यारबाज़ - 11 Vikram Singh द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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यारबाज़ - 11

यारबाज़

विक्रम सिंह

(11)

ऐसे वक्त मिथिलेश्वर चाचा को एक उपाय सूझा। उन्होंने यह सोचा कि श्याम और अपनी पत्नी अनीता देवी को गांव भेज देते हैं। आखिर उसने जो जमीन गांव में खरीदी थी उस जमीन का कोई और ही तो इस्तेमाल कर रहा है। उन्हें लगा कि अगर यह खुद जाकर जमीन में खेती करवाएंगे तो आय का साधन बढ़ सकता है। सो उन्होंने मन ही मन श्याम और अनीता देवी को गांव भेजने का प्लान बना लिया।

एक रात चाचा ने सोते वक्त चाची अनीता देवी जी से कहा, "श्यामलाल के 12वीं की परीक्षा के बाद तुम और श्यामलाल गांव चले जाओ।"

किसी बात को बताने के लिए जैसे कोई माहौल बनाया जाता है मिथिलेश्वर चाचा ने ऐसा कुछ ना कर सीधे अपनी बात रख दी थी चाची को एक पल के लिए लगा कि कहीं यह बोरा तो नहीं गए हैं। "वह किस लिए।"

मिथिलेश्वर चाचा सोच-विचारकर धीमे धीमे बोलने लगे, "क्योंकि अब तक जो मैंने जमीने गांव में खरीद रखी थी अब उसका उपयोग करने का समय आ गया है हमारी जमीनों में कोई और फसल उगा बेच खा रहा है । अब तुम और श्यामलाल वहां रहकर फसल उगाना और बेचना हमें अपना ट्रकों के बिजनेस को संभालने के लिए ऐसा करना पड़ेगा।"

"फिर क्यों नहीं ट्रक बेचकर कोई दूसरा धंधा खोल देते हो"

"वाह! बहुत सुझाव दिया तुमने जब दूसरे धंधे में फेल हो गया फिर तीसरा व चौथा रही बात गांव की तो पहले भी तुम गांव में ही पली-बढ़ी हो कोई मुंबई में नहीं आई हो।"

"बल्ला खेलने वाला लड़का कर लेगा खेती?"

"भाग्यवान में खेती नहीं सुपरवाइजरी करने को कह रहा हूं। रिलायंस कंपनी का नाम सुनी हो उनका दुनिया में बहुत सारे व्यवसाय हैं तो इसका मतलब यह नहीं कि उन्हें सारी चीजों का ज्ञान है।"

चाची जानती थी कि मिथिलेश्वर चाचा से तर्क वितर्क करना बेकार की बातें क्योंकि उन्होंने जो सोच लिया है अब वह करके ही मानेंगे सो उन्होंने अपनी कमर मोड़कर सो गई मिथिलेश्वर चाचा भी उन्हें मनाने के मूड में अपने पैर उसके ऊपर चढ़ा दिये।

......

मैंने पहली बार बबनी को दीवार फांदकर घर से निकलने के लिए चिट्ठी लिखी थी। अर्थात घर से बाहर चारदीवारी के बाहर मिलने के लिए बुलाया था। ऐसा नहीं था कि वह घर से बाहर नहीं निकलती थी पर मेरे लिए तो कभी नहीं निकली थी। वह इस बात से डरती थी कि हम कि हम दोनों को कोई देख न ले। फिर कहीं उसके पापा को यह बात पता चल गई तो तुरंत उसे ब्याह देंगे। आंगन के पास तो मै सिर्फ पत्र फेंक कर चला जाया करता था।

"क्या तुम कल कॉलेज में आ पाओगी। स्कूल के समय निकलकर कॉलेज आ जाना एक बड़ा सा इमली का पेड़ है मैं वहां तुम्हारा इंतजार करूंगा कब तक आंगन में मिलती रहोगी इसके आगे भी कुछ होगा कल आना जरूर कल हमारा क्रिकेट का फाइनल मैच है श्याम खेलेगा हमारे तुम्हारे रहने से श्याम का मनोबल बढ़ेगा तुम जरूर आना।"

कॉलेज के बाहर एक बड़ा सा ग्राउंड। ग्राउंड में हर तरह के खेल खेले जाते थे। और यहीं कॉलेज के लड़के आपस में क्रिकेट मैच भी खेलते थे। उस दिन श्याम का भी मैच था।

तेज रफ्तार से गेंद श्याम के तरफ आ रही थी श्याम भी उतनी ही रफ्तार से अब आगे बढ़ रहा था उसने कॉलेज में भी क्रिकेट पर अच्छा नाम कमा लिया था उस दिन भी मैच था। उस दिन सचमुच में बबनी ने चारदीवारी को तोड़ते हुए वह कॉलेज में अपनी साइकिल ले आ गई थी मुझे लगा था कि वह इतना बड़ा साहस नहीं कर पाएगी और उस दिन मुझे लगा कि नहीं वह साहसी है। खास कर के मेरे प्रेम के प्रति उसका साहस बहुत है। हम दोनों भीड़ के बीच का हिस्सा बन गए थे और श्याम का क्रिकेट देखने लगे थे उस दिन भी श्याम चौके-छक्के लगा रहा था और तालियां चारों बज रही थी तालियां मैं भी बजा रहा था और उसी तरह बबनी भी तालियां बजा रही थी मैंने उतावला हो कर कहा जान एक दिन ऐसा होगा हम दोनों श्यामलाल का मैच बड़े स्टेडियम में बैठकर देखेंगे। बबनी ने मुझसे पूछा सच ऐसा होगा क्या? मैंने बड़े जोर से कहा था होना ही है ना होने की कोई बात ही नहीं। बबनी ने हाथ में लगी घड़ी देखी और हड़बड़ी में मुझसे कहा," मैं जा रही हूं" और फिर वहां से भागी अपनी साइकिल उठा कर चलती बनी ।

श्याम ने उस दिन बहुत अच्छा क्रिकेट खेला था जैसे कि हर बार खेलता था। उस दिन भी लोग बाग कि तालियां और सिटी पटाखे फूटे थे । मैच श्यामलाल की टीम ने जीता था। और उस दिन भी मैदान के अंदर सभी भाग कर उसे गोद में उठा लिया था।

उस दिन कॉलेज से लौटते वक्त मैंने ही श्याम से कहा था,"श्यामा बारहवीं के बाद तू कोलकाता कोचिंग लेने चला जा वहां से आगे बढ़ने का और रास्ता मिलेगा।

श्यामलाल ने मेरी बात पर हामी भरते हुए मुझसे कहा था हां अब मैं भी लोकल में कब तक खेलता रहूंगा मैं भी सोच रहा हूं सही कह रहे हो मुझे कोचिंग लेने कोलकाता चला जाना चाहिए पहले बारहवीं के एग्जाम हो जाए।

"हां वहां से तुम्हें आगे बढ़ने का बहुत स्कोप मिलेगा और तुम अपनी मंजिल पर सही दिशा में बढ़ पाओगे।"

......

अगर सारी चीज अपने सोचे अनुसार ही होने लगती है तो फिर जीवन में संघर्ष नाम की कोई चीज होती ही नहीं बस सिर्फ सोचना था और पल भर में वह काम हो जाना था। बारहवीं के एग्जाम हो चुके थे और हम सब हर बार की तरह बस परीक्षा फल का इंतजार करने लगे थे। बस स्कूलों और कॉलेजों एग्जाम में ऐसा होता है जहा हर एक विद्यार्थी फल का इंतजार करता है नहीं तो हमेशा यही कहा जाता है कि कर्म करो फल की इच्छा मत करो । ऐसे ही एक दिन हम दोनों अर्थात श्याम और मैं एक पेड़ के नीचे बने चबूतरे में बैठे थे और श्यामलाल ने मुझे धीरे से कहा था परीक्षाफल निकलने के बाद मैं गांव पढ़ने चला जाऊंगा।

यह सुनकर मैं एकाएक चौक गया। मैंने कहा," कोलकाता जाने की बात हो रही थी यह गांव जाने की बात कहां से आ गई।"

जीवन का गणित यही कह रहा है कि इस वक्त घर वालों को मेरी बहुत जरूरत है इस वक्त मेरा गांव चले जाना ही ठीक है फिर हम वहां भी खेल सकते हैं।" मैं उससे वजह जानना चाहता था कि आखिर वह क्यों गांव जाना चाहता है। उसने मुझसे जो कहा और वह सुन मैं अपने दोस्त पर गर्व करने लगा था उसने कहा था, दुनिया की सब चीजों के बाद अपना एक घर होता है छोटा सा घर। उस घर में आई परेशानियां भी अपनी परेशानियां होती है। अपने स्वप्न के लिए घर को भूल जाना कहा की समझदारी है। अगर घर को घर समझेंगे तो वह घर,घर होता है।

फिर उसके बाद देखते ही देखते एक दिन बारहवीं का रिजल्ट भी निकला और श्याम फिर फर्स्ट डिवीजन पास हुआ था वह आर्ट्स में भी फर्स्ट डिवीजन पास हुआ था उस दिन समझ आया कि नहीं श्याम का गणित ही नहीं उसका इतिहास और भूगोल भी सही है। दरअसल वह किताबों के साथ साथ बाहर की दुनिया देखने का भी अलग नजरिया था।

फिर एक दिन श्याम ने जैसा कि कहा था वह सही हुआ वह अपनी मां के साथ अपने गांव निकल गया था।

........

श्याम के जाने के बाद मेरा एकदम भी मन नहीं लग रहा था कॉलोनी खाली-खाली सी लगती थी कॉलेज भी सूना- सूना सा लगता था। किताबें भी बोरिंग लग रही थी और ना जाने बहुत कुछ ऐसा ही महसूस होने लगा था। सिर्फ मुझ में ही नहीं मिथिलेश्वर चाचा में भी बहुत सारा बदलाव आ चुका था अब वह कुछ और ही ढंग से रहने लगे थे यहां तक कि उन्होंने अपना रवैया कांटा बाबू के उस कमरे में भी बदल लिया था। अब वह एक ही गणित लगाते रहते थे कि किस तरह ज्यादा से ज्यादा पैसा अर्जित हो और अपने ट्रकों के बिजनेस को संभाल सके। वह हर एक ट्रक ड्राइवर को अब यह कहने लगे थे कि अब अगर कांटा पहले कराना है तो पुराने रेट में नहीं हो पाएगा नया रेट शुरू हो गया है।

इतना ही नहीं था अब उनके चलने के ढंग में ही बदलाव आ गया था वह अक्सर अपनी उंगलियों में गिनती करते हुए चलते चले जाते थे पता नहीं कौन सा हिसाब करते रहते थे समझ नहीं आता था कि कौन सा हिसाब बार-बार होता रहता है। एक दिन ऐसे ही मेरे पास से गुजर रहे थे उस दिन भी उगलियो में हिसाब-किताब करते हुए जा रहे थे मैंने चाचा को दो-तीन बार आवाज लगाई पर चाचा ने एक बार भी नहीं सुना। उस दिन भी वह हिसाब में डूबे हुए चलते चले जा रहे थे। मैंने बड़े जोर से उन्हें नमस्ते पुकारा। अचानक से चाचा का ध्यान टूटा चौक कर मुझे देखने लगे ,देखते हुए बोले अरे राजेश बेटा कैसे हो।

"मैं ठीक हूं चाचा जी आप कैसे हैं।"

मैं भी ठीक हूं बेटा और पढ़ाई कैसी चल रही है।

"अच्छी चल रही है श्याम कैसा है वह कब आएगा?"

मिथिलेश्वर अपनी पॉकेट से एक छोटी डायरी निकाल कर मुझसे कहा एक नंबर लिख लो वहां गांव में पी.सी.ओ है पी.सी. ओ वाला से कह देना श्याम से बात करा दो। क्योंकि उस वक्त ना मेरे पास पैन और कागज था मैं हड़बड़ा गया कि मैं लिखूं कैसे तभी अचानक ही चाचा ने मुझे पेन निकाल कर दिया और कहा कि हथेली पर लिख लो घर जाकर उतार लेना मैंने पेन लिया और चाचा ने मुझे नंबर बताया और मैंने उसे अपने हथेली पर लिख लिया। जैसे ही मैंने नंबर हथेली पर लिख कर पेन उन्हें पकड़ाया तो उन्होंने कहा," इस नंबर पर तुम्हारी श्याम से बात हो जाएगी।"

नंबर मिलते ही में उतावला हो गया मुझे लगने लगा कि मैं कब श्याम से बात करूं उन दिनों मेरे पास भी मोबाइल नहीं था ना ही श्याम के पास था। हमारी कॉलोनी में एक पी.सी.ओ था। वह भी एक अपाहिज लड़के ने खोल रखा था और उस पैसों से अपनी रोजी-रोटी चला रहा था। जो मैं आप लोगो को पहले ही बता चुका हूं।

मैं हर दिन सुबह माधव पाल सर के पास में ट्यूशन पढ़ने जाया करता था और रास्ते में ही वह नकली पैर वाले का टेलीफोन बूथ भी पड़ता था। माधव पाल सर मुझे अंग्रेजी पढ़ा करते थे क्योंकि मेरी मैथ के साथ साथ अंग्रेजी भी कमजोर ही थी। पर माधव पाल सर मेरी मेहनत को देखकर बहुत खुश थे कि मैं मेहनत करके ठीक चीजों को पकड़ रहा था। मैं टेलीफोन बूथ के पास जाकर जैसे ही मैं टेबल पर बैठा है कि टेलीफोन बूथ वाले ने मुझसे कहा प्रेमिका से बात करनी है तो रुकना पड़ेगा अंदर क्लासिक सीन चल रहा है।

मैंने बूथ वाले से कहा कि नहीं मुझे किसी प्रेमिका से बातें नहीं करना ,मुझे अपने मित्र से बात करना है। एसटीडी कॉल लगानी है मैं यही से बात करूंगा बूथ वाले ने मुझसे नंबर लिया और नंबर लगाकर रिसीवर मेरे हाथ में पकड़ा दिया। उधर से किसी ने जैसे ही फोन उठाया मैंने उससे कहा कि जरा श्याम को बुला दीजिए दूसरी तरफ बूथवा ले ने कहा दस मिनट बाद फोन कीजिए बूथ वाला थोड़ा जोर से ही आवाज लगाता है थोड़ा श्यामलाल को बुला दे तो मैं इतनी आवाज सुनता हूं कि मैंने रिसीवर रख दिया।

तब तक केबिन से एक लड़का अपनी रोनी सी सूरत बना कर निकला और बूथ वाले को पैसे देता है बूथ वाला उसे पैसे लेकर कहता है खा गया बेचारा प्यार में धोखा लड़कियों का कोई विश्वास नहीं। यह सुन में थोड़ी देर के लिए निराश हो गया अचानक से बूथ वाले ने फिर मुझसे कहा दस मिनट हो गया है फोन लगा लो। बूथ वाले ने मुझे दोबारा नंबर लगा कर रिसीवर मुझे पकड़ा दिया उधर से बूथ वाले ने फोन उठाया "भाई साहब श्यामलाल घर पर नहीं है कल सुबह 7:00 बजे करिएगा"

" मैं कल सुबह फोन करूंगा " मैंने इतना कह रिसीवर रख दिया।

अगले दिन सुबह ट्यूशन के टाइम से आधा घंटा पहले ही निकल गया और जाकर मैं टेलिफोन बूथ से श्याम को फोन लगा दिया। फोन लगाकर मैंने जैसे ही यह कहा कि थोड़ा श्याम को बुला दीजिएगा तो मुझे उधर से आवाज आई कि मैं श्याम ही बोल रहा हूं। मैंने जैसे ही श्याम का नाम सुना और उसकी आवाज सुन मैंने कहा," श्याम में राजेश बोल रहा हूं"

"तुम्हारी आवाज से ही मैं समझ गया था"

मैंने श्याम से पूछा," कैसे हो श्याम"

"मैं तो ठीक हूं अपनी सुनाओ"

"तुम तो गांव जाते ही मुझे भूल गए यार वैसे तो जब भी तुम्हारे बाबूजी मुझे मिलते हैं मैं तुम्हारे बारे में जरूर पूछता हूं"

" मुझे पता है तुम अक्सर मेरे बारे में पापा से पूछते रहते हो पापा हमेशा मुझसे कहते हैं रजेशवा तुम्हारे बारे में पूछता रहता है बहुत याद करता है"

राजेशवा सुनकर मुझे जोर से हंसी आ गई। श्याम हंसने लगा। श्याम ने मुझसे कहा, मेरे गांव आ जाओ घूमने के लिए"

" तुम क्यों नहीं आ जाते हो।"

"समय मिलने पर जरूर आऊंगा।

तुम आओ गांव में घुमाऊंगा।"

अभी तो परीक्षा है उसके बाद सोचूंगा

" ठीक है परीक्षा के बाद प्लानिंग कर लेना।" "हां बताऊंगा।"

अचानक से मेरी नजर घड़ी पर गई। मैं देखता हूं कि समय बहुत अधिक हो गया था मैंने झट से श्याम से कहा," सुन मेरा ट्यूशन का समय हो गया है मैं अभी फोन रख रहा हूं।"

उस दिन के बाद से फिर श्याम से फोन पर बातों का सिलसिला शुरू हो गया कई दफा उसे फोन किया ट्यूशन जाते समय।

अब तो मुझे उसके गांव जाने की भी खलबली मच गई थी कि कितनी जल्दी मेरा एग्जाम खत्म हो जाए और मैं उसके गांव घूमने जाऊं। एक दिन सुबह पापा अखबार पढ़ रहे थे मैं उन्हीं के पास बैठकर पढ़ रहा था साथ ही मेरी दोनों बहने भी मेरे सामने ही बैठ कर पढ़ती हम सब सुबह अक्सर ही 5:00 बजे उठ जाया करते थे और 6:00 बजे हम पढ़ने बैठ जाया करते थे उसी के सामने सोफे में ही पापा भी अखबार पढ़ने बैठ जाया करते थे। अचानक से मैंने पढ़ते हुए पापा से कहा पापा में एग्जाम के बाद श्याम के यहां घूमने जाऊंगा। मेरी बात खत्म होते होते ही मां चाय का प्याला लेते हुए आई और चाय रखते हुए बोली लो दुनिया में इतनी जगह पड़ी है इसे श्याम के गांव जाना है घूमने के लिए वाह क्या बात है।

पर पापा ने मां की बात को नजरअंदाज करते हुए मेरी बात का समर्थन करते हुए कहा," ठीक है चले जाना घूमने के लिए फिलहाल एग्जाम की तैयारी में मन लगाओ।"

मां को जैसे मन ही मन गुस्सा आया हो। पर पापा ने मां का गुस्सा शांत करने के लिए कहा ,"घूमने फिरने दो इससे लड़के का दिमाग खुलेगा सिर्फ किताबी पढ़ाई से कुछ नहीं होता है" मॉ यह सुन वहां से चली गई मैं किताब पढ़ने में मगन हो गया और पापा चाय सुड़कने लगे । उस दिन के बाद से मैं एग्जाम की तैयारी में लग गया और हर दिन यही सोचता है कि जल्द से जल्द एग्जाम खत्म हो जाए और मैं घूमने के लिए निकल जाऊं।

.......

खैर एग्जाम भी खत्म होते ही पापा ने वादे अनुसार मुझे जाने दिया। एग्जाम खत्म होते ही मैंने फटाफट सबसे पहले टिकट कटाई। टिकट कटाने के बाद मैं हर दिन कैलेंडर में तारीख देखने लगा। हर दो दिन में। और इसके पहले श्यामलाल से वार्तालाप फोन पर कुछ ज्यादा होने लगा आखिरी बार उसने मुझसे बात की तो इतना कहा था कि मैं स्टेशन पर तुझे लेने आ जाऊंगा चिंता की बात नहीं है।