यादों का सफर - 3 VANDANA VANI SINGH द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • You Are My Choice - 40

    आकाश श्रेया के बेड के पास एक डेस्क पे बैठा। "यू शुड रेस्ट। ह...

  • True Love

    Hello everyone this is a short story so, please give me rati...

  • मुक्त - भाग 3

    --------मुक्त -----(3)        खुशक हवा का चलना शुरू था... आज...

  • Krick और Nakchadi - 1

    ये एक ऐसी प्रेम कहानी है जो साथ, समर्पण और त्याग की मसाल काय...

  • आई कैन सी यू - 51

    कहानी में अब तक हम ने देखा के रोवन लूसी को अस्पताल ले गया था...

श्रेणी
शेयर करे

यादों का सफर - 3

मैं ने मना कर दिया कि आप अब ना आए मै चली जाऊंगी कुछ बहाने बना कर साथ जाना बन्द किया और बस से जाने लगी ।
कहते है प्यार अंधा होता है, मै प्यार में आंधी हुई मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था, एसा महसूस होने लगा कि इस दुनिया में इतना प्यार कोई नहीं कर सकता है, कोई मेरा जैसा नहीं है, हमारे विचार भी साझा होने लगे ।
उन विचारों से एसा प्रतीत हो की हम एक जैसे हैं एसा अक्सर होता जब हम किसी के प्यार ममें होते हैं तो एसा लगता कि हम एक जैसे हैं।
क्या हम वास्तव में एक जैसे थे??!
इस रिश्ते को हम दोनों को निभाना था लेकिन क्यो मेरी कभी हिम्मत नहीं की मै पूछ लूं कोई और भी उनकी जिंदगी में या सिर्फ मै ही, अभी दो महीने हुए प्यार में हम रात रात भर बात करते जैसे बात खतम नही होती, पूरा दिन मेसेज और रात को कॉल। कई बार एसा होता उसके घर के सामने ही उसकी खड़ा कर मै बाते करती रहती।
कभी कोई ऐतराज नहीं किया नवाज़ ने मेरी सरी खुशियों का ठिकाना हो गया वो, और उसे मानो मेरी आवाज से ही ऊर्जा मिलती।
मेरी एक अलग दुनिया बन गई हर काम मेरा साथ ही होता मुझे एसा लगता वो दुनिया की सबसे अच्छी पसंद है, किसी बात पर मै अगर नाराज हो जाऊ तो मानो उनकी दुनिया बिखर गई हो, जान सिर्फ कहता नहीं जैसे मै उसकी सांसों में बस्ती हूं। मुझे और कुछ नहीं चाहिए था मै खुश थी एक ऐसे इंसान के साथ जिसके नाम से ज्यादा कुछ नहीं जानती थी मैं, और पूरी दुनिया खुशी महसूस होती जब भी हम मिलते एक अलग सी ऊर्जा प्रवाह होती।लेकिन अभी तक मुझे नहीं पता था कि वो किस जाति के और नाम से कुछ अनुमान नहीं लगाया था उस वक़्त प्यार में उस नवजात शिशु की तरह थी जिसे चलना तो है ु पर चलने की तरकीब से वाकिब बिल्कुल नहीं है ना पूछा और ना ही बताया गया।
लेकिन मेरी तरफ से प्यार में तब भी कोई कमी नहीं थी।
बहुत दिनों बाद मै ने एक कागज पर लिखा देखा नवाज़ अहमद फिर मुझे समझ आया कि मुस्लिम है, हमारी जाति ही नहीं धर्म भी अलग थे , लेकिन क्या हो सकता तब तक तो बहुत देर हो चुकी थी और मै पूरी तरह से प्यार में हो चुकी थी । मुझे हर गलती पर्दा डालने की आदत सी हो गई थी , कभी कोई गलती महसूस हो झगड़े लेकिन जानू बड़ी खामोशी से सह कर मुझे मना के सारा कुछ सही कर दता , मुझे भी ुउसकी इस कदर आदत हो गई थी मेरा शरीर तो था मेरे पास लेकिन मेरी सांस ुउसमें ुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुु ुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुएक लम्हा मुझे बड़े अच्छे से याद है, हम साथ में में काफी पी रहे थे उसकी आंखो से जो सुरूर था वो मेरी नजरो से होते हुए पूरे शरीर में परवाह हो रहा था एसा लगता जैसे वो मुझे छू रहा हो अपनी नजरें बन्द करके मै ने कैद कर लिया अपने जहन में, वहा से हम और करीब आ गए हम कभी सर्व जनिक जगहों में बेसालूक नहीं हुए ना ही जानू मुझे कभी किसी की तरह की माग की हमारा रिश्ता जैसे बस रूह का हो,। सब कुछ ठीक चल रहा है, जैसे हम हर एक लम्हे को दिल से जी रहे हो और बस जीय जा रहे कभी मुझे किसी बात की शिकायत भी हो जाए तो जानू जब वो शिकायत दूर ना हो जाए तब सांसे भी नहीं भरता। ये सब की आदत हो गई थी उसके आगे कोई दूसरी दुनिया नहीं थी मेरी। हर दूसरे तीसरे दिन हम मिलते और जब प्यार सहन करने से ज्यादा हो जाता तो झगड़ने लगते।
जानू ने कभी मुझे तुम नहीं कहा सामने से भी कभी ना मेसेज ना कॉल पर।
जब भी कॉल हो तो जानू ही पहली बार में ही बोलती और वो जान मेरी सांसे जैसे पूरी हो गई हो।
मैं इस रिश्ते में इतना खो जाऊंगी की कुछ सुध ना रहेगी पहला प्यार था मेरा वो सारे एहसास मेरे लिए पहली बार के थे! पहली बर किसी ने मुझे इतने करीब करके I love you कहा था,
पहली बार किसी ने अपनी बाहों में भरा था पहली बार हम किसी के होटों को पकड़े उनके रसो को पी रहे थे सबकुछ पहली बार था।
पहले प्यार का एहसास एसा होता है जिसमें हम खोए हुए सारी दुनिया को भूल जाते थे।
कुछ लमहे......

किसी बात से झगड़ा बढ़ जाने के कारण जानू मेरे से बात करना बन्द कर दिया ,
उसके दिन भी बात ना करने से मेरे सारे ख़्वाब एक पल में चूर हो जाते जितनी बार उस से झगड़ा होता एसा लगता उतनी बार टूट गई हूं

मुझे आज भी वो दिन याद है, मै कॉलेज से आते वक़्त जानू के दफ्तर पहुंच गई और जाते ही पूछा कि क्यो फोन नहीं उठाया जा रहा है।
नवाज़_एसा नहीं है मै देख नहीं पाया!
नवाज़_कहा गई थी कॉलेज?
देविका_, आपको क्या आपको तो फोन उठाना नहीं है।
नवाज़_अपनी आंखे नीचे करते हुए बस आप यही सोचना।
देविका_ठीक है आप काम कर लो मै जा रही हूं।
नवाज़_रुको इतनी जल्दी में क्यो?
देविका_बस मुझे जाना , थकान सी हो गई है,!
नवाज़_ सांसे भरते हुए (जान )
देविका_जानू आप से मुझे बात नहीं करनी मुझे जाना है।
नवाज़- अच्छा माफ़ कर दो और रुक जाओ रूम खुलवा देता आप रेस्ट कर लो! परेशान ना हो आप अकेले होंगी वहा कोई आने वाला नहीं है!
मैं अपने दिल उतना भरोसा नहीं करती जितना जानू पे और क्यो ना रुकती मै दिलो जान से चाहती जो हूं इस लम्हे को शब्दों में पिरो पाना उतना आसान नहीं था जितना मै एहसास कर सकती हूं! पहली बार हम किसी के साथ बन्द कमरे , पूरे कमरे में अंधेरा और मै उसकी रोशनी हो गई सोफ़ा पर जानू और मै उसी के पास के बेड पर लेट गई ! उस समय मुझ से इतना कहा गया कि कमरे में लाइट है लेकिन कुछ खराबी है मै ने कहा कोई बात नहीं! और हम आंखे बन्द कर लिए एक आवाज कान में जान मै ने आवाज में जानू , आंखे खोलो जान , आखे खोल कर देखा तो जानू पूरी तरह से काप रहा था मैं ने कहा क्या हुआ आपको , कुछ बोले बिना ही हम दोनों गले लग गए, जानू के गले लगते ही मै भूल गई खुद को!
एक आवाज बस सुनाई दे रही थी मेरी जान
लेकिन उसके एहसास में जिंदा है
जानू मेरी कमर से हाथ हटाओ
मैं ने पकड़ा नहीं कैसे हताऊ
कमर से अपनी तरफ खींचा और और करीब ले आए मेरे लिए एहसास नए थे लेकिन सबसे प्यारे।
इक आवाज अहह की निकली और वो मुझ में समा गया
जैसे हजारों रंग श्रंगार हुआ मेरा पूरा बदन खिल उठा महक गया मेरा रोम रोम
प्रेम को स्पर्श जैसे एक जिंदगी दे गया जितना करीब हो सकते थे उतना करीब हुए।
लेकिन होश आने में एसा लगा ये सब क्या हुआ ये क्यो हुआ
नवाज़ भी इस बात से डर गया कि उसकी जान कहीं दूर ना हो जाए ।
अगले भाग में जानेंगे हम नवाज़ को।