यारबाज़ - 10 Vikram Singh द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • कोन थी वो?

    वो इक खाब है या हकीकत ये लफ्जों में बयान ना कर सकता है पता न...

  • क से कुत्ते

    हर कुत्ते का दिन आता है, ये कहावत पुरानी है,हर कोई न्याय पात...

  • दिल से दिल तक- 7

    (part-7)अब राहुल भी चिड़चिड़ा सा होने लगा था. एक तो आभा की ब...

  • Venom Mafiya - 1

    पुणे की सड़कों पर रात की ठंडी हवा चल रही थी। चारों ओर सन्नाटा...

  • बारिश की बूंदें और वो - भाग 6

    तकरार एक दिन, आदित्य ने स्नेहा से गंभीरता से कहा, "क्या हम इ...

श्रेणी
शेयर करे

यारबाज़ - 10

यारबाज़

विक्रम सिंह

(10)

मैं उस शाम को अपनी प्रेमिका बबनी के आंगन के आसपास घूमने लगा अर्थात गुमटी के पास था । मैंने आज एक फिर पत्र लिखा था वह मैं बबनी को देना चाह रहा था। अचानक से बबनी आंगन में आ गई और आंगन के दरवाजे के पास बाहर आकर खड़ी हो गई मैं हर बार की तरह उसी अंदाज में उसके पास गया और उसके हाथ में पर्ची थमा दी ठीक उसी तरह उसने भी मुझे एक पर्ची थमा दी।

पत्र ले मैं उसी स्थान पर चला गया जहां हर बार जाता था और पेड़ के नीचे बैठकर मैं पर्ची पढ़ने लगा

"मैंने आर्ट्स ले लिया है तुमने भी आर्ट्स लिया है यार मैंने तुम्हें कहा था कॉलेज में एडमिशन कराना तुमने फिर भी गर्ल्स स्कूल में नाम लिखवा लिया । मैं जानता हूं तुम्हारे खड़ूस पापा मना कर रहे हैं ना वैसे तो इतना लड़कों से दूर रख रहे हैं बाद में तुम्हें जीवन भर के लिए किसी लड़के के पास ही भेजेंगे।"

दरअसल हमारे शहर में गर्ल्स स्कूल से लेकर गर्ल्स कॉलेज तक बने हुए थे । बस शहर में एक ही टी.डी.वी कॉलेज था जहां पर लड़के लड़कियां दोनों पढ़ सकते थे। जिन मां बाप को लगता था कि नहीं लड़कों के साथ पढ़ना लड़की का ठीक नहीं है वह अक्सर उन्हें गर्ल्स स्कूल गर्ल्स कॉलेज में ही भेज देते।

बबनी भी उसी अंदाज में जाकर पत्र पढ़ने लगी।

"मैंने आर्ट्स ले लिया है । पापा ने कॉलेज में एडमिशन लेने से मना कर दिया था आगे भी ग्रेजुएशन गर्ल्स कॉलेज में पढ़ने के लिए कहा है।"

पत्र पढ़कर मेरे चेहरे में अजीब सा एक्सप्रेशन आ गया था।कि मैं तो सोच रहा था कि चलो बारहवीं के बाद कम से कम कॉलेज में तो आएगी।

सही मायने में दसवीं फर्स्ट डिवीजन पास हुई थी। गर्ल्स स्कूल में उस वक्त साइंस नहीं था और उसके पापा नहीं चाहते थे कि वह कॉलेज में जाए साइंस पढ़ने इसीलिए उसने आर्ट्स ही ले लिया था। हां उसने यह सोच लिया था कि आगे वह भूगोल से ऑनर्स करेगी क्योंकि भूगोल थोड़ा थोड़ा साइंस जैसा ही तो लगता है।

जिस वक्त हम सब कॉलेज में एडमिशन ले रहे थे और विषयों के बारे सोच रहे थे उसी वक्त नंदलाल ने एक दिन आगे ना पढ़ने की बात मिथिलेश्वर चाचा को बोल दी।

"पापा हम आगे और पढ़ाई नहीं करना चाहते।"

मिथिलेश्वर चाचा को काटो तो खून नहीं कुछ ऐसा हो गया था अभी नंदा की उम्र कम थी आखिर इस उम्र में उसे कौन से काम में धकेल देते अभी तो उम्र पढ़ने की थी।

"अरे क्या हुआ चार बार फेल हो गए एक बार और ट्राई करो"

"चार बार अपनी बेइज्जती करा चुका हूं अब पांचवी बार की हिम्मत नहीं है अब मैं कुछ काम सीख लूंगा"

मिथिलेश्वर चाचा उसे कई तरह से समझाते रहे कई कई बड़े बड़े विद्वान लोगो का उदाहरण भी देते रहे। पर नंदलाल उस दिन किसी भी कीमत पर अब दोबारा एग्जाम नहीं देना चाहता था। हारकर चाचा ने कहा ठीक है अगर तुमने फैसला कर ही लिया है यहीं सही। मगर किसी काम को सीखने में भी दिमाग लगाना पड़ता है। उन्हें लगा कि जब यह पढ़ने लिखने में इतना गोबर गणेश था कहीं काम में भी ऐसा ही ना निकल जाए। नंदलाल अपने पिता का बस चेहरा ही देखता रह गया था।

उस दिन के बाद से चाचा ज्यादा दिमाग लगाने लगे कि आखिर इस गोबर गणेश को कौन से काम में लगाया जाए वह कभी सोचते हैं इसे कहीं हिसाब किताब मुंशी के भी काम पर लगा नहीं सकता क्योंकि दिमाग के जिस कद्र का था वह कहां हिसाब किताब कर लेता। फिर कभी कभी सोचते कि इसे एक छोटी सी कोई गोलदरी की दुकान खोल दूं उस पर भी वही दिमाग लगाते कि आखिर इसमें भी तो हिसाब किताब करना पड़ेगा सौ ग्राम से लेकर ढाई सौ ग्राम का हिसाब यह कैसे रख पाएगा। सोचते सोचते एक दिन ऐसे ही वह कांटा बाबू के काम पर लगे हुए थे उसी वक्त एक ट्रक ड्राइवर उसके पास आया और अपनी गाड़ी पहले लगाने के लिए जब उसे रिश्वत दिया तभी ना जाने क्या मिथिलेश्वर चाचा के दिमाग में ठनका और उसे रिश्वत लेते हुए कहा सुनो मेरा एक काम करोगे क्या? ट्रक ड्राइवर ने फटाक से कहा फरमाइए हुजूर। तब चाचा ने उससे कहा कि एक लड़का है क्या तुम उसे अपने साथ ट्रक में रखोगे थोड़ा तुम्हारे साथ ट्रक का काम का सीख जाएगा और उसे थोड़े बहुत पैसे भी मिल जाएंगे। चाचा ने यह कदापि उससे नहीं कहा कि वह मेरा लड़का है क्योंकि वह जानते थे कि अगर मैं उसे अपना लड़का बोल इसके साथ लगा दूंगा। तो यह उसे ना डांट फटकारेगा ना काम सिखाएगा। वह भी बाबू बन इसके साथ घूमता रहेगा और यह उसकी चापलूसी करता रहेगा। और फिर ट्रक ड्राइवर भी इतना सोच नहीं सकता था कि कांटा बाबू का लड़का खलासी गिरी भी करने आ सकता है क्या? उसने तत्काल कहा कि आप लड़के को ले आइए क्योंकि उन्हें लगा कि ऐसे तो मेरा ट्रक भी पहले ही कांटा हो जाया करेगा और थोड़ा सा कमाई में भी इजाफा हो जाया करेगा।

बस उसके बाद से नंदलाल को ट्रक में खलासी के तौर पर लगा दिया गया था वह ट्रक को दाएं-बाएं करने को कहता रहता था और ट्रक मैं तेल पानी भी चेक करना और डालने का काम करता रहता था। और खासकर ट्रक से स्टेफनी खोलना लगाना उसका मुख्य कार्य बन गया था क्योंकि कोयला लोड में यही काम ज्यादा चलता था।

ऐसे ही वक्त जब नंदा ट्रकों के कामकाज को सीखने में लग गया था हम सबका कॉलेज में एडमिशन हो चुका था और क्लास शुरु हो चुकी थी मेरा भी पहला दिन था हिंदी की क्लास में । पहले दिन जब प्रोफेसर साहब रजिस्टर लेकर आएं अटेंडेंस देने लगे तो उस अटेंडेंस में इस समय उन्होंने श्यामलाल का भी नाम लिया और श्याम पीछे से प्रजेंट महोदय बोल कर उठा तो मैंने पीछे मुड़कर देखा तो श्याम ने भी आर्ट्स लें लिया था मैं आपसे चकित हो गया मैं यह सोच रहा था कि श्याम साइंस के क्लास में जाएगा पर वह आर्ट्स के क्लास में आकर कैसे बैठ गया था । क्योंकि कॉलेज भी दोनों साथ आए थे। रास्ते में भी श्याम ने कुछ भी मुझे नहीं बताया। वह मेरे साथ आर्ट्स क्लास में आकर उसने मेरे लंगोटिया यारी को शायद निभाया। पहली घंटी थी और अटेंडेंस होने के बाद प्रोफेसर साहब पूरा लेक्चर पढ़ाने लगे थे। हम सब सुन रहे थे। घंटी खत्म होते ही उठकर श्याम के पास चला गया और कहा यार तुझे तो साइंस में गणित के क्लास में होना चाहिए था श्याम ने उस दिन कहा दोस्त जीवन का गणित सही होना चाहिए किताबी गणित में क्या रखा है जीवन का गणित मुझे यही बता रहा था कि तू मुझे तुम लोगों के साथ होना चाहिए था विषय चाहे कोई भी हो किसी विषय में टॉप होने से कुछ भी हासिल हो सकता है।

खैर श्यामलाल ने जो भी किया था मैं वह भूल गया और सही मायने में उसे क्लास में देखकर तो मुझे बहुत खुशी हुई थी कि साला जो भी है ,है तो मेरे साथ ही और मैंने तो भाई उसको गले लगा लिया था।

.....

एक ही दिन दो बातों का पर्दाफाश हुआ था। उस दिन भी हर दिन की तरह नंदा लाइन में लगे ट्रक में खलासी के तौर पर दाएं-बाएं कर रहा था उसी वक्त एक बंदा यमदूत की तरह उसके पास खैनी मलता हुआ आया और उसे कहने लगा," काटा बापू का लड़का होकर यह क्या तुम ट्रक खलासी गिरी में लगे हुए हो।"

नंदा ने शर्म के मारे अपना सिर झुका लिया था और बस इतना ही उसके मुंह से निकला था "जी जी"

अनीता देवी भी महिलाओं के बीच में ही बस गप्पे हांक रही थी। कोई अपनी बेटी तो कोई अपने बेटे की बात कर रहा था कौन सा विषय लेकर कॉलेज में पढ़ रहा है तो उसी पर एक जन ने कह दिया श्याम ने भी तो आर्ट्स ही ले लिया है ना लेकिन अनीता देवी ने बड़े ही मुंह फुलाकर कहा,नहीं श्याम तो साइंस पढ़ रहा है । नहीं नहीं हमें तो पता चला है वह तो आर्ट्स की क्लास में बैठता है।

उस दिन मिथिलेश्वर चाचा को श्याम पर खूब गुस्सा आया था। और नंदलाल मिथिलेश्वर चाचा पर बहुत क्रोधित हो उठा था। मिथिलेश्वर चाचा श्याम पर खूब गहरा जा रहे थे तुम आर्ट्स लेकर बैठ गए टेक्निकल युग में यह हिंदी इतिहास पढ़ कर क्या होगा रे तुम्हारा? हम तो सपना देख रहे थे तू डॉक्टर बनेगा इंजीनियर बनेगा,कुछ तो बनता। अभी इसको पढ़कर तू क्या बनेगा।"

"पापा इसको पढ़कर भी बहुत सारे विकल्प हैं।"

"हमको डॉक्टर इंजीनियर छोड़कर कोई दूसरा विकल्प नहीं आता है"

सही मायने में हमारे कॉलोनी में लोगों ने कोलियरी में इंजीनियर को देखे थे और दूसरा इलाज कराते हुए शहर में डॉक्टरों को देखा था तीसरा उन्होंने कोई ऑप्शन नहीं देखा था उन्हें नहीं पता था कि किसी और पदो का भी एग्जाम होता है, उन्हें नहीं पता था यूपीएससी का भी एग्जाम होता है उन्हें नहीं पता था कि कोई आई.ए.एस और आई.पी.एस ऑफिसर भी होते हैं इन सब बातो से वह दूर-दूर तक परीचित नहीं थे।

अभी मिथिलेश्वर चाचा अपना गुस्सा श्यामलाल पर निकाली रहे थे कि तब तक नंदलाल अपना गुस्सा लेकर घर घुस गया।

वह आते ही बरस पड़ा हम ट्रक में नहीं जाएंगे काम करने को

मिथिलेश्वर चाचा एकदम से हड़बड़ा के बस इतना पूछा,"क्यों नहीं जाओगे"

हम अपना ट्रक लेंगे। सब कहते हैं काटा बाबू का लड़का होकर तू ई कौन काम पर लग गया है।

पहले पहल तो मिथिलेश्वर चाचा का दिमाग काम नहीं किया आखिर वहां कैसे पता चल गया कि यह मेरा बेटा है

तुमको सब चढ़ाते हैं कोई भी आदमी है एका एक पहाड़ में नहीं चढ़ जाता है कहीं से शुरुआत करनी पड़ती है पहले छह-सात महीने कुछ सीख ले फिर उसके बाद ट्रक ले ले लेना

इस बात से नंदलाल थोड़ा चुप हो गया। उसका गुस्सा से सीधे सिर पैर में आ गया। और उसने इतना ही कहा," ठीक है"

नंदा वहां से चुपचाप निकल गया और उस दिन दोनों मामले शांत पड़ गए और अपने अपने हिसाब से फिर जिंदगी आगे बढ़ी

.....

जिंदगी अपने हिसाब से रगने लगी। सब ने अपनी मन की और अपने मन के हिसाब से काम करने लगे। नंदलाल पहले से ज्यादा अपने काम पर ध्यान देने लगा। वह सब कुछ सीखने लगा क्लच ब्रेक इंजन। जैसा कि आप सबको पता था कि नंदलाल कांटा बाबू का लड़का है जो पहले यह कहते रहते थे कि देखो कांटा बाबू का लड़का होकर यह क्या काम कर रहा है अब वही कहने लगे थे कि देखो जब यह कांटा बाबू का लड़का होकर इतनी मेहनत कर रहा है और हमारे बच्चे भी इतना मेहनत नहीं करेंगे। नंदलाल सबकी आंखों में चढ़ने लगा और आंखों में चढ़ कर सबके दिमाग होते हुए दिलों में उतर गया।

श्याम आर्ट्स में पढ़ने लगा। जैसा कि श्याम ने कहा था विषय कोई भी हो उसे मन लगाकर पढ़ने से कुछ होता है ठीक वैसे ही श्याम आर्ट्स में ही मन लगाकर पढ़ने लगा मैं भी वैसे ही पढ़ रहा था बबनी भी अपनी पढ़ाई पढ़ रही थी हम दोनों में बीच-बीच में बस वैसे ही पत्र का आधान प्रदान हो रहा था और जिंदगी धीरे धीरे सरकते हुए कब साल भर में पार हो गई और हम 11वीं से बारहवीं में प्रवेश कर गए। अगर हमारे जीवन की तरक्की में एक क्लास आगे फाद गए थे। नंदलाल ने भी सालभर में ऐसी तरक्की दिखाई वह ट्रक का हर काम सीख गया। बी चेक से लेकर ट्रक चलाना सीख लिया था साथ ही साथ अपना खर्च भी निकाल रहा था यह सब देख मिथिलेश्वर चाचा नंदलाल पर पहली बार बहुत खुश हुए थे कि मेरा खोटा सिक्का चल गया इस बार श्याम से भी कहीं ज्यादा नंदलाल पर खुश हुए थे उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा था कि यह वही नालायक बेटा है जिसके बारे में मैं सोच रहा था यह कुछ नहीं कर पाएगा। क्योंकि नंदा हर शाम जब घर वापस आता था तो उसके कपड़े ग्रीस मोबिल से सने रहते थे। सिर के बाल भी बुरी तरह बिखरे रहते थे। यह हो वक़्त था जब लड़के अच्छे कपडे और बाल कंगी कर लड़कियों के पीछे घूम रहे थे। नंदलाल साल भर ट्रकों में काला हो रहा था। उसकी मेहनत सफल हुई।

और आखिर एक दिन गेंदों के फूलों से सजा हुआ ट्रक उसके घर के बाहर खड़ा था और पंडित जी पूजा-पाठ के बाद नारियल ट्रक के आगे फोड़ा था और नंदलाल के हाथों में मिथिलेश्वर चाचा ने चाबी पकड़ा दी थी। अब वो ट्रक ,खलासी ,ड्राइवर के बाद एक ट्रक का मालिक हो चुका था।

किंतु मालिक होने के बाद भी अपने ट्रक का ड्राइवर खुद बना।

सच भी था कि खोटा सिक्का चल निकला था ट्रक से कमाई होने लगी थी। और मिथिलेश्वर उन पैसों से भी खेत लिखवाने लग गए थे।

ट्रक के बिजनेस से मिथिलेश्वर चाचा इतने खुश और प्रभावित हुए कि मात्र 6 महीने के अंदर ही उन्होंने एक ट्रक और ले ले लिया।

एक दिन फिर उसके घर के बाहर गेंदे के फूल से सजा एक दूसरा ट्रक खड़ा था पंडित जी ने फिर उस ट्रक के सामने एक नारियल फोड़ा था और नंदलाल के हाथों में एक ट्रक की चाबी पकड़ा दी गई थी। हां उसके बाद नंदा सही में ट्रक का मालिक हो गया था। उसने दोनों ट्रकों में ड्राईवर रख दिया था।

अब कॉलोनी में श्यामलाल की चर्चा बंद हो गई थी और नंदलाल की चर्चा जोरों से शुरू हो गई थी लोग कहने लगे थे कि देखो चार बार दसवीं में फेल होने के बाद भी लड़के के पास भी दो ट्रक हो गए हैं और दो ट्रक का मालिक हो गया है और इतने अच्छे पैसे कमाने लगा है।

पता नहीं था कि मिथिलेश्वर चाचा को लालच था या पूरी कॉलोनी की नजर नंदलाल को लग गई थी एक दिन ट्रक लोड करके अभी निकला ही था कि आगे जाकर वह एक खाई में जाकर गिर गया और शुक्र था कि उस ट्रक का ड्राइवर नंदलाल ना होकर कोई और था ड्राइवर बाल-बाल बच गया था खलासी बाल-बाल बच गया था पर ट्रक की हालत ऐसी हो गई थी कि उसे हाइड्रा बुलाकर उठाना पड़ा था और हाइड्रा के ही सहारे उठाकर उसे गैरेज के अंदर डाल दिया गया था लगे हाथ अभी पहले ट्रक की गैरेज में मरम्मत हो ही रहा था कि एक दिन दूसरा ट्रक भी इसी तरह एक्सीडेंट में चकनाचूर हो गया उस दिन मिथिलेश्वर चाचा कांटा घर में थे और उसी समय उन्हें फोन आया और दो सेकेंड बात कर वह तुरंत हाईवे रोड की तरफ भागे जहां उनका ट्रक उल्टा हुआ था आसपास भीड़ इकट्ठी थी। वो भी भीड़ का हिस्सा होकर ट्रक को देखते रह गए थे।

फिर कॉलोनी में खूब बाते होने लगी। कुछ कहते नंदालाल खुद ड्राईवरी करता तो ऐसा नहीं होता। कुछ कहते अच्छा हुआ जो नंदालाल ट्रक में नहीं था नहीं तो अनहोनी हो जाती। सही मायने में तो मिथिलेश्वर चाचा ने भी सोच लिया था कि अब नंदलाल को ड्राईवरी नहीं करने दूंगा। जान बचे तो लाखो पाए।

कहते हैं कि लोगों की जैसे नजर लगी उसके बाद की दास्तान तो यह थी कि ट्रक कभी सही से चले ही नहीं,कभी कलच टूटा, कभी गैर बॉक्स तो कभी कुछ तो कभी कुछ। हमेशा ट्रक गेरेज़ में ही घूमता रहा ट्रकों से कमाई कम और पैसे ज्यादा लगने लगे थे कुछ लोग तो यह भी कह रहे थे कि नंदा और मिथिलेश्वर को लोहा सूट नहीं कर रहा है। पंडित की बात याद थी कि नंदा को लोहा विश्वकर्मा तो सूट करेगा पर सरस्वती नहीं आ पाएगी। मिथिलेश्वर चाचा ने यह भी सोचा कि इंसान को असफल बोल देने से असफल नहीं होता है क्योंकि जब तक को मैदान में टिका है तब तक वह असफलता नहीं है।

इस तरह के हालात देख नंदलाल परेशान हो गया और एक दिन उसने मिथिलेश्वर चाचा से कहा मैं सोच रहा हूं ट्रक बेच देते हैं कुछ दूसरा धंधा करता हूं।

मगर मिथिलेश्वर चाचा ने मुस्कुराते हुए कहा कभी कभार भगवान इंसान की इम्तिहान लेते हैं इम्तिहान में पास होने वाले इंसान को तरक्की देते हैं डर मत दिमाग लगाओ।

उसने पिताजी को समझाने की कोशिश की मगर पापा अब ट्रक से कमाई कम खर्च ज्यादा हो रहे हैं

"बेटा जब खर्च बढ़ जाते हैं ना तो कमाई का जरिया ढूंढना पड़ता है"

नंदलाल अपने पापा का चेहरा देखता रह गया था और वह सोचता रह गया था आखिर अब कौन सा ऐसा जरिया है जिससे पैसा ज्यादा से ज्यादा आ सकता है।

..........