लालटेन पर झूमते परिन्दे राजनारायण बोहरे द्वारा रोमांचक कहानियाँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

लालटेन पर झूमते परिन्दे

पक्षियों की आत्महत्या का रहस्य

पक्षियों की अज्ञात आत्महत्या:जतिंगा राजनारायण बोहरे:
लगभग एक सौ वर्ष पहले की सच्ची कहानी है यह !आसाम के घने जंगलों में निवास करने वाले जेमिनागा कबीले के लोगों का एक गांव था। वे लोग जाने कब से वहां निवास करते थे. जेमिनागा लोगों का भोजन जंगली फल-फूल और शिकार किए गए जंगली पशु होते थे। पक्षियों को भी लोग बड़े चाव से खाते थे ।
एक बार की बात है, सितंबर का महीना बीत गया था, पर जेमिनागा कबीले की बस्ती में पानी नहीं बरसा था। कबीले में पानी की कमी की वजह से बीमारियां फैल गई।
पानी की कमी हुई तो उस जंगल के पशु पक्षी भी एक-एक करके बाहर चले गए. बचे खुचे हिंसक जानवर प्यासे रहने के कारण ज्यादा हिंसक हो गये थे और फिर बाद में एकाध बार किसी ने जेमिनागा कबीले के किसी आदमी का शिकार कर लिया तो उन्हें मनुष्य का नमकीन खून पीने का स्वाद पसन्द आ गया था ।धीरे-धीरे बहुत से जंगली पशु नमकीन खून पीने के शौकीन हो गए तो कबीले का मुखिया चेता उसने कहा “पानी नहीं बरसने की वजह से हम लोगों का यहां बसना संभव नहीं है ,इसलिए हम लोगों को यह जगह छोड़ देनी चाहिए ।”
कबीले के लोगों को जैसे सांप सूंघ गया बसे बसाए घर जोड़कर कहां जाएंगे वे? यह सोचकर परेशान हो गए। चार--छह दिन बीत गए। इस बीच एक शेर ने मुखिया के जवान बेटे को घायल कर दिया। मुखिया ने नाराज होकर घोषणा कर दी कि जिसे यहां रहना हो, रहे हम तो अगले दिन अपने परिवार के साथ यह जगह छोड़ देंगे।
और सचमुच अगले दिन सुबह-सुबह लोगों ने देखा कि मुखिया ने खच्चरों और गाय-भैंसों पर अपना घर का सामान लादना शुरू कर दिया है ,उन्हें देखा तो दूसरे लोग डरे घबराए कि अकेले कैसे रहेंगे ?
और फिर तो दूसरे लोगों ने भी अपना सामान समेटना शुरू कर दिया। बात ही बात में पूरा कबीला अपना सामान निकाल निकाल कर अपनी गाय भैंसों के ऊपर लादने लगा और कुछ क्षणों बाद ही पूरा कबीला चल निकलने को तैयार था। दोपहर तक सब लोग अपना पीढ़ियों से बसा वह कबीले का गांव छोड़कर वहां से चल पड़े।लेकिन गांव से निकलते वक्त सब के सब उदास थे , नई जगह के लिए उदास हो वे लोग धीरे-धीरे चल पड़े थे। घाटियों पहाड़ों मैदानों और जंगलों से होते हुए वे लोग सुरक्षित और उपयुक्त जगह की तलाश में भटकने लगे।
गुवाहाटी से डेढ़ सौ मील दूर बॉरैल की पहाड़ियों के ऊपर से वे लोग जब आगे बढ़ रहे थे एक बूढ़ा आदिवासी प्रसन्नता से भर कर चीख उठा –“देखो झरनों से भरी कितनी उम्दा हरी भरी जगह है, हम लोग यही रुकेंगे।"
दूसरे लोगों ने भी ध्यान से देखा कि सचमुच पहाड़ियों के बीचोंबीच एक लंबी घाटी फैली हुई है, जो झरनो और फूलों से भरी हुई है ।इस घाटी में छोटी-छोटी कई नदियां दिख रही थी ।चारों ओर हरियाली ही हरियाली थी।
कबीले वालों के मन को यहदृश्य खूब अच्छा लगा। मुखिया ने अनुमान लगाया कि यहां बरसात होती होगी ,उन्होंने संकेत दिया तो पहाड़ी से नीचे उतरने का रास्ता तलाशा गया और फिर धीरे-धीरे सब लोग पहाड़ियों से नीचे उतरने लगे̣।
नीचे जाकर मुखिया ने देखा कि एक नदी के किनारे खूब सारे -घने वृक्ष लगे हुए थे। मुखिया ने वही स्थान अपने कबीले के डेरों के लिए चुना. फिर क्या था! कबीले वालों ने अपनी गृहस्थी जमाना शुरू कर दिया , बूढ़े लोग आराम करने लगे ,औरतें युगों युगों से जमीन पर पड़ी झाड़ियों व कांटों को हटाकर झाड़ू बहारी करने में जुट गई और उनके बच्चे इधर-उधर भागते दौड़ते शोर मचाते हुए खेलने लगे । जवान लोगों ने अपनी कुल्हाड़ीयां संभाली और अपनी झोंपडी बनाने के लिए लकड़ी काटने के वास्ते आसपास के वृक्षों पर चढ़ गए.।उन्हें देखकर पेड़ों पर बैठे अजीब तरह के पक्षी चहचहाते हुए इधर-उधर उड़ने लगे ।
कबीले के मुखिया ने अपनी उम्र के दूसरे लोगों के साथ बैठकर इस जगह का नामकरण करने का सोचा , बुजुर्ग लोगों ने तय किया कि यहां का नाम होगा- जतिंगा यानी झरनों की सराय, ऐसा विश्राम गृह जहां झरने विश्राम करते हैं!

फिर क्या था ! जेमिनागा कबीले के वे लोग वही रहने लगे। इन लोगों ने महसूस किया कि इस जगह
बरसात विकट होती थी, पानी लगातार बरसता था और वे लोग उस बरसते पानी का भरपूर आनंद लेते थे।
बरसात का मौसम बीता, सर्दी शुरू होने लगी थी, सितंबर क महीना था। एक रात की बात है, कबीले के कुछ लोग बस्ती के बाहर निकलकर एक खुले मैदान में अलाव जलाकर आग ताप रहे थे कि अचानक ऊपर पक्षियों के चीखने चिल्लाने की आवाज आना शुरू हो गई। उन लोगों ने चौक कर ऊपर देखा तो डर गए । आसमान में हजारों पक्षी अलाव के ठीक ऊपर चीखते चिल्लाते मंडरा रहे थे और वे लोग जब तक कुछ समझे तब तक तो आसमान में मडराते पक्षी एक एक कर अलाव में आकर गिरना शुरू हो गए ।चारों और पक्षियों के जलने की दुर्गंध आने लगी ,तो लोगों ने पक्षियों को अलाव से बाहर खींच लिया। उनके हटाते ही कुछ और पक्षी आ गिरे तो कबीले के लोगों ने उन्हें भी बाहर निकाल लिया। कुछ देर बाद वहाँ मरे हुए और अंतिम सांसें भर रहे तमाम तरह के पक्षियों का ढेर लग गया.
जैसे-तैसे रात बीती लोगों ने सुबह देखा कि जल मुर्गा , बगुला बत्तख, सारस, कोयल आदि प्रजाति के बहुत सारे पक्षियों की लाशें पड़ी थी । बाकी गोरैया और दूसरे पक्षी वहां नीचे नहीं गिरे थे । कबीला वाले प्रायः उन्हीं पक्षियों का शिकार करते थे जो नीचे आकर वहाँ आ के गिरे । कबीले वाले समझ रहे थे कि उनके देवता ने खुश होकर उनको यह भोजन भेज दिया है .मुखिया बड़े खुश हुए के बैठे बिठाए ढेर सारा भोजन मिल गया ।उस दिन जेमिनागा कबीले के लोगों के उत्सव का दिन था । दिन भर उन लोगों ने पक्षियों के मांस की दावत उड़ाई

रात होने पर कई जगह अलाव जलाए गए और कबीले के लोग यह देखकर बड़े खुश हुए कि उस दिन भी ढेर सारे पक्षी अलाव में आकर गिरे।
इसके बाद तो यह रोज का काम बन गया वहीं ढेर सारे पक्षी उन लोगों के अलाव के पास आकर गिरते मानो वह कहते हैं कि लोग हमें मार डालो, पका कर खा लो।
जतिंगा घाटी के पास ही नागा जाति के आदिवासियों का एक गांव था .वे लोग गाय भैंस पालते थे और यदा-कदा पशु पक्षियों का शिकार कर लिया करते थे। एक रात गांव के मुखिया की भैंस देर रात तक जंगल से नहीं लौटी तो मुखिया चिंतित हुआ। पता लगा था कि आसपास एक शेर घूम रहा है ।मुखिया ने दो हटे कटे नागा युवकों को साथ में लिया और हथियारबंद होकर एक लालटेन हाथ में लें -भैंस तलाशकरने के लिए रात में ही निकल पड़े। वे लोग जंगल के बीच भटक रहे थे कि एकाएक आसमान में पक्षियों का बड़ा झुण्ड मंडराने लगा.। नागा लोग जिधर भी भागते पक्षियों का झुंड उधर ही मुड़ जाता। अंत में पक्षी जब नीचे आकर लालटेन से टकराने लगे तो मुखिया ने लालटेन नीचे रख दी। कुछ क्षणों में लालटेन के इर्द-गिर्द पक्षियों का ढेर लग गया था।
अब क्या था डर के नागा लोग वहां से भाग निकले और अपने घरों में जाकर छुप गए। सुबह डरते डरते हाथ में हथियार लेकर वे लोग वहाँ आए तो देखा बहुत से पक्षी मरे पड़े थे ,तब डरते सहमत उन लोगों ने पक्षियों को छुआ और उनकी जांच की ।सारे पक्षी स्वस्थ और निरोग थे .सभी युवकों ने पक्षियों को लादा और अपने कबीले वाले गांव में ले गए. …मुखिया और ओझा को बुलाया गया।
ओझा ने उन पक्षियों की दोबारा जांच की और फिर उन्हें दावत उड़ाने की सलाह दी तो उन पक्षियों का माँस पका कर खा लिया गया ।वह रात उस कबीले की दावत की रात थी । अगली रात कई लालटेन जलाकर उन लोगों ने भी खुले मैदान में रख दी थी, वहां भी रात को ढेर सारे पक्षी आ कर गिरे। सुबह जब वे लोग लालटेन वाले मैदान में पहुंचे तो उन्हें बहुत सारे पक्षी उपहार में मिले ।
जेमिनागा कबीले के मुखिया की एक दिन नागा गाँव के मुखिया से भेंट हुई आपस मे बातचीत के दौरान पक्षियों की आसमान से गिरने वाली बात पता चली । अब दोनों इस बात का रहस्य जानने को उत्सुक हो उठे आखिर पक्षी क्यों आसमान से गिरकर आत्महत्या कर देते हैं ?
इसी सोच विचार में अक्टूबर का महीना बीत गया और एकाएक पक्षियों की आत्महत्या अपने आप बंद हो गई। उन लोगों को जहां बैठे बिठाए आने वाला भोजन बंद हो जाने का दुख हुआ ,वहीं इस रहस्य को जानने की बेचैनी और ज्यादा बढ़ गई ।
अगले वर्ष अगस्त से अक्टूबर तक के तीन महीनों में फिर से पक्षियों ने आत्महत्या शुरू कर दी थी।
बहुत प्रयास करने के बाद भी यह रहस्य तो कभी उन लोगों को कभी पता नहीं चला कि जतिंगा के आसपास पक्षी क्यों जमीन पर गिरते हैं? पर इस क्षेत्र के निवासियों को यह लाभ जरूर हुआ कि तीन महीनों तक पर भोजन की तलाश में भटकने से बच जाते थे ।
बाद में जेमिनागा मुखिया को खोज करने पर पता चला कि पूरी जतिंगा घाटी में ऐसा नहीं होता बल्कि केवल उन्हीं उसी दो-तीन किलोमीटर के लंबे पगडंडी नुमा रास्ते में ही पक्षी गिरते हैँ। मुखिया ने खोज की की घाटी में चहकने वाली गौरैया,बुलबुल और मैना ने कभी जमीन पर गिरते नहीं देखा। इसका मतलब है, इन तीन तरह के पक्षियों को छोड़कर सारे पक्षी ऐसे बेचैन होते हैं कि रात को आकर वे किसी भी जलती वस्तु पर गिरने लगते हैं ।
तब से जेमिनागा कबीले में यही परंपरा शुरू हो गई .जब पुराना मुखिया मरने लगता तो नये मुखिया को दूसरी बातें सिखाने के साथ-साथ यह जिम्मेदारी सौंप जाता है कि वह पक्षियों की आत्महत्या के रहस्य को खोजने की कोशिश करेगा!
बहुत दिन बाद कि बात है, जतिंगा पहुँचे कबीले के मुखिया का पोता उस समय मुखिया था जबकि कुछ वन्य जीव विशेषज्ञ आसाम के जंगलों की यात्रा करते हुए जतिंगा पहुंचे। उन्हें पक्षियों की आत्महत्या का विचित्र प्रसङ्ग बताया तो उन्होंने सितंबर में दुबारा आने की बात की और बाद में सितंबर में लोग वहां पहुंचे भी। उन्होंने अपनी आंखों के सामने देखा जमीन पर रखें किसी प्रकाश को निशाना बनाकर आसमान से पक्षी किस तरह जमीन पर गिरने लगते हैं । तुरंत अखबारों में यह समाचार छपा तो भारतवर्ष के वन्य जीव विशेषज्ञ और पक्षी वैज्ञानिकों की भीड़ की भीड़ जतिंगा पहुंचने लगी
अब तक जतिंगा का खूब विकास हो चुका था , सडक ही नही यहां तक ,रेलवे लाइन आ चुकी थी और एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र विद्यालय खुल गया था। पक्षियों की आत्महत्या का केंद्र रेलवे स्टेशन से प्राथमिक चिकित्सा केंद्र की बीच की जमीन का होना पाया गया था ।
कुछ लोगों ने अंदाज लगाया इस जगह की जमीन में चुंबकीय गुण पाए जाते हैं.
सन 1964 में "भारत के जंगली जीव" नामक किताब में यह प्रसङ्ग विस्तार से प्रकाशित हुआ।
कुछ वैज्ञानिक कहते हैं कि अगस्त से अक्टूबर के बीच इस घाटी में खूब कोहरा होता है और रात को जब तेज हवाएं चलती हैं तो वातावरण में कोहरा होने के कारण सांस लेना भी दूभर हो जाता है. ऐसे में अकुलाए पक्षी जहां भी उजाला देखते है, वहां जीवन की आस में खिंचे चले आते हैं. दूसरे वैज्ञानिक का कहना है कि आसाम में खूब बरसात होती है ,अगस्त से बरसात की शुरुआत हो जाती है और इस मौसम में तेज हवा बादलों की गड़गड़ाहट का बरसात के कारण वातावरण में बिजली पैदा हो जाती है ,इस बिजली के झटके पक्षियों को लगते हैं फिर वे ढीले पड़ जाते हैं और वे ऐसे शिथील हुए धरती पर बेहोशी की हालत में भागते हैं .
जेमिनागा जाति के लोग आज भी पक्षियों की इस सामूहिक आत्महत्या के रहस्य पर पर्दा नहीं उठा सके और दुनिया भर के वैज्ञानिक भी अभी अंधेरे में है .सब केवल अनुमान अंदाज के सहारे कुछ कुछ कहते रहते हैं .पक्षियों के कौतुकपूर्ण संसार का यह आज भी रहस्य बना हुआ है।
देखें कौन जानकार कौन पक्षी विशेषज्ञ विशेषज्ञ आता है और इसको खोल सकता है। जब तक नहीं खुलता पक्षियों की आत्महत्या का यह सिलसिला चलता रहेगा चलता रहेगा और दुनिया के लोगों के सामने रहस्य बना रहेगा।