बात बस इतनी सी थी
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अपने मम्मी-पापा से आशीर्वाद लेने के बाद मंजरी मुझे साथ लेकर मेरी माता जी की ओर बढ़ी । मेरी माता जी के चरण स्पर्श करने के लिए हम दोनों एक साथ नीचे झुके, पर मेरी माता जी ने अपना एक हाथ मेरे सिर पर रखा था और दूसरे हाथ में अब भी उन्होंने कसकर ब्रीफकेस पकड़ा हुआ था । मंजरी ने कई बार मेरी माता जी से आग्रह किया -
"मम्मी जी, आपके आशीर्वाद के बिना हमारी शादी संपन्न नहीं हो सकती है ! मैं अपनी नयी जिंदगी शुरू करने से पहले आपका आशीर्वाद चाहती हूँ ! आपके आशीर्वाद के बिना मैं अपनी गृहस्थी शुरू नहीं करूँगी !"
मेरी माता जी पर मंजरी के निवेदन का कोई असर नहीं हुआ । लगभग दो मिनट तक मंजरी मेरी माता जी के चरणों पर झुकी रही, लेकिन मेरी माता जी का हाथ उसके सिर पर नहीं आया । दो मिनट बाद मंजरी सीधी खड़ी हुई और बोली -
"अच्छा यह बात है ! अब मुझे समझ में आया ! आपका हाथ खाली ही नहीं है, तो मेरे सिर पर कैसे आएगा ! लाइए, ब्रीफकेस मुझे दीजिए और मेरे सिर पर अपना वरद् हस्त रखकर मुझे आशीर्वाद दीजिए !"
कहते हुए मंजरी ने मेरी माता जी के हाथ से वह ब्रीफकेस लेना चाहा, लेकिन माता जी ब्रीफकेस को ऐसे ही छोड़ने वाली कब थी । उन्होंने ब्रीफकेस को और ज्यादा कसकर पकड़कर कहा -
"पहले इस वीडियो की चिप मुझे दे, तभी तुझे यह ब्रीफकेस मिलेगा !"
माता जी को थोड़ा-सा ढीला पड़ते देखकर पीछे से ताऊ जी ने कहा -
"चिप देने भर से क्या होगा ? इस वीडियो की कितनी ही कॉपी करके इन्होंने न जाने कहाँ-कहाँ रख ली होंगी !"
ताऊ जी ने अपने अधकचरे तकनीकी ज्ञान का प्रदर्शन करके सीना चौडा किया, तो मंजरी ने ताऊ जी की चुटकी लेते हुए कहा -
अरे, वाह ! अंकल ! आप तो सारी एडवांस टेक्नोलॉजी को जानते हैं !"
ताऊ जी और मंजरी के बीच में हुए दो डायलॉग के संवाद को सुनकर माता जी और सावधान हो गई । उन्होंने ब्रीफकेस को कसकर पकड़ते हुए दुबारा कहा -
"जब तक तुम मुझे ओरिजिनल वीडियो की चिप नहीं दोगी और इसकी कॉपी डिलीट नहीं करेगी, तब तक मैं तुम्हें यह ब्रीफकेस नहीं दूँगी !" माताजी की बात में दम था । लेकिन मंजरी इस बात को मानने वाली नहीं थी ।
दूसरी ओर, मंजरी भी अपनी पूरी शक्ति के साथ ब्रीफकेस लेने की कोशिश कर रही थी । दोनों के बीच काफी देर तक छीना-झपटी चलती रही । नाते रिश्तेदारों की भीड़ में उन दोनों का यह व्यवहार मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था । मेरे मन में आया कि उन दोनों का बीच-बचाव करूँ ! इसके लिए मेरे कदम आगे भी बढे थे, लेकिन अगले ही पल मेरे कदम पीछे हट गए । मुझे अनुभव हुआ कि मैं दोनों में से किसी एक के पक्ष में बोलने या किसी एक का विरोध करने की स्थिति में नहीं हूँ, क्योंकि मैं जानता था कि इस समय मंजरी गलत नहीं है और माता जी के गलत होने के बावजूद इतने लोगों के बीच में उनका विरोध करने की न तो मेरी आत्मा गवाही देती थी और न ही मेरे संस्कार इजाजत नहीं दे रहे थे । ऐसी ही किसी न किसी मजबूरी से वहाँ पर बैठे हुए सभी लोग तमाशा देखते रहे और अंत में मंजरी मेरी माता जी के बूढ़े हाथों से ब्रीफकेस लेने में सफल हो गई, जोकि होना ही था ।
माता जी के हाथ से ब्रीफकेस लेकर मंजरी ने वहाँ पर उपस्थित अपनी एक हेड कांस्टेबल के पद पर कार्यरत सहेली की ओर उछाल दिया और बोली -
"नेहा यह ले, पकड़ तेरा पूरा अस्सी लाख ! संभाल लेना !"
मेरी माता जी सहित मेरा और मेरे ताऊ जी का और वहाँ पर बैठे दूसरे लोगों का सबका ध्यान उस समय अस्सी लाख रुपए देने और लेने के वीडियो पर तो था, लेकिन जब मंजरी माताजी से अस्सी लाख रुपयों से भरा हुआ ब्रीफकेस छीन रही थी और माता जी से ब्रीफकेस छीनकर वह अपनी सहेली नेहा को दे रही थी, तब उस घटनाक्रम का वीडियो बनाने की तरफ हममें से किसी का भी ध्यान नहीं गया, जो कभी भविष्य में हमारे दहेज न लेने के सबूत के तौर पर काम आ सकता था ।
अस्सी लाख रुपयों से भरा हुआ वह ब्रीफकेस नेहा को देने के बाद मंजरी ने वहाँ पर बैठे हुए सभी लोगों को बताया -
"मेरे पापा जी के पास इतना बैंक बैलेंस नहीं था कि मेरी शादी में दहेज देने के लिए अस्सी लाख रुपयों की व्यवस्था कर सकते । इसलिए ये इतने ज्यादा रुपये जुटाने के लिए अपने पूर्वजों से मिली हुई जमीन के एक टुकडे को बेचना चाहते थे ! लेकिन मैं इस कलंक को अपने माथे पर नहीं लगाना चाहती थी ! लेकिन मेरे लाख मना करने पर भी पापा जी मेरी बात मानने के लिए तैयार नहीं थे !
अब मैं कोई एक ऐसा बीच का रास्ता तलाश रही थी कि मेरे पापा जी जितना दान-दहेज देकर मेरी शादी करना चाहते हैं, वे मेरी शादी उतना ही दहेज देकर संपन्न करा दें और साथ ही मेरे पापा जी को मेरे पूर्वजों से मिला हुआ जमीन का टुकड़ा भी उनके पास रह जाए !
मैंने अपनी यह समस्या अपनी बचपन की सखी नेहा को बतायी । मैं उसके साथ अपना दर्द बाँटकर कम करने की कोशिश कर रही थी, तभी वहाँ नेहा के ससुर जी आ गए । सारी स्थिति जानने के बाद वह मेरे पापा जी की जमीन के टुकड़े को खरीदने के लिए ग्राहक बनाकर आए और जमीन के उस टुकड़े के बदले में वे मेरे पापा जी को मुँह माँगी कीमत देने के लिए तैयार हो गये ।
नेहा के ससुर जी ने मेरे पापा जी को उसी समय अस्सी लाख रुपये दे दिये थे । पर उन्होंने अपनी व्यस्तता का बहाना करके जमीन की रजिस्ट्री कुछ दिन के लिए टाल दी थी, क्योंकि मेरे और नेहा के बीच यह निश्चित हो चुका था कि शादी संपन्न होने के बाद मैं उसके ससुर जी का सारा रुपया उसे वापिस लौटा दूँगी !
आज, जब आप सबके सहयोग और आशीर्वाद से इस शुभ मुहुर्त में दोनों काम अच्छी तरह संपन्न हो चुके हैं, तो मैंने नेहा को उसके अस्सी लाख रुपये वापिस लौटा दिये हैं !"
उस दिन मंजरी की कार्य-योजना, उसके कार्य करने के ढंग, उसके व्यवहार तथा उसकी वाक् पटुता ने मुझे बहुत प्रभावित किया था । मैंने महसूस किया था कि वह नये युग की एक ऐसी सशक्त लड़की है, जो बड़ी-बड़ी समस्याओं का समाधान बहुत ही सहज-सरल ढंग से करके हर परिस्थिति को अपने अनुकूल करने में सक्षम है ।
एक ओर उस समय मैं मंजरी के साथ रिश्ता जोड़कर खुद पर गर्व महसूस कर रहा था और जितना प्यार मैं उसे अब से पहले करता था, आज मेरे दिल में उसके लिए उससे कई गुना ज्यादा प्यार उमड़ रहा था ! दूसरी ओर, जब मैं माता जी की ओर देखता था, तो मेरे मन में मंजरी के लिए अजीब-सी वितृष्णा भर जाती थी । तब मेरे अन्दर से मूक आवाज में कोई चीख-चीखकर मुझसे कहता -
"मंजरी कुछ भी करती, लेकिन वह सब ना करती, जो उसने किया है ! नाते-रिश्तेदारों की भीड़ में उसको मेरी माता जी का अपमान नहीं करना चाहिए था !"
मंजरी के पारिवारिक स्थानीय रीति-रिवाजों को पूरा करके अगले दिन हम उसको विदा कराके हमारे घर ले आए । हमारे घर आने के बाद दो दिन और मेरे पारिवारिक स्थानीय रीति-रिवाजों को पूरा करने में बीत गये । इन तीन दिनों में हम दोनों का मिलन नहीं हो सका । तीन दिन बीतने के बाद हम दोनों के मिलन की रात आयी ।
हम दोनों बहुत खुश थे और आपस में बातें करते हुए आने वाली जिंदगी के सुखद सपने बुनते हुए उन वर्तमान पलों का आनंद ले रहे थे । बातें करते-करते आधी रात बीत गयी थी । अब मैं दो आत्माओं के वायावी मिलन को सार्थक करने के लिए उस दिशा में आगे बढ़ने लगा था, जहाँ दो शरीर मिलकर एक होने की अनुभूति कर सकें !
मैं पूरी तरह सावधान था कि मेरे किसी भी व्यवहार या स्पर्श से मंजरी को किसी तरह का कोई मानसिक या शारीरिक कष्ट न हो । मेरी पूरी कोशिश यह थी कि उसे जिन्दगी का ऐसा अभूतपूर्व अद्वितीय आनंद दे सकूँ कि मेरे साथ बिताया हुआ उसका हर एक पल यादगार बन जाए । हमारी वह पहली रात मेरी इसी कोशिश में आपस में हास-परिहास करते हुए और अपनी अपनी बीती जिंदगी के सुखद पलों की कहानी कहने-सुनने में बीत गई ।
अगली रात तक हम दोनों आपस में काफ़ी घुल-मिल चुके थे । इस रात मैं अपने साथ कुछ ऐसी ब्लू फिल्में भी ले आया था, जिन्हें देखकर मंजरी को मेरे और ज्यादा नज़दीक आने में किसी प्रकार की कोई लज्जा या संकोच ना हो । उन फिल्मों ने अपना पूरा-पूरा काम किया था । ब्लू फिल्म देखते-देखते मंजरी का लज्जा-वसन उतर चुका था और वह अपना लज्जा-वसन उतारकर मेरे बहुत नजदीक आ गयी थी ।
मंजरी मेरे बहुत नजदीक आकर मुझसे चिपक गयी थी । मैं भी मंजरी के और ज्यादा नजदीक आने की कोशिश कर रहा था । पूरी रात हम दोनों एक-दूसरे से चिपककर ब्लू फिल्में देखते रहे और एक दूसरे के स्पर्श का मज़ा लेते रहे । हालांकि हम दोनों के बीच की जिस बाकी बची हुई दूरी को खत्म करना हम दोनों का ही फर्ज भी था और हक भी था, वह दूरी हमारे बीच में अभी भी बाकी बची थी ! फिर भी वह रात हमारे लिए बेशकीमती सुखदायक थी । इतनी सुखदायक कि कब रात बीती और कब सुबह हो गई, हमें पता ही नहीं चला ।
तीसरी रात आते-आते हम दोनों में ऐसा कुछ बाकी नहीं बचा था, जिसे छिपाने के लिए किसी पर्दे की जरूरत हो । मैंने पूरा निश्चय कर लिया था कि आज रात हम दोनों को दो शरीर और एक प्राण होने में किसी बाधा को आडे नहीं आने दूँगा ! मैंने सोच लिया था कि अगर आज हम दोनों के एकाकार होने में कोई काली शक्ति भी बाधा बनकर हमारे बीच आएगी, तो हमारा आपस का प्यार और विश्वास उसे कुचलकर हमेशा के लिए उसका नाश कर देगा । लेकिन मैं गलत सिद्ध हुआ ।
जिस दिव्य मिलन का मैं उस पल से इंतजार कर रहा था, जब मंजरी को लेकर मेरे दिल में पहली बार मधुर संगीत गूँज उठा था, उस मिलन की घड़ी आते-आते दूर जाने लगी । पूरी तीन रात अपने लज्जा-वसन उतारकर मेरे स्पर्श का आनंद लेते हुए भी मंजरी ने मुझे अपने और ज्यादा नज़दीक आने से रोक दिया । तीन रातों के मिलन के बावजूद हम दोनों के बीच की कुछ बाकी बची दूरी को खत्म करने की मेरी हर कोशिश को विफल करते हुए मंजरी ने मुझे हर बार यही कहा -
"मुझे तो अभी भी मेरे अंदर से ऐसा कुछ-कछ फ़ील नहीं आ रहा हैं कि हम इससे आगे बढ़ें !"
मैंने उसको प्यार से मनाने की कोशिश करते हुए कहा -
"पहली बार सभी को ऐसा ही होता होगा ! एक-दो बार सैक्स करने के बाद तुम्हें वही सब-कुछ फ़ील आने लगेगा, जिसकी तुम अब कमी महसूस कर रही हो ! हम दोनों को यह दूरी खत्म करके उस दीवार को तोड़ देना चाहिए, जो तीन रातें साथ-साथ बिताने के बाद भी हमारे बीच खड़ी है !"
पूरी रात मेरे मनाने-पुचकारने के बाद भी मंजरी ने मेरी एक नहीं मानी । उसने बड़ी लापरवाही के साथ बेरुखी से मुझे जवाब दिया -
"नहीं ! जब तक मुझे कुछ कुछ फ़ील नहीं होगा, तब तक हम हमारे बीच की दूरी को खत्म नहीं कर सकते ! तब तक मैं तुम्हें मेरे साथ कुछ भी ऐसा-वैसा करने की इजाजत नहीं दूँगी !"
मंजरी के इस बेरुखी भरे जवाब से मुझे झुँझलाहट होने लगी थी । लेकिन किसी भी परिस्थिति में मैं अपनी झुँझलाहट को अपने व्यवहार का हिस्सा नहीं बनने देना चाहता था । मैं यह बिल्कुल भी नहीं चाहता था कि मेरा असंतोष हमारे रिश्ते की कब्र बन जाए ! इसलिए मैंने मंजरी को एक बार फिर समझाने की कोशिश की -
"देखो मंजरी, हम दोनों लड़कपन की उम्र पार कर चुके हैं । हम दोनों ही समझदार हैं । अब तुम्हें यह समझना चाहिए कि शादी का उद्देश आपस यौन-संबंध बनाकर एक-दूसरे की इस जरूरत को पूरा करना है ! हम दोनों में से किसी एक का भी इस जिम्मेदारी से दूर भागना दूसरे के साथ अन्याय है ; अत्याचार है !"
मेरे कई बार समझाने के बाद भी मंजरी पर कोई असर नहीं हुआ। वह मेरे एक-एक शब्द को सुनकर 'ह-ह-ह-ह' करके हँस रही थी । मैं जिस बात को बहुत गंभीरता से उसको समझाने की कोशिश कर रहा था, वह उस बात को हँसकर हवा में उड़ा रही थी । उसकी हँसी से मुझे ऐसा लगने लगा था कि वह मेरी भावनाओं का मजाक उड़ा रही है । इतना नहीं, मुझे यह एहसास होने लगा था कि वह मेरी भावनाओं और मेरी यौन जरूरतों का अपमान कर रही है !
अगले दिन पग-फेरे की रस्म थी, जिसमें मंजरी को अपने मायके लौट जाना था । मंजरी के साथ शारीरिक रिश्ता बनाने के लिए मेरे पास सिर्फ वही एक रात थी । अब मुझे बार-बार यह डर सताने लगा था कि मायके जाकर मंजरी जब अपनी सखी-सहेलियों और भाभी-चाची से बताएगी कि मैं तीन रात मंजरी के साथ रहकर भी एक क्षीण से पर्दे को नहीं तोड़ सका हूँ, तो वे सब मेरे पौरुष पर सवाल खड़े करके मेरा मजाक बनाएँगी ! इसके बाद भी उस समय मुझे ऐसा कोई उपाय नहीं सूझ रहा था, जिससे कि मैं मेरे और मंजरी के बीच बची हुई बाकी बहुत ही कम दूरी को खत्म कर सकूँ !
क्रमश..