पूर्ण-विराम से पहले....!!! - 23 Pragati Gupta द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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पूर्ण-विराम से पहले....!!! - 23

पूर्ण-विराम से पहले....!!!

23.

समीर के होने पर शिखा से प्रखर की बातें व्हाटसप्प पर ही ज़्यादा हुआ करती थी| जब भी समय मिलता दोनों अपने दिल की बातें एक दूसरे से कह-सुन लेते|

कोई भी फॉरवर्ड आता या दोनों में से कोई भी कुछ भी नया लिखता सबसे पहले एक दूसरे के साथ साझा करता| समीर के होने पर भी दोनों की ज़िंदगी एक दूसरे के आस-पास घूमती रहती थी| उम्र के इस मोड़ पर मिलने पर भी दोनों को हमेशा ही लगता था कि उनके बीच प्रेम कभी खत्म हुआ ही नहीं था..तभी तो सारे संजोग जुटे|

समीर के जाने के बाद जब शिखा ने दो महीने से ऊपर समय हो जाने पर भी प्रखर के व्हाटसप्प संदेशों का कोई जवाब ही नहीं दिया था तो प्रखर को बेहद चिंता होने लगी थी| दरअसल शिखा व्हाटसप्प खोल ही नहीं रही थी|

प्रखर जब भी उसे फोन करता तो वो बस हाँ या न में जवाब दे देती| शिखा ने कभी ऐसा किया नहीं था| प्रखर के लिए भी यह बहुत चकित करने वाला था कि कई बार उसके फोन की पूरी रिंग बजने के बाद भी वो फोन नहीं ले रही थी|

हालांकि काकी रोज उसके घर जाकर छोटी-मोटी मदद कर रही थी| तो उनसे प्रखर को उसके ठीक होने का पता चल जाता था| पर काकी की दी हुई खबर से प्रखर को संतुष्टि नहीं हो रही थी|

अब प्रखर का भी बार-बार समीर की अनुपस्थिति में उसके घर जाना संभव नहीं था| प्रखर किसी भी कीमत पर शिखा की गरिमा को आंच नहीं आने देना चाहता था| ऐसे में व्हाट्सप्प का ही सहारा था| मगर फोन पर कई बार बोलने के बाद भी शिखा व्हाटसपप नहीं खोल रही थी| यह प्रखर को बहुत बेचैनी दे रहा था|

तेरहवीं के बाद शिखा ने जब प्रखर से पूरे दो महीने तक बहुत अच्छे से बात नहीं की....तो उसको घबराहट होने लगी थी|

तभी अचानक एक दिन बगैर कुछ ज़्यादा सोचे प्रखर सीधा शिखा के घर पहुँच गया| घर के दरवाज़े पर लगी डोर-बेल बजाने का जैसे ही उसने सोचा..तो दरवाजा खुला पड़ा था| प्रखर दरवाज़े को धकेल कर अंदर पहुंचा तो उसे शिखा शून्य में ताकते हुए मिली| शिखा की हालात देख कर प्रखर के भी आंसू आ गए

और वो शिखा के आगे अपनी बाहें पसारकर खड़ा हो गया.. जैसे ही शिखा ने प्रखर को देखा वो उठकर प्रखर की बाहों में समा गई और उसने सुबकना शुरू कर दिया.. तब प्रखर ने उसे कहा..

"ऐसे कब तक चलेगा शिखा| क्या हुआ है तुमको.....इस सदमे से निकालना क्यों नहीं चाहती तुम.....रोज कितने संदेश भेजता हूँ.....देखती तक नहीं| वो तो काकी तुम्हारे ठीक होने की खबर दे देती थी| इसलिए चुप बैठा रहा| मैं खुद भी परेशान था समीर के जाने से| तुमको भी सब संभालने का समय देना चाहता था तभी आया नहीं| पर तुमको मेरा इतना भी ख्याल नहीं आया कि मैं तुम्हारे लिए परेशान हो रहा हूँगा|......हम दोनों अलग कहाँ ही शिखा| कुछ परेशानी है तो मुझे बताओ न|”

शिखा ने कुछ भी नहीं बोला बस रोती रही| उसको देख कर प्रखर को लगा कि शिखा ने न जाने कब से अपने आंसुओं को पलकों में बांध कर रखा था| जैसे ही उसको प्रखर के कंधे का सहारा मिला वो खुद को बहने से रोक नहीं पाई| तब प्रखर ने शिखा को समझाया..

समीर यूं अचानक ही चला जायेगा कौन सोच सकता था शिखा। मुझे भी तो उम्र के आखिरी पड़ाव में एक बेहतरीन मित्र मिला था। हर आता दिन तुम दोनों से मिलने की खुशी में कट जाता था। अपने मन की भावनाएं साझा करने के बाद प्रखर ने शिखा को गले लगाये हुए ही कहा....

शिखा तुम ठीक हो न। बहुत मुश्किल होता है न....जिसके साथ जीवन के इतने साल साथ-साथ गुज़ारे हो और फिर उसके बग़ैर सवेरे से रात का समय काटना| मेरे पास तो बहुत अपनी-सी बातें कहने के लिए कोई भी नहीं था| कम से कम मैं हूँ तुम्हारे पास| खुद को गुम मत करो..मेरी जान हो तुम| तुम्हारा परेशान रहना मुझे बहुत चोटिल करता है| मेरा बस चले तो तुमको अपने साथ ही ले जाऊँ और एक आंसू न आने दूँ|

शिखा को सोफ़े पर बैठाकर प्रखर उसके लिए पानी लेकर आया और उसे अपने हाथ से उसे पानी पिलाया| जब शिखा थोड़ा शांत हुई तो प्रखर ने उससे फिर से समझाना शुरू किया..

शिखा...अब तो समीर को गए हुए दो महीने से ऊपर समय हो चुका है...और मैं तरस गया हूँ तुम्हारी आवाज़ सुने हुए। हर रोज फोन पर व्हाटसप्प देखने आता हूँ.....तुम खोलती ही नहीं मेरा फोन भी नहीं लेती|....कुछ तो बोलो शिखा.....खुद को कुछ हल्का करो। पागल हो जाओगी। मैं कभी भी तुमको ऐसे नही देख सकता।

बोलते-बोलते प्रखर रोने लगा आज एक अरसे बाद प्रखर भी फूट-फूट कर रोया था। शिखा के बात न करने से वो उसकी कमी से भर गया था| प्रखर ने शिखा के सिर को अपनी गोद में रख लिया और उसके बालों में अपनी उँगलियाँ धीमे-धीमे सहलाने लगा और फिर बोला....

तुम्हारे साथ मैं हमेशा हूँ शिखा| प्रीति के जाने पर मेरे साथ इस तरह का सहारा कोई भी नहीं था| मुझे तो खुद प्रणय को सहारा देना था|.....नही देख सकता तुमको इतने कष्ट में। सवेरे से रात तक तुम्हारी राह तकता हूँ। कब आकर मुझ से थोड़ी देर बात करोगी। कब मुझे अपना चेहरा दिखाओगी। तुमने तो बाहर निकलना ही बंद कर दिया है शिखा। बहुत अकेला महसूस कर रहा हूँ मैं भी|

बोलते-बोलते प्रखर भी शिखा के साथ सुबक रहा था|

आखिर कब तक?...यूं ही किसी दिन मैं भी चला गया तो अफ़सोस होगा तुमको भी शिखा। जाने से पहले तुमको खुद के साथ महसूस करना चाहता हूं। तुम हमेशा ही साथ न होकर भी साथ रही हो।

प्रखर की बातें लगातार सुनते-सुनते अब शिखा ने बोलना शुरू किया....

"प्रखर! समीर की यादें मेरा साथ नहीं छोड़ती| समीर को यूं ही नहीं जाना चाहिए था| तुम्हारा फोन न लेकर जी दुखा रही हूँ.. बहुत आहत करता है मुझे भी| तुम मेरे साथ-साथ चल रहे हो| तुमको तो में अलग कर ही नहीं सकती....तुम अलग हुए भी कब थे मुझ से| पर क्या करूँ तुम ही बताओ....समीर को भी बहुत प्यार करती थी| इतने सालों का साथ आसानी से भुलाया जा सकता है क्या|”

“कौन कहता है तुम समीर को भुलाओ| मैं भी प्रीति को कब भुला सका| खाली घर की दीवारें, कमरों में छूटी हुई स्मृतियाँ कुछ भी भूलने नहीं देती| बस भविष्य में किस्मत से मिलने वाले साथ से जब नई स्मृतियाँ जुटती हैं....तब वो पुरानी छूटी हुई जगह की कमी को भरती हैं| अकेलापन कम महसूस होता है| तुम बस मुझ से बात करती रहो| कठिन वक़्त भी निकल जाएगा| अगर मेरे से बात नहीं करोगी तो.....कहीं मैंने ही न मर जाऊँ|..”

प्रखर के ऐसा बोलते ही शिखा ने प्रखर के होंठों पर उंगली रख दी और उसके रोज बात करने का वादा किया| तब प्रखर ने शिखा को और जोर से जकड़ लिया| दोनों जब भी एक दूसरे के गले मिलते थे दोनों की आँखों में नमी खुद-ब-खुद उमड़ पड़ती थी| न जाने वो कौन-सी सुखद अनुभूति थी जो दोनों के आत्मीय स्पर्श पर बरस जाती थी|

“कभी अपने जाने की बात नहीं कहोगे प्रखर....तुम को कुछ भी हुआ तो मैं भी मर जाऊँगी|”

उस रोज न जाने कब तक दोनों एक-दूजे की बाहों में बंधे-बंधे एक दूसरे को महसूस करते रहे थे|

इस घटनाक्रम के बाद दोनों दिन में कई-कई बार बातें करने लगे थे| प्रखर को शिखा कभी किसी परेशानी में महसूस होती तो वो उससे घंटों-घंटों बातें करता| ताकि वो जल्द से जल्द सामान्य हो सके| एक अकेली स्त्री के लिए सब बहुत मुश्किल होता है| जिन बातों की हम कल्पना नहीं कर सकते वो सब ख्याल आस-पास घूमते हैं|

समय के साथ शिखा को जो चोट मिली थी.. वो समय के साथ ही भरने लगी| प्रखर के होने से शिखा को बहुत मानसिक सहारा था| जैसे-जैसे समय गुजरता गया....शिखा भी धीरे-धीरे नॉर्मल होती गई|

क्रमश..