दोस्ती से परिवार तक - 3 Akash Saxena "Ansh" द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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दोस्ती से परिवार तक - 3

तो पिछले भाग में आपने पढ़ा कि एक अच्छी खासी लड़ाई के बाद या यूँ कहूँ की एक अच्छे खासे मज़ाक के बाद राहुल का मज़ाक उस पर ही उल्टा पड़ जाता है और वो रोने लगता है।और उसे चुप कराने की बजाय मनीष और रिया उसे वहीं रोता छोड़ चल देते हैं कि तभी राहुल का फ़ोन बजता है जो कि गाड़ी में ही पीछे पड़ा होता है।

अब आगे

ये मेरा तो नहीं है शायद तेरा बज रहा है (मनीष अपना फोन देख कर रिया से बोलता है)...-नहीं यार मेरा भी नहीं है ये देख। रिया का फ़ोन देखते ही मनीष तुरंत गाड़ी रोकता है 'ना तेरा ना मेरा फिर किसका बज रहा है देख तो ज़रा' दोनों फ़ोन ढूंढने लग जाते हैं कि रिया की नज़र फ़ोन पर पड़ जाती है 'अबे ये देख ये तो उस गधे का रह गया'..."मनीष-वो छोड़ ये देख उसके पापा का कॉल आ रहा है"....-ओ शिट! अब क्या करें?(रिया अपना सिर पकड़ कर बोलती है) मनीष-करना क्या है चल उस चूतिये को ले ही आते हैं कहीं मर-वर गया तो हमारे ही एल लग जायेंगे(इतने में ही फ़ोन दोबारा बजने लगता है) 'अबे इसकी माँ की.....रिया कंट्रोल!कंट्रोल बेबी। राहुल वहीं की वहीं गाड़ी वापस घुमाता है और वापस उसी रास्ते पर मुड़ता है। रात काफी हो चुकी थी और ऊपर से अंधेरा,चूँकि रिया और मनीष ज़्यादा आगे तक नहीं गए थे तो उन्हें वापस वहाँ पहुंचने में ज़्यादा दर नहीं लगती।
मनीष उस जगह पर गाड़ी रोकता उस से पहले ही अंधेरे को चीरती हुई उसकी गाड़ी की तेज रोशनी किसी पर पड़ती है और पूरी ताकत से मनीष ब्रेक लगा देता है। "अबे पागल है क्या? मेरा सर फूट जाता तो,मेने सीट बेल्ट भी नहीं पहनी(रिया मनीष पर झल्लाते हुए बोलती है)" मनीष एक टक सामने देख रहा होता है...क्या हुआ कुछ बोल कहीं तेरे सर तो नहीं फूट गया?...."सामने देख!" रिया नज़रें घुमाती है और कुछ सेकण्ड्स की चुप्पी के बाद.... ओ माय गॉड! ये! कहीं ये राहुल तो नहीं..."नहीं ऐसा मत बोल ये नहीं हो सकता (मनीष घबरा कर बोलता है)और उनकी आंखें भर आती है रोड पर पड़े किसी सख्श को देखकर जो वहीं खून से लतपत बड़ी बुरी हालत में पड़ा होता है कुछ एक गाड़ियां और लोग उसे देख रहे होते हैं लेकिन कुछ दूरी और खून की वजह से दोनों उसे पहचान नहीं पाते,पर रिया अपने आपको संभालकर मनीष की तरफ देखती है पर वो अभी भी सदमे में ही होता है। रिया मनीष के कंधे पर हाथ रख कर उसे ज़ोर से हिलाती है मनीष!मनीष!....देख क्या रहा है? मनीष चल जल्दी....मनीष अपने आंसूं पोंछता है और गाड़ी से उतर कर कुछ कदम चलता है और तब तक रिया के हाथ मे लगा राहुल का फ़ोन फिर बज उठता है,रिया देखती है और पहीर राहुल के पापा का कॉल होता है फ़ोन न उठा कर रिया नज़रें ऊपर कर एक बार फिर उस सख़्श को देखती है पर शायद अपने दिमाग मे चल रहे बुरे खयालों की वज़ह से वो कुछ सोच समझ नहीं पाती और फ़ोन को गाड़ी में ही फेंक देती है इधर मनीष के शरीर मे से मानो जान ही निकल जाती है .....बस उसकी आँखों से आंसू किसी झरने की तरह बह रहे होते हैं। रिया उसके पास जाती है और भरे गले से-मनीष अबे तू रो क्यूँ रहा है,पहले देख तो ले है कौन? ,ये...मनीष को चुप कराते कराते वो खुद रोने लगती है पर मनीष को खींचते हुए उस तरफ़ बढ़ती है,उस सख्श की तरफ़ जो अब कहीं भीड़ में खो चुका था। रिया- भइया ज़रा हटना! साइड होना ज़रा!.... हटो ना यार! भीड़ में घुसते हुए रिया और मनीष आगे तक पहुंचते हैं तभी मनीष के पैर के नीचे कुछ पड़ता है और वो नीचे की तरफ़ झुकता है लेकिन रिया उस सख्श की झलक देखते ही धक्का सा खाके लड़खड़ा जाती है और भीड़ में ही पीछे हो जाती है,मनीष अपना पैर हटाता है और कांपते हुए हांथों से कोई खून से सनी चीज़ उठा कर साफ करता है और बस उसे देखते देखते उसकी आँखें आँसुओं से भर जाती हैं और रोशनी धुन्दला जाती है...




आगे की कहानी अगले भाग में पढ़िए धन्यवाद।