दूसरे दिन सब लोग सुबह से ही काम में जुट जाते हैं। घर को सजाना है, गाने बजाने का भी इंतजाम करना है। एक ही दिन शेष है शादी में।
अंजुम के पिता: अरे सुनती हो! संगीत में बांटने के लिए मिठाई आ गई है। कहाँ रखवानी है, जरा बताओ तो, आओ जरा जल्दी।
अंजुम की माँ: हाँ, आ रही हूँ। 2 मिनट का सब्र नहीं होता यहाँ किसी से भी।
पिता: सब्र, तुम्हें पता है अभी कितना काम बाकी है। दिन निकलता जा रहा है और काम कुछ हुआ नहीं। शाम तक सारे रिश्तेदार आ जायंगे उनके रुकने, खाने-पीने की व्यवस्था देखनी है।
(अंजुम के पिता इतना कहकर वहाँ से चले जाते हैं। )
माँ: मैं भी तो काम ही कर रही हूँ सुबह से, एक पल बैठ कर आराम नहीं किया है और कोई एक कप चाय तक पूछने वाला नहीं है।
अरी अंजुम! जल्दी नहा कर तैयार हो जा। मोहल्ले की औरतें हल्दी की रस्मों के लिए आती ही होंगी।
अंजुम: जी माँ, बस 5 मिनट।
थोड़ी देर में मोहल्ले की औरतें एकत्रित हो जातीं हैं। हल्दी की रस्म शुरु होती है। एक-एक करके सारी औरतें अंजुम के हल्दी लगाती हैं और सब मिलकर गीत गातीं हैं।
"हल्दी लगाकर 'बरनी' चली ससुराल को
'बरना' बैठा है मिलन के इंतजार को
हल्दी से बरनी मुख चमकायगी
बरना के सामने बरनी शर्माएगी
हल्दी लगाकर 'बरनी' चली ससुराल को
'बरना' बैठा है मिलन के इंतजार को"
अंजुम सबको दिखाने के लिए नकली मुस्कान के साथ बैठी है। जल्द ही हल्दी की रस्म भी पूरे हो जाती है फिर सारी औरतें अपने-अपने घर को निकल जातीं हैं।
अंजुम: माँ, कितनी देर और लगाकर रखनी है ये हल्दी?
माँ: थोड़ी देर और रहने दे। देखना हल्दी का रंग निखर कर आएगा तेरे चेहरे पर।
अंजुम: रहने भी दो माँ, नहीं चाहिए ये दिखावटी रंग।
माँ: तू फिर शुरु हो गई। कल शादी है तेरी, अब तो मत कर ये सब बातें। भूल क्यों नहीं जाती सब। भूलने में ही भलाई है। समझदार बन और आगे बढ़। अंजुम: नहीं भुलाया जाता। सब बिल्कुल मेरी आँखों के सामने ही है। कैसे भूल जाऊ ? तुमने तो……
अंजुम की बात खत्म नहीं होती तभी मोहित वहाँ आ जाता है। मोहित, अंजुम का ममेरा भाई है।
मोहित: लीजिये बुआ जी, जीजी के संगीत में बटने के लिए जो गिफ्ट मंगवाए थे, आ गए हैं। कहाँ रखवाने हैं बताएं, मैं रखवाता हूँ।
अंजुम की माँ: गिनती कर ली है ना पूरे है? देख लियो कम नहीं पड़ने चाहिए।
मोहित: अरे बुआ जी, आपने जितने बताए थे उससे ज़्यादा ही लाया हूँ। आप चिंता न करो बिल्कुल भी कम नहीं पड़ेंगे।
मोहित, अंजुम की शादी के लिए ही दो रोज पहले मथुरा से आया है।
अंजुम बिना बात पूरी किये गुस्से में वहाँ से चली जाती हैं और जाकर जल्दी से हल्दी हटाने लग जाती है। थोड़ी देर बाद माँ अंजुम को आवाज लगाती हैं।
माँ: अंजुम….आजा खाना खा ले। बाद में समय नहीं मिलेगा, थोड़ी देर आराम तब भी कर लेगी फिर मेहंदी वाली भी आ जायेगी और संगीत भी शुरु हो जायेगा।
अंजुम (गुस्से में): तुम ही खाओ और अपने रिश्तेदारों को खिलाओ।