गवाक्ष - 24 Pranava Bharti द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • My Wife is Student ? - 25

    वो दोनो जैसे ही अंडर जाते हैं.. वैसे ही हैरान हो जाते है ......

  • एग्जाम ड्यूटी - 3

    दूसरे दिन की परीक्षा: जिम्मेदारी और लापरवाही का द्वंद्वपरीक्...

  • आई कैन सी यू - 52

    अब तक कहानी में हम ने देखा के लूसी को बड़ी मुश्किल से बचाया...

  • All We Imagine As Light - Film Review

                           फिल्म रिव्यु  All We Imagine As Light...

  • दर्द दिलों के - 12

    तो हमने अभी तक देखा धनंजय और शेर सिंह अपने रुतबे को बचाने के...

श्रेणी
शेयर करे

गवाक्ष - 24

गवाक्ष

24==

सत्यनिधि के पास से लौटकर कॉस्मॉस कुछ अनमना सा हो गया, संवेदनाओं के ज्वार बढ़ते ही जा रहे थे। उसके संवेदनशील मन में सागर की उत्तंग लहरों जैसी संवेदनाएं आलोड़ित हो रही थीं। जानने और समझने के बीच पृथ्वी-वासियों के इस वृत्ताकार मकड़जाल में वह फँसता ही जा रहा था। गवाक्ष में जब कभी पृथ्वी एवं धरती के निवासियों की चर्चाएं होतीं, पृथ्वी का चित्र कुछ इस प्रकार प्रस्तुत किया जाता मानो पृथ्वी कारागार है और यदि कोई दूत अपनी समय-सीमा में अपना कार्य पूर्ण नहीं कर पाता तब उसको एक वर्ष तक पृथ्वी पर रहने का दंड दिया जा सकता है।

इस समय अपने यान के समीप वृक्ष की टहनी पर बैठे-बैठे वह सोच रहा था 'पृथ्वी इतनी बुरी भी नहीं !यमराज आवश्यकतानुसार अपने मानसपुत्र ‘कॉस्मॉस’ तैयार कर लेते हैं, उनकी क्या कम अपेक्षाएँ रहती हैं?एक प्रकार से तो यमराज ही सभी कॉस्मॉस के पिता हुए, किन्तु वे उन्हें एक पत्थर की भाँति कठोर बनाते हैं। उनका कार्य ही कुछ ऐसा है किन्तु वे मानस-पुत्रों का उपयोग ही तो कर रहे हैं ! क्या गवाक्ष में राजनीति खेली जा रही है?

कॉस्मॉस को पुन: मंत्री जी की स्मृति हो आई । वे अपने बारे में बताते हुए आज के राजनीतिज्ञ वातावरण पर आ गए थे। उनके मुख से उनकी पीड़ा एक झरने की भाँति झरने लगी थी;

"आज राजनीति का घिनौना रूप विस्तृत हो चुका है, यह घरों की चाहरदीवारी लांघकर आँगन में अपने पौधे लगाने लगी है, रिश्तों को बींधने लगी है । यह राम अथवा चाणक्य की राजनीति नहीं है जो समर्थ विचारक थे, समर्थ राजनीतिज्ञ थे, यह महाभारत की राजनीति है । इसके घिनौने रूप से घर-घर की संवेदनाएँ जड़ होती जा रही हैं।

उन्होंने कहा था ;

"पीड़ा होती है जब हम दुनिया भर में 'स्कैंडल्स' होने की बातें सुनते हैं । मनुष्य के जन्म पर राजनीति, मृत्यु पर भी राजनीति की रोटियाँ सेकना, यह सब कष्ट देता है। "

कॉस्मॉस ने महसूस किया कि उसकी पलकें भीगने लगीं थीं, उसने उन्हें बंद कर लिया और फिर से मंत्री जी के कथन का अर्थ तलाशने का प्रयत्न करने लगा।

यकायक कॉस्मॉस को एक झटका लगा। वह मंत्री सत्यव्रत जी के ज्ञान पर लट्टू हुआ जा रहा था लेकिन उन्होंने कहा था ;

" नहीं, मैं ज्ञानी नहीं --ज्ञानी एक और महापुरुष हैं जो आजकल अपने जीवन के संपूर्ण ज्ञान को समेटकर पृथ्वीवासियों में बाँटकर जाना चाहते हैं। मैं तो उनके चरणों की धूल भी नहीं हूँ । जब हमें यह ज्ञात है कि एक समय सबको यह दुनिया त्यागकर जाना है तब अपने अनुभवों को अपनी आने वाली पीढ़ी को सौंपना बहुत आवश्यक है । जिस अनुभव को वर्तमान पीढ़ी के बच्चे अपने जीवन का लंबा समय व्यतीत हो जाने पर प्राप्त करते हैं, यदि अपने बुज़ुर्गों का अनुभव ले सकें तब वे जीवन में कितने समृद्ध हो सकते हैं ! " उन्होंने अपने दोनों हाथ प्रणाम की मुद्रा में जोड़े थे तथा एक गंभीर निश्वांस ली थी।

“ पीड़ा की बात यह है कि आज की पीढ़ी को अपने बुज़ुर्गों से उनके अनुभव का संचित ज्ञान प्राप्त करने में कोई रूचि नहीं है, उन पर विदेशी भूत इस कदर सवार होकर ता-थैया करता है कि उन्हें बुज़ुर्ग मूर्ख लगने लगे हैं । किन्तु बुज़ुर्ग अपना कर्तव्य पूर्ण करने से पीछे नहीं हटेंगे ---हाँ, कष्टप्रद यह होगा कि जब तक ये पीढ़ी चेतेगी तब तक देरी हो जाएगी ---" उनका स्वर भर्रा गया था । संभवत:उन्हें अपने यौवनावस्था के दिनों की स्मृति हो आई थी ।

"वो कौन हैं, क्या आप मुझे उनका नाम बता सकते हैं?" कॉस्मॉस ने प्रार्थना की ।

"हाँ, बता सकता हूँ शर्त यह है कि अभी तुम उनके कार्य में व्यवधान नहीं डालोगे । वे आजकल एक पुस्तक-लेखन में वयस्त हैं, अभी उन्हें परेशान करना ठीक नहीं होगा। " " जी, अभी नहीं जाऊँगा लेकिन---- " वह चुप हो गया

"जाओगे अवश्य ?"मंत्री जी ने मुस्कुराकर कहा था।

" जाना चाहिए न?"कॉस्मॉस ने मंत्री जी से ही पूछ लिया था ।

"हाँ, उनका व्यक्तित्व इतना शानदार है कि उनसे मिलना, उनके विचारों को जानना सौभाग्य है, बस उनके लेखन में कोई विघ्नरूप न हो" मंत्री जी ने कॉस्मॉस को सचेत कर दिया था ।

कुछ देर के मानस-मंथन के पश्चात उन्होंने कॉस्मॉस को अपने उन गुरु के बारे में बहुत सी बातें बता दीं, एक बार पुन:उसे उनके कार्य में विघ्न-रूप न होने के लिए सचेत कर दिया।

कॉस्मॉस इसी पशोपेश में था कि अभी वह प्रो. सत्यविद्य के पास जाए अथवा नहीं और जाए भी तो कैसे कि उनके लेखन में विध्न न हो !वह पृथ्वी से निरंतर कुछ न कुछ सीख रहा था। उसने जो अच्छी बातें सीखी थीं, उनमें यह भी था कि आपके उठने-बैठने, वार्तालाप के शिष्टाचार से आपका व्यक्तित्व निखरता है। उसके सजीव होते मस्तिष्क ने कई बार इस बारे में चिंतन किया कि वह क्यों धरतीवासियों की संवेदनाओं के अनुसार परिवर्तित होता जा रहा है?परन्तु उसे कोई उत्तर प्राप्त नहीं हुआ था। इस बार पृथ्वी पर आकर अजीब से संवेदन में जी रहा था वह !

क्रमश..