"छबीला_रंगबाज़_का_शहर" :
"जो है, वो नहीं है...और जो नहीं है, वही है।"
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छोटे शहर का एक बड़ा रंगबाज़ और हौव्वा है - छबीला सिंह। लेकिन असल में है वह एक मामूली टुच्चा।दूसरा है, अपन को शहर का इनसाइक्लोपीडिया समझने वाला स्वयंभू बड़ा पत्रकार - अरूप।जिसका अखबार दम तोड़ने के कगार पर है, लेकिन शहर के असल "गुंडाइज्म" का गूढ़ ज्ञान अगर किसी के पास है, तो बस इसी के पास।
तीसरा... न,न,न, ये कोई खतरनाक बंदा नहीं है। ये शहर का सबसे सरल,सीधा और सज्जन प्राणी है, और वो भी इसलिए है क्योंकि वह इस शहर का है ही नहीं। हाँ, तो वह दुर्लभ प्रजाति है - इस चराचर जगत का सबसे निरीह जीव - एक मास्टर। नाम है - ऋषभ जैन। लेकिन असली हीरो है, यह शहर - आरा!
हाँ, वही बिहार वाला आरा। जिसे भोजपुरिया गानों में "आरा जिल्ला, उखाड़ देला किल्ला..." के रूप में दिव्य ख्याति मिली है।इस कहानी कम उपन्यास या छोटा उपन्यास कम लंबी कहानी का असली नायक यह शहर ही है।
एक भोला-भाला मास्टर अपने तीन महीने के मास्टरी में पढ़ाता-सिखाता कम और इस शहर से सीखता बहुत ज्यादा है। उसने इस शहर को जैसे महसूस किया बस उसीतरह एक-एक घटना को थोड़ा उलझाकर और अंततः बड़े तफसील से सुलझाकर पेश किया है।
इन पात्रों के अलावा बाकी सब लहसुन, पियाज और तेजपत्ते हैं। जो कहानी के स्वाद को कहीं बड़े चटखदार बनाते हैं, तो कहीं ऐसी मिर्ची लगाते हैं कि पाठक भी तिलमिला जाए।
कहानी में पूंजीपति, मीडिया, प्रशासन आदि-अदरक का जो सांठ-गाँठ है, उससे कहीं-कहीं मन बिल्कुल घिना जाता है। कुछ जाति-विशेष का दबदबा, वर्ग-संघर्ष, गरीबी, लाचारी और बेरोजगारी के बदरंग धब्बों का ही परिणाम है कि यह शहर रंगबाज़ों का शहर बन जाता है।
लेखक प्रवीण कुमार अपने किस्सागोई शैली में इस शहर के इतिहास, भूगोल के साथ-साथ कुछ हालिया ज्वलंत घटनाओं को ऐसे पिरोते हैं कि हक़ीक़त और फ़साना एक-दूसरे में बिल्कुल गुत्थम-गुत्था हो जाते हैं।
चोरी, डकैती, लूट, हत्या और अपराध के जितने घिनौने रूप हो सकते हैं वो सभी जैसे इस शहर के जरूरी पहचान-से लगते हैं। वैसे तो इससे पूरा शहर प्रभावित है लेकिन बेरोजगार नई पीढ़ी को जब इसी में रोजगार दिखता है तो लगता है कि यह शहर आज के हिन्दुस्तान का कोई शहर न होकर आतताइयों का कोई कबीला हो।
लेकिन इन्हीं सब के बीच जब रमना मैदान में बेरोजगार युवाओं की टोली "साथी हाथ बढ़ाना..." के तर्ज पर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते हुए दिखती है, तो अंततः मन से सब गंदगी धुल जाती है और यह शहर उस शहर के रूप में दिखने लगता है जो जैन सन्यासियों के उपासना का शहर है, जो वीर कुँवर सिंह के बगावत का शहर है और जो तथाकथित मुखियाओं और छबीला जैसे रंगबाज़ों का शहर तो बिल्कुल नहीं है।
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रचनाकार परिचय :-
नाम – अमित कुमार सिंह
पता – खलीलपुर, सँवरा, जिला- बलिया 221701 (उ.प्र.)
मोबाईल संपर्क – 8249895551
शिक्षा – एम.ए.(हिंदी); बी.एड. की शिक्षा बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी वाराणसी से |
सम्प्रति – केन्द्रीय विद्यालय(क्र.-1) वायुसेना स्थल गोरखपुर में पी.जी.टी. (हिंदी) पद पर कार्यरत |
साहित्यिक परिचय - कुछेक लेख, निबंध एवं कविताएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित | कहानी “जिंदाबाद-जिंदाबाद” “स्पेनिन कथा सम्मान” से सम्मानित |
email – samit4506@gmail.com