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सिर्फ तुम.. - 4

सिर्फ तुम-4


खत्म हो जाते हैं कुछ रिस्ते यूँही,
बेइंतहा मोहब्बत के बाद भी,
और साथ में खत्म हो जाती है ज़िन्दगी,
जो जी रही होती है हममें..
और रह जाती है, एक उदासी हमेशा के लिए ज़हन में..

हर वक्त मेरी खुशी का पूछने वाले,
तुम कभी समझ ही नही पाए..
मेरी खुशी भी तुमसे ही थी..
परेशान मत रहा करो कहने वाले,
मेरा सुकून भी तुम ही थे..

पर जब तुम्हारे साथ होना खुशी हो सकता है..
तो तुमसे दूर रहकर दुखी होना भी ज़ायज़ है..
पर अब कहना है तुमसे,
की जो ज़िन्दगी मर चुकी है मुझमें..
अब उसका जीना मुश्किल है..
एक तुझको जो खो चुकी हूं,
अब खुद का मिलना मुश्किल है..
यूँ टूटकर जो बिखर चुकी हूं,
अब फिर से जुड़ना मुश्किल है..
पर अब डर लग रहा मुझे..
कहीं तुझको भी ना मिटा दूँ, खुद से मैं..

एक इश्क़ था, जो हमेशा तेरे साथ रहना चाहता था..
अब एक इश्क़ है, जो तुझसे दूर होना चाहता है..

इतना दूर की मेरे वज़ूद का एक एहसास भी,
तुम्हें महसूस ना हो,
औऱ कभी गुज़रे भी कोई एहसास तुमसे होकर,
तो तुम नकार दो उसे..
उसी तरह जिस तरह मैने नकार दिया था,
तुमसे होती मोहब्बत को,
पहली मुलाक़ात से...
कही-अनकही अनगिनत बातों को,
जो मैं हर वक़्त बस सुनते रहना चाहती थी..
पर नकार रही थी नासमझ सी होकर..
और अब भी मैं भुला देना चाहती हूँ,
उस हर याद को जो तुझसे जुड़ी है..
जो हर वक़्त मुझे बेचैन करती है..
और मिटा देना चाहती हूं,
खुद को भी खुद से ही..

अब या तो सिर्फ़ तू ही रहे मुझमें,
या सिर्फ़ मैं रहूँ..
पर बात तो ये भी है..
गर तू नही है तो...
क्या "ख़ाक" मैं हूँ...

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कभी-कभी सोचती हूँ, कि काश हम साथ होते,
तो ज़िन्दगी शायद बेहतरीन सी होती..
इश्क़ के रंग हवाओं में महकते..
ज़िन्दगी कितनी हसीन सी होती..
अब पल-पल जीना दुस्वार सा लगता है,
यूँ यादों का बोझ अब ढोया नहीं जाता..
थक गयीं हूँ यूँ तन्हा सफर तय करते-करते,
अब एक पल भी सुकून से सोया नहीं जाता..
हां शिक़ायतें बहुत हैं तुमसे..
औऱ ख़फ़ा भी हूं तुमसे..
फिर भी इतना यकीन क्यू है तुमपे..
फिर भी इश्क़ क्यों है तुमसे..
अब किसी और का ख़याल ज़हन में एक पल भी क्यों नहीं आता..
यूँ तुझे भूलकर अब ज़िया क्यों नहीं जाता..
कितना आसां सा सफ़ऱ होता गर साथ होते तुम,
अब इन यादों का बोझ,
मुझसे और ढोया नहीं जाता..
हां नाक़ाम बहुत रही हूं मोहब्बत में तुम्हारी,
पर अब जो मक़ाम हासिल है,
वो इश्क़ से भी बहुत गहरा है..
तुम नहीं हो पास फिर भी,
नजरों पर सिर्फ़ तुम्हारा ही पहरा है..
हर दिन की शुरुवात तुमसे होती है,
हर शाम ढलती भी तेरे ख़्याल से है..
हर नज़र सिर्फ़ तुम नज़र होते हो,
हर लफ्ज़ बस तुम ही सुनाई देते हो..
हां एक उम्र गुजर तो रही है तुम बिन,
पर तुम साथ होते तो शायद ज़िन्दगी होती..
ऐसा भी नहीं है कि जीना छोड़ दिया मैंने,
पर तुम होते तो ज़िन्दगी हसीन होती..


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कहना तो है तुमसे बहुत सारी दिल की बाते,
पर क्या तुम सुन सकोगे दिल से ही..
कहकर, कहना अब मुमकिन नही तुमसे,
मेरी खामोशिया सुन सकोगे क्या दिल से ही..
क्यों मैं सिर्फ मैं हूँ क्यों तुम सिर्फ तुम हो,
क्यों हम अब हम नही है..
बात तो इतनी सी है पर बैचेन बहुत करती है..
मैने बिताए है कई लम्हे गम-ए-तन्हाई में..
और जिया है सूनापन तन्हा रातों में..
रोक लिए कई आसूं जमी पर गिरने से पहले,
अपना लिया गम को यूँ दिल से ही..
नहीं समझ पाए तुम खामोश, बेबस निगाहों को,
जो देख रही थी इतने करीब से तुम्हें दूर जाते हुए..
तुम सुन नहीं पाए वो आवाज मेरे दिल की
जो सिर्फ तुम्हारा ही हो जाना चाहती थी..
पर तुम कैसे जान लेते हाल-ए-दिल,
भला दर्द दिलों का कौन जान पाता है दिल से ही..
पर तुम समझ लेते हर बात जो अनकही सी थी
ज़िन्दगी जो ज़िने से पहले दम तोड़ रही थी
तुम जोड़ लेते हर वो आस जो टूट चुकी थी..
पर रिस्ते जो टूट गए हो फिर कहाँ जुड़ते है दिल से ही..


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हां तुम ही थे हर वक़्त मेरे पास,
मेरे हर एहसास में,
मेरे हर अल्फाज़ में,
कहीं किसी याद में,
कही-अनकही बात में,
हां सिर्फ तुम ही तो थे..
हर वक़्त मेरे ख़्वाब-ओ-ख़्याल में..

हर दिन की धूप में गर्म हवा से बहते मुझमे,
हर रात की तन्हाई में बहते आसुंओ में,
इस अंधेरी सी ज़िन्दगी में जुगनू से चमचमाते,
हां तुम ही थे हर वक़्त मेरे साथ..

सिर्फ तुम्हे भूलने की कोशिश में हर शाम गुज़र जाती है,
और हर सुबह तेरी यादों का फिर से सैलाब ले आती है..
हां कल होगी तुझसे मुलाक़ात ये सोचकर हम हर ख़्वाब सुला देते हैं,
औऱ यूँही ख़्वाहिशों को सुलाते-सुलाते हर रात गुज़र जाती है..
दिन तो गुज़रते नही गुज़रता..
पल-पल जो तेरी याद आती है..
बैचेन हो जाते हैं तुझे याद करते करते,
और ये नागवार शाम फिर आ जाती है..

पहले जो तन्हाई में खुद से बात किया करते थे
अब सिर्फ तुझसे बात होती है..
हम तो कही खो से गये है,
बस तेरी याद साथ होती है..
शायद ही तुम कभी पढ़ पाओ इसे,
पढ़ भी लोगे तो क्या,
शायद ही तुम कभी महसूस कर पाओ इसे..
की हर पल हर हर्फ़ में,
महकती याद सा,
मैंने सिर्फ़ तुम्हें ही लिखा है..

दो पल मिले साथ तेरा बस औऱ ज़िन्दगी से क्या चाहिए,
बेशक ना मिले शौहरत-ए-जहां पर सिर्फ तू चाहिए, सिर्फ तू चाहिए..

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....✍️Sarita sharma...🙏🙏

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