पूर्ण-विराम से पहले....!!!
19.
प्रखर तेज-तेज बड़े-बड़े कदम रखकर वहां पहुंचा और शिखा की मदद को झुका ही था कि नर्सिंग स्टाफ स्ट्रेचर ले कर आ गया। स्टाफ ने समीर को लिटाया और उसे डॉक्टर के इमरजेंसी रूम में लेकर जाने लगा।
तभी समीर ने दोनो की तरफ देखा और कहा
"मिलता हूँ जल्द ही..." बोलकर समीर ने आंखें मूंद ली और चुपचाप स्टाफ के साथ चला गया।
प्रखर और शिखा उनको जाते हुए देख रहे थे कि शिखा को बहुत जोर से रोना आ गया। प्रखर ने शिखा को आराम से बैठने को कहा और घर से लाई हुई पानी की बोतल से पानी पीने को कहा।
"शिखा! परेशान मत हो सब ठीक हो जाएगा। सबसे पहले पानी पियो। शिखा को रह रहकर खूब रोना आ रहा था। वो बग़ैर बोले बस अपनी आंखों से उमड़ते आँसुओं के सैलाब को पोंछ-पोंछ कर रोकने का प्रयास कर रही थी।
तब प्रखर ने कहा.....
"ख़ुद को संभालो शिखा। इतनी कमजोर तो तुम कभी भी नही थी। क्या हो गया है तुमको। हम ठीक समय पर पहुंच गए है| ईश्वर सबका ध्यान रखते है।"
प्रखर ने शिखा को समझाने के हिसाब से बोल तो दिया पर वो अच्छे से जानता था कि उम्र के साथ धैर्य भी कमजोर पड़ जाता है|
समीर को अंदर ले जाने के बाद शिखा खुद को नॉर्मल करने की बराबर कोशिश कर रही थी पर कुछ भी उसके बस में नहीं था| बार-बार स्ट्रेस में वो समीर की ही बातें प्रखर को बता रही थी..
"प्रखर कुछ साल पहले जब समीर को चेस्ट-पैन हुआ था.....तब से एक अजीब से डर के साथ मैं जी रही हूं। हर वक़्त एक खटका सा लगा रहता है। समीर को कभी कुछ हो गया तो अकेली कैसे रहूंगी। तुमको तो सब पता है।"
"अच्छा अभी यह सब मत सोचो। बस हम दोनों प्रार्थना करते है कि समीर जल्द से जल्द ठीक हो। कुछ भी नकारात्मक नही सोचना है हमको। समीर को ठीक होकर हमारे साथ घर चलना ही होगा।"
"प्रखर! समीर को यह दूसरी बार चेस्ट पैन हुआ है। पहली बार हल्का-सा एनजाइना था। डॉक्टर्स ने सभी टेस्ट किये थे। उस समय ई.सी.जी. में मामूली से चेंजेस थे और बी.पी. भी हल्का-सा बढ़ा हुआ आया था| तब डॉक्टर ने बोला था कि खाने-पीने और घूमने के रूटीन सेट करने से सब ठीक रहेगा। समीर हर बात का बहुत ध्यान रखते थे|"
"वजह भी कोई बताई थी क्या?" प्रखर ने पूछा।
"पहले जब टेस्ट हुए थे.....तभी डॉक्टर्स ने खान-पीन और दिनचर्या नियमित करने को कहा था बस। जिसकी पालना समीर कर रहे थे।"
समीर की बातें बताते-बताते भी शिखा सुबक रही थी.....तब प्रखर ने उसका हाथ अपने हाथ में लेकर सांत्वना दी और कहा
"सब ठीक हो जाएगा शिखा। निश्चिंत रहो।"
तभी डॉक्टर अंकित ने प्रखर और शिखा को अपने चैम्बर में बुलाया और कहा..
"आपके पेशेंट समीर की तबियत ठीक नही है। हमने अभी इमरजेंसी मेडिसिन्स दे दी हैं। जैसे ही बाकी रिपोर्ट्स आएंगी हम तय करेंगे कि अगला स्टेप क्या लेना होगा। आप लोग समय पर लेकर आये हैं। ट्रीटमेंट शुरू कर दिया है। पेशंट के डॉक्टर सुबोध को सब जानकारी दे दी गई है। उनकी सहमति से पेशेंट को जो भी दवाई दी गई हैं....उनसे वो स्टेबल है। अभी आप दोनो उनसे मिलने आई. सी.यू. में नही जा सकते हैं। पर हाँ आई. सी. यू. के बाहर लगे हुए ग्लास से आप दोनों उनको देख सकते हैं।"
डॉक्टर के कहे अनुसार प्रखर और शिखा ने गिलास विंडो से समीर को देखा जो तसल्ली से सो रहे थे। शायद उनको जो मेडिसिन दी गई थी उनका असर था।
समीर को देखने के बाद दोनों रिसेप्शन एरिया में आ गए और वहां पर लगी बेंच पर बैठ गए।
दोनो के बीच नितांत खामोशी थी| बस मन ही मन समीर के लिए प्रार्थनाएं चल रही थी। प्रखर के दिमाग में बहुत देर से चल रहा था कि समीर से उसकी रात ग्यारह बजे तक तो मोबाइल पर चैट हो रही थी।
प्रखर ने समीर और शिखा को लास्ट मेसज साढ़े ग्यारह के आस-पास भेजा था। तो समीर की तबियत एकदम आधा घंटे के अंदर ही खराब हो गई या कुछ और भी हुआ था। अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए प्रखर ने शिखा को धीमी स्वर में पुकारा..
"शिखा रात साढ़े ग्यारह बजे तो मैंने तुम दोनो को मेसज किया था तुम दोनो का ही जवाब आया| साथ में गुड नाईट मेसज भी था फिर अचानक क्या हुआ...या उससे पहले भी समीर ने कोई कंप्लेंट की।"
"समीर की तबियत शाम से ही थोड़ी ऊपर-नीचे थी प्रखर। तभी वो पार्क में भी बहुत थोड़ी देर के लिए गए थे। वहां से आकर उन्होंने मुझे कहा..
"शिखा आज कुछ बेचैनी-सी है| मैं स्नान करके आता हूँ| फिर थोड़ी देर अगर सो जाऊंगा.....तो आराम आ जायेगा।"
साढ़े छः से आठ बजे तक वो सोए| उसके बाद डिनर लिया| थोड़ा बहुत कुछ पढ़ा| फिर लेटकर मोबाईल में मेसज पढ़ते-पढ़ते सो गए थे| दस पंद्रह मिनट ही गुज़रे होगे कि सीने में दर्द की कम्प्लैन्ट की|”
“हम्म बोलकर प्रखर आंखे बंद करके लेट गया|
तभी शिखा ने प्रखर से कहा...
"तुम घर चले जाओ प्रखर। आज तो हमारी वजह से तुम्हारी नींद भी खराब हो गई। मुझे बहुत बुरा लग रहा है। पर अगर तुम न होते तो मुझे काफ़ी दिक्कत होती।"
"बस कर दिया न मुझे तुमने पराया शिखा। मुझे तुमसे ऐसी उम्मीद नही थी। प्लीज खुद को इस समय सिर्फ़ समीर के लिए फोकस रखो। मुझे कुछ भी इस तरह का बोलोगी तो न सिर्फ मुझे बहुत बुरा लगेगा बल्कि मैं आहत भी होऊंगा। मुझे ख़ुद समीर की बेहद चिंता है। मेरा मित्र है वो।"
जीवन में पहली बार प्रखर थोड़ा गुस्से में बोला। वो भी मन ही मन बहुत परेशान था| फिर चुपचाप शून्य में थोड़ी देर ताकता रहा। फिर यकायक शिखा से बोला..
"मेरी जगह तुम होती तो क्या करती शिखा। तुम कह पाओ या न कह पाओ पर मैं तुमको बहुत अच्छे से जानता हूँ। तुम भी यही करती जो मैं कर रहा हूँ। प्यार करता हूँ तुमको और समीर को"...
"प्रखर प्लीज गुस्सा मत हो मुझे इस समय जो ठीक लगा बोल दिया। हम सबकी उम्र भी तो अब ओवर एक्सपेक्ट करने की नही रही। समीर तो बीमार है ही...कहीं तुमको भी कोई दिक्कत हो गई तो मैं तो जीते जी ही मर जाऊंगी। समझते क्यों नही तुम|”
अपनी बात पूरी करते-करते शिखा फिर से रुहांसी हो गई।
"कुछ नही होगा मुझे निश्चिंत रहो शिखा। सॉरी मैंने तुमको जो भी गुस्से में कहा। तुम मेरे लिए अगर बेशकीमती हो शिखा......तो तुमसे जुड़ी हर बात, हर इंसान भी मुझे बहुत प्रिय है। तुम्हारी सारी तकलीफ़ मेरी तकलीफें हैं पगली। अभी कुछ भी ऐसा मत बोलो जो मैं कर ही नही पाऊं। तुम्हारे साथ ही रहूंगा मैं। जितने दिन तुम और समीर यहां हो.....मैं भी यही हूँ। मेरा शेष वक़्त तुम्हारे साथ में रहने-चलने से मुझे संतुष्टि देगा। अब मुझे कभी भी खुद से दूर मत समझना।"
शिखा को अपनी बात बोलकर प्रखर ने शिखा से कहा..
"चलो उठो एक बार समीर को देख कर आये। सब ठीक तो है वहां।"
दोनो साथ में उठकर गए और आई.सी.यू. के गिलास से समीर के ठीक होने को दूर से ही देखा। एक नर्सिंग स्टाफ बराबर उसकी प्लस और हार्ट-बीट चेक कर रहा था। जब उसने प्रखर और शिखा को झांकते हुए देखा तो उन दोनों को इशारा करके सब ठीक होने की सूचना दी।
दोनो वापस लौटकर अपनी जगह पर बैठ गए। रात भर कई चक्कर लगा कर उन्होंने समीर की सुध ली। दोनो में से कोई भी रात भर नही सोया। न जाने कितने घंटे दोनो अपनी-अपनी कुर्सी पर आंखों को बंद किये लेटे रहे। जैसे ही समीर का ख्याल आता.....उसको देखकर तसल्ली कर लेते।
जैसे-तैसे भोर हुई| शिखा ने सवेरे जल्दी ही सार्थक को फ़ोन करके कहा..
"सार्थक बेटा तुम्हारे पापा की तबियत रात को अचानक ही बहुत खराब हो गई थी। प्रखर अंकल के साथ मैं उनको अस्पताल लेकर आ गई थी । सारी रात उनकी तबियत काफी खराब रही। पहले सोचा कि तुमको रात को ही फ़ोन कर दूं पर बहुत देरी होने से नही किया। मुझे लगता है तुमको आ जाना चाहिए।"
सार्थक शायद उसी समय सो कर उठा था। उसने शिखा को बोला ...
"मां! क्या हुआ है पापा को? कैसी तबियत है अब उनकी। आप कर देती रात को ही फ़ोन। अभी-अभी सोकर उठा हूँ| थोड़ा समय दीजिये आपको वापस फ़ोन करता हूँ।"
थोड़ी देर में ही सार्थक का फ़ोन वापस आ गया और उसने बोला..
"मां जल्द ही टिकट करवा कर आपको बताता हूँ।"
समीर के अस्पताल में भर्ती होने के बाद सार्थक का सवेर-शाम फोन आता रहा|
कॉलोनी के मित्रों को भी जैसे ही ख़बर मिली सभी ने प्रखर को फोन करके उसके हालात जानने की कोशिश की। सभी ने ख़ुद से अपनी हेल्प देने को कहा। कुछ लोग मिलने भी आये और उन्होंने शिखा से कहा..
आपको कभी भी लगे हमें हॉस्पिटल में रुकना है या कोई भी सामान पहुंचना है प्लीज बेहिचक कहिएगा|
जब भी प्रखर या शिखा को घर जाना होता सब लोगों ने खूब मदद की। शिखा को कभी भी अपने खाने की चिंता नही करनी पड़ी। काका रोज तीनों वक्त का खाना लेकर आ जाते थे। शिखा के घर का भी पूरा ध्यान काका और काकी रख रहे थे| शिखा को सिर्फ़ समीर पर फोकस करना था| इतनी बड़ी मानसिक शांति प्रखर की वजह से ही थी|
क्रमश..