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रोग से कुश्ती लड़ोगे

आदत बदलेंः रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ायें

राजनारायण बोहरे:

हम लोग माउंट आबू के गुरु शिखर की चढ़ाई पर थे और अनुभव कर रहे थे कि जितनी फुर्ती से हम पति-पत्नी पर्वत पर चढ़े चले जा रहे हैं उतनी हमारे बच्चों में नहीं दिख रही है । वे बार-बार रुक जाते और सांस फूलने जैसा हाव भाव प्रकट करते । हम उन पर खूब हंसते । बात हंसने की नहीं है आज के किशोर और युवा कहने भर को नौजवान देखते हैं , अन्यथा वे दिखने में इसी अधेड़ उम्र के आदमी की तरह दुबले-पतले, कम बालों वाले , जल्दी हार मान लेने को तैयार , आलसी और लापरवाह जैसे लक्षणों से भरे रहते हैं । यदि किसी व्यक्ति को अपनी सेहत की कतई चिंता नहीं है , तो उनसे कुछ कहने सुनने से कुछ नहीं होने वाला । हां जो लोग अपनी सेहत का ध्यान रखते हैं उनके लिए स्वस्थ रहना बहुत कठिन नहीं है । बस तनिक सा ध्यान रखना होगा और वे सेहतमंद बने रहेंगे तथा हर विपरीत हालात में लड़ सकेंगे ।

विश्व में कभी प्लेग,कभी हैजा, कभी स्वाइन फलू तो कभी कोरोना जैसी महामारी मानवता को भयाक्रांत करती रही हैं। डॉक्टर और शरीरशास्त्र के विशेशज्ञों का कहना है कि इन बीमारियेां में मनुश्य की रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत बड़ी भूमिका है। यह रोग प्रतिरोधक क्षमता हमारी कुछ आदतों को बदलने मात्र से ही बढ़ सकती है।

हमारे बच्चे, मित्र और बेलो जिनसे हम स्नेह करते हैं उनको अगर हम यह समझाने के लिए थोड़ी आदत बदलने हमेशा स्वस्थ रहेंगे तो स्वस्थ रहना बहुत कठिन नहीं है । सचमुच बड़े ताज्जुब की बात है कि आज की आधुनिक व्यस्त दिनचर्या में आदमी के पास हर काम के लिए समय है , लेकिन अपने स्वास्थ्य शरीर के लिए उसके पास कोई समय नहीं है । शरीर के लिए समय का अर्थ यह नहीं कि आदमी जिम में जाकर घंटों एक्सरसाइज करता रहे , बस एक बार बैठ कर अपनी आंतों का अवलोकन करें और दिनचर्या यानी कि अपने रहन-सहन में कुछ अच्छी आदतें शामिल कर ले ,तो बिना प्रयास के ही उसे उम्दा सोच से भरा शरीर मिलेगा । इस तरह स्वस्थ व्यक्ति के लिए अपने रहन-सहन पर ध्यान देना जरूरी है । बुरी आदतें बदलना जरूरी है तभी वह स्वस्थ रह सकेगा

1 तेज रफतार जिंदगी

आज के जमाने में हर आदमी की जिंदगी तेज रफतार हो गयी है। व्यक्ति इतना व्यस्त है कि घर से निकलते ही वह अपनी मंजिल पर पहुंच जाना चाहता है। आदमी आवाज की गति से सफर करना चाहता है। चौबीस घण्टे में छत्तीस घण्टे बराबर काम कर लेना चाहता है। जिंदगी भर की कमाई केवल चार छह साल में ही कर लेना चाहता है। साल दो साल के कोर्स बच्चे चार छह महीने में ही पूरे कर लेना चाहते हैं। इस कारण हर क्षण कामकाजी और और किशोर छात्र बहुंत तेजी में रहते हैं, एक ही समय बहुंत सारे काम दिमाग में रखते है, और यह मल्टी टास्किंग उनका मनोवैज्ञानिक नुकसान करती है, उनकी एकाग्रता भंग करती है जिसके कारण वे समय सीमा में काम न कर पाने के कारण म नही मन दुखी और अवसाद में घिर जाते हैं। ऐसे लोग एक एक बिन कहे तनाव में घिरे रहते हैं जो बहुंत घातक है। इस रफतार जिंदगी में न तो आदमी को अने समय पर पर खाना खाने की फुरसत है न ही बदन से जुड़े दूसरे उपक्रम करने की। ठीक देख रेख के अभाव में लोहे की मशीनें तक खराब हो जाती हैं, फिर मानव शरीर की बात ही क्या ? याद रखना चाहिए कि तेज रफतार वाला वाहन ही जल्दी एक्सीडेंट का शिकार होता है ओर जल्दी खराब भी होता है।

इसलिए सेहत के लिए चिंता करने वाले आदमी को अपनी सबसे बुरी आदत तेज रफतार में चलने और सोचने की आदत को बदलना होगा, सोचना होगा कि हर काम की अपनी अवधि होती है,हर यात्रा का अपना समय होता है, एक समय मे एक ही काम को हाथ में लेना होगा तो सब काम बारी बारी से पूरे होंगे, समय पर पूरे होंगे और एक मानसिक संतुष्टि व स्वास्थ संतुलन प्राप्त होगा।

2 रहन-सहन में अनियमितता

सेहत की सारी समस्या की जड़ है रहन-सहन में अनियमितता । यदि कोई व्यक्ति अपने रहन-सहन को ठीक तरह से नियमित कर ले संतुलित कर ले तो वह ना तो जीवन में कभी बीमार होगा ना उसे अलग से कुछ दूसरे उपाय करने होंगे । आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में छात्रों से लेकर बड़े लोग तक अपने दिनचर्या को किसी एक नियम से नहीं चलने देते, हर चीज अनियमित करना अच्छा लगता है । किशोरों और युवाओं में तो विदेशी शिष्यों की नकल पर यह फैशन सा हो गया है कि व्यस्त दिनचर्या को ही अपनाते हैं । उन्हें इसी तरह जीवन जीना ग्लैमर भरा लगता है, जबकि हर आदमी को अपने रहन-सहन में ऐसी दिनचर्या अपनानी चाहिए कि शरीर के सारे अंग चुस्त-दुरुस्त और मुक्त रहें । यह तभी संभव है जब कि वे रोज समय निकालकर थोड़ी देर क्या करें ताकि उनका शरीर हष्ट पुष्ट बना रहे । लेकिन आज किसको फुर्सत है टेलीविजन देखना छोड़कर एक कान में लगे हुए मार्ग पर स्वास्थ्य पर चिंतन करते हुए एक-एक पर विचार करना पड़ेगा । हमें एक कारण पर भी ध्यान देना पड़ेगा, जिन्हें हमें बदलना है । आइए हम उन कारणों पर विचार करते हैं ।

3 अपर्याप्त नींद

आज का व्यक्ति जरूरी अवधि तक नहीं सोता है । जहां छात्र लोग पढ़ाई में जुटे रहने के कारण देर रात को सोने के आदी हो गए हैं बड़े लोग देर रात तक टेलीविजन देखने या होटल में जाकर पार्टी करने में रहने के कारण समय पर नहीं सोपाते । डॉक्टरों के अनुसार एक स्वस्थ व्यक्ति को 7 से 9 घंटे की नींद लेना जरूरी होता है, तभी जाकर मनुष्य का मस्तिष्क और शरीर विश्राम कर पाता है । लेकिन आज का व्यक्ति कोई भी काम करता हो मुश्किल से 5 घंटे की नहीं ले पाता है और देर रात तक सोने के बाद भी उसे सुबह से अपनी व्यस्त दिनचर्या में जल्दी जुड़ जाने के लिए जल्दी जागना पड़ता है । पर्याप्त नींद ना होने के कारण बहुत सी समस्याएं जन्म लेती हैं । ऐसे लोग हमेशा थके थकेसे रहते हैं और उनकी आंखें और चेहरा थके रहता है । कम सोने के कारण उनका भोजन ठीक से नहीं पच पाता । पाचन तन्त्र को अपना काम करने का मौका ही नहीं मिल पाता, ऐसे लोग कब्ज के साथ भूख न लगने की शिकायत करते हैं । लंबे समय तक यह शिकायत आंतों की बीमारी, आमाशय की बीमारियों आदि पैदा करती है । शरीर के अलावा मस्तिष्क भी कम सोने का गहरा असर पड़ता है ऐसे लोगों का मस्तिष्क अपना काम नहीं कर पाता और लोग बात बात में झल्लाहट महसूस करते हैं। धीरे धीरे इन सब शिकायतों के चलते लोग अनिद्रा के शिकार हो जाते हैं। इसलिए छात्रों से लेकर बड़े स्त्री पुरुषों को यदि स्वस्थ और लम्बा जीवन जीना है तो कम सोने की आदत छोड़ना होगी तथा पर्याप्त नींद लेना होगी।

4 व्यायाम से नफरत

व्यायाम या कसरत करने की कहो तो आज का किशोर नाक भौ सिकोड़ता है जैसे किसी गंदे काम के लिए कहा जा रहा है ।दरअसल उनके आसपास ऐसा माहौल ही नहीं है कि उन्हें उनकी रुचि कसरत की ओर बढ़ सके ।जबकि सच्चाई यह है कि यदि कोई व्यक्ति बहुत पौष्टिक खाना, गहरी नींद के कुछ पलों से भी महरूम है तो उसे व्यायाम या कसरत जरूर करना चाहिए । व्यायाम मात्र कर लेने से सारी चीजों की कमी पूरी हो जाती है। व्यायाम करते वक्त एकाग्र हो जाने की वजह से नींद की कमी पूरी होती है और बदन में मौजूद हार्मोन और खनिज पदार्थ व्यायाम के कारण जाग जाते हैं, बदन की अपने आप देख शुरू कर देते हैं । उनकी मांसपेशि और हड्डियों रोज व्यायाम करने के कारण लचीले हो जाती है । इस कारण जब किसी वजह से आकस्मिक रूप से आपका शरीर झुकता है या गिर जाता है तो लचीली मांसपेशियां उसके भीतर से रक्षा करती है । व्यायाम के कारण के कारण जहाँ पाचन व्यवस्था ठीक रहती है । शरीर में खून नियमित चलता रहता है । व्यक्ति खून से सम्बंधित बीमारियों जैसे ब्लड प्रेशर, दिल की धमनी में कोलेस्ट्रॉल बाद जाने आदि की शिकायत पैदा ही नही हो पाती। व्यायाम के कारण जितना शरीर ताकतवर होता है उतना मस्तिष्क बलवान होता जाता है । छात्रों को बचपन से ही नियमित व्यायाम की आदत डालना चाहिए ताकि उन्हें जब अकेले रहना पड़े तो वे स्वस्थ्य रहें और उन्हें डॉक्टरों के पास के पास कम से कम जाना पड़े , इलाज के लिए कम से कम अस्पताल जाना पड़े । आजकल सुबह सुबह हर टेलीविजन चैनल पर योग और कसरत के कार्यक्रम दिखाए जाते हैं इडलिये कौन सा योगासन करना है करना होगा और ना होगा मतलब आप अपनी सुविधा से तय कर लें जो आप कर सकें सुझाव जरूर दें सकते हैं की अति व्य स्त आदमी 5 सुर्य नमस्कार कर ले तो पर्याप्त कसरत हो जाती है । बहुत जटिल रहा योग बाबा रामदेव के कारण बहुत आसान हो गया है और उनके द्वारा बताए गए अनुलोम विलोम प्राणायाम मात्र कर लेने से एक व्यक्ति को इतनी ताकत मिल जाती है कि वह किसी भी रुप से लड़ सकता है इसके अलावा 2--4 योगासन भी कर ली जाएं तो बस हो गया यह सारी चीजें 20 मिनट में पूरी हो जाती है ।

5 टाइट कपड़े

प्राय देखा जाता है कि युवा लोग टाइट कपड़े पहने घूमते रहते हैं । इसके पीछे उनकी दुबला पतला दिखने की आदत तो है ही फैशन भी इसी तरह के कपड़ों का है । जबकि टाइट कपड़े स्वास्थ्य के बहुत बड़े दुश्मन हैं । टाइट शर्ट व जींस से मांसपेशियां तभी रहने के कारण उन्हें खिंचाव आ जाता है और लगातार दर्द बना रहता है । तंग जींस तो कूल्हे की हड्डी के नीचे की पेशियों तथा वहां से मजदूर को जाने वाली सेवाओं पर दबाव बनाती है इस जवाब के लंबे अरसे तक रहने के कारण जांघों में सनसनाहट से महसूस होने लगती है । बताते हैं कि आगे चलकर इस कारण पेरिस्थेसिया मांसपेशियों का लकवा की बीमारी हो सकती है । इसलिए किशोर किशोरियों से लेकर बड़ी उम्र तक कि पुरुषों को टाइट कपड़े ना पहनकर आरामदायक कपड़े पहनना चाहिए ताकि उनके बदन को पर्याप्त हवा मिल सके , मांसपेशियां खुली रह सकें, कपड़ों के दबाव से मुक्त रह सकें और भी अपना दैनिक कार्य करते हुए किसी तरह की परेशानी महसूस ना करें ।

6 सेल फोन

आज सेल फोन आ गई है, तो कंप्यूटर, घड़ी, रेडियो और दुनिया भर की तमाम चीजें और बहुत सारे ऐप चलाने की मशीन एक छोटी सी मशीन में हैं । इस छोटे से यंत्र के जरिए आपको पूरी दुनिया से जुड़े रहने का सहयोग मिलता है । आजकल तो मोबाइल में फोटो, टेलीविजन, MP3 ,संगीत अने लगा है कि इसके बिना जीवन की कल्पना करने से लोग डरने लगे हैं सुबह जागने से लेकर रात सोने तक लोग मोबाइल को कानों से सुना करो तैयारी के लिए बहुत घातक होता है । कानों से सटा कर रखते हैं। यह मानने को वे तैयार ही नही होते की मोबाइल का ज्यादा प्रयोग मस्तिष्क के लिए घातक होता है। डॉक्टर इसे बहुत खतरनाक मानते हैं। इजराइल के वाइज मेन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस में मोबाइल फोन का मस्तिष्क पर अध्ययन व अनुसंधान किया गया डॉक्टरों ने पाया कि 10 मिनट से ज्यादा तक कनपटी पर सटा के बात करने पर मोबाइल फोन नुकसान दायक हो सकते है। घंटो तक एक ही व्यक्ति से बातें करते रहते हैं । डॉक्टरों अनुसंधानकर्ताओं ने लंबे समय तक अध्ययन व अनुशीलन करने पर पाया कि मोबाइल फोन से निकलती लो लेवल रेडिएशन किरणें मस्तिष्क की कोशिकाओं की विभाजन प्रक्रिया में दखल देकर उसकी सामान्य प्रक्रिया को गड़बड़ा देती हैं । इससे ब्रेन ट्यूमर के खतरे बढ़ जाते हैं । इस शोध का प्रकाशन बायोकेमिकल जर्नल नाम की शोध पत्रिका में शोध प्रबंध की सहायक लेखिका डॉक्टर रोनी सीकर के नाम से प्रकाशित हुआ है । इसके पहले सन 2003 में स्वीडन में किए गए अध्ययन से पता चला था की एनालॉग सेल फोन के इस्तेमाल से एका सिटीक न्यूरोमा बीमारी का खतरा बढ़ जाता है । सामान्य रूप से भी देखा जाए तो मोबाइल पर लंबे समय तक बातचीत करने की आदत नुकसान पहुंचाती है , दर्द होता है तो कभी कान में भी दर्द पैदा होता है, इससे दिमाग के कुछ हिस्से अति सक्रिय हो जाते हैं ठीक से नींद नहीं आती । इसलिए स्वास्थ्य की चाहत रखने वाले के लिए जरूरी है कि मोबाइल का प्रयोग कम से कम करें जब तक बहुत कोई गोपनीय बात ना हो बहुत जरूरी बात ना हो तब तक लैंडलाइन पर ही बात करना चाहिए । ऐसे फोन से कोई भी खतरे नहीं दिखाई देते हैं यानी लैंडलाइन मोबाइल पर देखा जाए तो भी मोबाइल पर बात करना गलत परिणाम देता है वाहन चलाते समय ध्यान बटता है एक्सीडेंट खतरे बढ़ जाते हैं खतरे अपने से बड़ों के सामने मोबाइल पर बात करना बेअदबी मानी जाती है ।

7 आईपॉड वॉकमैन

ईपॉड वॉकमैन हमारे कान का सबसे बड़ा दुश्मन है लेकिन प्राय देखा जाता है कि आज का हर युवा सड़क पर पैदल या मोटरसाइकिल पर, कार में बस में , ट्रेन में क्यों न जा रहा ,उसके कान में संगीत सुनने के लिए बर्ड जरूर होंगे । इन दिनों वॉकमैन की जगह आईपैड ने ले ली है, इन यंत्रों से बहुत तेज स्वर लगातार सुनते रहने से काम में बहरापन आने लगता है । वह कान के नीचे की नसों में सुनने भी आने लगता है । हार्वर्ड विश्वविद्यालय में अनुसंधानकर्ता अभी कुछ दिन पहले ही लगातार अनुसंधान के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि संगीत सुनते वक्त आसपास के शोर को दबाने के लिए तेज आवाज में संगीत सुनने की हर आदमी की आदत बन जाती है , इस तेज आवाज से सुनने की कम सुनने की बीमारी हो जाती है और कुछ लोग तो एकदम बहरे हो जाते हैं । इसलिए भी हमें अपने कान बचाना है तो अब जब तक बहुत जरूरी ना हो काम से बाद यानी आईपैड को कानों से दूर ही रखना चाहिए ।

8 बिना पूछे दवाई लेना

वर्तमान में एक और सबसे खराब आदत हम लोगों में आ गयी है कि सबके घर में खूब सारी दवाओं का संग्रह रहता है। कभीकभाार किसी बीमारी मेंया अचानक आये दुख तकलीफों में किसी डॉक्टर द्वारा लिखीगयी दवा को हर आदमी इस तकलीफ की पेटेन्ट दवाई मान कर घर में रख लेता है और जब भी पहले की तरह या उससे मिलती जुलती समस्या पैदा होती है तो फटाफट वह दवा उठा कर गप्प से खा जाता है। सिरदर्द, पेटदर्द, बुखार व कानदर्द से ले लेकर हाथपांव में सूजन जैसे लक्षणों के पीछे जाने कौन कौन सी बीमारियां या बदन की विकृतियां हो सकती हैं, अब कि हमारे यहां हर घर में ऐसे लक्षणों में किसी डॉक्टर को विधिवत परीक्षण कराना जरूरी नही समझा जाता और हमक किसी से पूछे बिना दवा खा लेते हैं। आज तो हममें से हर आदमी खुद के लिए भी नही दूसरों के लिए भी डॉक्टर बना फिरता है, बहत से लोग तो दवाओं का पत्ता पर्स में ही डाल कर चलते हैं। हमको यह आदत बदलना होगी। किसी भी समस्या के सामने अपने पर उचित डॉक्टर को ही दिखाना चाहिये क्योंकि शरीरशास्त्र और बीमारियोंके इतिहास के साथ दवाओं के रसायनों यानि फार्मास्युटिकल्स को अध्ययन कर चुका चिकित्सक की किसी समस्या का सही कारण और उसके लिए सही इलाज बता सकता है। क्योंकि मानवशरीर में हजारों परेशानियां आती हैं और उनके हजारों कारण है जबकि दवाओं और जड़ी बूटियों के हजारों साइड इफेक्ट भी होते हैं इसलिए दवाओं के बारे मे सावधानियां बरतना नितांत आवश्यक हैं।

9 फैशन में बदन को प्रयोगशाला बदा देना

आज का हर युवा फैशन के लिए अपने बदन का प्रयोगशाला बना चुका है। वह देखादेखी जरूरी गैर जरूरी चीजें अपना लेता है भले वे चीजें उसके लिए नुकसानदायक सिद्ध हो सकती हों। डॉक्टर बताते है कि विटामिन डी सिवाय सूरज की धूप के किसी भी चीज से आसानी से नही मिल पाता। लेकिन आज के किशोर बच्च् ही नही बड़ी उम्र के लोग भी धूप से बहत डरने लगे हैं जबकि पश्चिमी देशों के लोग धूम स्नान के लिए घण्टों समुद्र तट पर अपने बदन को उघार कर लेटे रहते हैं। हमारे देश में पिछले दिनों धूम से बचने के लिए अचानक सन-स्क्रीन कीम का प्रचलन एकाएक बढ़ चला है जिसके कारण लोग अकारण ही यह क्रीम लगा कर धूप में निकलने लगे हैं। सत्य तो यह है कि धूप से दूर रहने के कारण लोगों को त्वचा संबंधी बीमारी हो जाती है जो लम्बे समय तक बनी रहे तो कैन्सर में तब्दील हो सकती है। कोरोना बीमारी के प्रमुख भयावह होने का एक कारण विमामिन डी की कमी भी बताई गयी है। इसलिए धूप से दूर रहने की आदत हमको बदलना होगी

फैशन के लिए ही युवा वर्ग अपने बदन पर आज कल बड़े बड़े टेटू बनवा रहा है। हरेक को अपने खुले बदन पर डिजाइनदार टेटू बनवाना पसंद है। जो लोग स्थायी नही बना पाते वे कृत्रिम टेटू बनवा लेते हैं। सत्य तो यह है कि टेटू एक खतरनाक फैशन है जो देखादेखी अपनाया गया गलत खेल है। टेटू किसी के बदन मे त्वचा या खाल के भीतर सुई डालकर एक रसायन से बनाई गई कलाकृतियों से बनता है। हमारे यहां यह खतरनाक होता है, एक तो टेटू बनाने वाले अपनी सुई को उतना साफ नही कर पाते यानि हाइजिनिक नही रख पाते जितना कीटाणु हीन करना वैज्ञानिक जरूरी मानते हैं, इस कारण तमाम बीमारियों एक आदमी से दूसरे के बदन में बिना बाधा प्रवेश करती रहतीहैं। दूसरा यह कि कइ्र बार अनजाने में त्वचा के नीचे टेटू बनाने के लिए डाला गया रसायन ऐसे रीएक्शन करता है कि सारी त्वचा जल जाना, खुजली होना, धब्बे बनना आदि बीमारियां उत्पन्न होजाती हैं और ऐसे रीएक्शन लम्बे समय तक चलने पर कैन्सर जैसी घातक बीमारी उत्पन्न हो जाती है। इसलिए टेटू जैसी बेकाम की फैशन से दूर रहने पर ही हमारा स्वास्थ ठीक रहेगा।

युवा लड़कों में कान छिदवा कर रिंग डलवा लेने का बहुप्रचलित फैशन चल रहा है,जो शरीर के लए नुकसान दायक हो सकता है, कान छेदने के लिए सुनार की संक्रमित सुई भारी नुकसान पहुंचा सकती है वही किसी लड़ाई झगड़े या हाथापई की मजाक में अनजाने में कान की बाली या छेद मे अंगुली चले जाने पर की लौर हीचिर जातीहै तब यह फैशन बहुत मंहगा हो सकता है। इसलिए इस फैशन से भी दूर रहना हमको स्वस्थ रखेगा।

10 अनियमित खानपान

मनुष्य शरीर को चलाने के लिए मुख्य ईंधन खाना पीना ही होता है, लेकिन आज के जमाने में न केवल किशोर उम्र के बच्चारें बल्कि हर आदमी का खानपान अनियमित हो गया है। न तो कोई अपने खाने का समय पर ध्यान देता है न ही अपने खने का मैन्यू देखता है। इस युग में जब हरचीज में मिलावट है और विशुद्ध व मिलावटी चीज के दामों में जमीन आसमान का फर्क है तो हर दुकानदार खाने पीने की चीजों की क्वालिटीपर ध्यान नही देता उससे होने वाले मुनाफे व कमाई पर नजर गढ़ा कर रखता है। ऐसे में किसी दुकानदार से यह अपेक्षा रखना िकवह स्वास्थ के लिए अच्छा सामान अपने ग्राहक को देगा एक कल्प्ति विचार ही लगता है। फिर भी यदि ढंग्र से विचार किया जाकर अपने खान-पान मे ंएक निश्चित नियम बना कर समय और गुणवत्ता का ध्यान रख कर हम अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें तो सेहतमंद बने रहना कठिन नहीं है। हर आदमी एक निश्चित समय पर खाना ले ओर खाने में बढ़िया क्वालिटी की सामग्री हो तो कोई बीमारी आपके आस पास नही फटकेगी ।

पश्चिम के असर से फास्ट फुड और जंक फुड को पसंद करना आज स्टेटस सिम्बल बन चुका है, हर उम्र के लोग फास्ट फुड के दीवाने हैं। अगर कोइ्र टोके तो जवाब मिलता है कि अपनी पसंद और सही पौष्टिकता का खाना बनवाने का आज किसके पास समय है? सब बहाने हैं। घर के बने भोजन को यदि समय पर लिया जाये और मौसम में आने वाले फल और सब्जियों के साथ सलाद की मात्रा का अनिवार्यतः भोजन मे सम्मिलित कर लिया जाये तो किसी का सेहतमंद बने रहना कठिन नही है।

उपरोक्त सभी आदतें ऐसी हैं कि हमारे जीवन मेे गहरे तक पैठ चुकी हैं, अगर हम ज्यादा कोई परिश्रम करे बिना इन आदतों को बदल लेंतो कमाल हो सकता है। मानव के स्वास्थ्य का संबंध सीधा उसके रहन सहन से हाता है , यदि रहन सहन में अनियमितता हटा कर नियममितता और संतुलन अपना लिया जाये तो उत्तम स्वास्थ्य किसी की पकड़ से दूर नही है। उत्तम स्वास्थ ही रोग प्रतिरोधकक्षमता बढ़ता है। इसके लिए जरूरी है कि अपनी बुरी आदतो की हमे जानकारी ओर और हम उन्हे दूर करने का सही प्रयास करें , इसकी चाहत रखें तो हम जल्दीही एक मजबूत निरोगी बदन के मालिक बन जायेंगे।

रहन सहन का सीधा संबंध किसी के स्वास्थ्य से उतना नही होता जितना उसकी संस्कृति व परम्परा से होता है। यह भी सही है यह परम्परा हमे विरासत में समाज व परिवार से मिलती है। फिर भी दृड़ इच्छाशक्ति वाले लोग बुरी परम्परायें बहुंत आसानी से छोड़ सकते हैं और अच्छे स्वास्थ्य की दिशा में जब चाहे चलना आरंभ कर सकते है।

तो तय कीजिये कि आप अपनी बुरी आदतें छो़डेंगे और अच्छी आदत अपनायेंगे जिनसे आपके बदन की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी।

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