आदमी का शिकार - 6 Abha Yadav द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

आदमी का शिकार - 6


नीचे जंगल में नूपुर को खतरा ही खतरा नजर आ रहा था.उसने पेड़ों के ऊपर चलने का निश्चय किया. वह एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर कूदती हुई आगे बढ़ने लगी.इस तरह चलने में जानवरों का खतरा नहीं था.लेकिन दिशा का ज्ञान होना मुश्किल था.ऊपर से सारा जंगल एक जैसा और बहुत घना था.कुछ दूर चलने के बाद नूपुर नीचे झांककर पंगडंडी देखती फिर आगे बढ़ती.
एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर जाने में नूपुर को छलांग लगानी पड़ती. कई बार वह गिरते-गिरते बची. उसे थकान भी काफी हो गई थी.रास्ता भी कम तय हो पाया था.जंगल भी अब जायदा घना नहीं रह गया था.पंगडंडी पर चलने का निश्चय कर वह पेड़ से नीचे उतर आयी.अब वह पंगडंडी से पूर्व दिशा की ओर बढ़ रही थी.
काफी दूर चलने के बाद भी जब बस्ती नहीं दिखाई दी तो वह आराम करने के लिए एक पेड़ पर चढ़ गई. नीचे जमीन पर लेटना खतरे से खाली नहीं था.
अभी नूपुर पेड़ की शाख पर लेट भी नहीं पायी थी कि उसे अपने बगल में सरसराहट सुनाई दी.उसने मुडकर देखा तो उसके मुँह से तेज चीख निकल गई. जिस शाख पर वह थी ,उसी पर एक काला नाग था .जो धीरे-धीरे उसी की ओर बढ़ रहा था. पल भर के लिए वह घबरायी.लेकिन उसने विवेक से काम लिया. उसने तुरंत एक छलांग लगाई. अब वह दूसरे पेड़ पर थी.
काले नाग से बचकर उसने चैन की सांस ली.साथ ही यहां आराम करने का इरादा भी छोड़ दिया. वह तेजी से पंगडंडी पर पूर्व दिशा की ओर भागने लगी.कुछ किलोमीटर भागने के बाद उसे बस्ती दिखाई दी तो वह खुशी से उछल पड़ी.उसके पैर हवा की गति से भागने लगे.
अब,बस्ती केवल एक किलोमीटर दूर रह गई थी. खेत भी दिखाई देने लगे थे.नूपुर ने चैन की सांस ली.यहां खेत है तो इंसान भी सभ्य रहते होगें.
जैसे ही नूपुर लहलहाते खेतों के पास पहुंची उसकी चीख निकल गई. धान के खेत में एक नर -कंकाल खड़ा था.नूपुर सोच में पड़ गई. उसने खेत में बांस के आदमी को कपड़ें पहने तो देखा था .लेकिन नर कंकाल को खेत में खड़ा कभी नहीं देखा था.कुछ देर नूपुर नर कंकाल को देखती रही. फिर उसने सोचा-शायद फसल को जानवरों से बचाने के लिए लगाया होगा.
चारों ओर हरे-भरे खेत थे.दूसरे खेतों में, मानव खोपड़ी टंगी थी.नूपुर को लगा -कहीं वह किसी दूसरी मुसीबत में तो फँसने वाली नहीं है.लेकिन, पीछे घने जंगल में वापस जाने में और जायदा खतरा था.उसने इस नई मुसीबत से निपटने का मन बनाया और आगे बढ़ गई.
नूपुर और बस्ती के बीच की दूरी अब कुछ कदम ही रह गई थी.सामने बस्ती देखकर उसे भूख लगने लगी.उसे यहां खाना मिलने की उम्मीद थी.
बस्ती में प्रवेश करते ही.नूपुर की उत्सुक नजरें चारों ओर घूमने लगीं. बस्ती के सारे मकान घास-फूस के बने थे.यह मकान जमीन से काफी ऊँचाई पर थे.इन झोपड़ियों में केवल एक दरवाजा था.झोपड़ी में जाने के लिए दरवाजे पर बांस की सीढ़ी लगी थी. झोपड़ियों के दरवाजे पर नरमुंड लगे थे. सारी झोपड़ियां खाली थीं. किसी भी झोपड़ी में कोई मनुष्य नहीं दिखाई दे रहा था.नूपुर को आश्चर्य हुआ. बस्ती में कोई रहता नहीं फिर खेती कौन करता है.उसने पूरी बस्ती देखने का निश्चय किया.
बस्ती के बीच में उसे एक बहुत बड़ी गोल झोपड़ी मिली.जिसका दरवाजा भी गोल था.यह झोपड़ी जमीन से काफी ऊँचाई पर थी.ऊपर जाने के लिए मोटे बांस की मजबूत सीढ़ी थी.दरवाजे के दोनों ओर एक -एक नर कंकाल खड़ा था.नूपुर को विश्वास सा होने लगा -यहां आदमखोर रहते हैं. एक बार के लिए उसने वापस जाने का निश्चय किया. फिर कुछ सोचकर सीढ़ियां चढ़ने लगी.

क्रमशः