सिर्फ तुम.. - 5 Sarita Sharma द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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सिर्फ तुम.. - 5

सिर्फ तुम-5

चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाएँ,
फिर से किसी मोड़ पर मिलें,
और फिर से दिल हार जाएं...
पर इसबार जो मिलेंगे तो इतना समझा देना,
मैं नहीं हूं तुम्हारे जैसी बस इतना समझ जाना..
फर्क पड़ता है बहुत मुझे तुम्हारी बेरुख़ी से,
बेफ़िक्र से रह लेते हो तुम कैसे.
बस इतना सीखा देना..
यूँ बीच सफ़र में तुम मेरा
हाथ छुड़ा ना सको,
ताकी इस बार जो बिछड़ें हम,
तो तुम मुझे फ़िर रुला ना सको..

इस बार जो मिलेंगे ,
तो अपने जैसा बना देना..
क्यों इतनी फिक्र होती है तुम्हारी,
बस थोड़ा सा बेफ़िक्र बना देना,
फिर रिश्ता केवल दिमाग से हो,
औऱ इश्क़ केवल जुबां तक..
ताकि इस बार जो बिछड़ें हम,
तो तुम मुझे फ़िर रुला ना सको...

और ये जो तुम्हारी बातों में जो नशा है,
जो बस सुनते रहने को मन करता है..
जाने क्या वो जादू है,
जो मुझे निःशब्द कर देता है..
सब बोल देने का हुनर है जो,
बस इतना सीखा देना..
इस बार जो मिले हम,
अपने जैसा बना देना..
ताक़ि फासले कितने हो दरमियाँ,
फिर दूर हो ना पाए,
जितने जनम हो ज़िन्दगी..
हमेशा को एक हो जाए..
चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाए,
फिर से किसी मोड़ पर मिले
फिर से दिल हार जाए..

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कभी कभी घबराहट सी होती है दिल में,
और जुबां ख़ामोश हो जाती है..
चाहती तो हूं एक गहरी सांस लेने को..
पर एक एक सांस जो बामुश्किल से ली जाती है..
और फिर मैं निढाल सी ज़मी पर बैठ जाती हूं..
नहीं मुझे तकलीफ़ नहीं है सांस लेने में..
पर कभी कभी तुम इतना याद आते हो,
की एक पल भी सांस लेना मुश्किल सा लगता है..

कभी कभी मैं मौन हो जाती हूँ,
यूँही ख़ामोश, चुपचाप सी तन्हा..
ऐसा नहीं है कि कोई पास नहीं है मेरे,
पर कभी कभी सिर्फ ख़ामोश हो जाने को मन करता है..

पर ये खामोशी भी कहां ख़ामोश है..
हर वक़्त तो कानों में एक शोर रहता है..
बन्द भी कर लूं कानों को अपने..
फिर भी एक शोर हर वक़्त मेरे दिल में होता है..
तकलीफ बहुत देते हैं मुझे नजारे दुनिया के,
कभी कभी बस आंखे मूंद लेने को मन करता है
पर कहां सुकून है दिल को आंखे बंद कर देने से,
यूँ बन्द आँखों से भी तेरा नज़र होना बहुत तकलीफ देता है..

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ख़ाली ख़ाली सी है रातें
ख़ाली ख़ाली सा है मन..
कुछ सिमटे सिमटे से तुम मुझमे
कुछ बिखरे बिखरे से हम..

साख साख लिपटी लतिका से,
यूँ सांसो से जुड़े मुझमें तुम..
किसी मिट्टी में धूमिल होते,
कोई सूखे सूखे से पात हम..
ख़ाली ख़ाली सी है रातें
ख़ाली ख़ाली सा है मन..

मौसम इश्क़-ए बहार का,
कभी पनपे, कभी उजड़े,
कभी मिले, कभी बिछड़ें,
फिर से तेरे संग उड़ने की चाहत में,
हर झोंकों पर जाने कितनी बार मिटे..
तेरी ही यादों में उलझे,
कोई अनसुलझी सी बात हम..
खाली खाली सी है ये राते,
कुछ खाली खाली सा है मन..

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तुमसे दूर होने पर लगा..
की ये सांसे रुक जाएगी..
दिल शायद धड़कना बन्द कर दे,
पर किसी के जाने से ज़िन्दगी कभी रुकी है भला,
बदल जरूर गयी हो पर चलती रहती है अनवरत..
समय आगे तो बढ़ चुका है..
पर लगता है उस बीत चुके समय में,
इस बदल चुकी ज़िन्दगी में,
मानो छोड़ चुकी हूं पीछे कुछ,
मुझमें कुछ मेरा सा,
एक ख़्वाब अधूरा सा...
पर शायद तेरे मिलने से
पूरे हो पाते हम,
शायद तेरे मिलने से,
खुद से मिल पाते हम..
पर अब ख़्वाहिशें थक चुकी हैं,
तन्हा सफ़र तय करते करते..
मंज़िल भले ना मिली हो ए-ज़िन्दगी,
तू अब रास्ते ही ख़त्म कर दे..
और रह जाने दे,
एक अलविदा अधूरा सा..


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कभी कभी खुद को जब इतना व्यस्त पाती हूं,
कभी कभी जब खुद का भी ख्याल नहीं आता..
तब तब जहन में बस एक ही ख्याल आता है,
कि हां अब मैं तुम्हें भूल चुकी हूं शायद...

दिन भर जब मैं ना थकी हूं, ना रुकी हूं,
एक पल भी जब फुर्सत नहीं होती तुम्हें सोचने की..
तो सोचती हूँ , हां अब मैं तुम्हें भूल चुकी हूं शायद।

पर ये शायद ही है जो हमेशा शायद रहेगा,
एक गलतफ़हमी सा विचार जो मेरे मन में रहेगा,
इतनी व्यस्तता में भी तुम्हारी कमी खोज लेता है मन,
इस भीड़ में भी अकेलापन खोज लेता है ये मन।

कभी किसी रात की तन्हाई में,
मेरी आँखों के आंसुओं में तुम बहते हो,
ये मेरे मन का वहम है तुम्हें भूल जाना,
क्योंकि हर वक्त मेरी सांसो में तुम रहते हो,

हां ये मेरे मन का वहम ही है तुम्हे भूल जाना,
भला दिलो में रहने वाले कब दिल से निकल पाते है..
लाख कोशिशें कर लो उन्हें भुलाने की,
हर बार वो बस यूं ही बेवजह याद आ जाते है,

भले कोई वजूद नहीं मेरा तुम्हारी ज़िन्दगी में,
भले मैं आख़िरी हूँगी तुम्हें चाहने वालों की भीड़ में,
पर ये प्यार मेरे दिल में मेरे अंत तक रहेगा...
ये जो नाम तुम्हारा है अब ज़हन से शायद ही मिटेगा,
ये जो एहसास है मेरे दिल मे हमेशा रहेगा...

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...✍️✍️ Sarita Sharma..🙏