Purn-Viram se pahle - 14 books and stories free download online pdf in Hindi

पूर्ण-विराम से पहले....!!! - 14

पूर्ण-विराम से पहले....!!!

14.

गुजरते वक़्त के साथ एक रोज अचानक शिखा के फोन पर प्रखर का कॉल आया| शिखा की आवाज़ सुनते ही प्रखर ने कहा..

“शिखा! बोल रही हो| प्रखर बोल रहा हूँ| तुम्हारा नंबर एक कॉमन दोस्त से लिया था| कल रात को ही तुम्हारे शहर में आया था....मेरी एक मीटिंग थी। आज दोपहर में फ्री हूँ| मिलना चाहता हूं तुमसे। क्या तुम मिलने आ पाओगी|”..

शादी के इतने दिनों बाद प्रखर की आवाज सुनकर शिखा बहुत बैचेन हो गई थी| प्रखर अपना नाम बताता नहीं तब भी वो पहचान जाती| जैसे ही उसने प्रखर कहा उसकी आवाज़ में एक कंपन दौड़ गया| जब शिखा ने अपनी सहमति दी तो प्रखर की जान में जान आई|

प्रखर अपने इस ट्रिप को जाया नहीं होने देना चाहता था| एक-दूसरे से संपर्क टूटे हुए दो साल से ऊपर हो चुका था| प्रखर को हर हाल में शिखा से एक बार मिलना था| शिखा के हामी भरते ही प्रखर की आँखें भर आई थी| एक अरसे बाद वो अपनी ज़िंदगी से मिलना चाहता था.. दूसरी ओर शिखा भी प्रखर की हरदम साथ चलने वाली सुवास में खो गई थी|

दोनो ने एक बड़े होटल के रेस्ट्रोरेंट में मिलने का तय किया| प्रखर के साथ उसकी सिक्योरिटी भी थी..शिखा के पहुँचने में थोड़ी देरी हो गई थी| बहुत मुश्किल से उसने स्कूल के समय के बीच में मिलने का तय किया| सब कुछ मैनेज करते-करते शिखा थोड़ा लेट हो गई थी|

जब शिखा वहाँ पहुंची तो उसने प्रखर को इंतजार करते हुए पाया..

ब्लैक शर्ट व कैमल ब्राउन पेंट्स में प्रखर पहले से बहुत अधिक हैन्डसम व कॉन्फिडेंट दिख रहा था| वो क्रॉस लेग करके बैठा हुआ था| उसके सामने पानी भरा हुआ गिलास रखा था| प्रखर दोनो हाथों को एक दूसरे से थाम कर, अपने ही खयालों में खोया हुआ था| इतने सालों बाद प्रखर को देखकर शिखा के तो आँसू ही बह चले|

प्रखर ने जैसे ही शिखा को देखा उसने उठकर गले लगा लिया| पहले तो शिखा थोड़ा सकुचाई पर वो स्वयं को, प्रखर की बाहों में समा जाने से न रोक पाई|

प्रखर ने थोड़ी देर बाद न चाहते हुए भी शिखा को खुद से अलग करके सामने की कुर्सी पर बैठने के लिए कहा|

प्रखर के चेहरे पर आई मुस्कुराहट को देख शिखा के चेहरे पर भी मुस्कुराहट की लहर आकर फैल गई। प्रखर भी अपनी आँखों में आई नमी को शिखा से नहीं छिपा पाया| प्रखर का चेहरा और आंखे उस समय बहुत कुछ बोल रही थी|

"शिखा! कैसी हो तुम...खुश हो न अपने वैवाहिक जीवन में .." पूछकर प्रखर चुपचाप शिखा की आंखों में खो गया।

"अब यह प्रश्न बेमानी हो गए है प्रखर। समीर अच्छे इंसान है। मेरा बहुत ख्याल रखते हैं| हम दोनों टीचिंग में ही है। तुमने शादी की प्रखर..."

"नही की अभी तक। पर अब करनी पड़ेगी। पिछले कई सालों से टालता आ रहा था। मां-पापा दोनो पीछे पड़े थे। न जाने क्यों दिल में बस एक ही ख्याल था। एक बार तुमसे मिल लूं। तुमको महसूस कर लूं।..और मुझे बस यह एहसास हो जाए तुम खुश हो....तभी शादी का सोचूंगा। पर शिखा तुम कभी भी मेरी ज़िंदगी से दूर नही जा पाओगी। यह मैं बहुत अच्छे से जानता हूँ| तुम्हारी जिस कमी को मैंने गुज़रे के सालों में महसूस किया है....वो कसक बनकर ठहर गई है|”

इस बीच प्रखर ने दोनों के लिए उसी कॉफी का ऑर्डर दे दिया| वही कैपिचीनो कॉफी जो दोनों कॉलेज में पिया करते थे| दोनों की चॉइस आज भी वही थी| ऑर्डर देकर प्रखर ने अपनी बात जारी रखी..

“मुझे हमेशा यही लगता रहा मैं जो कर रहा हूँ तुम्हारे लिए कर रहा हूँ। तुम्हारी खुशियों के लिए कर रहा हूँ। पर तुम तो मेरी इस यात्रा में पीछे छूट गई शिखा। मेरी हमेशा से ही जान रही हो...रहोगी और मेरे मरने के बाद ही मेरे साथ जाओगी। चाहता हूं बहुत खुश रहो हमेशा..समीर के साथ। पर मैं..कैसे रह पाऊंगा तुम्हारे बिना.....नही पता..." बोलकर प्रखर कहीं खो गया।

तब शिखा ने कहा..

"शादी जरूर कर लेना प्रखर। कैसे रहोगे अकेले। मेरे अंदर भी बस गए हो हमेशा के लिए। समीर मेरा वर्तमान है| हमेशा कोशिश की है खुश रहने की पर...नही जानती क्या लिखा है। तुम्हारे लिए कुछ लिखा था मैंने प्रखर......सुनोगे....” बोलते ही शिखा की आँखें वापस भर आई|

“तुम सुना दो शिखा....”

मैंने नहीं सुना पाऊँगी तुम पढ़ लो प्लीज....” बोलकर शिखा ने वो पन्ना प्रखर को पकड़ा दिया....प्रखर ने पन्ने को अपने हाथ में लेकर कविता को ज्यों ही पढ़ना शुरू किया दोनों की आँखों से आँसू बरसने लगे....

मुझमें ही तो हो—‘कुछ इस तरह/मुझमें रहकर मुझसे ही/मिला करते हो तुम/जैसे कोई मेरा ही साया खोकर मिलता हो/घनी रात गुजरते ही/सूरज की रोशनी तले../ज्यों-ज्यों चढता-उतरता सूरज,/सिमट जाता वो साया/स्वत: मुझमें ही जाकर कहीं../फिर खो जाता उस अन्धकार तले/मानो -ना मिलने को कभी../हर दिन कुछ ऐसे ही/कभी मुझमें खोकर/तो कभी मेरे साथ-साथ चलकर/महसूस हुआ करते हो तुम../कुछ इस तरह मुझमें रहकर/मुझसे ही मिला करते हो तुम.....’

कविता के अंत तक पहुंचते-पहुंचते दोनों एक दूसरे का हाथ थामकर न जाने कब तक अपने रिश्ते को महसूस करते रहे| प्रखर ने शिखा की लिखी हुई कविता वाले पन्ने को तय करके अपनी शर्ट की पॉकेट में रख लिया| शिखा को अपनी कविता और प्रखर का दिल एक दूसरे के बहुत पास महसूस हुए| दोनों एक दूसरे की कही हुई हर बात को महसूस करके खुद में सहेजते जा रहे थे|

उस छोटे से अंतराल में दोनों के बीच गिनती की बातें हुई| दोनों नि:शब्द रहकर भी एक दूजे को प्रेम से सराबोर करते रहे .. बीच-बीच में दोनों कॉफी के मग में चम्मच घुमाते हुए उसमें बनती-बिगड़ती लहरों के साथ गुज़रे समय के वाकयों को बार-बार दोहराकर खो रहे थे| दोनों के बीच से शब्द नहीं थे….पर बहुत सारी जीये-सी धड़कनों का अंबार इकठ्ठा कर लिया था उन्होंने।

उस रोज एक दूसरे की कमी से जुड़ा एक एहसास था जो बार-बार दोनों की नम होती आँखों से झांक रहा था|

जब दोनों ने निकलने का मानस बनाया तब प्रखर ने शिखा से थोड़ी देर और रुकने को कहा| उस रोज वो उन पलों को थोड़ा-सा और समेटना चाहता था| उसकी इस ख्वाहिश को हर कीमत पर शिखा खुद भी पूरा करना चाहती थी पर हर बात का समय बहुत पहले से ही तय था...

प्रखर की मीटिंग्स थी और शिखा को समय पर घर पहुंचना था|

जाने का मन न होते हुए भी दोनों ने एक दूसरे से जब गले मिलकर विदा ली.....वापस गले मिलते समय दोनों की आँखें फिर से भर आई| दोनों ने एक दूसरे के हाथ को कसकर थाम रखा था| दोनों को लग रहा था कि अलग होते ही कहीं जान न निकल जाए| ....इस मीटिंग की कीमत शिखा और प्रखर ही जानते थे|

प्रखर के पास शिखा का नंबर था| उसने भी शायद इस मीटिंग के बाद नंबर डिलीट कर दिया था क्यों कि इसके बाद दोनों ही कभी न मिले न बात हुई|

शिखा ने प्रखर का नंबर जानकर सेव नहीं किया..क्यों कि उसको लगता था ऐसा करने से वो समीर के साथ शायद न्याय न कर पाए| प्रखर का नंबर डिलीट करते में कितनी बार उसकी आँखें भीगी यह सिर्फ़ शिखा जानती थी|

फिर दोनों जीवन की तेज रफ्तार में लगातार दौड़ते रहे| कौन किस शहर में कब,कहाँ रहा दोनों को नहीं पता था|

क्रमश..

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