कर्म पथ पर - 72 Ashish Kumar Trivedi द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कर्म पथ पर - 72




कर्म पथ पर
Chapter 72




जय ने श्यामलाल को वही बताया जो रास्ते में तय हुआ था। यह जानकर कि वृंदा के बारे में कुछ भी पता नहीं चल पाया है श्यामलाल बहुत दुखी हुए। उन्होंने जय को समझाया कि वृंदा के ना मिलने का उन्हें अफसोस है। लेकिन कुछ किया भी नहीं जा सकता है। पता नहीं हैमिल्टन ने उसे कहाँ पहुँचा दिया हो। हैमिल्टन की पहुँच देश के कई स्थानों पर है। और सकता है उसने वृंदा को लखनऊ से बाहर कहीं पहुँचा दिया हो। उन्होंने कुछ संकोच के साथ कहा कि यह भी हो सकता है कि उसने वृंदा को मार दिया हो। जो भी है उसके बारे में कुछ किया नहीं जा सकता है।
वह जानते थे कि वृंदा का पता ना चलने से जय बहुत दुखी होगा। इसलिए उन्होंने समझाते हुए कहा,
"देखो बेटा..... मैं जानता हूँ कि वृंदा तुम्हारे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखती थी। उसने ही तुम्हारे जीवन को सही राह दिखाई। लेकिन अब वह कहाँ है किसी को नहीं पता। इसलिए तुम अपने मन में कोई बोझ ना रखो। हो सकता है वृंदा सही सलामत हो। किसी दिन तुम्हारे पास वापस आ जाए। या फिर कभी भी वापस ना आए। लेकिन जो भी हो। तुमको अपने आप को संभाल कर रखना है। वृंदा ने तुम्हारी जीवन को जो कर्म पथ दिखाया है तुम्हें अब बस उस पर ही चलना है।"
जय को अपने पापा की यह बात बहुत अच्छी लगी। उसने कहा,
"पापा आपने बहुत अच्छी बात कही। वृंदा के लिए मेरे मन में जो प्यार है उसकी सही अभिव्यक्ति यही होगी कि मैं उस राह पर चलूँ जो वृंदा ने दिखाई थी। आप घबराइए नहीं पिक पापा। वृंदा का प्यार मेरे लिए कमजोरी ही नहीं बनेगा। बल्कि वह कर्म पथ पर पढ़ने के लिए मुझे प्रेरणा प्रदान करेगा।"
श्यामलाल ने उससे पूँछा,
"अब आगे क्या करने का इरादा है ?"
"पापा मैं सोच रहा था कि वापस सिसेंदी गांव चला जाऊँ। वहाँ जाकर गांव वालों की सेवा करूँ।"
श्यामलाल के मन में एक विचार उठ रहा था। वह बोले,
"क्या यह जरूरी है कि लोगों की सेवा करने के लिए तुम घर छोड़कर मुझसे दूर जाओ ? क्या यह नहीं हो सकता कि तुम मेरे साथ रहकर मेरे उद्देश्य को आगे बढ़ाओ। मैं तुम्हें बता चुका हूँ कि अब मेरे जीवन का मकसद अपनी दौलत से लोगों की भलाई का काम करना है। एक तरह से मेरा और तुम्हारा मकसद एक ही है। फिर तुम्हें वापस सिसेंदी गांव जाने की क्या जरूरत है।"
जय जानता था कि उसके पापा अब उसकी तरह ही समाज सेवा की राह पर बढ़ चुके हैं। बस थोड़ा सा ही अंतर है। वह अपनी दौलत के जरिए लोगों की सेवा करना चाहते हैं। जबकि वह अपने कामों के जरिए लोगों की सेवा करना चाहता है। दोनों के मकसद एक जैसे ही हैं। वह चाहे तो अपने पिता के पास रहकर उनके काम में अपना योगदान दे सकता है। लेकिन अभी उसका मकसद कुछ और ही था।
लौटते समय मदर और जय के बीच इस विषय में लंबी बात हुई थी। हैमिल्टन ने जिस तरह निर्दयता के साथ वृंदा की हत्या कर उसके शव को जंगल में दफना दिया था वह माफ करने लायक कृत्य नहीं था। जय उसे उसके किए की सजा देना चाहता था। इसलिए उन्होंने तय किया था कि वह वापस गांव जाकर इस बात की योजना बनाएंगे कि हैमिल्टन को उसके किए की सजा कैसे दी जाए। इसलिए उन्होंने तय किया था कि श्यामलाल वृंदा की हत्या के बारे में कुछ भी ना बताया जाए। यदि उन्हें यह पता चल गया वृंदा को हैमिल्टन ने मार दिया है तो वह इस डर से कि जय इसका बदला देने के लिए कुछ करना बैठे उसे अपने से दूर ना जाने देते। उस पर कड़ी कड़ी निगरानी रखते। इसलिए वृंदा की हत्या की बात जय ने उन्हें नहीं बताई थी। जय ने भी उनकी सलाह मानकर यह दिखाया था कि वह चुपचाप वृंदा के दिखाए रास्ते पर ही चलेगा।
लेकिन उसके पापा उसे अपने पास रोक रखना चाह रहे थे। ऐसा होने पर वह निश्चिंत होकर हैमिल्टन को मारने की योजना नहीं बना पाता। उसने श्यामलाल को समझाते हुए कहा,
"पापा आप सही कह रहे हैं। मुझे खुशी है कि आपने भी अब देश सेवा का रास्ता क्यों दिया है। पर पापा मैं चाहता हूँ कि अभी अपने देश को अपनी नजर से देखूँ। अपने लोगों को समझने का प्रयास करूँ। गांव में रहते हुए इस बात की शुरुआत हुई थी। पर अभी मुझे बहुत कुछ जानना और समझना है। इसलिए मेरा घर से बाहर जाना बहुत जरूरी है। कभी जब मुझे इस बात का एहसास हो जाएगा कि मैं अपने देश की मिट्टी को पूरी तरह से समझ चुका हूँ। तब आपके पास आकर आपके मकसद से जुड़ जाऊँगा। लेकिन पापा अभी मुझे जाना है।"
श्यामलाल बड़े गर्व के साथ अपने बेटे को देख रहे थे। उन्होंने जय को कभी भी ऐसे बातें करते हुए नहीं सुना था। उसकी बातें सुनकर उन्हें बहुत अच्छा लग रहा था। जय के मन में अपने आपको जानने की जो चाह थी उसके चलते उनके मन में अपने बेटे के लिए आदर का भाव आ रहा था। उन्होंने कहा,
"तुम बहुत समझदार हो गए हो जय। मुझे इस बात की बहुत खुशी है। तुम जाओ और इस देश को अपनी आँखों से देखो। जब तुम अनपढ़ गवार भोले भाले लोगों के मन में झांक कर देखोगे तो पाओगे कि उनके अंदर जीवन के संघर्षों से लड़ने की अभूतपूर्व क्षमता है। यह एक बहुत विशाल देश है। यहाँ बहुत कुछ जानने और समझने को है। अभी तक मेरे साथ रहते हुए तुमने केवल वही दुनिया देखी थी जहाँ धन दौलत की चमक थी।‌ पर मासूमियत और सच्चाई नहीं। अब तुम उस दुनिया को देखो जहाँ संसाधन तो बहुत सीमित हैं। पर लोगों में सच्चाई और मासूमियत है। छोटी छोटी चीजों से खुश होने की काबिलियत है। उनसे तुम बहुत कुछ सीख सकते हो।"
श्यामलाल का यह रुप भी जय के लिए एकदम नया था। उसने कभी भी अपने पापा को इस देश या इसके लोगों के बारे में ऐसी बातें करते नहीं सुना था। उसने कहा,
"पापा मुझे नहीं मालूम था कि आप इस देश और इसके लोगों के बारे में ऐसे विचार रखते हैं।"
"सब जानता था बेटा पर तब मुझे केवल एक ही बात की धुन सवार थी। किसी भी तरह अंग्रेजी हुकूमत की निगाहों में चढ़ना। अंग्रेजी हुक्मरानों से तारीफ बटोरना। अपनी दौलत और रुतबे में वृध्दि करना। इसलिए कभी तुम्हें यह बातें नहीं बताईं। लेकिन अब मेरी सोच बदल गई है। इसलिए कह रहा हूँ। अगर तुम सचमुच इस देश को जानना चाहते हो तो यहाँ के आम लोगों को जानो। तुम्हें पता चलेगा कि कैसे अनपढ़ होते हुए भी उन्होंने प्राचीन काल से चली आ रही परंपराओं को जीवित रखा है। अपने इतिहास को याद रखा है।"
जय उठकर खड़ा हो गया। उसने आगे बढ़ कर अपने पापा के पैर छुए। श्यामलाल उठकर खड़े हो गए। उन्होंने जय को गले से लगा लिया। जय ने कहा,
"चलता हूँ पापा। अब ना जाने कब आना हो। पर पूरी कोशिश करूँगा कि लौटकर आपके पास आऊँ।‌ पापा मैंने आपको माधुरी के बारे में बताया था। हो सकता है अब तक मैं मामा बन चुका हूँ। अब उसको आपकी जरूरत होगी। माधुरी का सपना पूरा करने में उसकी मदद करिएगा। मैं उसे सूचित कर दूँगा कि वह आपसे मदद ले सकती है।"
मदन ने भी आगे पढ़कर श्यामलाल के पैर छुए। श्यामलाल ने उसे भी आशीर्वाद दिया।‌ उन्होंने कहा,
"मैं निश्चिंत हूँ कि जय को तुम्हारे जैसा साथी मिला है। तुम उसका साथ निभाना। सदा खुश रहना।"
मदन और जय चले गए। उनके जाने के बाद श्यामलाल कुछ देर तक उदास रहे। फिर उन्होंने अपने दिल को समझाया कि उन्हें भी अब अपनी चुनी हुई राह पर चलना चाहिए।

जय और मदन को अचानक आया देखकर विष्णु आश्चर्य में पड़ गए। जय ने उन्हें बताया कि वह दोनों किसी आवश्यक काम से लखनऊ आए थे। वह यह देखने के लिए आया है कि कहीं उसका कोई खत तो नहीं आया है। विष्णु ने बताया कि उसका एक पत्र आया है। उन्होंने पत्र लाकर जय को दे दिया। पत्र माधुरी का ही था।
जय ने पत्र खोलकर पढ़ा। माधुरी ने लिखा था कि जय एक प्यारे से भांजे का मामा बन चुका है। बच्चा बहुत ही सुंदर और स्वस्थ है। उसकी आँखें बिल्कुल स्टीफन की तरह हैं। उन्हें देखकर ऐसा लगता है जैसे वह अभी बहुत सारे सपने अपने आँखों में संजो कर आया है। उसकी मौसियां प्यार से उसे गुड्डू कहकर बुलाती हैं। नाना नानी उसे बबुआ कहते हैं। पर उसने बच्चे का नाम डेविड रखा है।
खत में माधुरी के घर का पता भी था। जय ने वहीं बैठे बैठे माधुरी को एक पत्र लिखकर उसे बताया कि उसके पिता श्यामलाल टंडन उसकी डॉक्टर बनने में सहायता कर सकते हैं। उन्होंने लोगों की सहायता करना ही अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया है। उसने अपने पापा से उसके बारे में बात कर ली है।
खत में जय ने अपने पापा के घर का पता और फोन नंबर भी लिख दिया।