यारबाज़
विक्रम सिंह
(5)
खुराक एक छोटा सा बाजार था। बाजार में बहुत ज्यादा दुकानें तो नहीं थी बस एक आध फर्नीचर की दुकान ,खाद की दुकान , किराना की दुकान, होलसेल कपड़े की दुकान थी। बाजार में ज्यादातर शाम को ही भीड़ होती थी। दोपहर के वक्त तो नाम मात्र के लोग ही होते थे। खुरहट बाजार के आसपास के कई गांव थे। थोड़ा हटके के पास ही केसारी गांव की पढ़ता था। केसारी गांव में ही अमरनाथ नाम का लड़का भी रहता था। अमरनाथ के पिता दुबई में नौकरी करते थे। वह साल भर में एक बार ही आते थे। अमरनाथ मां-बाप का एकलौता लड़का था। उसकी एक बहन थी साक्षी। उसने एक हीरो होंडा स्पलेंडर बाइक अपने पास रखी थी।और उसी से घूमता फिरता रहता था। राजनीती में खूब रुचि रखता था। चुनाव में खड़ा होने की तैयारी कर रहा था। गांव के लड़कों से लेकर कॉलेज के कई लड़कों पर खूब पैसे खर्च किया करता था।गांव के लोग उसके बारे बस यही कहते थे। दुबई का पैसा उड़ा रहा है। अमरनाथ अपनी बाइक पर सवार हो निकलने की तैयारी करने लगा। साक्षी दरवाजे पर खड़ी हुई इधर- उधर देखती रही जब तक कि अमरनाथ उसकी आंखों से ओझल नहीं हो गया। जैसे ही अमरनाथ ओझल हुआ। अचानक एक लड़का सामने आकर एक लेटर फेंक कर चला गया। साक्षी लेटर लेकर अंदर चली गई।
साक्षी बाथरूम में जाकर पत्र पढ़ने लगी । "जान! तैयार होकर 11:00 बजे चौराहे पर आ जाना। मैं इंतजार करूंगा"
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कॉलेज के पास एक छोटी सी चाय पान की दुकान थी। कॉलेज के लड़के इसी चाय दुकान पर बैठकर सिगरेट और साथ में चाय की चुस्कियों का मजा लिया करते थे और साथ ही साथ आती-जाती कॉलेज की कुछ लड़कियों को लाइन भी मारते थे और इसी चाय की दुकान के पास कई रोमियों को चांटे और सैंडल की मार भी पड़े थे। इसी चाय की दुकान के पास खड़ा होकर अमरनाथ नाम का लड़का सिगरेट पी रहा था और वहां बड़ा खुशीपूर्वक रामलाल नाम का लड़का आया और कहा,"नेताजी! काम हो गया आज। राहुल ने अपने दोस्तों के साथ राजपूत लड़कों को पीटा है।"
अमरनाथ भी बड़े खुशी से बोला," शाबाश! अब इस बात को पूरे कॉलेज में फैला दो आग की तरह"
फिर क्या था चाय की दुकान से होते हुए यह बात पूरे कॉलेज में फैल गई कि राहुल नेता ने अपने मित्रों के साथ राजपूत लड़कों को पीटा है।
फिर क्या राजपूत, क्या यादव और क्या हरिजन हर कोई राहुल पर थू थू करने लगा था।
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ठीक ग्यारह बजे साक्षी चौराहे पर आकर खड़ी हो गई। उसने अपने चेहरे को ओढ़नी से पूरी तरह ढक रखा था। मोहन पहले से ही अपनी बाइक पर सवार उसका इंतजार कर रहा था। यह मार्केट का मैन चौराहा था। चौराहे के आस पास कई दुकानें,सब्जी फल के ठेले लगे थे। कई गाडियों,साइकल,मोटर साइकल का आना जाना लगा हुआ था। यह बहुत ही व्यस्त चौराहा था। कोई किसी पर ज्यादा ध्यान नहीं रखता था। इस वजह से वह दोनों यही मिलते थे। जैसे ही साक्षी बाइक पर पीछे आ कर बैठी तो मोहन ने अपनी बाइक को किक मार् कर स्टार्ट किया और आगे बढ़ा दिया। बाइक तेजी से भाग रही थी और साक्षी पीछे से उसे ज़ोर से पकड कर चिपकी बैठी हुई थी।
अचानक से रास्ते में रामलाल यादव नाम के लड़के दोनों को जाते हुए बड़े गौर से देखा।वह शक्ल तो देख नहीं पा रहा था। मगर शरीर के डाचे से उसका उसका पूरा विश्वास था कि यह साक्षी और मन ही मन मुस्कुराया। अब तक जो सुना था वह एकदम सही था। जैसे उसे राजनीति करने का एक नया मौका मिल गया हो।
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मैं खाना खाकर आराम से लेट गया था पर मेरी आंखों में नींद नहीं थी। मैं एक दीवार पर टंगी पुरानी सी घड़ी में समय देख रहा था । रात के ग्यारह बज रहे थे। चाची पूरे गुस्से में इधर -उधर टहल रही थी और ना जाने क्या-क्या बक रही थी? "कितनी बार मैंने श्याम को समझाया है कि इस राकेश और राहुल नेता का साथ छोड़ दे मगर नहीं मानता एक भी पढ़ने -लिखने वाले लड़कों से दोस्ती नहीं की। श्याम गुंडा बदमाश लोगों के साथ दोस्ती करके बैठ गया है। जहां तंहा लड़ाई झगड़ा करता फिरता है। इसके चलते श्याम के पापा हर 15 दिन में गांव आते हैं। इसे कितना समझा कर जाते हैं । कितनी बार इसके पापा को भी समझाती हूं कि बेटा यहां ना पढ़ पाएगा ना कुछ बन पायेगा जो पढ़ने वाला था वह बर्बाद हो रहा है और जो बेटा नंदलाल पढ़ने में गोबर था वह कमाने लगा है।"
पर सच तो यह था नंदालाल कमा रहा था तो उड़ा भी रहा था। ट्रक ड्राइवरों को सड़क के किनारे की फुलझडियां अच्छी लगती है।नंदा को भी यह अच्छी लगने लगी थी। अब वह सड़क की फुलझड़ी को घर भी लाने लगा था। दरअसल जब भी चाचा गांव में आते वह कॉलोनी के क्वार्टर में रात को फुलझड़ी ले के अा जाता था। इस तरह रात को वह फुलझड़ी लाकर रात भर रंगरलियां मनाया करता था। एक दिन अचानक सुबह-सुबह मिथिलेश्वर चाचा के रिश्तेदार अा गए। रिश्तेदार कुण्डी खटखटाने लगे ।तब नंदालाल के होश उड़ गए। उस दिन भी नंदलाल फुलझड़ी लेकर आया था।फुलझड़ी को तुरंत पीछे वाले रास्ते से घर से निकाल दिया। मगर कुण्डी कई बार खटखटाने के बाद भी जब नंदा ने कुण्डी नहीं खोली तब वह भी पीछे वाले दरवाजे तरफ निकल गए। पीछे वाले रास्ते से फुलझड़ी को उन्होंने देख लिया। नंदलाल का भांडा फूट गया। मगर उन्होंने नंदलाल को कुछ नहीं कहा। मन ही मन मुस्कुरा कर रह गए। दरअसल यह नंदलाल के पास गांव के एक व्यक्ति थे। उनका नाम था महावीर यादव और मिथिलेश्वर चाचा के परम मित्र। रिटायरमेंट के बाद वह गांव चले गए थे। कुछ पीएफ और अन्य पैसों के मामले में वह जब भी आते थे तो मिथिलेश्वर चाचा के क्वार्टर में ही ठहरते थे। जब वह वापस गांव गए। एक दिन मिथिलेश्वर चाचा से नंदलाल की शादी की बात कह दी। जो स्टेशन में बबलू हमें चाय की दुकान में मिला था। वह नंदलाल के साले साहब थे। खेर उस दिन फुलझड़ी को कुछ समझ आया नहीं। वह बाहर निकल कर जाकर पीसीओ में बैठ गई। क्योंकि एक तो उसे रास्ते का पता ना था दूसरा यह कि उसे पैसे भी नहीं मिले थे। मगर उसके पास नंदलाल का मोबाइल नम्बर था। उस दिन पूरे कॉलोनी को दो बाते पता चली एक तो यह की नंदलाल रंडीबाजी करता है। दूसरा यह कि उसने मोबाइल रखा है। क्योंकि तब मोबाइल अमीरों के पास होता था। कॉल आने और जाने दोनो के पैसे लगते थे। उन दिनों मोबाइल टॉवर भी गली गली नहीं लगे थे। उसने पीसीओ में जाकर पीसीओ वाले को नम्बर थमा दिया और फोन लगने को कह दिया। पीसीओ वाले ने कई बार मोबाइल में फोन ट्राई किया। मगर मोबाइल लग नहीं रहा था। मगर बार बार प्रयास करने के बाद आखिर कर मोबाइल रिंग होने लगा। जैसे ही कमरे में मोबाइल रिंग होने लगा। महावीर यादव ने कहा,कहीं फोन बज रहा है। फिर उनकी नजर मोबाइल पर भी पढ़ गई।मोबाइल देखते ही बोले,मोबाइल रखले हवा का।
नंदा ने मोबाइल उठाते हुए कहा, "हां"
नंदा ने जैसे ही फोन रिसीव किया,फुलझड़ी की आवाज आई।
नंदा,के, के कर घर के बाहर निकल गया।लगा उसपर बरसने।"अरे तुम अभी तक गई नहीं क्या?"
"कहा से जाए एको रुपया दिए है।"
"अरे बाबा अडे पर आकर देता हूं। अभी तुम वहां से निकल जाओ।" इतना कह फोन काट दिया। अंदर कमरे में आकर महावीर जी से कहने लगा। यह मोबाइल तो बना दिया मगर नेटवर्क ही बना पाए अभी तक।"उह चाचा क्या है ट्रक के कारोबार के लिए मोबाइल लिए है। कब कहा टायर फट जाए। शीशा फुट जाय। तत्काल पता चल जाता है।"
"तो ठीक किए, ई थोड़ा एक नम्बर लगा दो तो।" एक छोटी डायरी पकड़ाते हुए बोले।
उसके बाद तो महावीर यादव ने कई जगह फोन लगा लिया मोबाइल से।
तभी अचानक से दरवाजे की कुंडी खटखटाई। मैंने उठकर दरवाजा खोला श्याम अंदर आ गया। श्याम के कपड़े उस समय मिट्टी और धूल से गंदे हो चुके थे।
उसने मुझसे पूछा," कैसे हो? राजेश, माफ करना बहुत लेट हो गया आने में।"
कहां गए थे? मां तुम्हारा काफी इंतजार कर रही थी।
पर मां ने भी कुछ नहीं कहा। हो सकता है कि चाची भी श्याम से डरती हो।
उस दिन समझ गया जैसे पहले लड़के श्याम को क्रिकेट के लिए हायर करके ले जाते थे अब उसे मारपीट करने के लिए ले जाने लगे हैं।
चाची ने भी डर से कुछ नहीं कहा। हो सकता है चाची इस बात से डरती थी कि जवान लड़का है कहीं मेरे कुछ कहने से कोई अनहोनी ना हो जाए। वैसे भी जमाना बहुत खराब है क्योंकि चाची ने भी कई बार सुना और देखा था कि फलां लड़का बस इसी बात से घर से भाग गया कि उसके पिता या मां ने कुछ कह दिया था। हो सकता है और भी कई कारण होंगे जिसके वजह से चाची श्याम को कुछ नहीं कहती थी।
"कुछ काम था।"
श्याम इतना कह सीधा बिस्तर पर जाकर लेट गया। और मैं भी उसके पास लेट गया। चंद सेकेंड में ही श्याम खर्राटे लेने लगा।
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अगले दिन सुबह करीब ग्यारह बजे मैं और श्याम खेतों में पेड़ की छांव में बैठे हुए थे। हम जिस जगह बैठे थे। वहां घास एकदम नहीं थी। मिट्टी में ही बैठे हुए थे। कुछ मजदूर गेहूं के बोझे को ढो कर ले जा रहे थे दौरी के लिए। खेत में चारों तरफ बोझा ही बोझा रखा हुआ था। सूरज आग बरसा रहा था। इस आग के गोले ने मजदूरों को भी थका दिया था।
श्याम मजदूरों से बस यही कह रहा था," भाई लोग जल्दी- जल्दी करो।"
मैंने श्याम को टोका"क्या जल्दी जल्दी की रट लगाए हो। कोई लाल किला में झंडा फेराने जाना है। देख रहे हो कितनी गर्मी पढ़ रही है। एक कम्पनी का मालिक था। अपने वर्करों से गर्मियों में ज्यादा काम लेने के लिए वर्कशॉप में दोपहर के समय ग्लूकोज का पानी पिलाया करता था। इसे वर्कर खुश हो ज्यादा काम करते। कुछ ठंडा तो पिलाओ मजदूरों को तभी तो एनर्जी आयेगी।"
"बात तो सही कहे कल से गने का रस भर कर लाऊंगा।"
आसमान में चिलचिलाती धूप लगातार गर्मी दे रही थी और मजदूर बेफिक्र हो बोझा ढो ढो करकर ले जा रहे थे। उन्हें किसी चीज की परवाह नहीं थी। क्या गर्मी क्या छांव ? वह सब किसी मशीन की तरह लगे हुए थे और एक- एक कर बोझों को उठा -उठाकर ले जा रहे थे। तभी मेरी नजर अचानक खेतों से दूर की तरफ पड़ी। मैंने देखा कि राकेश लूंगी और सेंडो बंडी पहने दौड़ा -दौड़ा आ रहा है। उसे देखते ही देखते मेरे मन में यह बात आई- आ रहा है नारद। मैं यह अच्छी तरह समझ गया था कि हो ना हो इस तरह दौड़ा-दौड़ा खेतों में इसलिए ही आ रहा है जरूर कोई ना कोई खबर है और उस खबर को खबरीलाल की तरह अब श्याम के कानों में उड़ेल के जाएगा। आते ही जोर -जोर से सांस लेते -लेते कहने लगा कि कल के मारपीट से तो नुकसान हो गया। कालेज के लोग कह रहे हैं कि राहुल छात्रसंघ चुनाव नहीं लड़ेगा अब अमरनाथ लड़ेगा।
"हम सब बेवकूफ बन गए।"
"ठीक है देखते हैं।"
कभी-कभी मुझे ऐसा लगता था कि श्याम मंत्री है राहुल राजा और राकेश चाणक्य। ऐसा लगता था कि श्याम अपनी बुद्धि से नहीं चल पा रहा है सारा खेल कराया धराया राकेश का ही होता है। श्याम को खेत में बैठे -बैठे जैसे किसी ने काट लिया हो। वह जल्दबाजी करने लगा और मजदूरों पर प्रेशर डालने लगा। भाई लोग! जल्दी- जल्दी करो। भोजन करने जाना है मुझे भी। दरअसल इन सब बातों से तो श्याम की भूख ही मर गई थी और ना ही उसे कहीं जाने की जल्दी थी। उस का मन उचट सा गया था। साला काम बनते- बनते तो एकदम से ही बिगड़ गया । कभी-कभी ईश्वर। हमारी सुई की घड़ी को उल्टी दिशा में ही घुमा देता है। भले ही हम उसे सीधी दिशा में ही सोच कर चला रहे हों। उसके जल्दी जल्दी बोलने के बावजूद भी मजदूरों ने 2 घंटे का समय तो लगा ही दिया और करीब दोपहर का एक बज ही गया था। पर श्याम में खूबी थी चाहे कितनी भी तकलीफ हो टेंशन हो कुछ भी हो खाना तो डट कर खाता था। हुआ भी वहीं। आकर उसने पेट भर खाना खाया और चुपचाप सो गया और साथ में मुझे भी कहा कि राजीव कुछ देर लेट लेते हैं।
हम गहरी नींद में सो गए थे कि गांव की औरतों की आवाज आने लगी" पुलिस आई पुलिस आई।"
अचानक श्याम के कानों में भी आवाज आई । वह हड़बड़ाकर उठा और मुझे जोर से झकझोर दिया। और बोला, भाग राजेश! यह सुनते ही मैं कुछ समझ नहीं पाया और मैं भी श्याम के पीछे पीछे भागते हुए सीधा खेत की तरफ जाने लगा था। नंगे पैर उसके पीछे भाग रहा था। खेत में गेहूं की खूटियां मेरे पैरों के तलवों में चुभ रही थी। मुझसे दौड़ा नहीं जा रहा था मगर श्याम खूब तेजी से दौड़ता जा रहा था। मैं उसकी दौड़ देखकर समझ गया था कि श्याम खेतों में चलने फिरने और दौड़ने में बहुत अभ्यस्त हो चुका है। सो मैं भी यह देख कर उसके पीछे दौड़ता चला जा रहा था। एक आम के बगीचे में जाकर एक पेड़ के पीछे रुक गया था। उसका पूरा बदन पसीने से भीग गया था। वही हाल मेरा भी था। सांस इतने जोरो से चल रही थी कि मुंह से कोई शब्द ही नहीं निकल रहे थे। श्याम पेड़ से पीठ टिकाकर बैठ गया था। ठीक वैसे ही मैं भी बैठ गया था। कुछ देर बाद मैंने उससे पूछा, "अबे! तूने मुझे इस तरह क्यों दौड़ाया? कोई रेस थोड़े थी।"
"यार पुलिस आई थी, मुझे पकड़ने के लिए।"
यह सुनते ही मेरे होश उड़ गए। मैंने आश्चर्यचकित होकर पूछा," तुझे पुलिस पकड़ने क्यों आई थी?"
कुछ पल तो मैंने यही समझा कि शायद उन लड़कों की पिटाई के वजह से इसे पुलिस पकड़ने आई हो, मगर बात इसकी उल्टी निकली।
"मेरे गांव में एक पलटन यादव है। उसने मेरे नाम पर कम्पलेन कर रखा है। उसका कोई जानने वाला पुलिस में है।"
"मगर वह क्यों?"
"दरसल पश्चिम दिशा में जहां हमारा चक खत्म होता है,उसी से सटा दक्षिण दिशा में उसका घर है। उस घर का जो द्वार उत्तर दिशा में पड़ता है हमारी उत्तर दिशा के चक को वो कब्जा कर आबादी में लाना चाहता है। इसके लिए मारपीट हुई थी। और तो और मेरे चाचा सभी बाबूजी से जमीन का हिस्सा मांग रहे हैं। वह सभी पलटन का साथ दे रहे हैं, इसलिए तो मैंने भी यह बात जान ली कि गांव में एक ही बात चलती है जिसकी लाठी उसकी भैंस। मैंने भी तमाम लड़कों से दोस्ती की है। एक बार पलटन को पिटवा भी चुका हूं। उसने मेरे नाम से थाने में कम्पलेन करा रखी है। वैसे मां पापा से जमीन को पलटन यादव को बेच देने को बोलती रहती हैं । इस तरह तो सारी जमीन एक दिन बिक जाएगी। जानते हो जब कोई कुत्ता भी नई जगह पर आ जाता है तो वहां के कुत्ते उसे काटने को दौड़ पड़ते हैं। अगर वह कुत्ता कमजोर हुआ तो वहां के कुत्ते उसे वहां रहने नहीं देंगे। वही कुत्ता शेर की तरह अगर कुत्तों से मुकाबला करेगा तो वहां के कुत्ते अपने आप वहां से हट जाएंगे और कुत्ता भी उसी गली में रहने लगेगा।
"तो तुम वकील क्यों नहीं कर लेते"