किरदार - 3 Priya Saini द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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किरदार - 3

माँ खाने के थाली लगाकर अंजुम के पास आती है और कहती है, "खाना नहीं खायेगी तो ताकत कैसे आएगी। चल थोड़ा सा खा ले फिर कर लियो गुस्सा"

अंजुम रो पड़ती है और कहती है

अंजुम: माँ, अभी भी वक़्त है रोक दो ये शादी। तुम कोशिश करोगी तो पापा भी मान जाएंगे।

माँ: नहीं ये नहीं हो सकता। आखिर कमी ही क्या है? एक से बढ़कर एक सामान लिया है तेरे लिए, गाड़ी है, इतना बड़ा घर है, इतना कीमती लहँगा दिलाया है….

अंजुम: और जो सबसे जरूरी है वो? पति ही मेरी पसंद का नहीं है तो क्या करूँगी ये महँगे सामान का, गाड़ी का, बड़े घर का। तुम सब जानती हो, मुझे दौलत का लालच नहीं है। मेरी खुशियां तो किसी और के साथ है।

माँ: समीर में क्या कमी है? बड़ो की इज्जत करता है, अच्छा इंसान है। कोई गलत शौक नहीं है। तुझे बहुत खुश रखेगा।

अंजुम: माँ, समीर में कोई कमी नहीं है किंतु वो मेरी पसंद नहीं है।

माँ (गुस्से में): हाँ तेरी पसन्द तो वो रंजन है न। है क्या उसके पास, नीच जात का और है….. तेरी शादी उससे कर दी तो समाज में हमारा जीना मुश्किल हो जायेगा। सब बातें बनाएंगे वो अलग और तेरे पापा को सब ताने मारेंगें। बहुत इज्जत है हमारी यहाँ, मत कर इसे खत्म और आज के बाद उसका नाम भी नहीं लेगी, नहीं तो मेरा मरा मुँह देखेगी।

अंजुम (रोते हुए): तुम्हारी इज्जत की खातिर ही तो अब तक चुप हूँ। तुम्हारे ख़ातिर अपनी खुशियां छोड़ने को मजबूर हूँ और तुम भी यहीं हो मैं भी यहीं हूँ देख लेना कोई खुश नहीं रहेगा इससे फिर जितनी मजबूर आज मैं हूँ उतनी मजबूर तुम हो जाओगी।

"खाना खा लियो", कहकर माँ वहाँ से चली जातीं हैं।

थोड़ी देर में रिश्तेदार आने शुरु हो जाते हैं।
मेहन्दी वाली भी आ गई है। अंजुम के हाथों में मेहंदी लग रही होती है।

मेहंदी वाली: दीदी मेहन्दी में क्या नाम लिखना है?

अंजुम: कुछ मत लिख ऐसे ही रहने दे।

मेहंदी वाली: अरे दीदी नाम नहीं लिखवाओगी तो दूल्हे मिया ढूंढेगें क्या, ये तो शगुन होता है। (मेहंदी वाली मजाक करते हुए)

अंजुम की माँ: समीर लिख दे। दीदी शर्मा रही है नाम लेने में।

मेहंदी लगते-लगते शाम हो चली है। सब तैयार है नाचने गाने को। अंजुम के पिता ने डीजे लगवाया है।
सब रिश्तेदार खुश हैं, नाच गाना हो रहा है। मोहल्ले के लोग भी इसमें शामिल हुए हैं।

कुछ ही घंटे बचे है बस….परंतु अंजुम के मन का हाल कोई नहीं जान रहा। सब अपने में ही खुश हैं।

संगीत का समारोह समाप्त होता है। कुछ रिश्तेदार सोने की तैयारी करते हैं तो कुछ रात में जगने की, आज रात का रतजगा जो है।

(रतजगा शादी से एक रात पहले होने वाला रिवाज़ होता है। इसमें रात भर जाग कर भजन कीर्तन करते हैं।)

माँ: अंजुम तू जाकर सो जा, तुझे आराम करना चाहिए। कल बड़ा दिन है। नींद पूरी नहीं हुई तो थकान रहेगी पूरे दिन, जा सो जा।

अंजुम वहाँ से चली जाती हैं। घर की औरतें भजन कीर्तन शुरू करतीं हैं। रात भर भजन कीर्तन चलता है।