पूर्ण-विराम से पहले....!!! - 2 Pragati Gupta द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • स्वयंवधू - 31

    विनाशकारी जन्मदिन भाग 4दाहिने हाथ ज़ंजीर ने वो काली तरल महाश...

  • प्रेम और युद्ध - 5

    अध्याय 5: आर्या और अर्जुन की यात्रा में एक नए मोड़ की शुरुआत...

  • Krick और Nakchadi - 2

    " कहानी मे अब क्रिक और नकचडी की दोस्ती प्रेम मे बदल गई थी। क...

  • Devil I Hate You - 21

    जिसे सून मिहींर,,,,,,,,रूही को ऊपर से नीचे देखते हुए,,,,,अपन...

  • शोहरत का घमंड - 102

    अपनी मॉम की बाते सुन कर आर्यन को बहुत ही गुस्सा आता है और वो...

श्रेणी
शेयर करे

पूर्ण-विराम से पहले....!!! - 2

पूर्ण-विराम से पहले....!!!

2.

शिखा ने अपनी बातों को कुछ सेकंड के लिए विराम दिया| फिर उसने प्रखर को बताया कि कल रात जब उसे नींद नहीं आ रही थी तब उसने समीर की किताबों वाली अलमारी संभाली| जिस अलमारी को अक्सर समीर ही संभालते थे| वहाँ उसे समीर की दो डायरियाँ मिली| समीर अपनी युवावस्था से ही डायरी लिखते थे|

शिखा ने प्रखर को संक्षिप्त में दोनों डायरियों के बारे में बताया कि पहली डायरी समीर के बचपन और युवावस्था की बहुत सारी घटनाओं को सँजोये हुए है| दूसरी डायरी को पढ़कर लगता है कि समीर ने शादी के बाद इस डायरी को लिखना शुरू किया था....कब-कहाँ समीर ने शिखा के लिए क्या-क्या महसूस किया शुरू के पन्नों में लिखा हुआ है| चूँकि शिखा ने शुरू के पच्चीस-तीस पन्ने ही पढ़े थे...वही उसने प्रखर से साझा किये|

तभी शिखा ने अपनी बात बदलकर प्रखर से कहा....

“काश! इनमें से कुछ प्रतिशत बातें समीर अगर उसे बोल देता तो उसके लिए प्यार और ज़्यादा बढ़ जाता| खैर गया हुआ समय किसका लौटा है|”

“सही कहा शिखा तुमने....पर आम तौर पर पुरुष ऐसे ही होते हैं...महसूस किए को अपने तक ही रखते हैं| जबकि बताना,जताना महसूस करना सभी कुछ प्रेम का मानी है|”

“खैर सभी की अपनी-अपनी सोच है उसी के हिसाब से हम अपनी बात रखते और ज़िंदगी जीते हैं|”

अपनी बात बोलकर शिखा ने समीर के बारे में और भी बातें बताई| समीर के लिखे हुए अकादमिक पेपर्स बहुत जगह पब्लिश होते थे| जब भी वो अपने लिखे हुए पेपर्स पर उससे विचार-विमर्श करता था.. वो अपनी राय जरूर देती थी| पर वो उसके लिए क्या सोचता है वो उसने कभी नहीं बताया| न ही कभी उससे पूछा कि वो अपनी टेबल पर क्या लिखती रहती है| शुरू के काफी समय तक तो उनका बहुत अजनबियों-सा रिश्ता था| कैसे शिखा उसके हर किए हुए में प्रखर को खोजती थी| अपनी सभी बातों को शिखा ने प्रखर से साझा किया..

समीर की बातें बताते-बताते अचानक शिखा प्रखर से बोली..

“न जाने कैसे वो तुम्हारे साथ गुज़रे दो सालों में ही इतना खुल कर बातें करने लगा था| यह मेरे लिए अभी भी रहस्य है| तुमसे हुई बातों के जरिए ही मुझे पता चला वो मेरी छोटी-छोटी बातों को नोट करता था| खैर छोड़ो आज समीर की डायरी पढ़ने के बाद मुझे उसके लिए बहुत कुछ अच्छा-सा महसूस हुआ.. जिसे मैंने एक कविता में रचा| प्रखर तुम सुनना चाहोगे|”

“जरूर सुनाओ शिखा क्यों नहीं सुनना चाहूँगा| तुम्हारी हरेक बात मेरी अपनी है| तुम्हें कभी भी कुछ बताना-सुनाना हो तो हक से बताया करो| यही बातें तो अब हम दोनों की ज़िंदगी हैं| उम्र के इस पड़ाव पर मिलने वाला मेरा सबसे प्रिय दोस्त था समीर| माना कि अब वो नहीं है पर....हम तीनों एक ही तो हैं..”

शिखा ने सहमति में हम्म बोलकर अपनी कविता सुनाना शुरू किया..

तुम से तुम तक.. “न जाने तुम कब से/सहेजते रहे/मेरे शब्दों में मुझे

चुपचाप ही/बग़ैर बताये बग़ैर जताए/कि प्यार करते हो/तुम मुझसे बेहिसाब/ बेवज़ह ही मैं हरदम तुमको/तुम्हारी कही बातों में खोजती रही/और मिले मुझे जब तुम/मुझ से विदा लेने के बाद/तुम्हारी ही डायरी के पन्नों में/ जहाँ-सिर्फ मैं ही मैं बिखरी थी/ असंख्य कहे हुए मेरे शब्दों में/ शीर्षक से लेकर हस्ताक्षर/और लिखी हुई तारीख़ से/जुड़ी बातों तक/पहले पन्ने से आखिरी पन्ने तक../ और स्वयं के हस्ताक्षर कर/ लिख छोड़े थे तुमने/संस्कारों की डोरियों से बंधे/सिर्फ कुछ वाक्य और जिन्हें रुकी हुई साँसों से/पढ़ती गई धुंधली पड़ती/ मेरी अश्रु भरी आंखें/ प्रिय -जानता हूँ अनकहा ही/ रहा मेरा सब कुछ/तुम्हारा होते हुए भी

तुम्हारे लिए/ और तुम ही तुम रही मेरे जीवन में/ और मेरा जीवन रहा बस

'तुम से तुम तक' ही...तुम से तुम तक ही..”

कविता के पूर्ण होते ही शिखा भावुक हो गई और प्रखर से बोली.....

“समीर बहुत प्यारा था प्रखर| कल उसकी डायरी पढ़ते में मुझे उस पर बहुत प्यार आया| बस बोलता बहुत कम था| तुमसे मिलने के बाद काफ़ी कुछ बदल गया था|”

अपनी बात बोलते-बोलते शिखा अब रोने लगी थी| समीर को गए हुए काफ़ी समय हो गया था| पर शिखा के ज़ख्म अभी भरे नहीं थे| शिखा रोते हुए प्रखर से बोली..

‘प्रखर समीर को मुझे इतनी जल्दी छोड़कर नहीं जाना चाहिए था|’

“जाना न जाना हमारे हाथ होता है क्या शिखा| खुद को संभालो| प्रीति ने जाने से पहले मुझ से इज़ाजत ली थी क्या? खैर बहुत सुंदर लिखा है तुमने| तुमको बेहद प्यार करता था समीर| पर तुम्हारे समर्पण के आगे नतमस्तक हूँ शिखा| एक बात पूछूँ तुमसे?” प्रखर ने शिखा से पूछा..

“कभी मेरे लिए भी कोई कविता तुमने लिखी थी क्या? हमेशा तुमको अपना लिखा हुआ ही पढ़ाता रहा| तुम हमेशा मेरी ज़िद के आगे हर तरह से मैनेज करती रही| हमको वक़्त ने बहुत कम समय दिया था| कितना कुछ जानना बाकी रह गया शिखा| खैर दिल से उन सब कविताओं को सुनना चाहता हूँ जो तुमने समीर के लिए लिखी या मेरे लिए| शेष अब यही तो सुनना और सुनाना है| कुछ और भी कहना चाहती हो शिखा तो बोल दो हल्की हो जाओगी..”

“सब बताऊँगी प्रखर.. डायरी यही खत्म नहीं हुई है..बहुत कुछ लिखा हुआ है डायरी में| अभी मैने पढ़ा नहीं है| तुमसे शेयर नहीं करूंगी तो किससे करूंगी| तुम्हारे लिए भी बहुत कुछ लिखा था प्रखर| बेहद प्यार करने लगी थी तुमसे| तुम्हारे जाने के बाद जो कविता रची थी मैंने....सुनोगे.. ”

“शिखा अभी तुमको बोला था न.....पूछा मत करो| जो भी सुनाना हो बस सुना दिया करो|”

“अच्छा कभी नाराज मत होना....बोलकर शिखा ने प्रखर के लिए लिखी हुई कविता “प्रतीक्षारत चिरकाल से”.....को सुनाना शुरू किया...

‘तुम्हारी प्रतीक्षा में बोए/न जाने कितने स्वप्न लड़ियों में/पिरो-पिरो कर मैंने/

कैद करने चाहे आसपास तैरते/न जाने कितने विचार-भाव/पलपल घुमड़ते नयनों के तले/यूँ तो तुम्हारा आना न आना/बन अश्रु मेरी पलकों से/पलपल झांकता रहा/फिर कहीं मन की देहरी पर/विश्वास की-/न जाने कितनी अल्पनाएं उकेरता रहा/भावों से बांध मेरे मन-हृदय को/तेरे आने की आस जगाता रहा/तुम्हारे आगमन की आहटें/परछाइयों-सी पल-पल चलते/चलचित्रों-सी चलती रही/तुम्हारे साथ होने की अनुभूतियां/शून्य में भी रंगों की/एक दुनिया बिखरती रही/तुम्हारे आगमन की आहटें दबे पाँव/मन हृदय में प्रविष्ट होती रही/तुम आओगे अवश्य

नयनों के चिराग़ रोशन कर/आस जगाती रही/इन प्रतीक्षारत क्षणों ने/भावों की सब ऋतुओं से मुझे भिगो दिया/चिरकाल से प्रतीक्षारत मेरे हृदय को/

प्रतीक्षा में प्रेम की/बाट जोहना सिखा दिया.....’

“कितना गहरा और सुंदर लिखती हो शिखा तुम.....आज इस कविता को सुनकर मेरे जी कहता है.....अब मर भी जाऊँ तो मलाल नहीं होगा| मुझ से ज़्यादा खुश किस्मत कौन होगा| अपनी इस कविता को मुझे अपनी हैन्ड-राइटिंग में लिख कर देना| अपनी डायरी में रखूँगा| ताकि जब मन हो पढ़ सकूँ| शिखा वचन दो जब भी मेरा मन होगा और तुम भी अच्छा महसूस कर रही होगी, मुझे मेरी पसंद की कविता सुनाओगी|”

शिखा के सहमति में हम्म करते ही प्रखर खुश हो गया| शिखा के बोलने में गज़ब का जादू था| फोन बंद होने के बाद हमेशा ही वो उसकी बातों में गुम हो जाता था|

“जानते हो प्रखर प्यार इंसान को बहुत कुछ स्वतः ही करने और करवाने के लिए मजबूर करता है|.. समीर से विवाह हो जाने के बाद सोचती थी अपनी गृहस्थि में ही जी लगाऊँगी| पर तुम हर उस जगह आकर मेरे साथ खड़े हो गए जहां पर मैं अकेला महसूस करती थी| तुमने कभी मेरा साथ छोड़ा नहीं|”

बोलते-बोलते ज्यों ही शिखा रुकी....प्रखर ने उससे पूछा..

“तुम मुझे बहुत याद करती होगी.....ऐसा मुझे विश्वास था क्यों कि मैं भी तुमको बहुत याद करता था| मैं तुमसे ज़िद करके जब अपनी मनमानियाँ करवाता था....तुम चुपचाप जल्दी ही मेरी बातों को मान जाती थी| आज उसकी गहराई महसूस हुई| हमारे प्यार को कभी भी कोई नहीं समझ पाएगा| सच कह रहा हूँ न शिखा|”

हम्म..बोलकर शिखा ने अपनी बात आगे बढ़ाई..

“जानते हो प्रखर..मैंने विवाह के बाद तुमको अपना एक अदृश्य मित्र बना लिया था| जिसका नाम मैंने ‘आत्मीय’ रखा था| इस मित्र से मैं घंटों बातें करती थी क्यों कि समीर बहुत कम बोलते थे| मन जब भी उदास होता सारी की सारी उदासी आत्मीय के साथ साझा कर लेती| एक अदृश्य मित्र के रूप में तुम हमेशा मेरे साथ रहे प्रखर| अपनी डायरी में कुछ भी लिखती तो आत्मीय को अपने पास बैठा लेती|”

शिखा फिर प्रखर से बोली मन ठीक होने पर तुमसे बहुत कुछ साझा करना है| समीर को गए हुए अब काफी समय हो गया है| मैंने उसकी डायरी कल से ही पढ़नी शुरू ही की है| समीर के जाने के बाद सब अस्त-व्यस्त है| अभी तो उसके सभी कागज धीरे-धीरे संभाल रही हूँ| पर मेरा मन अभी तक तनिक भी नहीं संभला है|”

तभी प्रखर ने शिखा से कहा....

“तुम ठीक हो शिखा..किसी भी बात को उतना ही सोचना कि बिखरो नहीं| एक बार बिखर गई तो खुद को संभाल नहीं पाओगी तुम| हमेशा साथ हूँ तुम्हारे| कभी खुद को अकेले मत समझना|”

“हाँ मैं ठीक हूँ प्रखर| तुम्हारा साथ तो हमेशा ही मरहम बना है|”

शिखा की इस बात के साथ दोनों ही विचारों में गुम हो गए| दोनों को कभी भी उम्मीद नहीं थी कि रिटायरमेन्ट के बाद इस तरह मिलना होगा| किसने सोचा था| अपने ही शहर आगरा में आकर वो ठहरने का आखिरी पड़ाव चुनेंगे। एक ही शहर, एक ही गली और घर भी अगल-बगल वाले किस्मत ने जुटा दिए थे।

अब तो दोनों को ही लग रहा था..सब ईश्वर के सोचे से ही होता है...इंसान के सोचने से नही होता। दोनों के पास न तो फ़ोन नंबर था न ही कभी मिलने का सोचा| बस हाँ मन ही मन हमेशा सोचते थे कि विदा लेने से पहले बस एक बार अचानक से सामने आ जाएँ....और एक दूसरे को देख लें| तीनो की जन्मस्थली आगरा ही थी।

तभी प्रखर की फोन पर आई आवाज से शिखा की भी सोच की श्रंखला टूटी|

“शिखा! तुम भी हमारे मिलने के संजोग के बारे में सोच रही हो न|” शिखा ने हम्म करके उसकी बात पर मोहर लगाई|

“शिखा मैं भी हर रोज पूजा करने लगा हूँ बिल्कुल तुम्हारी तरह| आजकल तो तुम्हारी हर बात मुझे छूती है| समीर के जाने के बाद मुझे तुम्हारी फिक्र हमेशा सताती है| सारा-सारा दिन तुम्हारी खुशियों के लिए कल्पनाएं और प्रार्थनाएं करता रहता हूँ| कैसे तुमको खुशियां दूँ| दरअसल तुम्हारे लिए मेरा प्रेम कभी छूटा ही नहीं था शिखा|.....”

प्रखर जब कोई बात शुरू करता तो उस बात के आसपास की सभी बातों को भी विस्तृत रूप से बताता| प्रखर की बातों में उसकी पत्नी प्रीति स्वतः ही आ जाती थी| प्रीति से भी उसने खूब प्यार किया क्यों कि वो कहता था.. अगर प्रीति जैसे अच्छे इंसान को वो प्यार नहीं करता तो ईश्वर उसे कभी माफ़ नहीं करते| प्रीति में भी शिखा की तरह कोई कमी नहीं थी| बेहद समर्पित पत्नी थी प्रीति|

प्रखर ने अपनी बात को पूरा करते हुए कहा..

“शिखा! अगर तुम्हारे लिए प्यार कहीं छूट गया होता तो आज भी उसी तरह महसूस नहीं करता| जैसे पहले करता था|”

प्रखर की बातें सुनकर शिखा का जी खूब भर आता था| फोन डिसकनेक्ट होने के बाद भी शिखा घंटों प्रखर की बातों में खोई रहती| खोए हुए प्यार का वापस मिलना सच में न जाने कितनी प्रार्थनाओं के असर से फलीभूत होता है| इसकी तीव्रता प्रखर और शिखा महसूस कर रहे थे| जैसे ही शिखा को अचानक घर के कामों के याद आई उसने प्रखर से कहा..

“कहाँ से बात शुरू हुई थी कहाँ पहुँच गई..खैर कोई बात नहीं अब सवेरे के काम पूरे करती हूँ| तुमसे फिर बात करूंगी प्रखर| अब तो तुम्हारे बगैर दिन पूरा ही नहीं होता|”

दोनों ने वापस फोन करने का बोलकर एक दूसरे से विदा ली| शिखा काम करते-करते चुपचाप उन गुजरे दिनों की बातों-यादों में खोती गई..जो उसके जीवन का अहम हिस्सा थी..

क्रमश..