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थोथा चना बाजे घना

थोथा चना बाजे घना

“हेलो अब्बा !”

“हाँ हसना, क्या बात है ? आज तेरी आव़ाज इतनी भीगी-भीगी-सी क्यों लग रही है ?” सुनते ही हसना का बीसियों साल पुराना दुःख का फोड़ा जो सिर्फ़ उसकी अम्मी जानती थी, फुट पड़ा |वह फफक कर रो पड़ी| उसका रोना सुन फिकरमंद पिता की तरह उसके पिता भी मानो कराह उठे और पूछ बैठे |

“क्या हुआ मेरी बच्ची तुझे; तू इतनी मायूस क्यों हो रही है ?” पिता की हमदर्दी पाकर हसना ने अपना आपा निकाल कर उनके आगे रख दिया |

“इनका नशा करना अब बर्दास्त नहीं होता अब्बूSS |”

“क्या कहा, हसन और नशा !”

“हाँ अब्बा आप सही सुन रहे हैं | अब तो मेरा शोहर मेरे बच्चों के साथ-साथ मुझपर भी हाथ उठाने लगा है|” हसना की बात पर गौर करते हुए उसके पिता ने काफ़ी आगे-पीछे की बातों का हवाला दिया | हमेशा की तरह उसके ससुराल वालों के लिए उसको वही खून खौलाऊ भाषण सुनाये और खूब बुरा-भला सुना कर मौन हो गये | हसना को लगने लगा कि उसके पिता की आव़ाज में दर्द का समुद्र हिलोरें ले रहा हो |

“क्या हुआ अब्बा ? बोलो न ! आप हमेशा कहते थे न ! कि मुझे बताना यदि कुछ इधर-उधर हो इसलिए मैंन आपको बताया | कुछ गलत किया…|” डरते हुए दबी आवाज में उसने कहा |

“ तूने अच्छा किया | बेटी बाप से नहीं कहेगी तो किससे कहेगी| मेरे मालिक ऐसी हौलनाक हरकत |” हसना के पिता जैसे प्रायिश्चित में डूबते चले जा रहे थे | एक पल को तो हसना को भी लगने लगा कि उसके पिता तो उस पर जान छिड़कते हैं |वही है, जो पिता के स्नेह पर शक करती आ रही है |सोचते हुए हसना ने ज़ोर देकर उनसे पूछा | “आप आ रहे हैं न अब्बा ?”

“अरे ! ये भी कोई पूछने की बात है ? मैं बहुत जल्दी आने का इंतजाम करता हूँ |” हसना ने पति को जो नशे में चूर होकर उसकी बगल में सो रहा था,दांत पीसते हुए देखा |

कई दिनों के बाद आज शाम होते होते दरवाज़े पर दस्तक हुई तो हसना ने दौड़कर दरवाज़ा खोला; देखा आगे भाई और उसके पीछे पिता खड़े हैं |

“यूसुफ़ को परेशान क्यों किया |” कुछ अफ़सोस में कुछ ज़ोर से बोल पड़ी |

“अब्बा अकेले सफर नहीं कर सकते थे इसलिए |”

हसना के भाई ने मुँह फुलाते हुए ऐसे कहा जैसे कोई बहुत बेजां काम करने आया हो | चाय पानी के बाद भी जब बात चीत शुरू नहीं हुई तो हसना ने पहले सोचा कि भाई के सामने अपनी बात खोले या नहीं लेकिन दूसरे पल ख्याल आया कि जब पिता उसको लेकर आ ही गये हैं तो अब क्या छिपाना; सोचते ही उसने अपने जीवन के कच्चे चिट्ठे खोने शुरू कर दिए | वे सारे काले अध्याय कह सुनाये जिसकी घुटन ने उसे बीमार बनाकर रख छोड़ा था | इतना सुनने के बाद पिता न बोले लेकिन भाई बोला |

“क्यों जान खाए रहती हो तुम अब्बा की |क्या कमी है तुम्हारे पास; जीजू ने सब तो ऐशो आराम जुटा रखे हैं तुम्हारी लाइफ़ में |”

“हाँ सही कहा तूने | पति के हाथ मार खाने में ऐशो आराम होता है तो तू भी अपनी बीवी को दिया कर |”

“तमीज़ से बात करिये हसना बी |”

“आप से किसने कहा था इसको अपने साथ लाने को अब्बा ?” मेरा दुःख इसे दीखता तो जब ये मेरे साथ रहकर पढ़ रहा था तब ही देख लिया होता |बहन की सलामती चाहने वाले भाई ख़ुदा अलग ही बनाता होगा |” कहते हुए उसने आँखें पोंछ लीं लेकिन युसुफ़ न पसीजा |

“जो किया है उसे भोगो और हमें शांति से रहने दो और वैसे भी अब्बा ने अपनी पूरी ज़िंदगी तकलीफ़ों में ही बिताई है इसलिए इन चोंचुलों को बंद ही रखो |”

अपना दुःख और भाई की कठोर बातें उसके गले में रोड़ा बनकर अटक गई थीं लेकिन उसने भरभराती आवाज में भी अपनी बात कहना ज़ारी रखा |

“मुझे भोग भोगना चाहिए किस बिना पर ? आज वे सारे के सारे वाकिये सुनना चाहती हूँ |अम्मी के साथ बुरा बर्ताव करने पर तेरी बीवी की पीठ नहीं ठोकी तो उससे कुछ बुरा भला भी नहीं कहा | यदि ये गुनाह है तो मैंने ये गुनाह तो सच में किया है | और तो मुझे कुछ ध्यान नहीं आता |”

हसना के भाई को लगा जैसे किसी ने उसको जलती तिल्गिया छुआ दी हो पूरी ताकत से चिल्लाने लगा| जिसे बोलना चाहिए था वह अब होंठ दबाये बैठा था |

“अब्बा ,क्या इसलिए आपको बुलाया था ? मैंने क्या बिगाड़ा है इसका ? बोलो अब्बू, बोलो…|”

“क्या चाहती है तू ? तेरे भाई को घर से निकाल देंSS ? ये तुम मिया-बीवी का जातीय मुआमला है |आपस में सुलझा लो वही अच्छा होगा | वैसे भी बिरादरी वाले मेरे घर पर कान लगाये रहते हैं, जब से युसुफ़ को ऊँची पदवी मिली है |”कहते हुए पिता ने अपने बेटे से चलने को कह दिया | हसना के कानों से धुँवा निकल गया और आँखों से आँसू बरस पड़े लेकिन जाते हुए पिता की पीठ पर वह बुदबुदा पड़ी | “मैं पहले से ही जानती थी आपको अब्बू | चलो आज से आपकी तरफ़ से दिखावा परस्ती के शब्द तो नहीं सुनने पड़ेंगे |”उसने दुपट्टे से अपना मुँह पोंछा और दरवाज़ा खोल दिया |


कल्पना मनोरमा



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