यारबाज़ - 15 Vikram Singh द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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यारबाज़ - 15

यारबाज़

विक्रम सिंह

(15)

मगर इन सब से हट गए मेरा एक मित्र विनय भी था जो कई सालों से नौकरी के लिए चप्पले घीस रहा था। वो भी किसी सोर्स की तलाश थी उसने एक दिन आकर मुझसे कहा दोमन पासवान नाम के एक शख्स है जो कि पिछली सेना का सदस्य है वह काम करवाने के गारंटी ले रहा है मगर काम के पहले एक लाख बाकी के दो काम हो जाने के बाद मांग रहा है। सोर्स के नाम से मेरे में भी उत्सुकता आ गई मैं इस मौके को गंवाना नहीं चाहता था मैंने विनय से कहा," अरे यार तो चलो एक बार मिलकर बात कर ली जाए।"

फिर दोमन ने हम दोनों को फोन पर एक होटल के पास मिलने के लिए बुलाया। एक घंटा लेट दोमन अपनी बाइक पर सवार होकर आया। बाईक खड़ी कर बोला, "बताइए आपका क्या विचार है?"

मैंने कहा,"वही आपके पास काम के सिलसिले में आए हैं।"

"मैंने तो उसी दिन विनय को सारी बात बता दी थी।"

"मगर आप काम के पहले एक लाख मांग रहे हैं।"

"देखिए तपन दास पिछडी सेना के पूरे बंगाल के अध्यक्ष है उन्हीं से काम करवाना है उनसे जो मेरी बात हुई है पहले लाख रुपए लेंगे फिर रिटेन में नाम आने पर एक लाख रुपए ले लिया जाएगा। एक लाख जॉइनिंग लेते समय। जो लड़के एक लाख देंगे उन्हीं का लिस्ट तैयार किया जाएगा।"

उस दिन उसकी बात सुनकर लगने लगा इसी को सोर्स कहते हैं जहां मोटी मोटी गड्डी फेक कर काम करवा लो। मैं पूरी तरह लालच में तो आ गया लेकिन जब इतनी बड़ी रकम की बात सोची तो मेरा दिमाग सन्न रह गया।

वैसे तो मैंने कई दफा कई विषयों पर पापा से बहस की थी मगर इस विषय पर बात करने से मैं झिझक गया।

और मैंने अपने एक लाख रुपए देने वाली बात को मन से निकाल कर फेंक दिया। जब मैंने अपना फैसला अपने मित्र को सुनाया तो उसने मुझे सलह दी। "यार कब से नौकरी की कोशिश कर रहे हो।अगर तीन लाख रुपए देकर नौकरी हो भी जाए। फिर उसके बाद तीन लाख तो साल भर में कमा लेंगे। फिर यार सरकारी नौकरी के लिए तो लोग दस लाख तक देने को तैयार खड़े है।एक बार पापा से बात तो करो।"

उस रात मैंने पापा से बात की "पापा विनय किसी शख्स से मिला है। वह इस्पात मंत्री की पार्टी का आदमी है।"

"हां तो क्या हुआ?"

"नहीं" मैं थोड़ा हकलाया फिर बोला,"मैंने जो स्टील प्लांट की बहाली भरी है,वह वहां नौकरी करवाने की गारंटी ले रहा है।"

पापा को मेरी बातों से साफ पता चल गया कि मामला पैसों का है,"तुमसे पैसों की डिमांड की होगी।"

"हां उसका नाम दोमन पासवान है।"

"अगर नौकरी ही लेनी है तो अपनी काबिलियत से लो।"

"पापा आजकल काबिलियत से काम नहीं होता। पैसा और सोर्स से ही नौकरी होती है।"

"फ़ालतू की बातें मत किया कर। फिर जो इतने पढ़ाई के इंस्टीट्यूट खुले हैं तमाम लड़के जो उसमें पढ़ रहे हैं। वह सब बेकार है।"

मैं चुप हो गया। फिर पापा ने मुझे बताना शुरू किया,बेटा बारहवीं कर नौकरी की तलाश में गांव छोड़ कर शहर चला आया था। कहीं नौकरी मिल नहीं रही थी। एक बार हाई स्कूल में क्लर्क की नौकरी की बहाली निकली। एक शख्स ने मुझे कहा दस हजार रूपए दे दो तुम्हारी यह नौकरी हो जाएगी। एक तो मैं पैसे देना नहीं चाहता था और होते भी तो मैं देता नहीं। वैसे ही मेरे पास थे भी नहीं। खैर को नौकरी तो मेरी हुई नहीं। मगर भटकते भटकते और अपनी मेहनत और काबिलियत से आखिरकार मैंने रानीगंज में कोल्डफील्ड में नौकरी ले ली। क्योंकि मुझे अपने पर पूरा विश्वास था कि मैं नौकरी अपनी काबिलियत पर ही ले लूंगा। नौकरी होने के बाद फिर मैंने ग्रेजुएशन की पढ़ाई भी की। बेटा मेहनत कर मेहनत।"

फिर मैं चुप चाप घर से निकल आया। मैं सीधे विनय के पास गया। मैंने उसे साफ कह दिया कि मैं पैसे नहीं दे पाऊंगा। मगर विनय ने यह ठान रखा था कि वह किसी भी कीमत पर यह नौकरी लेगा उसने मुझसे यह कहा कि अगर ठीक है अगर यह बंदा मेरी नौकरी करा देगा तो आगे तुम दूसरी किसी जगह इसके साथ ट्राई कर सकते हो फिर तुम्हारे पापा को इनके ऊपर विश्वास हो जाएगा।

अगले विनय काले बैग में पैसे भर के मुझे अपने साथ आसनसोल आईसीआई बैंक लेकर चला गया। जैसे ही फॉर्म भर के अकाउंट में के शेर को फॉर्म दिया उसने फटाफट कीबोर्ड में उंगली चला कर कहा जी अकाउंट नंबर तो सही हम आकर नाम दो मन पासवान नहीं दो मन प्रसाद है यह सुनते ही वह यह सुनते ही मेहक और वह हक्के बक्के रह गए आखिर सरनेम बदल कर उसने अपना अकाउंट खोला का है फटाफट विनय ने दो मन को फोन लगाकर यह बात पूछी उसने फट सका देखो इसमें घबराने की बात नहीं दरअसल ऐसा है कि पासवान लिखवाने मुझे अच्छा नहीं लगता तो शुरू से प्रसाद लिखा रखा है जो मन प्रसाद में ही हूं।

फिर विनय ने पैसे डाल दिए।

एक दिन डीएसपी स्टील प्लांट का रिटन टेस्ट का भी समय आ गया। कॉलोनी,शहर पूरे दूर-दूर के राज्य के लड़के ट्रेनों में भर- भर के कोलकाता शहर में पहुंच गए। और रिटन टेस्ट भी हो गया।

रिटन टेस्ट के बाद कॉलोनी में सभी चिंतित तो थे पर उससे ज्यादा चिंतित वह लोग थे जिन्होंने सोर्स और पैरवी लगाए हुए थे उन्हें अपने सोर्स और पैरवी पर विश्वास नहीं हो पा रहा था कि क्योंकि पैसे जो फंसे थे।

अचानक एक दिन दोपहर में एक परिचित मित्र रमेश कुमार ने जिस ने खुद नौकरी के लिए पैसे दिए थे पूरी कॉलोनी में ढिंढोरा पीटा रिटन लिस्ट निकल चुका है लेकिन लिस्ट में मेरा नाम नहीं है।

बस हल्ला होने की देर थी कि उस दिन विनय भी अपनी साइकिल उठाकर भागता भागता साइबर कैफे पहुंचा और साइबर कैफे में जितनी जोस से वह घुसा था उससे कहीं डबल जोस बाहर निकला क्योंकि रिटेन लिस्ट में उसका कहीं नाम नहीं आया था। उसका गुस्सा सातवे आसमान पर पहुंच गया था। फिर तो पूरी कॉलोनी ही साइबर कैफे की तरफ भागने लगी हर कोई अपना नाम देख देख कर आ रहा था पर सच कहूं तो उस दिन मेरा नाम भी रिटर्न पास होने की लिस्ट में मेरा भी नाम नहीं था।और ना ही पूरी कॉलोनी में किसी का भी रिटन लिस्ट में नाम आया था। उस दिन पहली बार ऐसा महसूस हो रहा था क्या वाकई में हम सब कॉलोनी के लड़के ही निकम्मे हैं या इतने गैर गुजरे हैं एक रिटेन टेस्ट में एक बंदे का नाम नहीं आया। लेकिन सही मायने में हम सब खुश भी थे कि चलो साला एक का भी नाम नहीं आया। जहां हम सब खुश हैं वहीं कुछ लड़के ऐसे थे जो दोमन को लाख-लाख रुपए दे चुके थे। उनका रिटेन में नाम नहीं आया था लेकिन वह कॉलोनी में सबसे ज्यादा निराश थे अब उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि उनका पैसा कैसे निकलेगा।

उनका एक दूसरा संघर्ष शुरू हो चुका था कि वह अपने पैसे कैसे निकालेंगे मैं उस दिन इस बात के लिए संतोष कर रहा था कि मैंने पैसे नहीं दिए और इस बात के लिए मैं अपने आप में गर्व कर रहा था कि मैंने शॉर्टकट तरीका नहीं अपनाया। उस दिन मुझे महसूस हुआ कि जीवन में कोई भी चीज शॉर्टकट तरीके से नहीं उपलब्ध होती है कड़ी मेहनत लगन और विश्वास से ही कोई चीज प्राप्त की जा सकती है।

अंत समय में मुझे लगने लगा कि मुझे तो नौकरी करनी है चाहे वह सरकारी हो या गैर सरकारी गैर सरकारी नौकरियों के तलाश में भी कभी कभार निकल जाए करता था अधिकतर हमारे आस पास जूट, सरिया की मिलो की भरमार थी। जब मैं वहां अपने फर्स्ट क्लास बी.ए. पास होने की सर्टिफिकेट के साथ पहुंचा था। तो मुझे पता चलता था कि यहां तो सिर्फ भेड़ बकरी और गधों की तरह काम करने वाले मजदूर चाहिए। पढ़ा-लिखा कलम चलाने वाला व्यक्ति नहीं चाहिए। गेट में खड़ा चपरासी सीधे कहता,"इतने पढ़े लिखे लड़कों की यहा जरूरत नहीं है। फिर इतना पढ़ लिख कर यहां क्यों आ गए।" उस वक्त मैं यही सोचता था कि मुझसे तो भले यही हैं कम पढ़े लिखे भेड़ बकरियों की तरह काम करने वाले आखिर कुल मिला जुला कर इनके पास रोजगार तो है।

......

मैं हर दिन सुबह न्यूज पेपर पढ़ता था हर तरह के गतिविधियों को पढ़ता था चोरी डकैती,बलात्कार, सिनेमा, स्पोर्ट्स। इन सब को पढ़ने का बस एक ही मकसद था कि मैं रिटेन पास हो जाऊं मुझे समाज या देश बदलने के लिए मैं अखबार नहीं पढ़ता था। सच कहूं तो कई बार तो अखबार की कई न्यूज पढ़ मन खीज जाता था। हर दिन अखबार पढ़ बोर भी होने लगा था। ऐसे ही एक बार अखबार में छपा की एक बड़ी कंपनी को ग्रेजुएट पास लड़के की जरूरत है और उसमें इंटरव्यू की तारीख समय छपा हुआ था। एक मेल आईडी भी दिया हुआ था कि अपना बायोडाटा ऑफिस मेल आईडी में भी सेंड कर सकते हैं । मैंने तत्काल ही अपना बायोडाटा वहां सेंड कर दिया।

उस दिन सुबह ही मैंने कोलकाता जाने के लिए लोकल ट्रेन पकड़ ली थी। वह एक बड़ी कंपनी की कॉल सेंटर था। वहां तमाम जगह से आए लड़के लड़कियां इंटरव्यू देने के लिए बैठी थी। एक-एक कर सब का इंटरव्यू हो रहा था और वे निकल कर चले जा रहे थे। मेरा भी नंबर आया मैं भी अंदर गया। अंदर देखा दो अंग्रेज जिनकी उम्र मुश्किल से 26 27 रही होगी । और साथ ही पचास के करीब दो पुरुष और बैठे थे। अंग्रेजों को देखकर ऐसा लग रहा था कि जैसे वह अभी विदेश में पढ़ रहे हैं और हमारी इंडिया में कंपनी में ट्रेनिंग के रूप में ही इंडिया आए थे। मैं भारतीयों को नमस्कार अंग्रेज को हाय हेलो कर सीट पर बैठ गया। एक अंग्रेज ने मुझसे पूछा "टेल मी समथिंग"

"आई एम ग्रैजुएट्ड फ्रॉम हिंदी ऑनर्स"

"वैल यू आरा ऑनर्स इन भिंडी"

" नौ सर हिंदी"

"ओके ओके यू आर सिंदी ऑनर्स।"

ना जाने क्यों मुझे मन ही मन गुस्सा आ गया और मैं थोड़ा खींचकर उन्हें समझाने लगा हिंदी, हिंदी, हिंदी इस तरह के मेरे व्यवहार से दोनो अंग्रेज विद्यार्थी मेरा मुंह देखते रह गए और पास बैठे दोनों भारतीय अधिकारी अंग्रेज को समझाने लगे अंततः मेरा ना जाने क्यों वहा दम घुटने लगा। और मैं गुस्से से कुर्सी से उठकर हाथ जोड़कर कह दिया," नहीं चाहिए मुझे आप लोगों की नौकरी और फाइल उठा कर चल दिया। जितने गुस्सा मुझे इंटरव्यू से निकलने के बाद था उससे कहीं ज्यादा गुस्सा पापा को इस बात से था कि मैं क्यों इंटरव्यू देने चला गया उस दिन पापा मुझे फटकार लगाते हुए यह कहने लगे मैंने तुम्हें एम ए में ढंग से पढ़ने और कुछ ढंग के एग्जाम ही देने के लिए कहा है वह भी सरकारी तुम यह कहां-कहां घूमते रहते हो नौकरी के लिए ।

सही मायने में मां और पापा यही सोचते थे कि मुझे घर की चिंता है इस वजह से नौकरी ढूंढ रहा हूं पर सच्चाई तो यह थी कि मुझे बबनी की चिंता थी मुझे नौकरी मिलने के पहले कहीं बबनी के पापा को नौकरी वाला लड़का ना मिल जाए। नौकरी करके मैं बबनी को जल्द से जल्द भगा ले जाना चाहता था अब तो ऐसा हो गया था जैसे बबनी के पापा से मेरा कोई कंपटीशन चल रहा हो नौकरी वाला लड़का ढूंढ रहे थे और मैं जोर-शोर से नौकरी ढूंढ रहा था उसके नौकरी ढूंढने वाले लड़के से पहले मैं कोई नौकरी ढूंढ लेना चाहता था। क्योंकि मुझे यह पता था बबनी के पिता को अगुवा हर रोज फोन कर कहता था । लड़के की तारीफ करता रहता था। लड़कों की ऊंची ऊंची डिग्रीओं की बात करता था। मगर बबनी के पिता को डिग्रीओं से कोई लेना देना नहीं था। वह अक्सर अगुवा से कहा करते,लड़के की नौकरी हो जाएगी इस बात से शादी नहीं करूंगा और लड़का पढ़ा लिखा है तो उसके सर्टिफिकेट्स का अचार थोड़ी डालूंगा कितने डिग्री लेकर घूम रहे हैं लड़का चाहे दसवीं पढ़ा लिखा हो मगर सरकारी नौकरी वाला होना चाहिए। तो शादी कर दूंगा । इतना कहकर वह अक्सर फोन पटक दिया करते थे । और फोन पटकने के बाद अगुवा पर चिड जाते थे "साला एक भी ढंग का रिश्ता नहीं ले कर आता है। आज कल डिग्री की क्या वेल्यू है जिस तरह प्राइवेट कॉलेज गली गली खुल गए है । डिग्री तो इसी तरह बट रही है।" सही मायने में जितना वह नौकरी वाले लड़के के लिए परेशान थे। उतना मैं भी नौकरी पाने को लेकर परेशान था।

यह सब शर्तें तो उनके पिता की थी पर बबनी की शर्ते इतनी कठोर नहीं थी। बस वह चाहती थी, अच्छी नौकरी ले लो जहां हम दोनों का गुजारा हो जाए उसकी ऐसी शर्त नहीं थी कि मुझे सरकारी नौकरी ही लेनी है इसलिए मैं गैर सरकारी नौकरी की जोर-शोर से प्रयास कर रहा था। लेकिन इन नौकरी के प्रयास के बीच एम.ए का इम्तिहान भी नजदीक आ गया। लगे हाथ सब कुछ छोड़ में एग्जाम की तैयारी में लग गया।

किसी तरह एग्ज़ाज भी खत्म हो गया। फिर उसी दौड़ में लग गया। अर्थात नौकरी की तलाश में लग गया। फिर पापा ने बोलना शुरू किया। एम. ए के बाद तुम बीएड कर लो। बिना बीएड के नौकरी होना मुश्किल है। फिर मुझे लगता था आदि जिंदगी तो पढ़ने में ही खप जाएगी। दूसरी तरफ पापा मेरे फर्स्ट क्लास एम ए पास होने की कामना कर रहे थे। उन्हें हमेशा लगता जिस तरह मैं बी. ए फर्स्ट क्लास पास हो गया हूं। उसी तरह अगर एम .ए फिर तो कहीं अच्छी नौकरी हो जाएगी। पर ऐसा हुआ नहीं मैं फर्स्ट क्लास एम.ए नहीं कर पाया। पर पापा को लगा कोई नहीं बी.एड को सही तरीके से निकलेगा।

.......

एक दिन ऐसे ही मैं इंटरव्यू देकर मिनी बस से उत्तर का घर की तरफ पैदल जा रहा था क्योंकि बस अड्डे से अपनी कॉलोनी का डिस्टेंस करीब दो किलोमीटर था। मैं हाथ में अपनी फाइल को लेकर पैदल चला जा रहा था पास से साइकिल वाले मोटरसाइकिल वाले कार वाले मेरे सामने गुजरते चले जा रहे थे और मैं पैदल आराम से चलता जा रहा था पर अचानक से एक कार मेरे सामने आकर रुक गई और कार का दरवाजा खोल दिया गया कार में नंदलाल बैठा हुआ था और मुझे कहा,आओ राजेश बैठ जाओ।

मैं कार में बैठ गया और कार अपनी रफ्तार से चल दी नंदलाल ने मुझसे झ्ट से कहा, कहा से आ रहे हो।

"बस नौकरी के लिए धक्के खा रहा हूं।" "श्यामलाल से क्यों नहीं सोर्स लगाने के लिए कहते हो उसकी तो इस वक्त बहुत बड़े बड़े नेताओं से दोस्ती है विधायक के चुनाव का टिकट मिला था जीत भी गया है पूरा गांव मऊ जिला उसके साथ है सबसे कम उम्र का युवा नेता है" फिर उन्होंने कागज पर उसका मोबाइल नंबर लिखकर मुझे थमा दिया "यह उसका मोबाइल नंबर लो राजेश" मैं कागज में मोबाइल नंबर को गौर से देखने लगा और यह सोचने लगा कि आप तो मित्र के पास तो मोबाइल भी है।

मैंने कहा,अब तो आप सब बहुत खुश होंगे।"

मैंने इस विषय में श्याम से पूछा था, जानते हो उसने मुझसे क्या कहा था मैं क्रिकेटर बन कर या ऑफिसर बन कर भी देश की सेवा करता और नेता बन कर भी देश की सेवा कर रहा हूं। अचानक से कार रुक गई हम उसी टेलीफोन बूथ में खड़े हो गए। जहां से मैं और कॉलोनी के लोग फोन किया करते थे । अब वह भी टेलीफोन बूथ ना होकर मोबाइल की दुकान हो गई थी । उसे भी देख कर मैं यही सोचता था कि इसकी भी तरक्की हो गई देख लो अच्छा खासा बिजनेस करने लगा। दूसरी तरफ ध्यान भी चाय बेचते बेचते चाय पत्ती का होलसेल का बिजनेस करने लगा और पूरे शहर में चाय पत्ती सेलिंग करने लगा उसने बेचना सीख लिया था। चाय बेचते बेचते चाय पत्ती को होलसेल में बेचने लगा था। इसीलिए कहते हैं कि किसी भी चीज को बेचने से कभी भी शर्म नहीं खाना चाहिए। नंदलाल ने अपना मोबाइल रिचार्ज किया और दोबारा गाड़ी में आकर बैठ गया कुछ देर में ही कॉलोनी भी आ गई और मुझे उतार दिया मैं पैदल चलते चलते मन ही मन सोचने लगा अब श्याम बड़ा आदमी हो गया है जब लोग बड़े हो जाते हैं तो उनकी आंखों में पट्टी बंद जाती है।

ऐसा नहीं था कि मुझे यह बात पता नहीं थी कि श्याम एमएलए बन गया है जिस दिन उसकी जीत हुई थी पूरी कॉलोनी में इस बात की चर्चा हुई थी लेकिन लोग कभी कभी जलन की वजह से किसी के अच्छे काम की चर्चा कम करते हैं बुरे काम की चर्चा को जोर जोर से करते है। फिर यह बात दबी सी रह गई थी।

.....