आदमी का शिकार - 5 Abha Yadav द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • जंगल - भाग 10

    बात खत्म नहीं हुई थी। कौन कहता है, ज़िन्दगी कितने नुकिले सिरे...

  • My Devil Hubby Rebirth Love - 53

    अब आगे रूही ने रूद्र को शर्ट उतारते हुए देखा उसने अपनी नजर र...

  • बैरी पिया.... - 56

    अब तक : सीमा " पता नही मैम... । कई बार बेचारे को मारा पीटा भ...

  • साथिया - 127

    नेहा और आनंद के जाने  के बादसांझ तुरंत अपने कमरे में चली गई...

  • अंगद - एक योद्धा। - 9

    अब अंगद के जीवन में एक नई यात्रा की शुरुआत हुई। यह आरंभ था न...

श्रेणी
शेयर करे

आदमी का शिकार - 5


नूपुर का मन रीछों के बीच नहीं लग रहा था. जानवर चाहें कितना भी प्यार क्यों न करें, जानवरों के साथ कोई भी इंसान अपनी पूरी जिंदगी नहीं गुजार सकता. उसे मनुष्य के साथ की आवश्यकता होती है. वह.उन्हीं के बीच रहना चाहता है.
नूपुर ने जबसे इस जंगल में मनुष्यों को देखा.उसका मन रीछों से उचट गया. उसके विचार से रीछों से अच्छे वो जंगली इंसान थे.उसने उन जंगली मनुष्यों के बीच रहने का निश्चय कर लिया. वह यहां से निकलने के रास्ते खोजने लगी.उसने फैसला कर लिया-आज रीछों के यहां से जाते ही,वह भी यहां से निकल जायेगी.
पत्थर के ऊपर नूपुर सोने का बहाना किए लेटी रही. उसे रीछों के बाहर जाने का इंतजार था.
कुछ समय बाद रीछ नूपुर के पास आये. नूपुर आँख बंद किए पड़ी रही.रीछ ने नूपुर को सूंघा.सोया हुआ जानकर सभी रीछ बाहर चले गये.
काफी देर नूपुर यूँही लेटी रही. फिर उठकर पेट भरकर अंगूर खाये.जब उसका पेट भर गया तो वह कुंज से बाहर निकल गई.
कुंज से बाहर निकल कर नूपुर ने चैन की सांस ली.अब उसे किसी बात का खतरा नहीं था.रीछों को गए हुए काफी देर हो गई थी. रास्ता साफ था.
नूपुर उसी दिशा में आगे बढ़ गई, जिस दिशा में रीछों के साथ जाने पर उसे जंगली मिले थे.
ऊबड़ खाबड़ रास्ते पर चलते हुए नूपुर थक जाती तो आराम कर लेती. आज उसे लगातार नहीं चलना पड़ रहा था. वह अपनी मर्जी से चल सकती थी. अपनी मर्जी से आराम कर सकती थी. रीछों की इच्छा पर निर्भर नहीं थी.
हांलाकि नूपुर अपनी मर्जी की मालिक थी.फिर भी वह जायदा देर आराम नहीं करना चाहती थी. उसे जंगली आदमियों के पास पहुंचने की जल्दी थी.
काफी देर तक चलने के बाद नूपुर उस स्थान पर पहुंच गई.जहां रीछों ने शिकार किया था. आज यह स्थान सुनसान था.नूपुर ने चारों ओर घूमकर स्थिति का जायजा लिया. इस घने जंगल में भी एक पंगडंडी पूर्व दिशा की ओर जा रही थी. नूपुर को याद आया-उस दिन रीछों के ऊपर हमला करनेवाले जंगली आदमी इधर से ही आये थे. नूपुर पंगडंडी पर आगे बढ़ गई.
पंगडंडी पर चलने में नूपुर को कोई परेशानी नहीं हो रही थी. फिर भी वह सावधान थी.पंगडंडी के दोनों ओर घना जंगल था.कोई भी हिंसक जानवर आकर हमला कर सकता था. नूपुर तेजी से आगे बढ़ रही थी. तभी उसे अपनी दांयी तरफ खड़खड़ाहट महसूस हुई. उसने रूककर आहट लेनी चाही.इस बार खड़खड़ाहट बिलकुल उसके पास थी.नूपुर ने देर करना ठीक नहीं समझा. वह शीघ्रता से पास के पेड़ पर चढ़ गई.
जैसे ही नूपुर ने नीचे देखा उसके रोंगटे खड़े हो गए. झाड़ी में से शेरनी निकल रही थी. उसके पीछे उसके दो बच्चे थे.नूपुर जल्दी से पत्तों में छिप गई. पेड़ काफी घना था.उसे छिपने में कोई कठिनाई नहीं हुई.
शेरनी ने शायद नूपुर की उपस्थित को महसूस नहीं किया था या फिर वह शिकार नहीं करना चाहती थी. वह अपने बच्चों के साथ पीछे की ओर चली गई.
शेरनी के जाने के बाद भी नूपुर की हिम्मत पेड़ से नीचे आने की नहीं हो रही थी.कहीं से भी हिंसक जानवर सामने आ सकता था. उसकी समझ नहीं आ रहा था,आगे सुरक्षित कैसे बढ़ा जाये.


क्रमशः