गवाक्ष - 15 Pranava Bharti द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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गवाक्ष - 15

गवाक्ष

15=

“वृक्षों के पत्तों से लहलहाती सरसराहट, खुले आकाश में बादलों का इधर से उधर तैरना, पशुओं के रंभाने की आवाज़ें इन सबमें तुम्हें संगीत सुनाई दे रहा है?"
"कुछ आवाज़ें तो सुनाई देती हैं ---"कॉस्मॉस ने उत्तर दिया
यह सब तो वह सदा से सुनता ही आया है, इसमें नया क्या है?उसने मन में सोचा।
" आपको इनमें संगीत सुनाई देता है?"उसने आश्चर्य से पूछा ।
"केवल सुनाई ही नहीं देता, भीतर महसूस होता है। "
नृत्यांगना ने अपने ह्रदय पर हाथ रखकर नेत्र मूँद लिए थे। वह किसी अलौकिक आनंद में मग्न हो गई थी ।
"अच्छा --क्या तुम्हें सामने के वृक्ष पर बैठे पक्षियों का कलरव सुनाई नहीं दे रहा है?

"हूँ---बाहर की सभी आवाज़ें सुनाई दे रही हैं। मैंने बताया था आपको । "
"ध्यान से सुनो, इनमें तुम्हें संगीत सुनाई देगा !” निधी ने नेत्र मूंदे हुए ही कहा ।
कॉस्मॉस संगीत को कान लगाकर सुनने लगा। जैसे किसी भारी वस्तु को उचकने के लिए स्वयं को तैयार कर रहा हो|

" म्युज़िक यानि संगीत सुनने के लिए इतना ज़ोर लगाने की आवश्यकता नहीं होती"सत्यनिधि उसके संगीत सुनने के प्रयत्न को देखकर एक बच्चे की भाँति मासूमियत से खिलखिला उठी । किसी झरने के ढलान पर से फिसलते जल की भाँति वह अपने आप ही नैसर्गिक रूप में आत्मा में उतरता चला जाता है, वह हमें बाँध लेता है, एक मोहपाश में, एक कोमल अहसास में, एक प्रेम-जाल में, एक स्निग्धता में । नेत्र मूंदे हुए कला -सुन्दरी ने कहा, वह कहीं खो गई थी|

"आपने कुछ और भी कहा था ---कुछ म्यू --क्या उसका अर्थ संगीत ही है?"कॉस्मॉस ने झिझकते हुए पूछा ।
" हाँ, बिलकुल, संगीत ही म्युज़िक है । संगीत हिन्दीका शब्द है तो म्युज़िक ग्रीक भाषा के मौसिकी शब्द से निकला है। मौसिकी का अर्थ होता है ---गीत को सुव्यवस्थित रूप में लयबद्ध करना’ पहले मनुष्य ने प्रकृति में भरे हुए संगीत को समझा, उसके पश्चात उसे सुव्यवस्थित रूप दिया, लयबद्ध किया । "
" इसे लयबद्ध भी किया जाता है?" वह तो गवाक्ष में ऎसी ध्वनियाँ सदा से सुनता आया है । कितनी नई मनोरंजक बातें पता चलती हैं, इसीलिए वह कभी-कभी अपने दंड को भूलकर इन बातों में खो जाता है।
“एक बात बताइए सच्ची--सच्ची !इस सबके पीछे कोई बात अथवा कोई कहानी अवश्य होगी ! " दूत की उत्सुकता चरम-सीमा पर थी, एक बालक की भाँति !
" हाँ, वो तो है ----तुम जानते हो कॉस्मॉस हमारे भारत में आध्यात्म सर्वोपरि है । "
"आध्यात्म ----अब यह क्या है?वह उलझता जा रहा था।
" अध्यात्म यानि स्वयं को जानने का प्रयास, यह एक मौलिक चिंतन है। इसे जानने, समझने के लिए हमें हमारे वेद-पुराण मार्ग-दर्शन देते हैं। इस बारे में हमारे मनीषियों व चिंतकों की भिन्न-भिन्न मान्यताएँ हैं। कुछ मानते हैं जब किसी ने ईश्वर को देखा नहीं है तब उनके बारे में जो कथाएँ चर्चित हैं, वे केवल काल्पनिक हैं, अर्थात वे कपोल-कल्पित हैं ।
"कपोल-कल्पित----?कॉस्मॉस व्यग्रता छिपाने में असमर्थ था । भूल गया था वह यहाँ क्यों आया था। कितनी नई बातें! उलझ ही तो जाता था, उन सबमें !
उसका मुख आश्चर्य से खुला था और वह टकटकी लगाए सुन्दरी नृत्यांगना सत्यनिधी की बातों में निमग्न हो गया था।
" हाँ, इसका अर्थ है अपने आप कल्पना करके गढ़ी गई कहानियाँ ---किसी ने भी ब्रह्मा, विष्णु, महेश को नहीं देखा है किन्तु उनके बारे में बहुत सी कहानियाँ, बातें जानने में आती हैं | राम, कृष्ण, ईसा, नानक आदि ने धरती पर महापुरुषों के रूप में जन्म लिया। उन्हें उस समय के लोगों ने देखा, उस समय उनके विचारों के बारे में लिखा गया। कुछ बातें एक मुख से दूसरों के पास पहुंची, फिर आगे और फिर आगे । जितने लोगों के पास बातें पहुंचीं, उनमें उनके विचार व कल्पनाएं भी जुड़ती चली गईं । इस प्रकार समाज में भिन्न भिन्न प्रकार से कथाओं का विस्तार होता चला गया । ”

"यहाँ इतने सारे मंदिर हैं, किसी ने देखा ही नहीं है भगवानों को तो उनकी तस्वीरें कैसे बनीं? कॉस्मॉस की रूचि बढ़ती जा रही थी ।
" मैंने बताया न, कल्पना से हमने उनकी तस्वीरें गढ़ लीं, उनके सुन्दर आकार बना लिए और उन्हें मंदिरों में प्रतिष्ठित करके उनकी अर्चना, वंदना करने लगे । ये तस्वीरें व मूर्तियाँ प्रतीक हैं जिनको वास्तव में प्रेरणा प्राप्त करने के लिए बनाया गया होगा परन्तु बाद में ऐसे वर्ग की स्थापना हुई जिसने प्रेरणा लेने के स्थान पर पाखंड व अन्धविश्वास फ़ैलाने प्रारंभ कर दिए जिससे समाज में शान्ति व व्यवस्था के स्थान पर भय, अहं व पाखंडों के कारण बँटवारे होने लगे और फिर अव्यवस्था फैलने लगी। "निधि कुछ पल रुकी फिर उसने कॉस्मॉस को उदाहरण देकर समझाने की चेष्टा की।

“---जैसे -- अभी धरती पर तुमसे कोई परिचित नहीं है, तुम्हें कोई नहीं जानता । मैं यदि किसीको तुम्हारे बारे बताऊँगी, तुम कैसे दिखते हो?क्या करते हो तो वे तुम्हारी कल्पना ही करेंगे न ? बस वे अपनी अपनी कल्पना व सोच के अनुसार तुम्हारी तस्वीर या मूर्ति बना लेंगे और तुम धरती पर विख्यात हो जाओगे---" वह पल भर मुस्कुराई फिर बोली ;

"हो सकता है, तुम्हें ही भगवान मानने लगें लोग ?"
" न--न --आप ऐसे बिलकुल मत करियेगा । मैं तो वैसे ही पीड़ित हूँ, अपना सौंपा गया कार्य ही पूर्ण नहीं कर पाता । यदि मेरे स्वामी को ज्ञात हो गया तब न जाने मेरे साथ
क्या किया जाएगा!!"कॉस्मॉस घबरा गया ।
" चिंता मत करो, मैं ऐसा कुछ नहीं करूंगी । मुझे अच्छा लग रहा है तुम नए ज्ञान के, नया जानने के प्रति उत्सुक हो । "

क्रमश..