solahavan sal - 10 books and stories free download online pdf in Hindi

सोलहवाँ साल (10)

उपन्यास

सोलहवाँ साल

रामगोपाल भावुक

सम्पर्क सूत्र-

कमलेश्वर कॉलोनी (डबरा) भवभूति नगर, जिला ग्वालियर म.प्र. 475110

मो 0 -09425715707 Email:- tiwariramgopal5@gmai.com

भाग दस

मंडप के नीचे से पंडिंत जी ने कहलवा भेजा, मुहूर्त का समय हो गया हैं, जल्दी से लड़के को लेकर मण्डप के नीचे आयें। दूल्हे का जीजा दूल्हे को लेकर आ गया। दमयन्ती को भी मंडप के नीचे बैठाया गया। जो दमयन्ती स्टेज पर मुँह खोले फोटो खिचा रही थी । वही अब धूधंट डाले बैठी थी । इस समय मेरी दृष्टि आवरण को भेदकर दमयन्ती के चेहरे पर गयी । मंद मंद मुस्कराती वह आनंन्द के सागर में गोते लगा रही थी ।

पंडित जी मंत्रोच्चार करने लगे। मैं ध्यान से कार्यक्रम देखने लगी। पंडित जी ने वर वधु से गणेश जी का पूजन कराया। उसके बरोना का पूजन हुआ । बरोना - भीम के पौत्र धटोत्कच के पुत्र वर्वरीक ने मृत्यु के वरदान मांगा था कि मेरा विवाह हो । श्री कृष्ण भगवान ने उससे कहा था कि तुम्हारा विवाह तो सम्भव नहीं हैं किन्तु वैदिक संस्कृति को मानने बाले विवाह से पूर्व वरवधू सबसे पहले तुम्हारा पूजन किया करेंगे । तभी से यह परम्परा चली आ रही है वर्वरीक की यही कथा तो कहीं थी बसन्त पटेल सर ने कक्षा में ।

हमारी परम्पराओं में कहीं न कहीं कुछ गहरे सन्दर्भ जुडे हैं । हम हैं कि बिना सेाचे समझे उनका पालन करते चले जा रहे हैं। मैं इस द्वन्द में खोई थी कि वर वधु के द्वारा अग्नि की परिक्रमा की जाने लगी ।

‘अग्नि की परिक्रमा शपथ पत्र है। सात पाँच वचनों का आदान-प्रदान, विवाह के अवसर पर एक स्वस्थ्य परम्परा है ।’ पंडितजी कह रहे थे ।

दूल्हा-दुल्हन को विवाह के कार्यक्रम से कुछ विराम मिला। अंजना भी विवाह में आयी थी । मजाक करते हुए अंजना ने दूल्हे से प्रश्न किया-‘‘ दीदी के साथ हमें भी ले चलोगे ।’’

वे अंजना के चेहरे की ओर देखते हुए बोले - हम ले तो चलेंगे किन्तु फिर यहाँ वापस नहीं आने देगें ।’’

बातों में कितनी मिठास थी । मुझे लगा -दमयन्ती सचमुच बहुत भाग्य शाली है जो उसे ऐसा समझदार पति मिला है ।

स्वस्थ्य हँसी मजाक का आनन्द ही कुछ और होता है। इससे एक दूसरे के प्रति भावनात्मक लगाव हो जाता है।

विवाह के कार्यक्रमों के पश्चात दूल्हा जनवासे में चला गया। मैंने शेष रात्रि दमयन्ती के साथ रहकर व्यतीत की। हम दोनों एक ही बिस्तर पर लेट गयीं । मैं दमयन्ती से बातें करने के लिये व्यग्र हो रही थी। मैं उसके पास लेटते ही फुसफुसाई - ‘‘अब तुम्हें कैसा लग रहा है ?’’

वह बोली -‘‘ इसका उत्तर तो सुगंधा‘तुम्हें उसी समय ठीक ढ़ंग से पता लगेगा जब तुम दुलहन बनांेगी ।’’

मैंने कहा-‘‘ मेरा विवाह करने का कोई इरादा नहीं है।’’

वह बोली-‘‘तो क्या जिन्दगी भर क्वाँरी रहेगी। तेरे पापा तुझे क्वाँरी रहने देगें।’’

‘‘देख दम्मी मौसी, मैंने इस विषय में अभी विचार नहीं किया। अभी पढ़ने लिखने का समय है ।’’

यह सुनकर वह चुप रह गई ।

दूसरे दिन विदाई के हम घर लौट आये ।

कुछ दिनों फुटपाथ पर बिकने बाला पीले पन्नी से मढ़ा एक उपन्यास हाथ लगा जो कि पापा के कमरे में रखा था। मम्मी ने मुझे उसे पढ़ते हुए देख लिया। वे बोली-‘‘तुम्हें ऐसे उपन्यास नहीं पढ़ना चाहिए। पढ़ने लिखने बाले बच्चों को उपन्यासों से दूर रहना चाहिए ।’’

मैंने उनका उपदेश सुनकर उसे पढ़ना बन्दकर दिया। मम्मी से प्रश्न किया -‘‘मम्मी लोग ऐसे उपन्यास लिखते क्यों हैं ?’’

‘‘ समय काटने के उद्धेश्य से तुम्हारे पापा इसे खरीद कर लाये हैं।’’

मैंने अगला प्रश्न उगला-‘‘मम्मी इनके लिखने बाले समाज को क्या देना चाहते है ?’’

मम्मी प्रश्न का मुँह मेरी तरफ करके बोली-‘‘इस प्रश्न का उत्तर तुम क्या सोचती हो ?’’

‘‘मैं सोचती हूँ, कि अब समय के साथ सोच बदलना चाहिए, जैसे कि पहले जो गजलें लिखी जाती थी, वे प्रेम प्रसंगों के इर्द गिर्द ही होती थीं।..... किन्तु अब गजलों के माध्यम से व्यवस्था बदलने की बात कही जाती है ।

‘‘बात उपन्यास की चल रही थी, यहाँ गजलें कहाँ से आ गई ! ’’

‘‘मम्मी, गजलों की तरह,उपन्यास लिखने के तरीके में परिवर्तन आया है।’’

यह सुनकर उन्हें मजाक सूझा बोली-‘‘जब तू उपन्यास लिखे तो उद्देश्य पूर्ण लिखना। अभी तो इन्टर का परिणाम आने बाला है। मैं समझ गई हूँ मेरी बेटी ,कुछ नया करके दिखाना चाहती है।’’

यह कहते हुए मम्मी ने वह उपन्यास मेरे हाथ से छीन लिया । ............ और मेरे देखते देखते जलते हुए चूल्हे के हबाले कर दिया। उसे जलते हुए देखकर मैं सोचने लगी -‘‘मम्मी ने इस तरह का आज तक जितना पढ़ा है, उसे इस उपन्यास के साथ भस्म कर दिया ।’’

इस घटना के मैंने देखा, मम्मी गम्भीर रहने लगी। मुझे लगने लगा - मम्मी कह रही है कि जब तू उपन्यास लिखे तो ................।

अब मैं सोचती हूँ-मम्मी ने उपन्यास के सम्बन्ध में व्यंग्य की भाषा में ही सही, जो सन्देश दिया है क्या कभी उसकी पूर्ति कर पाऊँगी ? आज सुसप्त पड़ा वही स्थाई भाव इस कृति के माध्यम से समाने आ रहा है ।

सुमन को जब मौका मिलता मेरी कहानी सुनने लगती।

मैंने अनुभव किया कि इन दिनों पता नहीं किस आचरण के कारण, नानी की नजर मेरे ऊपर रहने लगीं। सुबह होते ही बड़बड़ाने लगतीं-“अरी सुगंधा उठ नल आ गये नल चले गये तो हैण्डपम्प से पानी लाना पड़ेगा।“

मैं पानी भरने के काम से निवृता हुई कि रोज की तरह नानी ने दूसरा आदेश प्रसारित किया -‘‘खड़ी खड़ी इधर उधर ताकने लगती है। जल्दी से झाड़ू पोंछा लगा ले।’’

मैं ताकने का अर्थ समझते हुये भी झाड़ू पोंछा लगाने लग जाती। जब घर के काम से निवृत होती, किताबें उठा लेती। यह देखकर नानी मुझे पुचकारते हुये कहतीं -‘‘बिटिया, तेरी पढ़ाई तो सरल है। बस खाना बनाने में मदद और कर दे। फिर सारे दिन पढ़ते रहना। मैं भी क्या करूँ ? रोटियाँ बेलने में मेरे हाथ काँपते हैं।

मुझे खाना बनाने में नानी का सहयोग करना पढ़ता।

नानी ने सीख दी -‘‘बिटिया, अभी से घर के काम में मदद करती रहोगी तो अभ्यास बना रहेगा। में तकलीफ नहीं होती ।’’

एक दिन की बात है। मैं विद्यालय से देर से घर लौटी। नानी व्यग्रता से मेरा इंतजार कर रही थीं। नानी का संबाद सुनाई पड़ा-‘‘आज बड़ी देर में छुट्टी हुई है। जाने कहाँ घूम फिर कर आ रही है ?’’

मैं समझ गयी नानी मेरे चरित्र पर संदेह कर रही हैं। उधार देना अनिवार्य था। इसलिय कहा-‘‘ आज कॉलेज में कुलसचिव महोदय आये थे।’’कुलसचिव की बात सुनकर वे चुप रह गयी थीं।

एक दिन की बात हैं, महाविद्यालय के अधिकांश प्रोफेसर छुट्टी पर थे।

खाली समय देखकर नीरू बोली-‘‘क्यों सुगंधा तुम्हें कौन सी अभिनेत्री अच्छी लगती है।’’

मैंने उलट प्रश्न किया-‘‘ और तुम्हें ?’’

नीरू बोली -‘‘मुझे ड्रीम गर्ल हेमा मालिनी अच्छी लगती है।’’

मुझे अपनी पसंद की बात कहना पड़ी-‘‘शबाना आजमी एक भावप्रवण अभिनेत्री है।’’

नन्दनी रस्तोगी बोली-‘‘इन अभिनेत्रियों की बातें छोड़ो। इस समय हमारे नगर के सभी टॉकीजों में पुरानी फिल्में चल रहीं है।’’

नीरू ने प्रश्न किया-‘‘नन्दनी साफ साफ कहो, तुम चाहती क्या हो ?’’

नन्दनी ने उत्तर दिया-‘‘मैं सोचती हूँ कि कक्षा की सहेलियों के साथ फिल्म देखी जाये।’’

सुनन्दा ने मुझसे पूछा -‘‘सुगंधा तुम्हें कौन सी फिल्म पसंद है ?’’

मैंने कहा-‘‘मुझसे मत पूछो, तुम्हें कौन सी पसंद है ?’’

वह बोली-‘‘ मैं तो शोले फिल्म देखना चाहती हूँ।’’

मैं सोच में पड़ गयी इसकी बात कैसे टालूं ? सभी फिल्म देखने के लिये दबाव डालने लगीं। मुझे भी अपनी स्वीकृति देनी पड़ी। कक्षा में सुनंदा ने घोषणा कर दी -‘‘ कल दिन के तीन बजे फिल्म देखने चलना है। घर से बहाना बना कर आना पड़ेगा।’’

अपने अपने मन में सभी नये नये बहाने सोचने लगीं।

मैंने भी बहाना सोच लिया। मैंने दीदी को सुनाकर, नानी से कहा -‘‘कल हमारे कॉलेज में पढ़ाई नहीं होगी। सास्कृतिक कार्यक्रमों की तैयारी होगी।’’

नानी शायद इसी प्रतिक्षा में थीं कि मुझे कब छुट्टी मिलती है ? वे बोलीं-‘‘फिर स्कूल जाकर क्या करेगी ?’’

मैंने बात संभालने के लिये उधार दिया-‘‘ हाजिरी तो लगेगी कै नहीं।’’

‘‘ एक दिन की हाजिरी से क्या होता है ?’’

‘‘ कैसे नहीं होता ? हाजिरी कम हो गई तो परीक्षा में नहीं बैठ पाऊँगी।’’

00000

अन्य रसप्रद विकल्प

शेयर करे

NEW REALESED