और कुहासा छँट गया..... Varsha द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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और कुहासा छँट गया.....

....और कुहासा छट गया ......

पापा....अब मैं वहाँ कभी नहीं जाऊँगी....!!!!पापा वो इंसान नहीं जल्लाद है....उसका परिवार भी उसके साथ है हर कदम.....उन्हें बहू नहीं सिर्फ नौकरानी चाहिए.....देखिये पापा....कितना मारा है.....अपनी पीठ पर उभरी हुई लकीरें दिखाती हुई तपस्या बोली....

हाए राम.....कैसे मारा है मेरी मासूम सी बच्ची को....अभी तो इसके हाथों की मेहंदी भी नहीं छूटी हैं.... बेटी के जख्मो को देख बिलखते हुए रमा जी ने कहा....

क्या ग़लती थी माँ मेरी जानती हो?????मैंने काम वाली बाई को दो रोटी ज्यादा दे दी थी....उसकी मासूम सी बच्ची के लिए.....और मेरी जेठानी ने देख लिया रोटी देते हुए.....सुबकते हुए तपस्या बोली.....माँ क्या मुझे इतना भी हक नही है????आप तो हमेशा कहती थी ना....अपने घर जाकर कुछ भी कर सकते हैं?????माँ क्या वो घर मेरा नहीं हैं?????माँ कौन सा है, "मेरा घर".....ये जहाँ से मैं विदा कर दी गयी हूँ या वो घर जहाँ ब्याह कर मैं गई हूँ......कौन सा है?????बताओं ना माँ......

दो रोटी ज्यादा देने पर मुझे जाने कितनी बातें सुना दी!!!सबके सामने जलील किया किया गया....और उस पर भी मन नहीं भरा तो बेल्ट बेल्ट से मारा.....सब देखते रहे माँ किसी ने नहीं रोका समीर को......माँ....मैं बाप के घर से नहीं लाई थी ना वो रोटियां ना मैं कमाती हूँ जो मुफ़्त में उड़ा रहीं हूँ माल.......माँ.....मुझे सबक सिखाने की जरूरत थी....इसीलिए बस बेल्ट से मारा गया और कल से एक दाना नहीं दिया गया......माँ अगर आज आप और पापा नहीं आते मिलनें तो मैं यूँ ही बिलखती रहतीं......

चुप हो जा बेटा......हम ने सपने मे भी नहीं सोंचा था राणावत परिवार इतना गिरा हुआ निकलेगा....वो तो पता नहीं आज मन बहुत बेचैन हो रहा था.....मुझे क्या पता था कि इस बेचैनी की वजह तू है.....

आज तक आपनें और पापा ने मुझे ऊँगली तक नहीं और उसने मुझे जानवरों की तरह मारा.....क्या अपनें मान सम्मान के लिए आवाज़ उठाना बदचलनी हैं?????क्यूँ मेरे सामने आप लोगों को इतना कोसा गया????क्या कमी रखी थी आप लोगों ने मेरी शादी में???जो माँगा वो दिया.....जानती हो माँ....दो वक्त की रोटी के बदले सुबह से शाम तक काम करो और उस पर भी उनका मन नहीं भरता तो पापड़...बड़ी.....और न जाने क्या-क्या करते चले जाओ.......मर मर के करने के बाद भी कभी तारीफ के दो बोल तक नहीं निकले उन लोगों के मुँह से कभी.....वो सब तो ठीक है माँ.....पर बिना ग़लती के इतना मारना....????

पापा.....प्लीज पापा....मुझे मत भेजना वहाँ वापस.....मैं इस घर की बेटी हूँ ना पापा.....जैसे भाई है वैसी ही मैं हूँ ना .....आप ने कभी मुझ में और साहिल मे फर्क नहीं किया......

तपस्या....बेटा तू कहीं नहीं जाएगी.....तू तेरे घर में रहेंगी.....हक से..... मैंने मेरी बेटी राणावत परिवार में ब्याही है उनकों बेची नहीं थी.....अब मैं समीर राणावत को समझाऊँगा कितनी बड़ी गलती की है उसने!!!!!

पर दुनिया क्या कहेगी???रमा जी बोली....

दुनिया के कहने के डर से बेटी को मरने नहीं छोड़ सकता......तपस्या भूल जा बेटा कि तेरी शादी हुई भी थी कभी???और कल से ही जुडिशियल एक्साम की तैयारी में लग जा.......उठ बेटा.....ये सोच तेरे शरीर मे एक छोटी सी फांस लगी थी....शादी नाम की....शादी जरूरी हैं पर शादी के नाम पर बर्बाद होना.....नहीं बेटा.....तेरा बाप इतना कमज़ोर नहीं है......जो तुझे जीवन भर के लिए रोने छोड़ दें........कहतें हुए प्रदीप जी ने तपस्या को गले से लगा लिया.....और तपस्या की जिन्दगी पर छाया कुहासा छँट गया.......