कर्म पथ पर - 58 Ashish Kumar Trivedi द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

कर्म पथ पर - 58




कर्म पथ पर
Chapter 58




हैमिल्टन दीवान पर मसनद लगाए हुए लेटा था। उसके सामने मेज़ पर शराब की बोतल रखी थी। उसके हाथ में गिलास था। जिसे उसने अभी अभी एक सांस में खाली किया था। उसकी बची हुई एक आँख लाल थी। इस लाली का कारण नशे से अधिक उसका गुस्सा था। वह सामने खड़े महेंद्र को घूर रहा था।
महेंद्र नज़रें झुकाए हुए था। फिर भी वह हैमिल्टन की जलती हुई आँखों को महसूस कर रहा था। वह डर से कांप रहा था। समझ नहीं पा रहा था कि हैमिल्टन अपना गुस्सा कैसे निकालेगा।
हैमिल्टन गुस्से से उबल रहा था। इधर हर बार उसके हाथ सिर्फ हार ही लग रही थी। इससे वह बौखला गया था। समझ नहीं पा रहा था कि करे क्या। इस वक्त उसके सारे गुस्से का केंद्र महेंद्र ही था।
उसने अपने हाथ में पकड़े खाली गिलास को देखा। फिर महेंद्र की तरफ देखा। वह उसकी तरफ कातर निगाहों से देख रहा था। जैसे कह रहा हो कि गलती हो गई। मुझे माफ कर दो। महेंद्र के इस तरह देखने से हैमिल्टन और भी चिढ़ गया। उसने वह खाली गिलास उसकी तरफ फेंका। महेंद्र एक तरफ हट गया। गिलास फर्श पर गिरकर टुकड़े टुकड़े हो गया। हैमिल्टन गुस्से से चिल्लाया,
"यू इंडियंस आर यूज़लेस.... कोई काम ठीक से नहीं कर सकते हो। सिर्फ पैसा चाहिए।"
वह उठकर बैठ गया। बोतल से सीधे कुछ घूंट पीने के बाद बोला,
"किस बेवकूफ को काम सौंपा था ? बातें तो बड़ी बड़ी बता रहे थे। लेकिन वो बेवकूफ दो औरतों से हार गया।"
महेंद्र कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं था। उसने सोंचा था कि चोर है। चुपचाप घर में घुसेगा तीनों को मार कर निकल आएगा। पर वो सचमुच बेवकूफ था। पिस्तौल लेकर गया था। वह भी ठीक से चलाना नहीं जानता था।
हैमिल्टन ने कहा,
"तुम्हारी किस्मत अच्छी है कि वो मर गया। अगर उसने पुलिस से कुछ कह दिया होता तो मुसीबत हो जाती। तुम हो कि बेवकूफ की तरह सब छोड़ कर यहाँ आ गए।"
महेंद्र अपनी गलती समझ रहा था। पर सारे घटनाक्रम से वह इतना परेशान हो गया था कि उसे लगा कि खुद जाकर हैमिल्टन को सब बताना ही सही होगा। वह गोरखपुर से यहाँ आ गया था।
माधुरी का बच जाना हैमिल्टन को अपनी हार का एहसास करा रहा था। माधुरी को पाने के लिए ही तो उसने स्टीफन से उसकी शादी करवाई थी। लेकिन उसके मंसूबों में पानी फिर गया। इसलिए वह माधुरी को मरवा देना चाहता था। पर वह बच गई। वह भी महेंद्र के कारण। अब उसके दिमाग में दूसरी बात आ रही थी। अकेली रह गई माधुरी को वह अपनी रखैल बना कर रखे। उसने कहा,
"आखिरी मौका दे रहा हूँ तुमको। गोरखपुर लौट जाओ। सही मौका देखते ही उस माधुरी को अगवा कर यहाँ ले आओ। वरना तुम्हें ज़िंदा नहीं छोड़ूँगा।"
महेंद्र फौरन वहाँ से निकल गया। हैमिल्टन माधुरी को पाने के सपने देखने लगा।

ट्रेन के डिब्बे में बैठी माधुरी अपनी ज़िंदगी में अचानक आई उथल पुथल के बारे में सोंच रही थी। कैसे एक रात में ही उसकी ज़िंदगी बदल गई। स्टीफन उसको छोड़ कर चला गया।
गोरखपुर छोड़ने से पहले वह स्टीफन की कब्र पर गई थी। कब्र की मिट्टी से उसे स्टीफन की खुशबू आ रही थी। वह बहुत देर तक स्टीफन की कब्र पर बैठी रही। वह वहाँ उससे विदाई लेने गई थी। फिर ना जाने उसे उसकी कब्र पर लौट कर आने का मौका मिलता या ना मिलता।
उसकी कब्र पर बैठी वह देर तक उन लम्हों को याद करती रही जो उसने स्टीफन के साथ बिताए थे। वहाँ से चलते समय उसके आंसू गिर कर कब्र की मिट्टी को नम कर रहे थे। आंसू इस बात की गवाही दे रहे थे कि भले ही उनका रिश्ता कम समय के लिए रहा हो पर स्टीफन ने हमेशा के लिए उसके दिल में अपनी जगह बना ली है। अब कभी कोई उस जगह पर अधिकार नहीं कर पाएगा।
असमान्य सी परिस्थिति में स्टीफन और वो एक साथ आए थे। कई मुश्किलों को झेलते हुए उनका रिश्ता मजबूत हुआ। दोनों एक दूसरे के करीब आए। एक दूसरे के लिए अच्छे दोस्त और जीवनसाथी बने। इधर कुछ महीनों में उनके जीवन में एक ठहराव आया था। उनके बच्चे के आने की खबर उन दोनों को एक दूसरे के और भी नज़दीक ले आई थी।
माधुरी और स्टीफन अक्सर अपने आने वाले बच्चे को लेकर बातें किया करते थे। स्टीफन का कहना था कि चाहे बेटा हो या बेटी वह उसे जीवन की हर खुशी देगा। उसे ऐसी परवरिश देगा कि वह एक अच्छा इंसान बन सके। अपने देश व समाज के काम आ सके।
स्टीफन माधुरी को समझाता था कि बच्चों को सदैव इस तरह पालना चाहिए कि वह ज़िंदगी में आने वाली कठिनाईयों का सामना करना सीख सकें। उन्हें प्यार दुलार देना चाहिए पर इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि वह इतना अधिक ना हो जाए कि बच्चों के विकास में बाधा बने। उन्हें जीवन संघर्षों के लिए तैयार करने के लिए आवश्यक है कि उनके साथ कुछ सख्ती भी बरती जाए।
माधुरी ने अपने पेट पर हाथ फेरा। अब अपने बच्चे की परवरिश की सारी ज़िम्मेदारी उस पर ही थी। उसने तय कर लिया कि वह बच्चे की परवरिश वैसे ही करेगी जैसा स्टीफन चाहता था।
स्टीफन ने उसके जीवन में भी प्रभाव डाला था। जिस वक्त उसकी स्टीफन से शादी हुई थी वह हैमिल्टन के कुकृत्य के कारण जीवन के सबसे बुरे दौर से गुज़र रही थी। उसके अंदर जीने की इच्छा नहीं रह गई थी। वह अपने आप को अपने परिवार के दुखों का कारण मानती थी। ऐसे में एक अजनबी से जबरन शादी हो जाना उसके लिए और भी असहनीय था।
उस कठिन समय में स्टीफन ने उसे अपनेपन का एहसास कराया। बड़े ही धैर्य और प्यार के साथ उसे उस स्थिति से बाहर निकाला। उसके दिल में फिर से जीने की इच्छा पैदा की। जबकी उस समय वह भी कई तकलीफें झेल रहा था। पर उसने कभी भी अपने तकलीफों के लिए उसे दोष नहीं दिया। हमेशा यही कहा कि घबराओ नहीं सब ठीक हो जाएगा।
स्टीफन ने माधुरी को ना सिर्फ उस विकट परिस्थिति से बाहर निकाला था बल्कि उसके जीवन को एक उद्देश्य भी दिया था। अब उसकी ज़िम्मेदारी दोहरी हो गई थी। बच्चे की अच्छी परवरिश करना और खुद को शिक्षित करना।
माधुरी को अब स्टीफन का सपना पूरा करना था। उसे डॉक्टर बनकर एक ऐसा अस्पताल खोलना था जहाँ वह साधनहीन गरीब लोगों का इलाज कर सके। स्टीफन ने उसे अपने गांव में बिताए गए दिनों के बारे में बताया था। उसने बताया था कि गांव के लोग किस तरह सही इलाज ना मिलने के कारण तकलीफें उठाते हैं। इसलिए वह गांव में एक दवाखाना खोलना चाहता था। उसने माधुरी को भी उसमें शामिल करने की बात ‌की थी।
माधुरी की प्राथमिकता अभी अपने गर्भ में पल रहे ‌बच्चे को सुरक्षित जन्म देने की थी। पर बच्चे के जन्म के बाद वह स्टीफन का सपना ज़रूर पूरा करेगी।
माधुरी को भूख लग रही थी। उसने ‌अपने सामान में से खाने का डब्बा निकाला।‌ जाने से पहले रामरती ने उसके लिए सत्तू भरकर पराठे बनाए थे। कहा था कि जल्दी खराब नहीं होंगे। सफर में काम आएंगे। पराठों के साथ रामरती ने अपने हाथ का बनाया हुआ आम का अचार भी रखा था।
पराठे खाते हुए माधुरी रामरती के स्नेह को याद करने लगी।
कल सुबह वह लखनऊ पहुँचने वाली थी। लेकिन पंजाब के लिए ट्रेन शाम को पकड़नी थी। कुछ घंटे उसे लखनऊ में बिताने थे।‌ चारबाग रेलवे स्टेशन के पास स्टीफन के एक जानने वाले मिस्टर बार्न रहते थे। वह बड़े ही सज्जन थे। जब वह लखनऊ में थे तो एक बार ‌स्टीफन उसे उनसे मिलाने ले गया था।
माधुरी ने बीच का समय उनके घर बिताने का फैसला किया था।