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किरदार

माँ का सपना बस पूरा ही होने वाला था, दो दिन बाद अंजुम की शादी जो थी। माँ ने अंजुम की शादी के लिए न जाने कितने खुआब बुन रखे थे। सब शादी की तैयारियों में जुटे हुए थे। माँ सब कुछ अंजुम की पसन्द का ही करना चाहती थीं। उसकी पसन्द के गहने, उसकी पसन्द का लहंगा, शादी के बाद पहने जाने वाली साड़ियां सब कुछ अंजुम की पसन्द का था पर फिर भी अंजुम के मुख पर उदासी क्यों छाई थी? अंजुम के माता-पिता उससे बेहद प्रेम करते थे, उसकी शादी में कोई कमी नहीं रखना चाहते थे। फिर ऐसी क्या कमी रह गई थी जो अंजुम को खुश करने में असमर्थ हुए।

माँ, अंजुम से, "सब कुछ तो तेरी ही पसन्द का है, फिर ये उदासी क्यों? कोई कमी लग रही है तो बता, आज ही तेरे पापा से बोलती हूँ।"

"क्या वाकई सब कुछ मेरी पसंद का है? कम से कम माँ तुम तो सच्चाई से मुँह मत मोड़ो।", थोड़े तीखे स्वर में अंजुम, माँ से कहती है।
माँ: हम तेरे भले के लिए ही सब कर रहे हैं। तू नहीं जानती ये दुनिया कैसी होती है। सामने कुछ, पीठ पीछे कुछ। हमने तुझसे ज़्यादा दुनिया देखी है। तेरा अच्छा ही चाहते हैं।

अंजुम: मेरी खुशी में मेरा भला नहीं हो सकता, ये कैसा भला होगा? मानती हूँ आपने मुझसे ज़्यादा दुनिया देखी है परंतु थोड़ी पहचान मुझे भी है और ऐसा कहाँ लिखा है कि आगे सब ठीक ही होगा? अगर कुछ गलत हुआ तो उसका जिम्मेदार कौन होगा?
(अंजुम अपनी बात खत्म नहीं कर पाती माँ बीच में उसे टोकते हुए।)

माँ: क्यों होगा गलत? हम है ना और पापा ने बहुत जाँच पड़ताल की है। सब ठीक है। समीर का परिवार भी तुझे खुश रखेगा और समीर भी अच्छा लड़का है। अब ज़्यादा बहस करने की जरूरत नहीं है। हमनें फैसला कर दिया है अब यही होगा तू सो जा, कल मेंहन्दी लगनी है और संगीत भी है। बहुत काम है, मुझे काम खत्म करने दे पैर भी दर्द कर रहे हैं।
अंजुम: माँ, बस एक बात बता दो।

माँ: हाँ, पूछ।

अंजुम: तुम कहती हो दुनिया सामने कुछ होती है, पीठ पीछे कुछ तो ये तुम्हारी दुनिया में नहीं होता या बस मेरी दुनिया में होता है? तुम्हारी दुनिया में सब जैसे सामने दिखते हैं वैसे ही होते हैं?

माँ: तू अपना दिमाग ज़्यादा मत चलाया कर। बस माँ-बाप से बहस करवा लो आज कल के बच्चों पर। सो जा अब। दूध लेकर आ रही हूँ, इसे पीकर सो जाना।

(माँ, अंजुम के कमरे से चली जाती है और कुछ देर बाद दूध का गिलास लेकर आती है तो देखती है, अंजुम की आँखों से आँशु बह रहे हैं।)

माँ (चिंतित स्वर में): क्या हुआ? रो क्यों रही है?

अंजुम: कुछ नहीं बस यूं ही रोना आ गया।

माँ: अरे अभी से मत रो, विदाई के लिए आँशु बचा कर रख। चल चुप हो जा और दूध पी लें और हाँ ज़्यादा सोच मत, सब ठीक होगा। (माँ, अंजुम के आँशु पोछते हुए।)


अंजुम दूध पीकर गिलास माँ को देती है और माँ कमरे की लाइट बन्द करके अंजुम के कमरे से चली जाती है।

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