बात ना करो जात की - 2 Maya द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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बात ना करो जात की - 2

तभी चाची की नजर मुझ पर पड़ती है और कहती अच्छा बिटिया जरा बांस वाली को खाना देते आना मैं जाती हूं बास बलि के हाथों में चुपचाप

खाना की थाली रख देती हूं!

बाहसबली को देखकर ऐसा लगता है कि बेचारा भूख के मारे तड़प रहा है कब से आंखें लगाए इंतजार में राह जोह रहा था !

कुछ झण के बाद चाची आती है मैं समझ पाती कि उसे पहले वह चिलाउट अरे बिटिया तूने क्या कर दिया ,उसको खाना इसके बरतन में देनी थी ना कि अपने बर्तन में तूने बर्तन खराब करती हाय मेरी मेरे धर्म भ्रष्ट हो गए!

मैं कुछ बोल हीं पाते कि उससे पहले उन्होंने मेरे हाथ की खींचते हुए नानी के पास लेकर आ गई, क्या बताएं छाया की नानी नहलाओ पहले इनको

पहले तो नानी समझ नहीं पाए लेकिन जो पूरी वाक्य पता चला नानी मुझ पर ही बिगड़ पड़ी!

चिल्लाते हुए बोली जाकर पहले नहा नहीं तो घर में घुसने नहीं दूंगी !

मजबूर नहीं चाहते हुए भी मुझे नहाना पड़ा !

मैंने भी गुस्से से बोली ऐसे कैसे नहीं घुसने दोगी ऐसे भी क्या कर दिया मैंने उसको खाना ही तो दिया है वह भी इंसान है उसके भी दो हाथ है दो पैर है तुम्हारे खेतों में जब वो काम करता है तब तो नहीं छुआ जाता तुमसे खालियानो से अनाज ढोकरें तुम्हारे घर पर ले कर आता तब अनाज नहीं छुआ जाता और तो और मैंने कई मर्तबा कई दफा सुहान चाचा को बसवली की भौजाई के साथ नैन मटके लड़ाते देखा है

तब तो कोई छुआ छाप नहीं जाता तब तक किसी की जाति धर्म नहीं जाती!

तब तो तुम्हें घर के सारे अनाज फेकवा देनी चाहिए,

नानी ने मुझे खींचकर थप्पड़ मारी और वह भी चुपचाप चल घर बड़ौ से ऐसे बात करते हैं मैं तुम्हारी मां की मां हूं मुझे मत सिखा!

चुपचाप मैं खड़ी रह गई,

मैं तो अपनी नानी को नहीं समझा पाए लेकिन आप तो समझ सकते हैं ना,

मेरे पास एक ही मार्ग है वह है लेख , अरे अपने लेख के माध्यम से आप लोगों तक पहुंचाना चाहती हु!


भलेही आज सामाजिक बुराइयों को दूर करने के कितने ही अभियान चल रहे हों, लेकिन इसके बावजूद भी समाज में कई ऐसी घटनाएं हो रही हैं जिससे पता चलता है कि कई लोग अभी भी जागरूक नहीं हैं। क्योंकि अभी भी कई जगह रंग और जात-पात में भेदभाव होता है।

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