रहस्यों से भरा ब्रह्माण्ड - 3 - 11 - अंतिम भाग Sohail K Saifi द्वारा कल्पित-विज्ञान में हिंदी पीडीएफ

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रहस्यों से भरा ब्रह्माण्ड - 3 - 11 - अंतिम भाग

रहस्यों से भरा ब्रह्माण्ड

अध्याय 3

खण्ड 11

जब मुझे होश आया तो मैंने खुद को जंगल में ही पाया।

मैं समझ चुका था कि मेरा सामना जंगल की नकारात्मक शक्तियों से है जो अंधकार के पुजारी है। उनका उद्देश्य मेरे और अम्बाला द्वारा जन्मी संतान की बलि चढ़ा कर अंधकार को मुक्त करना था। ताकि इस धरती पर अंधकार और पाप का साम्राज्य स्थापित हो,

अब मुझे किसी भी हाल में इस अनर्थ को होने से रोकना था। अपनी वास्तविकता जानने के पश्चात मुझे अपने भीतर कई प्रकार के परिवर्तन महसूस होने लगें। मुझे ये भी समझ आ गया कि किस दिशा की ओर मुझे जाना है। मानो जैसे उस जंगल का एक नक्शा मेरे मस्तिष्क में बैठ गया हो। वहाँ रहते समय मुझे समय का कोई अनुमान नहीं था। पर ये तो पक्का था कि जंगल के बाहर की दुनिया में यदि 1 दिन गुजरता तो जंगल के भीतर 5 दिन गुजर जाते। इसीलिए तुम्हारे लिए मेरे जंगल के भीतर गुजारे कुछ माह मेरे लिए जंगल के भीतर 1 वर्ष से भी अधिक थे।

मेरे साथ आगे क्या हुआ ये बताने से पहले में तुम्हें कुछ ऐसे विचित्र प्राणियों के बारे में विस्तार से बता दूं। जो अंधकार के पुजारी थे।

सबसे पहले में तुम्हें वीमा असुरों के बारे में बताता हूँ। इनका आकर दो हाथियों जितना विशाल होता है। और इनकी भुजाओं में 10 हाथियों जितना बल। इनकी केवल एक आंख होती है। इनकी निष्ठा को कोई नहीं तोड़ सकता। इनमें धरती की अन्य प्रजातियों समान नर नारी का हिसाब नहीं होता।

इसको सुन कर नरसिम्हा बड़े ही हैरत से पूछने लगा " तो इनकी वंश शैली कैसे बढ़ती है। इनकी नई पीढ़ियाँ आती भी है या नहीं।

हम्जा " इनकी भी सामान्य प्रजातियों की भांति नई पीढ़ी पैदा भी होती है। और इनका वंश भी आगे बढ़ता है। बस इनकी परजाति के विकास का तरीका बिल्कुल अनूठा होता है। जब कोई वीमा असुर वयस्क हो जाता है। तो वो मल की जगह एक विशेष प्रकार का अंडा देता है। और एक वीमा असुर अपने सम्पूर्ण जीवन में केवल एक बार ही ऐसा कर पाता है। जब उसके अड्डे का वीमा असुर भी वयस्क होकर अपना अंडा देता है। तो पहले वाला वीमा असुर वृद्ध होकर मर जाता है। इस प्रकार से उनकी संख्या सीमित होती है। ना अधिक ना कम,

जहाँ तक मुझे पता है। इस संसार में केवल पांच वीमा सुर है। इनके भीतर इन सभी गुणों पर एक दोष भी है। ये अत्यंत मंद बुद्धि होते, इनकी शारीरिक बनावट लगभग मानव समान होती है। जिसमें एक बड़ा अंतर उनके घुटनों में होता है। मनुष्यों की तरह उनके पैरो में दो घुटने नहीं बल्कि चार घुटने होते है, जिसके कारण उनके लिए दौड़ना लगभग आ सम्भव होता है। मगर छलांग लगाना बड़ा ही सरल, उनके गुणों और अवगुणों को देखते हुए। उनका उपयोग केवल बल के लिए यानी सैनिकों के रूप में करते है।

दूसरे आते है। चंचल कसरू

" इनका जन्म एक खास और दुर्लभ परजाति के पौधों द्वारा होता है, अपने जन्म से लेकर अपने पूरे शरीर के विकसित होने तक इनका जुड़ाव उन पौधों से नहीं टूटता, ठीक उसी तरह से जैसे मनुष्य की कोख में विकसित होता शिशु एक बार इनके सभी अंग विकसित हो जाने पर वो पौधा अपने आप इन्हें खुद से अलग कर देता है। इनका कद हमारे एक हाथ के पंजों जितना छोटा होता है। और दिखने में ये काफी आकर्षित होते है। लेकिन इनके कद और भोली सूरत पर मत जाना क्योंकि इनका दिमाग

बेहद शातिर होता है। और इनके दाँत इतने पेने होते है। के पत्थर को भी अपने दांतों से कुतर कर फेंक दें।

और अंतिम में संगा " ये सबसे खतरनाक और सबसे निर्दयी होते है। इनका का निर्माण अंधकार के अंश और कुछ शैतानी आत्माओं के मिश्रण से होता है। ये किसी काले धुआं जैसे होते है। इनकी खुराक किसी भी प्राणी की आत्मा होती है। जिसको वो बड़ी कठोरता से अपने शिकार को तड़पा तड़पा कर खाते है।

अब आगे सुनो जिस दिशा की ओर मैं चलता जा रहा था। उस दिशा में आगे चल कर मुझे दूर से ही एक विशाल महल दिखने लगा, उसको देख कर मेरे भीतर अम्बाला से मिलने की चाह दुगनी हो गई, मेरे दिल की धड़कन तेज़ हो गई। मगर मैंने किसी प्रकार खुद को सम्भाला क्योंकि ये समय शांत बुद्धि से काम लेने का था ना कि उत्तेजित हो कर भावनाओं में बह जाने का।

मैं सावधानी से आगे बढ़ा और महल को अच्छे से देखा महल के आस पास चार वीमा सुर पहरा दे रहे थे। और उनके आस पास से बीच बीच में एक संगा चक्कर लगाता दिखता। उस महल को कई पेड़ो ने घेर रखा था कुछ पेड़ो की शाखाएं महल की दीवारों को लांघ चुकी थी।

इस दृश्यों को देख कर मुझे एक युक्ति सूझती है। जिसके लिए मुझे उन कबीले वालो की आवश्यकता थी। मैं उस ओर से उठा और सीधा कबीले वालो के पास पहुँच गया।

कबीले पहुँच कर मुझे ये दुखद सूचना मिली कि अब उनका वो वृद्ध मुखिया जीवित नहीं रहा। जिस पर में निराश हो गया। लेकिन प्रभु की कृपा से उस कबीले का नया सरदार मेरे साथ चलने के लिये तय्यार हो गया, मगर बदले में उसको वही मोती चाहिए था जो अपने अंतिम समय में वृद्ध ने मुझे दिया था।

असल में उनका मानना था कि वो मोती अमरता प्रदान करता है। क्योंकि इतने लम्बे समय तक कोई भी मनुष्य जीवित नहीं रह सकता जितने लंबे समय तक वो वृद्ध जीवित था और ऐसा केवल मोती के कारण ही सम्भव हो पाया था तभी तो मोती के जाते ही वृद्ध परलोक सिधार गया, अन्यथा वो और भी अधिक जीवित रहता। मगर

मेरा मानना था मोती का जाना और वृद्ध का उसी समय मरना केवल एक संयोग था। लेकिन इस समय उनको सही बात समझना अपने पैर पर खुद कुल्हाड़ी मारने के जैसा होता, इस लिए मैंने उनके भ्रम को नहीं तोड़ा और मोती के बदले में उसकी सहायता का सौदा कर लिया।

जल्द ही हम सब मेरे बताए रास्ते पर चल कर उस महल पहुँच गए।

............

महल के पास पहुँच कर हम्जा ने कबीले के नए मुखिया को अपनी योजना सुनाई योजना अनुसार पहले कुछ आदिवासी बड़ी चालाकी और फुर्ती से असुरों के पास की छोटी छोटी जगहों पर पहुँच कर छुप गए फिर कुछ आदिवासी उन असुरों के सामने की ओर आकर उनको चिढ़ाने लगे और पत्थरों से मारने लगे ये देख कर दो असुर उन आदिवासियों पर झपटे पर आदिवासियों की फुर्ती का मुकाबला वो असुर ना कर पाए, और उनके पीछे लग गए, आदि वासी भी अपने पीछे भागते असुरों का पूरा ध्यान रखते की कही अपनी धीमी गति के कारण वो अधिक पीछे ना छूट जाए।

वही महल के पास बचे दो असुरों को छुपे हुए आदिवासियों ने तंग करना शुरू कर दिया जिससे वो दोनों असुर झुंझला गए। छुपे होने के कारण असुर उनको देख नहीं पा रहे थे। वही वो आदि वासी कुछ ऐसे थे कि देखने में वो बिल्कुल एक समान लग रहे थे उनको हम्जा ने विशेष कर चुना था। उन आदिवासियों में से एक तेजी से निकलता हुआ आया और एक असुर के पैर पर कोई तेज धार दार हत्यार से वार कर दूसरी जगह में घुस गया। उस आदि वासी की इस हरकत से असुर को थोड़ा कष्ट तो हुआ पर अधिक पीड़ा नहीं हुई और जिस तरफ वो आदिवासी भागा उस तरफ देखने लगे। अभी दोनों में से कोई असुर अपनी प्रतिक्रिया दिखाता उससे पहले किसी ओर जगह से उसी के जैसा आदि वासी निकला और तेजी से दोनों असुरों के पैर पर वार करता हुआ। आगे चला गया, इसको देख कर दोनों असुर खिसिया कर उसको पकड़ने के लिए मुड़े की किसी तीसरी जगह से एक और आदिवासी निकल कर उनके पैरो में घाव कर देता है। ऐसे करते करते उनके पैरो पर कई घाव हो जाते है। आदिवासी दिखने में एक जैसे थे तो उन असुरों को वो एक ही व्यक्ति लग रहा था जो जादुई रूप से अपनी जगह बदल-बदल कर उन पर वार कर रहा था। और उनकी पकड़ में नहीं आ रहा, इन सब से असुरों को भय हुआ तो वो वहाँ से भागे पर कुछ ही दूरी पर पहुँच धरती को हिला देने वाले वजन के साथ गिर पड़े, और मूर्छित हो गए असल में उन हत्यारों में एक विशेष प्रकार की जड़ी बूटी का रस लगा हुआ था जो जीव जंतुओं को मूर्छित करने के काम आता है। लेकिन समस्या ये थी कि असुरों को मूर्छित करने के लिए उसका कितना उपयोग काफी होगा इसका अनुमान किसी को नहीं था तो इसलिए आदिवासियों द्वारा उनको तबतक मारा गया जब तक वो मूर्छित नहीं हो गए।

वही दूसरी ओर अपने पीछे भगाते असुरों को आदि वासियों ने पहले से खोदे एक विशाल गड्ढे में धोके से गिरा दिया। असुर उस गड्ढे से छलांग लगा कर निकल ना पाए उसके लिए उन आदिवासियों ने नोकीले भालों से बना एक ऐसा जाल उस गड्ढे के ऊपर लगा दिया कि उनके छलांग लगाते ही वो नोकीले भाले असुरों के सर में घुस जाए और उनकी ऊँचाई भी असुरों के कद से अधिक थी ताकि उनका हाथ भी उस जाल तक ना पहुँचे।

अब हम्जा और आदिवासियों का महल में प्रवेश करने का रास्ता साफ था। बस हम्जा को उस भयंकर संगा का भय था जिसे उसने तब देखा था जब वो अकेला आया था। और इस समय वो कही नज़र नहीं आ रहा था।

पर हम्जा एक चीज़ के बारे में नहीं जानता था कि वो भी इस महल में उसको मिल सकती है। कसरू...

जब आदिवासियों का दल हम्जा के साथ महल में प्रवेश कर लेता है। तो सैकड़ों कसरू उन पर जगह-जगह से हमला कर देते है। कुछ ही देर में महल के जमीन पर रक्त ही रक्त दिखाई देने लगा कसरुओ ने वहाँ भयंकर उत्पाद मचा दिया, वो किसी आदि वासी का हाथ खा गए तो किसी का पूरा पैर चबा गए, इस दृश्यों को देख आदिवासी भी भय भीत हो गए और उन छोटे दरिंदों के आगे घुटने टेकने ही वाले थे के हम्जा ने असामान्य बल दिखा कर उनको आश्चर्य में डाल दिया साथ ही उन्हें लड़ने का नया साहस भी दिया, उन असुरों का रंग हरा होता है। ये बात सब को पता थी पर उनको मारते समय पहली बार उनको दिखा की इनका रक्त भी पतला और हरा होता है। जैसे किसी पौधे को निचोड़ कर देखने में निकलता है। फिर क्या अब वो आदिवासियों के सामने भयंकर कसरू नहीं थे बल्कि केवल जंगली पौधे के समान हो गए थे।

सभी कसरुओ का अंत करते करते कई आदिवासी घायल हो गए और कई परलोक सिधार गए। बचे कुछ आदिवासी,

तो उनको हम्जा ने घायल ओ की सहायता के लिए वही रोक दिया और खुद अकेला आगे बढ़ने लगा।

धीरे धीरे हम्जा आगे बढ़ता हुआ उस महल के आँगन में आ पहुँचा। जहाँ पर उसने देखा कि उस महल में एक नहीं सैकड़ों संगा मौजूद है। जो सारे के सारे उस आँगन में एकत्रित थे। वो सभी किसी रस्म के प्रारम्भ होने की प्रतीक्षा कर रहे थे।

वही एक कोने में उसको अम्बाला भी नज़र आई और उसको भी एक संगा ने जकड़ रखा था। और अम्बाला असहाय दुखी भाव से निरन्तर आँसू बहाए एक ही दिशा में देखे जा रही थी। उस ओर जब हम्जा ने देखा तो वहाँ का दृश्य देख कर उसकी रूह कांप उठी उसका कलेजा तड़प गया। उस ओर एक व्यक्ति आकाश की ओर देखता हुआ एक खंजर ले कर खड़ा था जिसके निशाने पर हम्जा का नन्हा सा बच्चा था और ये व्यक्ति और कोई नहीं वही था जिसने राजा भानु और उनकी पत्नी को अंधकार की सहायता लेने की सलाह दी थी। इस दृश्य को देखने भर से हम्जा के भीतर क्रोध की अग्नि इतनी अधिक भड़क उठी की उसकी नसों का रक्त अँधेरे में जुगनू के समान चमकने लगा। अचानक हम्जा ने पाया कि गोर से देखने पर उसको सभी संगाओ में एक काला हृदय भी दिखाई देने लगा हम्जा को समझ में आ गया कि अब उसको करना क्या है। पर तभी वो अंधकार का पुजारी जिस क्षण की प्रतीक्षा कर रहा था वो हो गया और वो खंजर को ऊपर उठाता हुआ बच्चे को मारने वाला था कि हम्जा अपने दोनों हथेलियों पर गहरा जख्म करके चीखता हुआ उसकी ओर बढ़ने लगा। हम्जा की आवाज़ ने उस तांत्रिक का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लिया, जिस पर तांत्रिक हम्जा को पागलों की तरह अपनी ओर आता और बीच में आने वाले प्रत्येक संगा के हृदय को अपने हाथों से निकाल कर उनको भस्म करता हुआ दिखा, हम्जा इतनी तेजी से उन संगाओ के हृदय को बाहर निकाल कर उनको मार रहा था कि देख कर लगता बस अब पहुँचा और अब पहुँचा, इस बात को भाँप कर तांत्रिक तेजी से उस बच्चे पर दोबारा वार कर देता है। और इस बार वो अपने हाथ नहीं रोकता उसका वार खाली नहीं जाता, लेकिन उसका वार बच्चे को ना लग कर अम्बाला के पीठ में लगा क्योंकि अपने सन्तान की रक्षा के लिए अम्बाला बिना डरे खुद आगे बढ़ कर अपने प्राण त्याग देती है। ठीक वैसे ही जैसे संसार की हर माता करती है। अपनी जान से भी अधिक बढ़कर एक माता के लिए संतान के सिवा और हो भी क्या सकता है। हम्जा के लिए इस दृश्य ने मानो समय को रोक सा दिया,

वो अपनी संतान से बेशक प्यार करता है। पर उतना ही प्रेम अम्बाला के लिए भी उसके भीतर था। न जाने कैसे-कैसे सपने देखे थे हम्जा ने अम्बाला के साथ भविष्य के,

वो सब क्षण भर में चकनाचूर हो गए। अब हम्जा दुगनी ताकत और तेजी से अपने बच्चे के लिए आगे बढ़ता है। और उस तांत्रिक के बच्चे पर फिर से वार करने से पहले उन सभी संगाओ को मार कर तांत्रिक तक पहुँच जाता है। तांत्रिक पर हम्जा द्वारा किया हुआ एक हाथ का वार इतना भयंकर था कि वो बुरी तरह घायल हो कर दूर जा गिरा,

हम्जा अम्बाला को जल्दी से अपनी बाँहों में भरता हुआ उसको जगाने की भरपूर कोशिश करता है। उसको पगलों की तरह चूमता है। रोते हुए बोलता है। मैं तुम्हें लेने आ गया हूँ अब सब ठीक हो जाएगा। मगर अम्बाला कुछ नहीं बोलती, वो कुछ बोलने योग्य ही नहीं बची थी। उसकी आंखें पथरा गई थी उसका शरीर निर्जीव पड़ा था।

अब तक कबीले का मुखिया भी यहाँ हम्जा को देखने आ पहुंचा था, मगर हम्जा का अम्बाला के प्रति प्रेम देख कर उसकी भी आंखें नम हो गई। हम्जा को इतना अधिक टूटा हुआ दुःखी देख कर मुखिया उसको समझाने के उद्देश्य से उसको अम्बाला मर चुकी है। ये बोलता है। पर उसकी बात सुनने की जगह हम्जा उलटा उसको ही क्रोध वश धक्का देकर घायल कर देता है। तभी वो शिशु रोने लगा,

जिसकी आवाज़ ने हम्जा को थोड़ा शांत किया। हम्जा अपने बच्चे को उठा कर ले जाने लगा तभी वो तांत्रिक घायल अवस्था में ही जोर से बोला " तुम इस बालक को जंगल से बहार नहीं ले जा सकते यदि ऐसा किया तो तुम्हारी आत्मा सदैव के लिये अंधकार की हो जायेगी,

हम्जा उस तांत्रिक की बात पर उसे कुछ ना बोल कर मुखिया की ओर देखता है। जैसे उस तांत्रिक का वध करने का आदेश दे रहा हो। और उसके संकेत को मुखिया बखूबी समझ कर उस तांत्रिक का सर धड़ से एक ही वार में अलग कर देता है।

इतना बोल हम्जा चुप हो गया और उसकी चुप्पी के साथ ही पूरा महल शांत हो कर सोच में डूब गया। किसी के पास बोलने के या कुछ पूछने के लिए शब्द नहीं थे। अगर कुछ था तो वहाँ उपस्थित लोगों की आंखों में आंसू।

उनकी इस खामोशी को तोड़ने के लिए एक सैनिक दौड़ता हुआ वहाँ आ पहुँचा और बेहद घबरा कर बोला " महाराज वो.. वो...वहाँ..

इतना सुन कर हम्जा नरसिम्हा से बेहद भावुक हो कर बोलता है।

" नरसिम्हा मेरा समय आ गया है और मेरा जाना जरूरी है। बस मेरी तुमसे हाथ जोड़ कर विनती है। अपने भतीजे को अपनी सगी संतान कि तरह पालना।

नरसिम्हा परेशान हो कर बोला " पर कहा...?

हम्जा " इस का जल्द ही तुम्हें पता चल जाएगा पहले मुझे अंतिम बार अपने पुत्र के दर्शन करा दो।

ये बोल कर दोनों जन उस कक्ष में गए जहाँ हम्जा का बेटा सो रहा था हम्जा उसको हसरत भरी निगाहों से ऐसे निहारता है। जैसे कह रहा हो काश हम कुछ और समय साथ बिता पाते मेरे बेटे। कुछ देर इसी तरह देखने के बाद हम्जा तेजी से नरसिम्हा को अपने साथ महल के बहार ले आता है। उससे अंतिम बार गले लग कर रोते हुए बोलता है। मुझे डर लग रहा है भाई लेकिन मुझे वचन दो कुछ भी हो जाये तुम मेरे पुत्र का साथ नहीं छोड़ोगे।

नरसिम्हा " नहीं छोडूंगा।

इतने में तीन लोग काले कपड़े पहने महल के द्वार की ओर आते दिखाई पड़ते है। नरसिम्हा देखता है। जो जो सिपाही उनको महल में प्रवेश करने से रोकता है। वो लोग केवल उसको घूरते है। और देखते ही देखते वो सैनिक पत्थर के हो जाते है। निर्जीव मूर्ति के भांति,

इस दृश्य को देख कर नरसिम्हा के भीतर जो खोफ पैदा होता है। वो नरसिम्हा के चेहरे पर साफ देखा जा सकता था। इस भय को देख हम्जा नरसिम्हा से बोला " यदि मैं इनके साथ न गया तो ये दोनों राज्यों को देखते ही देखते शमशान में परिवर्तित कर देंगे और इन्हें रोकना मेरी क्षमता से बहार है। इसलिये मुझे जाना होगा।

इससे पहले नरसिम्हा कुछ पूछे हम्जा तेजी से उन तीन लोगों के पास पहुँचता है। जिसपर उनमें से एक हम्जा की गर्दन को अपने मजबूत हाथों से पकड़ कर एक जोर का झटका देता है और हम्जा का शरीर वही गिर जाता है। मगर उसकी आत्मा को अब भी उन अज्ञात लोगों ने अपने हाथों में पकड़ रखा था। जिसको घसीट कर वो वापिस जंगल की ओर ले जा रहे थे। नरसिम्हा ये सब साफ साफ अपनी आंखों से होते हुए देख पा रहा था। पर वो कुछ ना कर सका, हम्जा का शरीर वहीं पड़ा राख में परिवर्तित हो गया।

हम्जा जनता था। उसको आज का दिन देखना है। इसलिए वो अपने बेटे को सुरक्षित करने और अपने लोगों को अपनी कहाँनी सुनाने आया था। जो कि वो पूरा कर चुका था।

समाप्त