पूर्ण-विराम से पहले....!!! - 20 Pragati Gupta द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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पूर्ण-विराम से पहले....!!! - 20

पूर्ण-विराम से पहले....!!!

20.

समीर की सभी टेस्ट रेपोर्ट्स आने पर डॉक्टर सुबोध ने प्रखर और शिखा को अपने चैम्बर में बुलाया और उनको बताया कि उसका ई.सी.जी. काफ़ी ऐब्नॉर्मल आया है| हार्ट की पंपिंग भी बहुत इररेगुलर है| एंजिओग्राफी करके जल्द ही हमको किसी निर्णय पर पहुंचना होगा| जिसके लिए आप सहमति दें|

प्रखर के साथ सलाह करके शिखा ने डॉक्टरर्स को अपना काम करने के लिए सहमति दे दी|

पिछले दो सालों से समीर रोज प्रखर के साथ सैर को जाता ही था| उसका खान-पीन भी बहुत संतुलित था| कोई दूसरे शौक भी नहीं थे जिनकी वजह से दिक्कत खड़ी हो| पर शरीर का क्या है कभी भी किसी अनहोनी या अप्रत्याशित बात की चेतावनी दे सकता है|

उम्र के साथ शरीर में काफ़ी परिवर्तन आ जाते है| अब कि बार होने वाला चेस्ट पैन शायद उसी का अंजाम था| समीर भर्ती होने के बाद मुश्किल से दो दिन ही अस्पताल में रहा| जब वो थोड़ा-सा बेटर हुआ प्रखर और शिखा को समीर से मिलने की अनुमति डॉक्टर ने दे दी थी| लगभग छः-सात घंटे तीनों ने एक दूसरे के साथ अच्छा समय गुजारा|

समीर जैसे ही होश में आया.. | उसने सबसे पहले शिखा से पूछा..

“सार्थक का फोन आया था|”..

शिखा के सहमति में सिर हिलाने पर समीर बोला तो कुछ नहीं बस आंखे बंद करके लेट गया|

फिर प्रखर ने समीर को कहा..

“समीर तुम्हारी विल पावर बहुत स्ट्रॉंग है| इसको हमेशा हाई ही रखना| तुम बिल्कुल ठीक हो जाओगे| हम दोनों तुमको जल्द ही घर लेकर जाएंगे| डॉक्टर कुछ और टेस्ट करने का बोल रहे हैं| तुमको कोई भी चिंता या कुछ भी पूछना हो तो मैं यहाँ के काउन्स्लर को बुलाया देता हूँ| अपने दिमाग में कोई स्ट्रेस मत रखना| सब अच्छा होगा|”

आज न जाने क्यों समीर से बात करते-करते प्रखर की भी आवाज टूटने लगी थी| बाहर से प्रखर बहुत मजबूत दिख रहा था पर कहीं समीर के लिए बहुत चिंतित भी था| प्रखर के चुप होते ही समीर ने पहले शिखा की ओर देखा फिर प्रखर से कहा..

“इतने कम समय में कितने करीब आ गए हो प्रखर तुम| पिछले दो साल से तुम्हारे बगैर मेरी कोई शाम गुजरी हो याद नहीं आता| शिखा को हमेशा ही मुझ से शिकायत रहती थी कि अपने मन की बातों को मैं बोलता नहीं हूँ | तुमने तो मुझे बोलना सिखा दिया यार| अब जब शिखा की शिकायत दूर की है तो लगता है न जाने कितनी साँसे बची हैं| बढ़ती उम्र की वजह से शायद बहुत भावुक होता जा रहा हूँ| हर बात की वैल्यू पता चलने लगी है..न जाने कितने और दिन..”

बोलते-बोलते जब समीर सिसकने लगा तो शिखा समीर के पास आकर बैठ गई और उसने समीर के सीने पर सिर रखकर रोना शुरू कर दिया| प्रखर से दोनों की ही स्थिति देखी नहीं जा रही थी| थोड़ी देर बाद वो चुपचाप आकर दोनों के बीच खड़ा हो गया और बोला..

“समीर! शिखा मेरी बहुत प्यारी दोस्त रही है| पर मुझे उम्र के इस मोड़ पर शिखा के साथ तुम जैसा दोस्त मिलेगा कभी नहीं सोचा था| तुम ठीक हो जाओगे...हिम्मत रखो|”

प्रखर दोनों को परेशान देखकर जिस तरह दोनों के बीच आकर खड़ा हुआ समीर ने एक हाथ से उसका और दूसरे से शिखा का हाथ थाम लिया और उसने डूबती हुई आवाज़ में शिखा और प्रखर को अपने और पास बुलाया और कहा..

“प्रखर! शिखा का ख्याल रखना| नहीं पता कितनी साँसे शेष है पर अभी अपने मन की बात बोल पा रहा हूँ बहुत है|”.. बोलते-बोलते समीर की आवाज़ जैसे ही खोने लगी प्रखर दौड़कर डॉक्टर को बुलाया लाया| समीर को सभी इमरजेन्सी ट्रीट्मन्ट दिया गया| पर ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था|

समीर को बचाने की हर संभव कोशिश की गई| पर डॉक्टर उसको बचा न सके|

जैसे ही डॉक्टर्स ने उसके मृत घोषित किया.....शिखा समीर के सीने पर सिर रखकर खूब रोई.....उसको संभालने में प्रखर भी टूट रहा था पर अस्पताल की सारी औपचारिकताएं भी उसी को पूरी करवानी थी|

अस्पताल के स्टाफ को पैशन्ट को डिस्चार्ज करने से पहले पैक करना था| तो प्रखर ने जब शिखा को समीर के ऊपर से हटाया तो शिखा खुद पर अपना संतुलन नहीं रख पाई और प्रखर के गले लगकर फूट-फूट कर रोई|

प्रखर ने उसको अपने कंधे से बिल्कुल नहीं हटाया| आज शिखा के साथ-साथ प्रखर भी खूब रोया| शिखा का हर दर्द प्रखर का ही दर्द था| प्रखर ने कभी भी शिखा को अलग ही कहाँ समझा था|

अस्पताल की सभी फॉर्मैलटीज़ प्रखर ने पूरी की| दोनों समीर को तेज दर्द में बोलता हुआ लेकर अस्पताल गए थे| आज जब उसको लेकर लौटे.....कितना शांत पड़ा था समीर| समीर की मृत देह को जब काका की मदद से प्रखर ने ज़मीन पर लिटाया| प्रखर के साथ-साथ काका भी खूब रोए| उनका भी समीर के परिवार से बहुत लगाव हो गया था|

जिसे ही प्रखर अपने घर जाने के लिए उठा.. शिखा ने कसकर उसका हाथ पकड़ लिया ओर रोते हुए बोली..

“मत जाओ प्रखर| समीर के बगैर कैसे रहूँगी मैं|..”

“मैं वापस आता हूँ शिखा खुद को संभालो| अभी बहुत कुछ संभालना है तुमको| प्रीति के जाने के बाद मैं इस दर्द से गुज़र चुका हूँ.. तुम्हारा गुजरना बाकी है| हमेशा साथ हूँ....और रहूँगा| अकेली नहीं हो तुम.. इस बार तुमको गुम होने के लिए नहीं छोड़ूँगा..अपनी नज़रों के सामने से कभी ओझल नहीं होने दूंगा|” बोलकर प्रखर आस-पड़ोस से आए लोगों को अटेन्ड करने लगा|

समीर का व्यवहार इतना सरल और सहज था कि आस-पास के लोग उसको बेहद प्यार करते थे| कहीं पर भी कोई जरूरत होती सभी ने खुलकर सहयोग किया| एक बार जब किसी ने उन तीनों के मेल-मिलाप को देखकर पूछा भी था..

“क्या आप तीनों पहले से ही एक दूसरे को जानते थे|”

तब प्रखर ने सहमति से सिर हिलाकर सारे ही प्रश्नों पर रोक लगा दी थी|

समीर ने जिस दिन विदा ली उसी दिन की सार्थक की आगरा पहुँचने की टिकट थी। समीर की मृत्यु दोपहर बारह बजे हुई| सार्थक को शाम सात बजे पहुंचना था| सार्थक को घर आते-आते लगभग आठ बज गए थे|

सार्थक ने सबसे पहले घर में घुसकर अपने पापा की मृत देह के पैर छुए| उसके बाद सीधे अपनी मां शिखा के पास गया| शिखा ने उसको देखते हैं अपने गले से लगाया और रोने लगी| अपनी मां के आंसू पौंछकर उसने माँ से कहा.....

“अपने आप को संभालिए माँ.. पापा ने मुझे माफी मांगने का भी समय नहीं दिया| हर बार फोन पर उनसे माफी माँगनी चाही पर.. नहीं कर पाया| मेरे अंदर की आत्मग्लानि ने रोक लिया मुझे| मुझे नहीं पता था पापा इतनी जल्दी चले जाएंगे|..”

सार्थक की बात इस वक़्त शिखा को बिल्कुल समझ नहीं आई| सार्थक का बदला हुआ रूप अभी उसकी समझ से बाहर था|

सार्थक ने अपनी मां से पूछा..

“पापा के देह को अंतिम संस्कार के लिए कब लेकर जाएंगे|”

शिखा ने उसे बताया...

सब इंतजाम प्रखर अंकल ने किए हैं| उन्होंने ही पंडित को भी बुलाया है| जैसा जैसा पंडित जी कहेंगे.. उन्हीं के निर्देशों की हम सब पालना करेंगे|

सार्थक ने अपनी मां की बातों को ध्यान से सुनते हुए अपना सिर हिलाकर स्वीकृति दी|

थोड़ी देर बाद प्रखर पंडितजी को लेकर आ गए और उन्होंने आकर शरीर को ले जाने का समय सवेरे नौ बजे तय कर दिया| पंडित जी ने दाह संस्कार में जो भी चाहिए उसकी एक लिस्ट बनाकर सार्थक को दे दी| फिर पंडित जी सार्थक और प्रखर से सवेरे साढ़े आठ तक आने का बोलकर चले गए|

गुज़रे हुए दो सालों में प्रखर सार्थक से कभी भी नहीं मिला था| सार्थक विवाह करके मुश्किल से दो दिन के लिए ही आया था| शिखा ने उसको बताया था पर मिलना नहीं हुआ था|

प्रखर ने जैसे ही सार्थक को अपने सामने देखा उसने अपना परिचय सार्थक से करवाया| सार्थक ने प्रखर के पैर छुए और उनको कहा....

“अंकल मैं आपको जानता हूं| एक बार पापा-अम्मा ने बातों में आपका जिक्र किया था| मैं आपका बहुत ही थैंकफुल हूं कि आपने मां की बहुत मदद की|”

बोलकर सार्थक भी चुप हो गया|

प्रखर में आशीर्वाद देने के लिए उसके सिर पर हाथ रखा| थोड़ी देर दोनों के बीच खामोशी छाई रही फिर प्रखर ने खुद ही अपने बारे में बताया..

मैं तुम्हारे पास वाले ही घर में रहता हूं| जब तक तुम यहां हो तुमको या तुम्हारी मां को किसी भी वक्त कोई जरूरत हो तो मुझे बुला लेना। मेरे घर में मेरे सालों पुराने सेवक काका हैं| आप दोनों की किसी भी जरूरत को खुशी-खुशी पूरा करेंगे|

सार्थक ने घर आने के बाद सभी जिम्मेदारियां संभालने की पूरी कोशिश की| जो भी सामान दाह-संस्कार के लिए चाहिए था वह सब लाकर रख दिया| जब भी समय मिलता वह अपनी मां के पास आकर बैठ जाता| उनको ढांढस देने की कोशिश करता।

समीर के दोनों भाई प्रवीण और प्रशांत के भी पहुँचने की सूचना आ गई थी| वो भी सवेरे सात बजे तक अपने परिवार के साथ वहां पहुंच रहे थे| शिखा ने प्रखर को उनके ठहरने का इंतजाम करने के लिए बोल दिया था|

प्रखर ने काका से कहकर कुछ लोगों के ठहरने का इंतजाम समीर के घर पर ही करवा दिया था.....और बाकी लोगों को अपने घर में ही रुकवा दिया था ताकि किसी को भी कोई दिक्कत ना हो| खाने-पीने के लिए भी उसने संपूर्ण व्यवस्था कर दी थी|

प्रशांत व प्रवीण के आ जाने से शिखा को बहुत सांत्वना मिली क्योंकि तीनों भाइयों का आपस में असीम प्रेम में था| समीर के निर्जीव देह पर उसके दोनों भाई भी फूट-फूट कर रो रहे थे।

अगले दिन नौ बजे जब समीर को विश्राम घाट ले जाने का समय आया...शिखा खुद को बहुत टूटा हुआ और कमजोर महसूस कर रही थी क्योंकि समीर ने अपने पूरे जीवन काल में शिखा इतना कुछ दिया था जिसे शिखा कभी भी भूल नहीं सकती थी| आज समीर की अंतिम विदाई उसको कहीं गहरे तक तोड़ रही थी|

शिखा का रह-रह कर रोना प्रखर को बहुत आहत कर रहा था| उसका बस चलता तो शिखा को अपने गले से लगा लेता…..और किसी भी कीमत पर उसके आंसुओं को धूल में मिलने नहीं देता| अपनी लाचारी को महसूस करके प्रखर अंदर ही अंदर चोटिल हो रहा था| सामाजिक मर्यादाएं उसके हाथ-पाँव में बेड़ियाँ जकड़ रही थी|

हालांकि सभी को पता था वो तीनों स्कूल टाइम के मित्र हैं| पर प्रखर ने शिखा के साथ हाल-फिलहाल एक दूरी बना ली थी| शिखा के साथ उसका क्या रिश्ता था यह सिर्फ प्रखर जानता था|

अगले दिन नौ बजे तक घर के आस-पास के काफ़ी लोग व रिश्तेदार इककठे हो गए थे| कुछ लोग घर के अंदर शिखा के आस-पास बैठ गए तो कुछ घर के बाहर बरामदे में बिछे हुए फर्श पर बैठ गए| लगभग सभी की बातों में समीर के उत्कृष्ट व्यक्तित्व की बातें हो रही थी| समीर था भी बहुत सरल व सादगी भरा इंसान|

शिखा आज सवेरे से रोते-रोते बहुत थक गई थी| सो चुपचाप मौन बैठी समीर को अपने आस-पास ही महसूस कर रही थी| ज्यों-ज्यों समीर को ले जाने की तैयारी से जुड़ी बातें उसके कानों में पड़ रही थी......उसका दिमाग बेसुध होता जा रहा था| जैसे ही समीर को ले जाने का समय आया.. शिखा मौन फूट पड़ा और वो बिलख-बिलख कर रोने लगी|

प्रखर का दिमाग सब तरफ था| जैसे ही उसने शिखा को बिलखते हुए देखा उसके कदम स्वतः ही शिखा की ओर बढ़ चले| पर तभी सार्थक ने कुछ पूछने के लिए ज्यों ही आवाज़ लगाई..प्रखर ने खुद को काबू कर लिया|

करीब दस बजे विश्राम घाट में समीर के शरीर की अंत्येष्टि कर दी गई| समीर का दाह-संस्कार सार्थक ने किया।

वहाँ से लौटते समय प्रखर लगातार सोच रहा था...जीवन का खेल कितना अजीब है| कैसे दौड़ते-भागते जीवन के विश्राम घाट पहुँचते ही, एक ऐसा पूर्ण-विराम लग जाता है कि साथ आए लोग इसके बाद उस व्यक्ति को भूलना शुरू कर देते हैं|

क्रमश..