पूर्ण-विराम से पहले....!!!
13.
उस रोज प्रखर ने भी बहुत कुछ साझा किया था| कैसे स्कूल खत्म होने के बाद जब रिजल्ट आया ....सारे शहर में उसकी सेकंड पोजीशन थी। उसको शिखा का नाम पता था| सो उसने न जाने कितनी बार पूरी रिजल्ट लिस्ट में शिखा के नाम को कई-कई बार खोजा..कहीं शिखा का नाम भी मेरिट में हो| बार-बार भगवान को याद करता और लिस्ट देखता।
उसका नाम न पाकर बहुत उदास हो गया था उस रोज वो| उसकी खुद के मेरिट में आने की खुशी भी काफूर हो गई थी। जबकि वो जानता था कि शिखा से मिलकर बधाई भी नही दे पाएगा। बस उसका नन्हा-सा दिल दोनों के नामों को लिस्ट में एक साथ देखकर बहुत खुश होना चाहता था। कैसे उन दिनों अपने सपनों में भी वो शिखा को साथ-साथ लिए-लिए घूमता था....सब बताया था प्रखर ने|
शिखा ज्यों-ज्यों उसकी बातों को सुन रही थी...भाव-विभोर होती जा रही थी| तब प्रखर बोला....
“अब कह सकती हो मैं सच में पागल हूँ तुम्हारे लिए। इतना पागल कि तुम्हारे लिए बहुत कुछ करने का सोचता हूँ| अगर भविष्य में हम साथ होंगे तो मेरे जितना तुमको कोई प्यार नहीं कर सकता शिखा|"
उस रोज प्रखर शिखा को न जाने कब तक एकटक देखता रहा था। उसकी मासूमियत पर शिखा भी खुद को बोलने से रोक नहीं पाई थी|
"ओह! प्रखर कैसे हो तुम...बिल्कुल नादान निश्चल...जो तुम्हारा दिल महसूस करता गया....तुम उसी सुख के पीछे-पीछे होते गए। पर मुझे तो उस वक़्त कुछ भी ऐसा अहसास नही हुआ। मैं तो साइकिल रोकने वाले वाकये के बाद भाइयों से कहकर निश्चिंत हो गई थी कि अब कुछ भी ऐसा नही होगा। पर तुम तो.."
तब प्रखर उससे बोला था...
"हां मैं तो रात-दिन तुमको ही सोचता था शिखा। बारहवीं के इम्तेहान के बाद मेरी पूरे दो महीने की छुट्टी इसी बैचेनी में गुज़री कि तुम पढ़ने के लिए किस कॉलेज में जाओगी। मैं तुमको देख पाऊंगा या नही। पर कॉलेज के पहले दिन ही जब तुमको कॉलेज के प्रवेश-द्वार पर देखा मेरा आंखें और दिल फिर से भगवान से प्रार्थना करने लग गए थे..
'हे भगवान शिखा को मेरे सेक्शन में कर देना।'
“जानती हो शिखा पहले दिन जब क्लास में तुमको देखा तो..खुशी से पागल हो गया। तभी बदहवास-सा एकटक देखता रहा था तुमको..मुझे माफ़ कर देना। मुझे लगता था जैसे ही तुम पर से मेरी निगाह हटेगी, तुम कहीं खो जाओगी। दो महीने की गर्मियों की छुट्टियों में तुमको न देख पाने की कमी ने तुम्हारे लिए अथाह प्यार महसूस करवा दिया था।..अक्सर कमी हमको बहुत कुछ महसूस करवा देती है शिखा|"
प्रखर की बातें शिखा को कहीं से भी झूठ नही लग रही थी। बहुत कुछ सच में गुज़रा हुआ उन बातों की गवाही दे रहा था।
प्रखर की बातें सुनकर उसने कहा था..
"प्रखर! इतना प्यार करते हो तुम मुझ को....जिन बातों को मैं कभी सोच भी नही पाई| तुम मुझे अपने साथ लेकर कहां से कहां तक आ गए।...अब क्या सोचा है तुमने।"
प्रखर की बातें सुनने के बाद शिखा उसके प्रेम के साथ बहने लगी थी। उसको अपने बहुत मजबूत होने पर बहुत गुमान था कि वो कभी भी किसी की बातों पर यूं ही विश्वास नही करेगी। पर उस दिन के बाद उसको न जाने क्या हो गया था। प्रखर की कही हुई बातें सीधी-सीधी उसके दिल तक पहुंचकर दिमाग पर छाने लगी थी।
"क्या करूंगा?....अपनी पढ़ाई और तुमको प्यार करने के अलावा कुछ और सोच ही नही पाया अभी तक। आगे भी यही करूंगा। सिविल सर्विसेज में जाना चाहता हूं। अगर तुम मुझे अपनाओगी तो तुमसे ही शादी करूंगा। बहुत खुशियां देना चाहता हूं तुमको शिखा। मेरे साथ रहोगी न।.."
"हाँ प्रखर...”
प्रखर के साथ होने पर शिखा का दिमाग काम करना बंद कर देता था|। जैसे प्रखर उसको अपने साथ-साथ बहाकर ले जा रहा था वो बहती चली जा रही थी। दोनों कॉलेज की लाइब्रेरी में घंटों बैठने लगे थे। घण्टों एक दूसरे के साथ पढ़ते और एक दूसरे को पत्र लिखकर अपनी भावनाओं का आदान-प्रदान करते।
शिखा तो पोस्ट ग्रेजुएशन के बाद पीएचडी करके टीचिंग में जाना चाहती थी। जैसे ही दोनो का ग्रेजुएशन हुआ| प्रखर ने सिविल सर्विसेज का एग्जाम क्लियर कर लिया और आगे की पढ़ाई और ट्रेनिंग के लिए चला गया।
पर शिखा का ग्रेजुएशन करते ही पापा के अचानक गुज़र जाने से उसकी सब प्लानिंग फेल हो गई। उसकी पी.एच.डी. की सोच डिब्बे में बंद रह गई| उसने बी. एड करके टीचिंग करना शुरू कर दिया।
शिखा के बड़े भाई ने अपने प्रिय मित्र समीर के साथ शिखा की शादी का प्रस्ताव माँ के सामने रख दिया। मां ने भी समीर को देखा हुआ था| उन्होंने भी समीर और शिखा के रिश्ते पर मोहर लगा दी। शिखा से किसी ने भी कुछ पूछने की जरूरत नही समझी। उस समय बेटियों से पूछता ही कौन था। वो तो गाय के जैसे जिस खूंटे से बांधों....बंध जाती थी।
घर में बहुत रुपया-पैसा नहीं था| सो समीर के साथ उसका विवाह बहुत सादगी से हुआ था। जो माँ और भाई ने किया उसको शिखा ने स्वीकार कर अपनी ज़िंदगी शुरू की| विवाह के साथ शिखा के अंदर प्रखर का प्यार एक कसक बनकर बैठ गया| हर जगह हर बात में वो प्रखर को खोजती थी। शायद यही वजह थी शिखा अपने वैवाहिक जीवन के शुरुवात के दिनों में कभी संतुष्टि नही खोज पाई।
आज प्रखर के घर से लौटने के बाद न जाने कब तक शिखा अतीत के पन्ने उलट-पलट करती रही| फिर कब बातों को दोहराते-याद करते सो गई उसको नहीं पता|
दूसरी ओर शिखा से मिलने के बाद प्रखर की भी सारी रात जागते कटी। कितने ख्याल शिखा के जाने के बाद अतीत के दरवाजे खोलकर प्रखर के सामने खड़े हो गए। शिखा और प्रखर के बीच ग्रेजुएशन के बाद कुछ समय तक संपर्क रहा। जैसे ही शिखा के बड़े भाई ने उसकी शादी की भविष्यवाणी की प्रखर के दिमाग में शिखा का आखिरी फ़ोन और उससे हुई बातें सचित्र चलने लगी..
"प्रखर! भैया ने मेरी शादी अपने सबसे प्रिय मित्र के साथ तय कर दी है। उनको लगता है....समीर मुझे बेहद खुश रख पाएंगे क्यों कि वो भैया के बचपन के मित्र हैं। यह रिश्ता समीर की मां ने भेजा था क्यों कि उन्होंने मुझे बचपन से देखा है। उनको अपने बड़े बेटे के लिए मेरा ही रिश्ता चाहिए। उन्होंने मां को भी मना लिया है प्रखर.....पर मैं क्या चाहती हूं किसी ने नही पूछा। तुम अभी आकर मेरे से शादी नही कर सकते प्रखर। मैं कैसे रहूंगी तुम्हारे बिना..बताओ न..”
बोलते-बोलते जब शिखा रोने लगी तब उसकी भी सिसकियां बंध गई थी| तब वो बोला था..
"मेरी ट्रेनिंग चल रही है शिखा..कैसे आऊंगा। किसी तरह यह सब एक साल के लिए रुकवा दो। मैं जितनी जल्दी होगा आने की कोशिश करता हूँ।"
"नही मानेंगे यह लोग। समीर के पापा डेथ बेड पर है। वो जाने से पहले अपने बेटे के सिर पर सेहरा देखना चाहते है। मैंने भैया को बोला था पर वो कुछ नही सुनना चाहते। उनको तो लगता है यह रिश्ता घर चल के आया है तो ठुकराना बेबकूफी होगी।"..
"हिम्मत करो और बोल दो कि तुम मुझे प्यार करती हो|..तुम कहो तो... मैं बात करूं"…
"नही प्रखर यह लोग अपना मानस बना चुके हैं। समीर हमारी जाति के भी हैं। इनको कुछ समझ नही आएगा। तुम अगर आ जाते तो हम कोर्ट मेर्रिज कर लेते।"
"मैं कैसे आ पाऊंगा अभी|”.. बोलकर उसकी आवाज भी भर्रा गई थी|
उस रोज प्रखर को एक बार फिर शिखा के वापस खो जाने के दर्द ने घेर लिया था। उसको हमेशा ही डर लगा रहता था कि कभी शिखा उससे दूर न हो जाए| पर निमित्त को शायद यही मंजूर था| उसके बाद प्रखर ने कभी शिखा को फ़ोन नही किया और शिखा ने प्रखर को। दोनों ने ही जीवन से हर तरह का समझौता करने की कोशिश की|
क्रमश..