कहा अपनी नई काकी से काहे नहीं बनवा लाते,
बस ,अब मैं चल पड़ा, उनके घर की तरफ कच्चे आमों को लेकर,घर ज्यादा दूर नहीं था,दो -चार गलियां पार करते ही, मैं घर में घुस गया और जोर-जोर से नई काकी-नई काकी आवाज देने लगा, तभी काकी की भाभी और बोली___
तुम कीके लल्ला हो?
हम बारात में आए हैं_मै बोला
और हल्ला काय मचा रऐ?
हम तो अपनी नई काकी को ढूंढ रहे हैं, कहां है, मैंने पूछा
काहे,तुम्हारी गाड़ी छूटीं जा रई का, भाभी बोली
नहीं, चटनी बनवानी है, मैं बोला
अच्छा, अभे गौना भओ,नइया और तुम काम करवाने आए गये, भाभी को मुझसे बातें करने में मजा आ रहा था, लेकिन वो बोली लल्ला हमाये पास इत्तो टेम ना है, बहुत काम पड़े हैं।
और नई काकी के पास ले गई, मैंने काकी की तरफ देखा तो उनकी बड़ी-बड़ी काजल लगी आंखों को देखकर मेरे मुंह से निकल गया कि ___
तुमाई आंखे तो गाय जैसी है, तो वो खिलखिला कर हंस पड़ी।
उन्होंने मुझे ठीक से नहलाया, मेंरे कपड़े धो दिए और अपने भतीजे के कपड़े दे दिए, मेरे लिए चूल्हे पे दाल-चावल बनाया और आम की चटनी पीस कर, खाना परोसा, मैंने पेट भर कर खाना खाया, मैं अब दिनभर उनके ही पास रहता।
और उन दो दिनों में मुझे उनसे और उन्हें मुझसे मां-बेटे का लगाव हो गया।
मेरी उनकी यही पहली मुलाकात थी।

क्रमश:______