Kirdaar - 9 books and stories free download online pdf in Hindi

किरदार - 9


अंजुम को माँ की याद आने लगती है। वह चुप चाप अपने बिस्तर पर बैठ जाती है।

समीर कमरे में वापस आता है।

समीर: नादान है ना हमारी बिंदिया इसीलिए किसी के सामने कुछ भी बोल देती है। तुम गुस्सा न होना उससे, दिल की बहुत अच्छी है।

अंजुम: हाँ, मैं जानती हूँ। मैं किसी से भी नाराज नहीं हूँ। आप फिक्र न करें।

समीर: ठीक है, तुम अपने कपड़े बदल लो। सुबह से ये भारी-भारी कपड़े पहन कर घूम रही हो, परेशान हो गई होगी।

अंजुम: ठीक है।

अंजुम अपने सूटकेस में से एक सादा सा सूट निकलती है और समीर से पूछती है, "क्या मैं ये सूट पहन सकती हूँ?"

समीर: हाँ क्यों नहीं, बिल्कुल। तुमको जो अच्छा लगे पहनों।

अंजुम: एक बार माँ जी से पूछ लीजिये।

समीर: अरे तुम फिक्र मत करो। माँ इन बातों पर ज़्यादा ध्यान नहीं देती।

अंजुम: फिर भी आप एक बार पूछ लीजिये। यदि अभी नहीं बदलने हों।

समीर: ठीक है, तुम कहती हो तो पूछ लेता हूँ।

समीर अपनी माँ से पूछ आता है और अंजुम से कहता है, "मैनें तो पहले ही कहा था।"
अंजुम अपना सूट लेती है और बदलने चली जाती है।
सादे सूट में भी अंजुम बहुत खूबसूरत लग रही होती है। समीर भी अपने रात्रि के कपड़े पहन लेता है।
समीर के पास अंजुम के पापा का फोन आता है। थोड़ी देर हाल चाल लेते हैं दोनों एक दूसरे का फिर अंजुम की माँ, अंजुम से बात करने की कहती है।

अंजुम की माँ: हेलो! अंजुम, बेटा कैसी है, वहाँ कोई तकलीफ तो नहीं हो रही तुझे??
सब ठीक है न??
माँ की बातों में अंजुम के लिए फिक्र साफ झलक रही थी।

अंजुम: सब ठीक है।

अंजुम की माँ: खाना खा लिया तूने?

अंजुम: हाँ, खा लिया।

माँ: ठीक है तू अपना ध्यान रखना। चल तू आराम कर अब।

माँ, अंजुम की नाराजगी से वाकिफ थीं। वह समझ भी रही थीं कि अंजुम अभी ज़्यादा बात नहीं करेगी इसीलिए उन्होनें बस हाल चाल पूछना ही जरूरी समझा।

बाकी दो दिन बाद तो अंजुम को पग फैरे के लिए घर जाना ही था।

अंजुम ने झट से फोन समीर को दे दिया, जैसे बात करने के लिए किसी ने उस पर बन्दूक तान रखी थी।
समीर: अच्छा मम्मी ठीक है हम घर आते हैं तब आराम से बात करेंगें। आप अपना और पापा जी का खयाल रखें। नमस्ते।

"नमस्ते बेटा, खुश रहो।" इतना कहकर अंजुम की माँ ने फोन रख दिया।

समीर: अंजुम तुमने मम्मी से झूठ क्यों बोला कि तुमने खाना खा लिया है?
अभी कहाँ खाया है तुमने??

अंजुम: कोई बात नहीं, वैसे भी मुझे भूख नहीं है। शाम को ही तो खाया था।

समीर: थोड़ा तो खा लो।

अंजुम: नहीं आप खा लीजिये, मुझे सच में भूख नहीं है।

समीर को उस वक़्त खाने के लिए जबरदस्ती करना सही भी नहीं लगा, नया घर, नए लोग उसको भी समझ थी, अभी थोड़ा वक्त लगेगा अंजुम को सब लोगों को अपनाने में, ऐसे में जबरदस्ती करने से अंजुम के मन को ठेस ही पुहंचेगी।

समीर चला जाता है। खाना खा कर आता है और अंजुम के लिए आइस क्रीम लेकर आता है।


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