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यादों का सफ़र - 2

इसी तरह हमरी कभी कभी बात होने लगी।
कहते है बात करने से ही बात बड़ जाती है, और एसा ही कुछ होने लगा, एक ऐसा इन्सान जिसको मै जानती भी नहीं इक नाम जिसे पूरा भी ना बताया गया है फिर भी मुझे एक भरोसा होता जा रहा है, ये ऐसा समय है जिसमें मै खुद को भी समझ नहीं पा रही, जब भी सोचती की इस बार बात की जब कुछ पूछ लूंगी कोन कहा से है? लेकिन जब होती है ना जाने मै कुछ भी पूछ नहीं पाती।
मुझे जरूरत भी क्या ज्यादा कुछ पूछने की क्या करूंगी पूछ कर । इस सोच से मैंने कुछ पूछना ज़रूरी
अचानक से मेरा फोन ना उठाना और किसी भी मेसेज का कोई जवाब मुझे ये बात हजम नहीं हो रही थी मुझे लगा क्या हो गया एसा जो मुझ से बात नहीं की गई कोई दुर्घटना तो नहीं हो गई ,इस तरह से पर एक महीने होने कोई ख़बर नहीं है मुझे ये समझ में आया कि सयद बात करने में कोई भाव नहीं है और ज्यादा इस तरह से सोचना अच्छा नहीं होगा , हम भी कॉल करना बन्द कर दिया अचानक से कॉल आया बताया गया की हम बाहर गए थे और फोन घर था मुझे पता था कि कुछ झूठ बोला जा रहा है लेकिन मै ने अपनी तरफ से कुछ नहीं कहा, और फिर से कभी कभी बात होने लगी तरह से पूरा इक वर्ष होने हमरी कभी कभी बात होती है।
मेरे साथ इस बीच दुर्घटना हुई जिसमें मेरे हाथ में चोट आई और काफी दिनों तक प्लास्टर रहा जब मैंने बताया कि मुझे चोट लगी है।
अब बात यहां तक आ गई कि कभी तो मिल लो आप, मेरा ऐसा कोई इरादा नहींथा ना ही एसी कोई जरूरत थी। बस एक इंसानियत का रिश्ता चल रहा था हमारे बीच जब हम मिले तो मुझ से कहा गया कि सब पूछते है जो भी देखता है कि कौन है साथ में मै क्या बताऊं,
ये बात मानो मुझे झझकोर गई, मै नींद में जैसे होश आ गया हो मै घर आई ये बात मेरे जहन में बस गई कुछ समझ ना आया कि क्या जवाब दिया जा सकता बहुत देर बाद जवाब दिया हमारे बीच इंसनियत से ज्यादा कुछ नहीं हो सकता है, और आप को जो ठीक लगे कर सकते है।
बात करना बन्द नहीं हुआ फिर मेरे हर फैसेले में जानू हा ही करता था इस तरह से हमे इक दूसरे से प्यार हो गया ।
पहली बार प्यार का एहसास तब हुआ जब मुझे कॉलेज जाने में देर हो जाती जब ये बात नवाज़ को बताई कि मै रोज देर से पहुंचती हूं।
नवाज़ ने कहा कि आपको ऐतराज़ ना हो तो मै आप को कॉलेज छोड़ सकते है, मुझे हमेसा से इतना भरोसा था
मैं ने हा कर दी , कोहरे का मौसम , नवाज़ मुझे रोज़ सुबह उठ कर लेने आते और कॉलेज छोड़ कर वापस आ जाते
दो दिन हुआ एसा तीसरे दिन जब मुझे लेकर छोड़ आए काॅलेज में पूरा दिन मै सोचती रही सिर्फ नवाज़ कर बारे क्यो की उस सुबह कॉलेज के बाहर साथ में चाय पिएं थे वो सारा जैसे आंखो के सामने दोहरा रहा हो बार बार
मुझे एहसास हो गया मुझे प्यार हो गया।
लेकिन मै कहना नहीं चाहती थी कि प्यार है, मुझे अब अपनी जिंदगी से कुछ नहीं चाहिए और ना किसी को आने की अनुमति थी , लेकिन दिल कब मानता है।
मेरा अपने ही दिल से झगड़ने लगी और समझती हूं ये गलत है।
क्यो की नवाज़ मुझ से उम्र पढ़ाई में सब में बड़े है।
क्या होगा ये अलगे भाग में पढ़ेंगे।
आप एसी तरह साथ दीजिए मुझे हिम्मत मिलती है।

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