गवाक्ष - 14 Pranava Bharti द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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गवाक्ष - 14

गवाक्ष

14

निधी के चेहरे पर प्रश्न पसरे हुए थे, ह्रदय की धड़कन तीव्र होती जा रही थी। कुछेक पलों पूर्व वह अपनी साधना में लीन थी और अब---एक उफ़नती सी लहर उसे भीतर से असहज कर रही थी । परिस्थिति का प्रभाव व्यक्ति के मन और तन पर कितना अद्भुत रूप से पड़ता है ! वह खीज भी रही थी, अपना उत्तर प्राप्त करने के लिए उद्वेलित भी थी और उसके समक्ष प्रस्तुत ‘रूपसी बाला’ केवल मंद -मंद मुस्कुराए जा रही थी । निधी की साधना का समय अभी शेष था और वह न जाने किस उलझन में
उलझ गई थी ।
"अपना नाम बताओ और अपने यहाँ आने का कारण भी -"
" मैं कॉस्मॉस हूँ ---"कन्या ने विनम्र स्वर में उत्तर दिया ।
"कॉस्मॉस, यह नाम है ?कैसा नाम है?" नर्तकी और भी उलझन में पड़ गई।
"आप बहुत सुन्दर नृत्य करती हैं, बहुत सुन्दर गाती हैं । " सत्यनिधि के स्वेदपूर्ण प्रदीप्त मुख-मंडल पर कुछ क्रोध के चिन्ह प्रगट हुए ।
'क्या यह मुझे मूर्ख बनाना चाहती है?अथवा कोई जादूगरनी अपना जादू चलाने आ गई है?' निधि ने सोचा|
"सत्य कह रही हूँ, इस पृथ्वी पर मैंने अभी तक इतना सुन्दर न तो स्वर ही सुना, न ही नृत्य देखा । "उसने अपने सुन्दर नेत्र झपकाए ।
"यह कहने के लिए तुमने मेरे कक्ष में चोरी से प्रवेश किया है क्या?" वह खीजने लगी। अभी उसकी साधना का समय शेष था, उसमें यह व्यवधान !
"अभी तुम यहाँ से जाओ, इस प्रकार किसी के व्यक्तिगत स्थान में प्रवेश करना अनुशासनहीनता है। तुम यदि नृत्य या संगीत सीखना चाहती हो तो मेरी अकादमी में प्रवेश ले सकती हो। वहाँ गुरुओं से शिक्षा ग्रहण कर सकती हो। क्या नाम बताया था तुमने ---जो भी हो । अभी जाओ मेरा समय बहुत बहुमूल्य है । "
" जी, मेरा नाम कॉस्मॉस है --- धरती पर सबका समय बहुमूल्य होता है क्या?" उसने बड़े भोलेपन से पूछा |

"हाँ, समय तो बहुमूल्य है ही। कितना समय है हमारे पास?जीवन बहुत छोटा सा है और तुम समय नष्ट कर
रही हो। जानती हो? गया हुआ समय कभी लौटकर नहीं आता! "
" जी, जानती हूँ । मैं अपना समय नष्ट नहीं कर रही हूँ । मैं अपना कार्य कर रही हूँ । "
"परन्तु तुम हो कौन और यहाँ क्या कर रही हो?"
"मैं कॉस्मॉस हूँ, आपको अपने साथ ले जाने के लिए आया हूँ"
"कॉस्मॉस! सौंदर्य से परिपूर्ण इतनी सुन्दर नवयुवती का नाम कॉस्मॉस !किस मूर्ख ने रखा है? "
निधी ने हँसते हुए उससे पूछा, वह सहज होती जा रही थी ।
" हम सब एक से ही होते हैं और हम सबके नाम भी कॉस्मॉस ही हैं ---सच !"युवती ने निधी को विश्वास
दिलाते हुए कहा ।
" मेरी बुद्धि में तुम्हारी बेतुकी बातें नहीं आ रही हैं । " कुछ रुककर मुस्कुराते हुए उसने फिर पूछा ;
"सबका मतलब ?समूह में जन्म लेते हो क्या ?और मुझे ले जाने आई हो---कहाँ?"
"जी हाँ----"
"कहाँ और क्यों? और ये तुम्हारे हाथ में क्या है?"
"मैं कॉस्मॉस हूँ, मेरे स्वामी यमराज ने मुझे आपके पास भेजा है । "अब वह उसके समक्ष आ खड़ी हुई ।
"क्या मैं अपने वास्तविक रूप में आ जाऊँ?" कन्या ने कुछ सहमते हुए पूछा ।
"तुम मुझे पागल कर दोगी, मेरी आज की साधना में विध्न डालकर तुमने मुझे कुंठित कर दिया है । चलो, दिखाओ अपना वास्तविक रूप। तुम इतनी प्यारी सी कन्या हो अन्यथा इस प्रकार मेरी आज्ञा के बिना अनाधिकार प्रवेश के आरोप में मैं तुम्हें पुलिस को दे देती । "
एक सुगंधित झौंका लहराया, क्षण भर के लिए नर्तकी के नेत्र मुंद गए, जब खुले तब उसके समक्ष युवती के स्थान पर एक आकर्षक युवक था, निधी बौखला गई।
युवक ने आगे बढ़कर माँ शारदा व नटराज के बीच अपना समय-यंत्र स्थापित कर दिया ।
" यह समय-यंत्र है । जब इसे स्थापित कर दिया जाता है तब उस व्यक्ति के पास उतना ही समय रह जाता है जितनी देर में इस यंत्र की रेती ऊपर से नीचे के भाग में आती है । मैंने इसे स्थापित कर दिया है। अब आपके पास अधिक समय नहीं हैं । आप मेरे साथ चलने के लिए तैयार हो जाइए। "
"तुम जो भी हो, मैं तुम्हारे साथ नहीं जा सकती। मेरेविद्यालय को, मेरे छात्र-छात्राओं को अभी मेरी बहुत
आवश्यकता है। मेरी साधना अभी शेष है। अपनी साधनाको हमें सौ प्रतिशत देना होता है, साधना को बीच में छोड़देने से उसका महत्व समाप्त हो जाता है। "
"परन्तु मेरे स्वामी की आज्ञा ---??उसने संक्षिप्त में गवाक्ष तथा स्वामी की आज्ञा पालन करने की समस्त
कथा सुना दी ।
" मैं अपने कर्तव्य से बँधा हुआ हूँ, अपने स्वामी की आज्ञा न पालन करने का दुःसाहस नहीं कर सकता। पहले
ही मैं दंड पा रहा हूँ । "
"तुम जो भी हो अपने स्वामी से जाकर मेरी अधूरी साधना की बात बता दो। मैं जानती हूँ वे मेरी स्थिति समझ जाएंगे ---और अब मुझे क्षमा करो, साधना करने दो मुझे, समय आने पर चली जाऊँगी । "
'कमाल की स्त्री है!अपने आने और जाने का समय भी स्वयं सुनिश्चित करने का दावा कर रही है !' दूत ने उसकी ओर ताका फिर समय-यंत्र पर दृष्टि डाली जिसकी सारी रेती नीचे के भाग में आ चुकी थी।
"अब जाओ ---" निधि ने द्वार की ओर इंगित किया ।
"जब आपके पास तक आया ही हूँ तब कम से कम नृत्य व संगीत के बारे में कुछ जान तो लूँ । "उसने रूँआसे स्वर में अपने यंत्र को देखते हुए कहा ।
" मैं जानती हूँ एक न एक दिन मुझे जाना ही है लेकिन साधना बीच में छोड़कर जाने पर ईश्वर भी प्रसन्न नहीं होंगे। तुम अपना कार्य अधूरा छोड़कर जाते हो तो दंडित होते हो न, उसी प्रकार मैं भी अपनी साधना अधूरी छोड़ दूंगी तो दंडित की जाऊँगी न?" उसने भोले कॉस्मॉस की संवेदनाओं पर चोट की ।
"एक बात बताओ, तुम ज्योति बिंदु बने क्यों झूम रहे थे?"
"अच्छा लग रहा था --" कॉस्मॉस ने सीधा सा उत्तर दिया|
समय-यंत्र की सारी रेती नीचे आ ही चुकी थी। अब तो बात ही करनी थी ---
"क्यों अच्छा लग रहा था ?"
संभवत: कॉस्मॉस को इसका कोई उत्तर नहीं सूझा अत: वह मौन बना रहा ।
"मैं बताती हूँ, अच्छा इसलिए लग रहा था कि कलाआनन्ददायिनी है, यह वह साधना है जो आत्मा से परमात्मा को जोड़ती है इसीलिए उससे अपरिचित होतेहुए भी तुम्हें उसमें आनंद प्राप्त हो रहा था । मैं इस कलाकी साधिका हूँ, तुमने मेरे आनंद में विघ्न डाला, यह पाप है। “
लीजिए अब पाप-पुण्य की परिभाषा जाननी होगी। उसने बहुत से पृथ्वीवासियों से पाप -पुण्य
शब्द सुने थे परन्तु अभी तक किसीसे चर्चा नहीं हुई थी। बेचारे कॉस्मॉस को कुछ सूझ नहीं रहा था । वह बस सोच रहा था उसे ही इस प्रकार के लोग क्यों मिलते हैं जो जीवन की गति जानते, समझते हैं, मृत्यु की शाश्वतता से परिचित हैं, उससे भयभीत भी नहीं हैं फिर भी उसके साथ चलना नहीं चाहते । सचमुच उसने साधना भंग करने का अपराध किया था? इस पृथ्वीलोक पर पाप-पुण्य की परिभाषा भी कुछ भिन्न है जिसे वह नहीं समझ पा रहा है !
“यह कला आखिर है क्या?"
"तुमने मेरा बहुत समय नष्ट कर दिया है फिर भी सुनो --"
"सत्यनिधि ने कॉस्मॉस के चेहरे पर दृष्टिपात किया, उसके नेत्रों में उत्सुकता देखकर वह मुस्कुराई --
" जानते हो प्रकृति क्या है?"निधि ने आगे बढ़कर कक्ष के झरोखे के पट खोल दिए। शीतल पवन की मृदु छुअन से कॉस्मॉस सिहर उठा । बाहर वृक्ष पर पक्षियों के झुण्ड चहचहा रहे थे, प्रकृति की मनमोहिनी छटा ने निधी केमुख पर स्निग्ध आनंद की लहर फैला दी ।

क्रमश..