बात बस इतनी सी थी - 5 Dr kavita Tyagi द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

बात बस इतनी सी थी - 5

बात बस इतनी सी थी

5

मंजरी ने महसूस किया कि पापा का उसके लिए प्यार ही उसके पापा की सबसे बड़ी कमजोरी है ! उसने यह भी महसूस किया कि यदि उसके पिता को अपने मान-सम्मान की रक्षा के साथ बेटी के सुख का निश्चय हो जाए, तो उसके पापा उसका समर्थन जरूर करेंगे ! उसने एक बार अपने मन-ही-मन में दोहराया -

"शक्ति को ही समर्थन मिलता है ! मुझे एक बार अपनी शक्ति इन सबको दिखानी ही होगी ! यह कहा जा सकता है कि इस समय शक्ति के लिए समर्थन जरूरी है और समर्थन के लिए शक्ति आवश्यक है !"

मंजरी अभी शक्ति और समर्थन के परस्पर पूरक होने पर विचार कर ही रही थी, तभी उसका ध्यान मेरी ओर गया, जो अपनी माँ के आग्रह पर विवाह की यज्ञ-वेदी से उठ खड़ा हुआ था और मंडप से बाहर जाने के लिए तैयार था । यह देखकर मंजरी का स्वाभिमान जाग उठा । अपने अस्तित्व को सिद्ध करने के लिए उसकी सारी चेतना और सारी शक्ति एक जगह इकट्ठी होकर एक भयंकर गर्जना के साथ उसकी आवाज में दिखायी दी -

"चंदन ! आपने एक कदम भी आगे बढ़ाया, तो आज आप अपनी माता जी के साथ अपने घर नहीं, सीधे जेल जाएँगे !"

मंजरी की चेतावनी को मेरी माता जी ने गंभीरता से नहीं लिया । उन्होंने पलटकर मुझे चेतावनी देते हुए कहा -

"बेटा, तू अब एक पल भी इस मंडप में रुका, तो मेरा मरा मुंँह देखेगा !"

मंजरी मेरी माँ की चेतावनी सुनकर मुस्कुरायी और बोली -

"आप मंडप से बाहर गये, तो अपनी माता जी के साथ जेल में रहने के लिए तैयार रहना ! आपने मेरी बात को ऐसे नहीं समझेंगे, तो मेरे पास आपको अपनी बात समझाने के लिए आपके खिलाफ दहेज की शिकायत करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचेगा !"

मंजरी की चेतावनी से मेरा दिल बैठ गया । मेरे गले से आवाज नहीं निकल पा रही थी । मैं जानता था कि मैंने मंडप से बाहर कदम निकाला, तो मंजरी जो कुछ कह रही है, वह जरूर करेगी । किंतु, मेरी माता जी पर मंजरी के शब्दों का कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा था । मेरी माता जी ने कहा -

"तुम्हें जो कुछ करना है, करके देख लो ! तुम हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकती हो ! कुछ भी हो जाए, अब मैं तुम्हारे साथ अपने बेटे की शादी हरगिज नहीं होने दूँगी !"

मेरी माता के सुर-में-सुर मिलाकर मेरे मामा जी ने भी मंजरी के लिए नफरत के शब्दों का जहर उगलते हुए उसको चुनौती दे डाली -

"हम तुम्हारी गीदड़ भभकी से डरने वाले नहीं ! हमने सोचा था, घर में बहू आएगी, तो आंगन में खुशियाँ आएँगी ! हमें क्या पता था कि बहू नहीं, एक आफत हमारे गले पड़ जाएगी !

"आंटी जी, आप अपनी माँग के अनुसार दहेज नहीं मिलने की वजह से इस शादी को संपन्न होने में रोड़े अटका रही हैं, इसका सबूत है मेरे पास ! मेरे पास ऐसे सबूत होने का क्या रिजल्ट हो सकता है ? और कितना भयानक हो सकता है ? यह सोचकर ही आप कोई अंतिम निर्णय करना ! यही आपके और आपके बेटे के लिए बेहतर रहेगा !" मंजरी ने एक बार फिर चेतावनी देते हुए कहा ।

"झूठ बोल रही है यह ! कोई प्रमाण-वरमाण नहीं है इसके पास ! यह हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकती है ! मैं वकील हूँ, ऐसे झगड़ों को सुलझाने-उलझाने में ही मेरा तीन चौथाई जीवन बीता है !"

इस बार मेरे ताऊ जी ने मेरी माता जी के सुर-से-सुर मिलाया । अपने सुर में ताऊ जी का सुर मिलता देख मेरी माता जी की हिम्मत बढ़ गयी । ताऊ जी की योग्यता पर भी उन्हें पूरा विश्वास था । इसी विश्वास और हिम्मत के सहारे मेरी माता जी ने मंजरी और उसके परिवार पर हुई अनहुई कहन और नहीं कहने लायक सब तरह की टीका टिप्पणियाँ कर-करके अनगिनत तीखे जहरीले बाण बरसाये ।

मैं और मंजरी मौन थे । मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं अपनी माता जी को शान्त करने के लिए क्या करूँ ? मंजरी भी नहीं समझ पा रही थी कि उस परिस्थिति में वह क्या करे ? वह शांत थी कि कहीं आवेश में वह कोई गलत कदम न उठा बैठे । तभी हमारे कानों में मेरी माता जी की आवाज गूँजी -

"मैंने सोचा था, मुझे मेरे बेटे की शादी करके बहू के रूप में बेटी मिल जाएगी, पर अब हमें पता चल गया है कि यह लड़की तो दियासलाई है । यह तो घर को जलाकर राख कर देगी !"

इन शब्दों के कान में पड़ते ही मंजरी का धैर्य टूट गया । क्रोध से उसकी आँखें लाल हो गयी । वह ऊँचे स्वर में बोली -

"बस कीजिए ! आप अब एक शब्द भी नहीं बोलेंगी !"

"क्यों नहीं बोलेंगे हम ! हमें चुप नहीं करा सकती तुम !" मेरे माता जी, मामा जी और ताऊ जी तीनों एक सुर में बोले ।

माता जी के साथ उनका व्यवहार देखकर अब मंजरी के चेहरे पर और भी अधिक कठोरता आ गई थी । उसने गुर्राकर कहा -

"मैं आपको चुप करा सकती हूँ ! अब तक आप बहुत बोल चुके हैं ! अब मैं बोलूँगी और आप सुनेंगे ! समझे आप !"

एक पल के लिए रुककर मंजरी ने फिर बोलना शुरू किया -

"पहली बात, आप बहू के रूप में बेटी नहीं, कमाऊ बहू के रूप में एक ऐसी मुर्गी अपने घर ले जाना चाहते थे, जो आपके बनाए हुए पिंजरे में रहकर अपनी पूरी जिन्दगी-भर सोने के अंडे देती रहे ! परंतु अफसोस, कि मैं वह मुर्गी नहीं हूँ, जिसकी आपको तलाश थी !"

अपनी बात कहकर मंजरी क्षण-भर के लिए मौन हुई । उस समय के अंतराल में उसने वहाँ पर बैठे हुए लोगों की भाव-भंगिमा से उन पर उसकी कही हुई बात का क्या असर हुआ है ? यह जानने की कोशिश की । एक क्षण के बाद उसने फिर कहना शुरू किया -

"दूसरी बात, मेरे पास आपके खिलाफ कितना बड़ा और मजबूत सबूत है, इसकी एक झलक मैं अभी आपको दिखा देती हूँ ! आप खुद ही अनुमान लगा सकते हैं कि इस सबूत के बलबूते मैं क्या कर सकती हूँ ! और आपका वकालत का लंबे समय का अनुभव भी तब आपकी रक्षा नहीं कर पाएगा ! परंतु मैं अपने होने वाली सास और पति को सुधारने के लिए कम-से-कम एक अवसर जरूर देना चाहती हूँ, इसलिए इस सबूत का उपयोग मैंने अभी तक नहीं किया है और मैं करना भी नहीं चाहती हूँ !"

यह कहकर मंजरी ने अपने मोबाइल को लैपटॉप से कनेक्ट किया और स्पीकर ऑन करते हुए बोली -

"सुन लीजिए और ध्यानपूर्वक देख लीजिए, फिल्म में कौन-कौन हैं ? क्या कह रहे हैं ? क्या कर रहे हैं ? और इनके ऐसा करने का सबूत मेरे पास होने से मेरी ताकत कितनी बढ़ जाती है ?"

स्पीकर ऑन होते ही मंडप में बैठे हुए सभी लोग किसी तरह के दबाव के बिना भी एकदम शान्त हो गये और सभी के कान उस आवाज को सुनने के लिए तैयार हो गए, जो स्पीकर से निकल रही थी । उन सबकी आँखें उस प्रोजेक्टर पर जम गई, जिसकी व्यवस्था मंजरी ने पहले से ही की हुई थी और यह पहचानने की कोशिश करने लगी कि पर्दे पर दिखाई देने वाले कौन-कौन लोग हैं ? और उन सबके बीच में आपस में क्या बातें हो रही हैं और वह सारा व्यवहार क्यों चल रहा है ? वहाँ पर चुप बैठे लोग प्रोजेक्टर पर चल रही फिल्म में दिखायी पड़ रहे लोगों को पहचानते ही फिल्म देखते-देखते इस विषय पर चर्चा और गर्मागर्म बहस करने लगे थे ।

पर्दे पर फिल्म शुरू हो गयी थी । मंजरी के पापा ने मेरी माता जी से विनम्र निवेदन कर रहे थे -

"बहन जी, दोनों बच्चे एक-दूसरे को पसंद करते हैं । दोनों एक-दूसरे के साथ जिंदगी जीना चाहते हैं ! उनके प्यार की खातिर कुछ कम कर लो !

"आपके आग्रह पर दोनों बच्चों के प्यार की खातिर मैं एक करोड़ की बात छोड़कर अस्सी लाख पर तैयार हो गयी हूँ ! इससे कम पर बात नहीं बन पाएगी !" मेरी माता जी ने कहा ।

"हमारे लिए अस्सी लाख बहुत बड़ी रकम है ! इतनी बड़ी रकम का इंतजाम करना बहुत मुश्किल हो जाएगा !" मंजरी के पिता ने अपनी मजबूरी बतायी ।

" "देखिए, अगर आप अस्सी लाख रुपयों का भी इंतज़ाम नहीं कर सकते, तो आप अपनी बेटी को दिल्ली में अपने फ्लैट में रहने का सपना पालना छोड़ दीजिए ! फिर आपकी बेटी दिल्ली में रहेगी, तो किराए के फ्लैट में ही रहेगी या फिर हमारे साथ पटना में रहेगी ! मैं आपको यह भी बता देती हूँ कि मेरे बेटे के लिए लड़कियों की कोई कमी नहीं है ! लाखों में एक है हमारा बेटा !"

मेरी माता जी ने मंजरी के पापा से यह बात अपने सौदेबाजी के हुनर का परिचय देते हुए कुछ इस ढंग से कही थी कि सौदा बहुत ही सस्ता है, इसे छोडना ठीक नहीं होगा ! मंजरी की मम्मी जी को, जोकि अभी तक चुप बैठी हुई थी, मेरी माता जी की बात और बातचीत करने का यह ढंग बिल्कुल अच्छा नहीं लगा । इसलिए वह बातचीत में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हुए वह बोली -

"देखो जी, मैं बिल्कुल भी इस सौदेबाजी के पक्ष में नहीं हूँ ! हमारे बच्चों की शादी की बात हो रही है, यह कोई मछली मार्केट नहीं है कि लड़के के रेट तय किए जाएँ !"

मंजरी की मम्मी ने मेरी माता जी के नहले पर दहला दे मारा था । इससे मेरी माता जी विचलित हो गयी और अपने अपमान से तिलमिलाते हुए उठ खड़ी हुई, बोली -

"मछली मार्केट नहीं है, तो आप लोगों ने सौदेबाजी शुरू ही क्यों की थी ? क्या मेरे बेटे को खरीदने के लिए सौदेबाजी कर रहे थे ? पर मैं बता देती हूँ कि मेरा बेटा बिकाऊ नहीं है ! मेरा बेटा बहुत स्वाभिमानी है ! उसको यह सब पता चलेगा, तो वह आपकी बेटी के साथ शादी करना भी नहीं चाहेगा ! फिर आप अपनी बेटी को अपनी शर्तों पर कहीं किसी और के साथ ही ब्याह लेना ! मेरे बेटे के लिए तो बड़े-बड़े खानदानी घरों से रिश्ते आ रहे हैं ! इन बच्चों का दिल ना टूटे, इसलिए मैं इस रिश्ते के लिए तैयार हो गयी थी !"

"बहन जी, आप शांत हो जाइए ! बैठ जाइए ! हमारी बेटी का दिल हो या आपके बेटे का दिल हो, दोनों में से किसी का भी दिल नहीं टूटना चाहिए ! आप बहुत समझदार हैं, जो बच्चों को समझती हैं !" मंजरी के पापा ने मेरी माता जी को समझाते हुए कहा ।

मंजरी के पापा के मधुर व्यवहार और विनम्र आग्रह से प्रभावित होकर मेरी माता जी के बाहर की ओर बढ़ते हुए कदम ठिठककर वहीं रुक गए । मंजरी के पापा ने पानी का गिलास मेरी माता जी की ओर बढ़ाते हुए मुस्कुराकर कहा -

"यह लीजिए ! थोड़ा-सा ठंडा पानी पी लीजिए ! दिमाग कुछ ठंडा हो जाएगा !"

मेरी माता जी ने पानी का गिलास अपने हाथ में थामकर दो घूँट पानी पिया और गिलास वापस मेज पर रखते हुए मंजरी के पापा से कहा -

"साफ-साफ शब्दों में हाँ कहिए या ना कहिए ! मुझे घिसा-घिसाई कतई पसंद नहीं है !"

"बहन जी, हमारे पास जो कुछ है, वह सबकुछ हमारी बेटी का है ! पूर्वजों से मिली हुई जमीन का एक टुकड़ा है, जो कल हमारी बेटी का को ही मिलना है । यदि आज जमीन के उस टुकड़े को बेचकर बेटी के लिए खुशी खरीदी जा सकती है, तो मैं इसके लिए भी तैयार हूँ !"

"एक बार फिर सोच लीजिए ! बार-बार कभी 'हाँ' कभी 'ना' करने से बेहतर है, एक बार ही सोच-विचार कर हाँ की जाए !"

बहन जी मेरे लिए मेरी जुबान की कीमत मेरे प्राणों से ज्यादा है ! मैंने एक बार 'हाँ' कह दी, तो बस 'हाँ' है ! एक पाइ कम नहीं, मैं पूरे अस्सी लाख रुपये आपको दूँगा ! आप बस मेरी इस इच्छा का ध्यान रखिएगा कि मेरी बेटी दिल्ली में रहेगी ! और अपने फ्लैट में रहे, कीराए के मकान में रहना मेरी बेटी को बिल्कुल पसन्द नहीं है !" मंजरी के पापा ने सीना चौड़ा करके कहा । मंजरी की मम्मी ने उनका विरोध किया -

"मैं अपनी बेटी की शादी उस घर में बिल्कुल नहीं करूँगी, जहाँ हमारी बेटी से ज्यादा दहेज की कद्र हो ! अपनी बहू के रहने के लिए फ्लैट खरीदने के नाम पर दहेज माँगा जा रहा है ! दहेज के लोभियों ने दहेज लेने का यह नया तरीका निकाला है ! इन्हें मेरी बेटी और अपनी होने वाली बहू के गुण-अवगुण नहीं देखायी पड़ रहे हैं ! दिखायी दे रहे हैं, तो बस अस्सी लाख रुपये !"

"तुम बीच में मत बोलो ! मंजरी सिर्फ तुम्हारी बेटी नहीं है, वह मेरी भी बेटी है ! मुझे हमारी बेटी की पसंद पर पूरा भरोसा है ! मेरी बेटी ने जिस लड़के को पसंद किया है, उसने हमारी बेटी के गुणों को ही देखा है, अस्सी लाख रुपए नहीं !

"और उसकी इस माँ का क्या ? जो अस्सी लाख ...!"

"जो भी हो, मैं अस्सी लाख को अपनी बेटी की खुशियों के आड़े नहीं आने दूँगा !" मंजरी के पिता ने मंजरी की माँ की बात को बीच में ही काटते हुए निर्णायक-कठोर लहजे में कहा ।

क्रमश..