कुबेर का खज़ाना Varsha द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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कुबेर का खज़ाना

"कुबेर का खज़ाना"

माँ ओ माँ....मेरी अच्छी माँ....दुलारी माँ......प्यारी प्यारी माँ.....!

अरे....बसससस.....बोल क्या चाहिए?

होओओओओ....माँ तुम्हें प्यार करूँ तो क्या जरूरी हैं कुछ चाहिए ही मुझे? क्या मैं ऐसे ही प्यार नहीं करती तुम्हें....? जाओ नहीं बोलती मैं आपसे....राधा ठुनकते हुए बोलीं

होओओओओ....तो क्या मैं तुझसे मजाक नहीं कर सकती?जा अब मैं नहीं बोलती तुझसे!सुमित्रा जी ने झूठा गुस्सा करते हुए कहा

ओह....मेरी बिल्ली मुझको ही म्याऊँ.....!राधा हँसते हुए बोलीं

माँ बेटी की नोक झोंक हो गई हो....तो निकलूं मैं अब...? भाई मुझे भी काम पर जाना हैं...पहले ही इस करोना की वजह से चार महीनों बाद आज जा रहा हूँ....लेट नहीं होना चाहता....!

पापा मुझे समीक्षा के छोड़ दो न...!हम दोनों साइंस का अगला चैप्टर करने वाले है आज...!

चल....!

अच्छा माँ आती हूँ.....! चार बजे तक....!

अरी सुन तो...तू कुछ बोल रही थी ना? बोल ना क्या चाहिए तुझे....!

अभी अब जाने दो....माँ....शाम को बात करती हूँ....!

ऐसी भी क्या पढाई राधा...जो तू पिछले एक महीने से रोज समीक्षा के जाती है.....मुझे तो तू भूल ही गई है जैसे....?शिकायत भरे लहजे में, सुमित्रा जी ने राधा को कहा....

ओ हो माँ....!आप भी ना...!स्कूल तो बंद हैं, तो सेल्फ स्टडीज करनी पड़ रही है....फिर बिना पढ़े मन भी तो नहीं लगता....स्कूल वालों ने साढ़े चार हजार की बुक्स पकड़ाई है तो कम से कम कुछ तो पढ़ा जाएं.....!

हाँ ना राधा....!एक तो लाकडाउन, तेरे पापा की कोई इन्कम नहीं ....उपर से ये बुक्स लेना कम्पलसरी कर दिया स्कूलों ने.....चाहें पढ़ाई हो या ना हो....!लगता ही नहीं इस साल स्कूल खुलेंगें भी या क्या...! बड़ी मुश्किल से कैसे भी करके घर ख़र्च चला रहे थे...अब तो इस महीने का राशन भी कैसे आएगा यहीं सोंच है....!

ओ हो सुमित्रा....!क्या सुबह सुबह बेकार की बातें कर रही हो....???बेटा तू चिंता मत कर...!मेरे पास बहुत पैसे है....कल परसो में राशन भी लाँऊगा और तुम दोनो के लिए आइस्क्रीम भी....!

पर पापा.....

तू पर वर छोड़ और चल जल्दी से.....! मैं हूँ ना.....!शाहरुख़ खान के अंदाज में जतिन जी ने कहा.....तो दोनों माँ बेटी खिलखिलाकर हँस पड़ी.....

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उसी रात को,

सुनों जी....इस महीने का खर्च कैसे चलाएंगे?? बस दो तीन दिन का राशन हैं अब...!मैं सोंच रहीं थी के मेरे कान के बूंदे बेच दूँ....!धीरे-धीरे फुसफुसाते हुए सुमित्रा जी ने कहां

नहीं सुमित्रा....ऐसा सोंचना भी मत...!मैं कुछ न कुछ करता हूँ...!किसी से उधार लेता हूँ...!तुम्हें पता है, आज सेठ बोल रहें थे कि दो तीन लोगों की छटनी करेंगे....मेरा तो कलेजा मुंह को आ गया उनकी बात सुन कर!अगर मुझे भी निकाल दिया दो?

शुभ शुभ बोलो जी....!हे भगवान ऐसा कुछ मत करना....वरना क्या होगा हमारा....आपसे तो कहा था, इतने महंगे स्कूल में मत दिलाओ दाखिला राधा को....पर आप ने एक ना सुनी मेरी.....!अब क्या करेंगे हम.....सुबकते हुए सुमित्रा जी बोली

राधा की माँ....एक ही तो औलाद है हमारी इसके लिए क्या मैं इतना भी नहीं कर सकता हूँ....उसने हमेशा दिल लगा कर पढ़ाई की है....दसवीं में तो मेरिट लिस्ट में नाम था हमारी राधा का......और अब तो बारवी का साल है उसका...मैं उसे किसी तरह की कोई टेंशन नहीं देना चाहता.....!सब ठीक ही चल रहा था....वो तो ये करोना की वजह से....इतनी दिक्कत आ गई है....पर तुम हौसला रखों सब कुछ ठीक हो जाएगा.....!चिंता भरे लहजे में, जतिन जी ने कहा

उस ईश्वर पर विश्वास रखों.....परेशान न हो और सो जाओ....!वो सब ठीक करेगा.....!सुमित्रा जी ने कहा

हममममम.....!

आने वाले कल की चिंता में , दोनों पति पत्नी के आँखों से नींद कोसों दूर थीं...!
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अगली सुबह,

पापा.....ओ पापा......!

क्या हुआ मेरी राजकुमारी को.....?चाय पीते पीते जतिन जी ने पूछा

पापा मुझे सौ रूपये चाहिए.....!

राधा की बात सुन, जतिन जी के हाथ से कप छूटते छूटते बचा....!

स....सौ रूपये...! क्यूँ चाहिए बेटा....?

पापा हमें ना एक सर टयूशन पढ़ा रहे हैं मैथ्स की...!उन्होंने कहा की वो मुझे और समीक्षा को कम रेट में पढ़ा देंगे....अभी लाकडाउन में खर्च उठाने उन्हें टयूशन चाहिए थी....वो अपने घर में एकलौते कमाने वाले है....!कल भी उन्होंने क्लास ली थी....तो उनके ही नोट्स बनाने मुझे एक रजिस्टर खरीदना है......जल्दी से दे दो ना सौ रूपये....अच्छा आप बैठो मैं ही ले लेतीं हूँ....!

अरी राधा सुन तो.....!सुमित्रा जी ने कुछ कहना चाहा

नहीं ना माँ....अभी टाईम नहीं है कुछ सुनने का....कहती हुई राधा भीतर चली गयी....

पापाआआआआ......आपकी जेब से सौ रूपये लिए है....और बाकी के सारे पैसे वापस रख दिये हैं संभाल कर.....देख लेना आप......!!जतिन जी को आवाज़ देते हुए, राधा ने कहा

राधा की बात सुन, जतिन जी और सुमित्रा जी दोनों चौंक पड़े और आँखों - आँखो में एक दूसरें को देखा....सुमित्रा जी जाकर जतिन जी का पर्स ले आई.....!

जतिन जी ने पर्स खोला....उसमें पाँच हजार रुपये थे और एक चिट्ठी.....

"पापा,

आपकी बेटी के होते, ना आपको उधार मांगने की जरुरत पड़ेगी....ना माँ को अपने बूंदे बेचने की..!ये मेरी जिंदगी की पहली कमाई है पापा....चाहती थी आपके और माँ के हाथ पर रखूँ...!पर...मुझसे आपकी आँखो के आँसू देखे नहीं जाते इसलिए....बस यही एक तरीका समझ आया.....!

माँ,

यही बताना चाहती थी कल,समीक्षा को और चार और सहेलियों को टयूशन दे रही हूँ....मैथ्स और साईंस की.....पिछले महीने से....और उन्होंने एक एक हजार रुपये दियें हैं....!पूरे पाँच हजार रूपये है माँ.....!अब तुम जानो और तुम्हारा घर ख़र्च....हाँ....आज शाम को खीर बना लेना....भगवान को भोग चढ़ाने.....!

चिठ्ठी पढ़ने के बाद, जतिन जी और सुमित्रा जी दोनों की आँखो से आँसुओ की अविरल धारा बह उठी....!


गर्व से सीना तान के जतिन जी ने कहा, देखा सुमित्रा....मेरी बेटी ने उसके बाप की "जेब को कुबेर" का खजाना बना दिया है...!!!अब हमें कभी कोई दिक्कत नहीं आएंगी....कभी भी नहीं.....शायद इसीलिए लोग कहते हैं....."बेटियाँ लक्ष्मी होती है"....भले ही बाप के घर उनका बसेरा कुछ ही दिनों का होता है.....पर हर बेटी....बाप का अभिमान होती है.....जैसी मेरी राधा...!

ना जी....हमारी राधा.....सुमित्रा जी ने हँसते हुए कहा...और वो अपनी राधा के लिए खीर पूरी बनाने चल दी...!

~~~~~~~~समाप्त~~~~~~~~~~

✍✍मौलिक एवं स्वरचित

वर्षा अग्रवाल द्वारा🙏🙏