आदमी का शिकार - 9 Abha Yadav द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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आदमी का शिकार - 9


दिन ढ़लते ही योका गन्ने के खेत से बाहर निकल आया. उसके हाथ में पत्थर का बर्तन था.जिसमें गन्ने का रस भरा था.
"चलें"योका को बाहर आया देखकर नूपुर उठ खड़ी हुई.
"हां.चलो."कहते हुए योका ने उसकी अंगुली पकड़ ली.
"तुम्हारे घर वाले मुझे रख लेगें. "नूपुर ने योका के साथ चलते हुए पूँछा.
"हमारे यहां स्त्री, बूढे और बच्चों को सब अच्छे से रखते हैं. तुम्हें भी अच्छे से रखेंगे."
नूपुर आश्वत् हो गई.
"जल्दी ही बस्ती में पहुंचने वाले हैं."योका ने अपनी चाल तेज की.
"तुम लोग मीठा चावल खाते हो?"नूपुर ने भी अपनी चाल तेज की.
"हां,लेकिन तुम्हें कैसे पता.?"योका ने रुककर नूपुर की ओर देखा.
"मैं एक छाँव में गई थी. वहां मीठा चावल रखा था.मुझे भूख लगी थी.मैंने उसे खायाथा."
"तुम कौन सी छाँव में गई थीं."योका ने जल्दी से पूँछा.
"उस छाँव के दरवाजे पर नर कंकाल लगे थे."
"अरे,वही तो हमारी छांव है."योका चहककर बोला.
"वहां नर कंकाल क्यों लगा रखे हैं?"
"सरदार की छाँव में नर कंकाल और सब छांव में नर मुंड़ लगते हैं.'"योका ने बताया .
"लेकिन, क्यूँ?"
"देवता भाई के हुक्म से."
"यह आते कहां से?"नूपुर ने डरते -डरते पूँछा.
"आदमी का शिकार करके."कहते हुए योका की आँखें क्रोध से लाल हो गई.
"तुम...तुम लोग ...आदमी का शिकार करते हो? मेरा भी..."कहते -कहते नूपुर की सांस अटक गई. उसके पैर वहीं जम गये.
"नहीं, यहां स्त्री, बूढे बच्चों का शिकार नहीं किया जाता."योका गम्भीरता से बोला.
"सच कह रहे हो."नूपुर अभी भी डरी हुई थी.
"हम झूठ नहीं बोलते."योका ने नूपुर के सिर पर हाथ रखा.
उसकी आँखों में सच्चाई थी.
नूपुर का डर कम हो गया.
बस्ती में प्रवेश करते ही नूपुर ने देखा-स्त्रियां, बूढे, बच्चे बस्ती में चले आ रहे थे. इनके पीछे जंगली आदमी भी थे.स्त्री और बूढों ने जानवरों की खाल पहनी थी.बच्चे नग्न ये. आदमियों ने भी जानवरों की खाल पहनी थी.स्त्रियों के हाथों में दरातें और सिर पर सूखी लकड़ियां थीं. आदमियों के हाथ में भाले और तीर कमान थे .वे मरे हुए जानवर पकड़े थे.
"यह हमारी बस्ती के लोग हैं. योका ने बताया.
"तुम्हारी मां कहां है."
"जिसने शेर की खाल पहनी है."
"तुम्हारे बहन-भाई कहां है?"
"मैं अकेला हूँ."
"तुम्हारी मां बहुत प्यार करती होगी?"नूपुर ने पूँछा.
"बहुत चाहती है."
"तुम्हारे बापू."
"बापू प्यार करता है. लेकिन नाराज रहता है."
"क्यूँ?"नूपुर ने उत्सुकता से पूँछा.
"क्यूँ कि मैं शिकार नहीं करता.शिकार न करनेवाला कायर होता है, उसकी शादी भी नहीं होती."योका एक ही सांस में कह गया.
"तब,तुम्हें भी शिकार करना चाहिए."नूपुर ने कहा.
"मुझे आदमियों का शिकार नहीं करना .चाहें शादी न हो."योका गुस्से से बोला.
"शादी के लिए आदमी का शिकार?किसने बनाया यह नियम."नूपुर को यह मूर्खतापूर्ण लग रहा था.
"देवता भाई की आज्ञा से होता है. पहले केवल जानवरों का शिकार होता था."
"देवता भाई ऐसी आज्ञा क्यूँ देता है."नूपुर सोचने लगी.
तभी कुछ जंगली शोर मचाते हुए नूपुर की ओर बढने लगे.उनके आगे आगे बच्चे शोर मचाते हुए उछल कूद कर रहे थे. अपनी ओर इन लोगों को आते देखकर नूपुर योका से चिपक गई-"यह लोग मुझे मार डालेंगे."
"इनसे मत डरो.अपनी बस्ती के हैं. तुम्हें देखकर खुश हो रहे हैं."
अभी योका नूपुर को बात कर ही रहा था .जंगलियों ने चारों ओर से उन्हें घेर लिया.
"यह लड़की कौन है?"शेर की खाल पहने हुए एक बलिष्ठ से जंगली ने योका से पूँछा.
"बापू, परदेशी है .रास्ता भूल गई है."योका ने बताया.
स्त्रियां, बच्चे, वृद्ध भी नूपुर के पास सिमट आये थे. बच्चे नूपुर की फ्राक छूकर देख रहे थे. कुछ बच्चे शोर मचा रहे थे-"पाहुना आया... पाहुना आया."
"तन्वी, पाहुने को छाँव में ले जाओ."शेर की पहने आदमी ने शेरनी की खाल पहने स्त्री को आज्ञा दी.
शेर की खाल पहने आदमी यहां का सरदार था.शेरनी की खाल पहने उसकी पत्नी.यही योका के मां-बाप थे.
"योका, तू पाहुने को छाँव में लेकर जा.मैं चावल तैयार करती हूँ."योका के हाथ से गन्ने के रस का बर्तन लेते हुए तन्वी ने कहा.
"अच्छा, बाई."कहते हुए योका ने तन्वी का हाथ पकड़ा और अपनी छाँव की ओर चल दिया.
बच्चे अभी भी योका और नूपुर के पीछे थे.
"लो,अपनी छाँव आ गई."योका अपनी झोपड़ी के आगे जाकर रूक गया.
"ऊपर चलें."नूपुर ने पूँछा.
"हां."नूपुर ने सिर हिला दिया.
नूपुर सीढियां चढ़ने लगी.योका भी नूपुर के पीछे आ गया.
अभी नूपुर को यहां आये कुछ ही समय हुआ था कि बस्ती में तेजी से धुआं उठने लगा .धुआं देखकर नूपुर चीखने लगी-"बस्ती में आग लग गई."
"कहां?"योका भी घबरा गया.
"देखो,कितना धुंआ है."नूपुर ने बाहर की ओर इशारा किया.
"अरे,आग नहीं लगी है. बाहर चावल और मांस पक रहा है."
"ओह!यह बात है."नूपुर गहरी सांस लेकर बोली.
"नुप्पू, हमारी छाँव कैसी है?"नूपुर को बैठने के लिए लकड़ी की चौकी देते हुए योका ने पूँछा.
"अच्छी है. लेकिन..."
"लेकिन क्या?"योका भी दूसरी चौकी डालकर नूपुर के पास ही बैठ गया.
"रात के अंधेरे में यह नर कंकाल बहुत डरावने लग रहे हैं. इन्हें हटा क्यों नहीं देते."नूपूर ने कहा.
"हटाना तो मैं भी..."योका अपनी बात भी पूरी नहीं कर पाया था. सरदार और तन्वी छाँव में आ गए.
"तन्वी, पाहुने को खाना खिलाओ."सरदार ने दो हांड़ियां नीचे रखते हुए कहा.
"पाहुने तुम गोश्त खाते हो.?"सरदार ने नूपुर के पास बैठते हुए पूँछा.
"नहीं."नूपुर डर कर थोड़ा पीछे खिसक गई.
"लो,याकूब. पाहुने को खाना दो."पत्थर का कटोरा सरदार की ओर बढ़ाते हुए तन्वी ने कहा.
सरदार ने कटोरा लेकर नूपुर की ओर बढ़ा दिया.
"योका भाई के साथ खाना खायेंगे."नूपुर कटोरा लेते हुए बोली.
"योका तुम्हारा भाई है?"सरदार ने लाल आँखों से नूपुर की ओर देखा.
"हां.बापू ,नुप्पू को मैंने बहन माना है."मिट्टी के बर्तन में सबके आगे पानी रखते हुए योका बोला.
योका की बात को सुनकर सरदार ने गले में पड़े नरमुंड को माथे से लगाया-"तन्वी, आज बेटी की कमी पूरी हो गई."
"इसी बात पर कल जश्न हो जाये."तन्वी हँसकर बोली.
"या..हा..या..हा."आज देवता भाई को बता देना .कल जश्न होगा.
"ठीक है."तन्वी सबका खाना लगाते हुये बोली.
सबने खाना खा लिया तो योका ने फूस की बनी दो चटाई लाकर बिछा दी-"पसर जाओ, नुप्पू."
नूपुर ने चटाई की ओर देखा इससे पहले वह चटाई पर कहां सोती थी.तभी उसे रीछों के साथ का पत्थर का बिस्तर याद आ गया. वह चुपचाप चटाई पर लेट गई. आशा के विपरीत चटाई बहुत मुलायम थी.
चटाई पर लेटते ही नूपुर की आँखें बंद हो गईं.

क्रमशः