शम्बूक - 1 ramgopal bhavuk द्वारा पौराणिक कथा में हिंदी पीडीएफ

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शम्बूक - 1

उपन्यास

शम्बूक

रामगोपाल भावुक

सम्पर्क सूत्र-

कमलेश्वर कॉलोनी (डबरा) भवभूति नगर, जिला ग्वालियर म.प्र. 475110

मो 0 -09425715707 Email-tiwari ramgopal 5@gmai.com

भाग 1

2 जन चर्चा में.शम्बूक

अयोध्या में एक सुमत योगी नामके व्यक्ति निवास करते थे। उनके पिता जी योग साधना के अतिरिक्त पाण्डित्य कर्म में रत रहते थे। वे अष्टांग योग के ज्ञाता थे। उसी का प्रभाव सुमत के जीवन पर पड़ा। वे भी परम्परा में मिली योग साधना एवं पाण्डित्य कार्य में लग गये। इससे उनकी प्रसिद्धि सम्पूर्ण अयोध्या में फैलती चली गई। किसी को कोई पाण्डित्य कार्य करना होता अथवा ज्योतिष से सम्बन्धित कोई प्रश्न पूछना होता तो लोग उनके दरबाजे पर सुबह से ही पहुँच जाते। उनकी पत्नी उमादेवी भी विदुषी थीं, वे भी घर- गृहस्थी के कार्य के अतिरिक्त उनके इस कार्य में सहयोग कर देतीं। धीरे-धीरे वे एक प्रभावशाली व्यक्तित्व बनकर समाज में प्रतिष्ठित हो चुके थे।

वे श्री राम के जीवन से अत्यधिक प्रभावित थे। उन्हें श्री राम में गुण ही गुण दृष्टि गोचर होते थे। यदि कोई उनसे श्रीराम के बारे में कुछ इतर कह देता तो उन्हें उसकी बातों पर विश्वास नहीं होता था। जब भी उन्हें घर-गृहस्थी का सामान लेने बाजार जाना होता तो वे भजन-पूजन एवं योग साधना से निवृत होकर घुटनों के नीचे तक की धोती पहनते, ऊपर से शरीर में बन्डी डालते ,पाण्डित्य प्रदर्शन करने वाला दांये कन्धे पर अंगवस्त्र सँभाल कर रखते। वे सिर के श्वेत विखरे बालों को दर्पण के सामने जाकर कंधी से सभाँलते, उसके बाद बस्ती के बाजार से घर- गृहस्थी का सामान लेने के लिये निकल पड़ते। आज उन्होंने पहले एक दुकान से उपानह पहने। वे सोचने लगे-जब से श्रीराम जी का राज्याभिषेक हुआ है, रात का सन्नाटा रहते हुए अयोध्या नगरी के दीप दण्ड रात भर सड़कों और चौराहों पर प्रज्वलित रहकर उनका अभिवादन करते रहते हैं। दुकानदार तो दिन भर के हारे-थके गहरी नींद में सो जाते हैं किन्तु कुछ पहरेदार मुस्तैदी से घूम-घूमकर पहरा देते रहते हैं जिससे सभी नगरवासी आराम की नींद सो सकें।

इन दिनों रात भोजन के समय लगभग सभी घरों में एक ही चर्चा चल पड़ती है-ऐसी ही चर्चायें उस समय सुनाई पड़ीं थी, जब श्री राम को अपने गुप्तचर से सूचना मिली कि रात के समय एक युवा व्यक्ति अपनी पत्नी से कह रहा था-‘मैं श्रीराम की तरह नहीं हूँ जिसने रावण के अधिपत्य में रही सीता जी को अपने घर में रख लिया। तूँ रात भर जाने कहाँ रही है। क्या तूने मुझे श्रीराम समझ लिया है? अब मैं तुझे अपने घर में रखने वाला नहीं हूँ।’

उसकी बात सुनकर उनने, लोक जीवन के हितार्थ की बात कह कर सीता जी को रातोंरात वनोवास दे दिया। उसके बाद वे राजकाज में ऐसे उलझे कि फिर उन्होंने उनकी सुध भी नहीं ली। अयोध्या वासियेां के मन में इस बात की ऐसी गाँठ पड़ी कि वे इसे भूलाये ही नहीं भूल पा रहे हैं।

लोग हैं कि यह सोच कर रह जाते कि वे हमारे महाराजा हैं उनके दरबार में बड़े-बडे ज्ञानी-तपस्वी, ऋषि-मुनि बैठे हैं पर श्री राम जी से इस प्रसंग पर किसी ने चर्चा करने का भी प्रयास ही नहीं किया होगा। उस दिन से इस प्रसंग की आग दिन-रात चुपके-चुपकें अयोध्या वासियों के दिल में सुलगती रही है। श्रीराम जी के प्रति लोगों के मनों में जितनी श्रद्धा थी सीता के अयोध्या से निर्वासित होते ही जाने कहाँ विलुप्त हो गई।

यह स्थिति अयोध्या में ही नहीं वल्कि सम्पूर्ण राज्य में व्याप्त हो गई। संकोच वश लोग इस बात को जुबाँ से बाहर नहीं निकाल रहे हैं। यही सब सोचते हुए वे शहर के मुख्य चौराहे पर पहुँच गये। उन्हें उस चौराहे के दक्षिण के कोने में जोर-जोर से बातें सुनाई पड़ीं, किन्तु आश्चर्य है कि आज मैं यह क्या सुन रहा हूँ? कोई कह रहा था- अब तक श्री राम के राज्य में किसी बालक की मृत्यु नहीं होती थी। इन दिनों समझ नहीं आता कि कैसे एक बाह्मण बालक की मृत्यु हो गई। वह बाह्मण अपने मरे हुये पुत्र को राजद्वार में ले आया और वह उसकी मृत्यु के लिये श्रीराम को दोषी ठहराने लगा। राम ने उसकी बात सुनकर ऋषि-मुनियों से इस विषय पर परामर्श किया। सभी ने यह स्वीकार किया कि कहीं कोई शूद्र तप कर रहा है। कोई कह रहा था-‘किसी शूद्र का तप करना शास्त्र सम्मत नहीं है।’

वहीं दूसरा कह रहा था,-‘मरे हुये ब्राह्मण बालक को जीवित करने के लिये श्री राम उस तपस्वी को खोजते हुये वहाँ जा पहुँचे जहाँ वह तप कर रहा था। वहाँ पहुँच कर श्री राम ने उससे पूछा- ‘तुम कौन हो?’

वह बोला-‘ मैं शम्बूक नामका शूद्र हूँ।’यह सुनकर तो श्रीराम ने उस तप करने वाले का चमचमाती तलवार से बध कर दिया।’

यह सुनकर सुमत योगी सोच में डूबा घर लौट आया। ऐसा तो उसने कभी सोचा भी न था कि करुणा के सागर श्री राम जैसे व्यक्तित्व द्वारा किसी तपस्वी को मारे जाने का प्रसंग सामने आयेगा, इससे उसका मन वहुत व्यथित हो गया। जब-जब हमारे ऐसे स्थाई भाव पर चोट पड़ती है तो वह एकदम शुष्क टहनी की तरह चरमराकर टूट जाते हैं। तब उसका मन तत्काल सत्य-असत्य जानने के लिये व्यग्र हो उठा। उसे इन बातों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था। उसने मन ही मन झूठ-सच के यथार्थ को जानने का निर्णय कर लिया। वह कुछ दिनों तक यहाँ-वहाँ जानकारी लेने के उद्देश्य से भटकता रहा।

इन दिनों सुमत योगी को अपने बचपन की याद आने लगी। जब वह अपने पिता जी के साथ अपनी शान्ति बुआजी के यहाँ गया था। उसके फूफा जी परमानन्द शास्त्री एक अच्छे किस्सा गोई हैं। शम्बूक के पिता जी से उनकी गहरी मित्रता है। फूफा जी का सतेन्द्र नाम का एक ही पुत्र है। उसकी शम्बूक से गहरी मित्रता है। मेरे पिताजी तो किसी काम से षीघ्र लौट गये किन्तु बुआजी ने मुझे कुछ दिनों के लिये अपने पास रख लिया।

उसे याद आ रही है बुआ का गाँव अयोध्या राज्य के दक्षिण में घनघोर जंगलों के मध्य स्थित एक संभ्रात जनों की बस्ती है, जिसमें सभी जातियों के लोग निवास करते हैं। गाँव के मध्य में प्रतिष्ठित लोगों के घर बने हैं, जिन पर सरपते की छानें पड़ी हैं अथवा खपरेल से छवे हैं। कुछ जातियों के घर गाँव के बाहर बने है। वे उन्हें ही सजाने-सवाँरने में लगे रहते हैं। जिससे सर्दी-गर्मी और बरसात में एक रस हो सभी आनन्द का जीवन व्यतीत कर सकें।

कहीं यह शम्बूक उसकी बुआजी वाले गाँव का ही तो नहीं हैं! उसका घर उसकी बुआजी के गाँव में एक अलग समूह में बना है। गायें,भेंड़ें और बकरियाँ पालने का धन्धा उसके परिवार की आजीविका का साधन था, इससे घर गृहस्थी आराम से चलती रहती थी। उसके पिता सुमेरु अपने गृह कार्य में रत रहते हैं किन्तु इसके साथ ही जन सेवा में भी तत्पर रहते हैं। लोग उन्हें सुमेरु काका कहकर पुकारते हैं। उनके गाँव में उनकी अच्छी पूछ-परख है। वे अपने आस-पास के लोगों से अधिक सम्पन्न हैं, इसलिये वे अपने आसपास के लोगों का वक्त-वेवक्त अर्थ से सहयोग कर काम चला देते हैं। उसकी बस्ती के लोग प्रेम से हिल-मिलकर जीवन यापन कर रहे हैं।

सुमेरु काका खरी- खरी बातें कहने के लिये प्रसिद्ध थे, उन्हें गाँव की पंचायत में ससम्मान बुलाया जाता था। वे समाज में विवेकशील निर्णय के लिए प्रसिद्ध थे। इसका प्रभाव शम्बूक पर दिखाई देने लगा था। उन दिनों उसकी चर्चा मेरी बुआजी अक्सर करतीं रहतीं थी। मैंने जब उसके बारे में सुना तो मैं उससे मिलने के लिये उतावला हो उठा था। एक दिन मैं टहलते हुए सतेन्द्र के साथ उसके पास पहुँच गया। वह बरगद की घनी छाया में अपने मित्र मण्डली के साथ बैठा बातें कर रहा था। जब मैं पहुँचा, मुझे देखकर उसने पूछा- श्रीमान आप कौन है? और हमारे इस गाँव में आपका कहाँ से आगमन हुआ है?

मैंने उससे कहा था-‘मैं सुमत योगी। अयोध्या नगर का निवासी हूँ। आपके बारे मेरी शान्ति बुआजी चर्चा करतीं रहतीं हैं। सोचा ,चलकर आपसे मिल लेता हूँ। सुना है आपको पौराणिक कथायें सुनना- सुनाना अच्छा लगता है।’

शम्बूक ने कहा-‘ मैंने अपने आजे और आजी से रावण, कुम्भकरण तथा बाणासुर जैसे तपस्वियों के किस्से बचपन से ही सुने हैं। उनने तप करके भगवान शंकर से अमरता का वरदान माँग लिया था। मेरी आजी कहतीं हैं-‘ वत्स, रावण बचपन से ही जिस काम की ठान लेता था, उसे पूरा करके ही मानता था। मैं अपनी आजी कलावती के साथ ही रात्री में शयन करता हूँ। वे मुझे सोने से पहले कोई न कोई नया किस्सा सुनाने लगतीं हैं। वे आज मुझे सुना रहीं थी-‘रावण बचपन से ही बहादुर और प्रतापी था। उसके मन में यह बात बैठ गई थी कि तपस्या सें सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है। रावण ने तप करने की आदत बचपन से ही डाल ली थी। युवा होने पर उसने निश्चय कर लिया कि उसे तप करके शंकर जी को प्रसन्न करके उनसे अमर होने का वरदान माँगना है।

2 जन चर्चा में.शम्बूक भाग 1 का संक्षिप्त सार

अयोध्या में एक सुमत योगी नामके व्यक्ति निवास करते थे। शम्बूक ने सुमत योगी से कहा-‘ मैंने अपने आजे और आजी से रावण, कुम्भकरण तथा बाणासुर जैसे तपस्वियों के किस्से बचपन से ही सुने हैं। श्री राम ने उससे पूछा- ‘तुम कौन हो?’

वह बोला-‘ मैं शम्बूक नामका शूद्र हूँ।’यह सुनकर तो श्रीराम ने उस तप करने वाले का चमचमाती तलवार से बध कर दिया।’

2 जन चर्चा में.शम्बूक भाग 1