पूर्ण-विराम से पहले....!!!
5.
अपने बेटे की बातों को साझा करते-करते प्रखर के चेहरे पर आने वाला उत्साह उसे ढेरों खुशी दे रहा था| प्रखर ने बहुत सारी बातें प्रणय की साझा की|
कैसे प्रणय पहले शादी करने के लिए तैयार ही नहीं था| उसको लगता था माँ को गए हुए अभी बहुत कम दिन हुए हैं .. बात-बात पर प्रीति को याद करके रोता था|.....उसको बहुत समझाया|
मेरे बहुत दबाब डालने पर शादी के लिए तैयार हुआ|.. उसने प्रिया को कॉलेज समय से ही पसंद किया हुआ था| पिछले साल ही प्रणय और प्रिया की शादी की| प्रिया भी बहुत प्यारी बच्ची है| उससे मिलने के बाद लगा ही नहीं कि वो दूसरे घर से आई है| प्रणय के अलावा उसके भी फोन आते रहते है|
खैर अब तुम बताओ ‘तुम दोनों का बेटा कैसा है?’ पूछकर प्रखर ने शिखा और समीर की तरफ देखा|
तब शिखा बोली..
‘बहुत अच्छा लग रहा है तुम्हारी फॅमिली की बातें सुनकर प्रखर....पहले अपनी बातें पूरी करो फिर हमारे बेटे की भी सुन लेना|’..
समीर ने भी शिखा की बात पर सिर हिलाकर सहमति दी|
प्रखर ने अपनी बात जारी रखी....
दिसम्बर में जब बच्चे आएंगे मैं तुम दोनों को जरूर मिलवाऊँगा| प्रणय और प्रिया चाहतें हैं कि अब मैं उनके पास ही हमेशा के लिए शिफ्ट हो जाऊँ| पर तुम दोनों से मिलने के बाद अब मैं नहीं जाना चाहता| खैर जल्द ही तुम्हारी भी फेस टाइम पर बात करवाऊँगा| बोलकर प्रखर चुप हो गया|
प्रखर की आत्मीयता समीर और शिखा के मन को बहुत छू रही थी| दोनों को प्रणय पर बहुत लाड़ आ रहा था क्यों कि अपने बेटे सार्थक से दोनों खुश नहीं थे| समीर अपने दुख-दर्द कभी भी किसी के साथ नहीं बांटते थे पर आज न जाने कैसे प्रखर से बोल पड़े..
यार प्रखर तुम्हारी बातें सुनकर हमको भी प्रणय पर बहुत लाड़ आ रहा है| ..ऐसा सुख हमारे भाग्य में नहीं था| पहले तो संतान भाग्य में नहीं थी| सात साल अकेले ही रहे| शिखा का बहुत मन था हमारे घर में बच्चा भी हो| सारे मेडिकल टेस्ट करवाए पर कहीं कोई कमी नहीं निकली| बस किस्मत में बच्चा होना नहीं लिखा था| सो अनाथाश्रम से सार्थक को गोद लिया ..हम दोनों ने उसे खूब लाड़ प्यार-दुलार किया| जो हमसे बेस्ट हो सकता था वही देने की कोशिश की| पर उसका व्यवहार समझ नहीं आता| जो हमारे बीच बॉन्ड होना चाहिए वो महसूस नहीं होता|
फिर समीर ने संक्षिप्त में सभी बातों को प्रखर के साथ साझा किया..ज्यों-ज्यों समीर अपनी बातें साझा कर रहे थे.. शिखा की आँखों में नमी तैरने लगी थी| समीर पहली ही मीटिंग में प्रखर के इतने करीब आ गए थे कि अपना भी दर्द बताने लगे| प्रखर को भी शिखा-समीर का दर्द अपना ही लगा| शिखा की आँखों में अनायास ही आए आँसू प्रखर को चोट पहुंचा रहे थे|
उस दिन के बाद तीनों के बीच जो बातों का सिलसिला चल पड़ा वो फिर नहीं थमा| समीर और प्रखर तो आज पहली बार मिले थे पर उन दोनों को भी आपस में बहुत आत्मीयता महसूस हुई|
समीर की बात सुनकर प्रखर ने दोनों से कहा..
हम सभी के हिस्से के सुख-दुख हैं| पर अब हम साथ हैं न.. एक दूसरे का साथ निभाने की कोशिश करेंगे| परेशान मत हो| हाँ मैं कहाँ तक बता चुका था.. वही से आगे बढ़ता हूँ|..
आज से दो साल पहले प्रीति और मैं अपनी कार से कानपुर से लखनऊ जा रहे थे| मेरा सरकारी काम था| सो एक दिन रुक कर मुझे वापस कानपुर आना था| उस समय मेरी पोस्टिंग कानपुर में थी| प्रीति की कुछ फ़्रेंड्स लखनऊ में थी| सो उसने चलने की इच्छा जाहिर की|
मुझे प्रीति का साथ बहुत प्रिय था| मैं जब भी कहीं सरकारी काम से जाता.. प्रीति से जरूर पूछ लेता था| चूँकि हमारा बेटा भी कई सालों से घर के बाहर था और घर पर काका के होने से कोई चिंता नहीं थी| तो सफ़र में प्रीति का साथ मिलने से मुझे हमेशा ही बहुत खुशी होती थी|
जब कभी लंबी ट्रैवलिंग होती हम दोनों पूरा रास्ता गजलें सुनकर गुज़ार देते| वो हमारे लिए क्वालिटी टाइम होता था| हमको अगले दिन ही लौटना था| कानपुर से लखनऊ बहुत लंबी ट्रैवलिंग भी नहीं थी| पर जिस दिन हम लौटे अचानक प्रीति को कार में बैठकर आने में बेहद तकलीफ़ हुई|
अपनी बात बताते-बताते प्रखर कहीं खो गया|
तभी समीर की नज़र प्रखर पर पड़ी तो उसको आभास हुआ कि वो कुछ परेशान हो रहा था| तब शिखा ने उसको टोकते हुए कहा..
“अगर मन खराब हो रहा है प्रखर....तो कभी और बता देना..अभी रहने दो|”
एक उम्र के बाद कुछ दर्द बहुत अपने से लगने लगते हैं| शिखा कुछ ऐसा ही प्रखर के दर्द में महसूस करने लगी थी| यही सच प्रखर से भी जुड़ गया था|
स्वतः घटित होने वाला कितना निश्चल और मासूम होता है| यह प्रेम करने वाले ही समझ सकते हैं|
बहुत देर हो जाने से तीनों ने ही निर्णय लिया कि अब वो पहले डिनर करते हैं फिर जैसा प्रखर का मन होगा वही करेंगे....क्यों कि प्रीति की बीमारी से जुड़ी हुई बात चल रही थी| सो थोड़ा ब्रेक लेने का सभी ने सोचा|
बात करते-करते रात के नौ बज चुके थे| प्रखर के आग्रह पर तीनों उठकर डिनर के लिए टेबल पर आए तो शिखा ने प्रखर से पूछा..
“कुछ रसोई में काम करवाना हो तो बताओ प्रखर| मैं करवा देती हूँ|” उसकी बात पर हँसता हुआ प्रखर बोला..
“मैं तुम्हारा बनाया हुआ खाना किसी रोज जरूर खाऊँगा शिखा..वो भी तुम लोग के यहाँ| मैंने तो अपनी किचन में कभी नहीं गया| यह तो सब काका ही संभालते हैं| प्रीति ने इनको इतना अच्छा ट्रेंड किया है कि कुछ भी देखने की जरूरत नहीं होती| आज आप दोनों को भी इनसे मिलवाता हूँ|”
प्रखर ने अपने दोनों सेवकों को आवाज़ देकर बुलाया और उनसे मिलवाया| पिछले बीस सालों से वो उसके यहाँ काम कर रहे थे| प्रसाद काका और उनकी धर्मपत्नी राजों| दोनों ने ही बहुत सलीके से समीर और शिखा से नमस्ते की और फिर वापस अपने रसोई के काम में जुट गए| खाना बहुत अच्छा बना था| तीनों ने बहुत प्रेम से खाना खाया| खाने के अंत में जब काका मिठाई लेकर आए तो शिखा ने उनको रुपये दिए| तो वो बोले..
“आप दोनों साहब के दोस्त हैं.....रुपये लेकर हम गुनाहगार नहीं बनना चाहते| साहब का दिया हुआ बहुत है हमारे पास| आपको हमारा बनाया हुआ खाना पसंद आया.....हमें बहुत खुशी हुई मेम साहिब| आप दोनों फिर से आइए| हम और भी बहुत कुछ बना कर खिलाएंगे|” कुछ ऐसा बोलकर काका अंदर चले गए| शिखा को काका और काकी की बातों में बहुत आत्मीयता नज़र आई|
हम सबके खाने के बाद उन दोनों ने मिलकर हमारे बर्तन उठाए और टेबल साफ़ की| तब तक हम तीनों ड्रॉइंग रूम में आकर बैठ गए थे| खाना खाते-खाते काफ़ी देर हो गई थी| तभी शिखा ने समीर को कहा.....
“आप की दवाइयों का वक़्त हो गया है| अगर सबको बैठना है तो मैं घर से दवाइयाँ लेकर आ जाती हूँ|”
तब प्रखर ने पूछा....‘क्या हुआ है तुमको समीर..’
तब समीर ने ही बताया कि उसको तीन साल पहले एक बार चेस्ट-पैन हुआ था| चेक-अप करवाने पर कुछ खास नहीं निकला था| बस डॉक्टर ने कुछ मल्टी-विटेमिन और एक दवाई खाने को बोल दिया था| साथ ही अपनी दिनचर्या को नियमित करने को कहा था| बढ़ती उम्र के साथ शिखा को भी डॉक्टर ने मल्टी-विटेमिन और कैल्शियम लेने को बोला था| उम्र के साथ कुछ न कुछ सप्लीमेंट हर इंसान को चाहिए ही होते हैं| समीर की बातें सुनकर प्रखर ने कहा..
“समीर तुमने कितनी प्यारी बात बोली.....उम्र के साथ कुछ सप्लीमेंट्स तो चाहिए ही होते है| आज इस बात पर कुछ न कुछ लिख ही जाएगा| खैर हमको अपनी बातों को यही विराम देना चाहिए| समीर तुमको दवाइयाँ भी लेनी है| कल शाम को मैं आता हूँ| साथ में चाय पीयेंगे क्यों कि अब बात शुरू की तो इतनी जल्दी खत्म नहीं होगी| प्रीति की लंबी बीमारी और उसका जाना मेरे जीवन का सबसे टफ टाइम था| मैं चाहता हूँ तसल्ली से सुनाऊँ|”..
बोलकर प्रखर शांत हो गया|
समीर और शिखा भी सहमति में सिर हिलाकर उठ खड़े हुए और विदा लेने से पहले तीनों ने एक दूसरे के नंबर लिए और घर आ गए| आज साथ-साथ गुजारा हुआ वक़्त तीनों को बहुत कुछ दे गया था| जिसको तीनों ही मन ही मन में महसूस कर रहे थे|
क्रमश..