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सामाजिक आलेख - खाने की बर्बादी मतलब फिजूल खर्च और प्रदूषण


सामाजिक आलेख - खाने की बर्बादी मतलब फिजूल खर्च और प्रदूषण

देखा गया है कि आजकल मध्यम वर्ग के लोगों की आमदनी भी बढ़ी है और उनकी क्रय क्षमता पहले से कहीं ज्यादा बढ़ी है . सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों के कर्मचारियों के वेतन और अन्य भत्तों में काफी मुनाफा हुआ है जिसके चलते उनके खानपान , रहनसहन के स्तर में इजाफा हुआ है , यह अच्छी बात है . पर इसके साथ ही बर्बादी का सिलसिला भी बढ़ा है . यहाँ हम घर के आम गैजेट्स और डिवाइसेज की बात न कर खाद्य सामग्रियों की बर्बादी पर चर्चा करने जा रहे हैं . इनकी बर्बादी न सिर्फ पैसों की बर्बादी है वरन ये हमारे वातावरण को भी प्रदूषित कर रहे हैं .


हालांकि फ़ूड वेस्टेज की शुरुआत उसके उत्पादन से लेकर भंडारण , वितरण , प्रोसेसिंग, रिटेलिंग और अंत में खपत तक होती है . संयुक्त राष्ट्र के एक अनुमान के अनुसार वैश्विक खाद्य उत्पाद का करीब एक तिहाई भाग बर्बाद होता है . और इस बर्बादी का करीब 70 % खानपान की बर्बादी है जो लैंडफिल ( भराव क्षेत्र ) में जाती है . इसका उचित उपयोग कर विश्व में लाखों भूखों का पेट भरा जा सकता है .


फ़ूड वेस्ट यानि खानपान पर फिजूलखर्ची एक बड़ी समस्या होने जा रही है क्योंकि इसका सीधा प्रतिकूल असर हमारे वातावरण पर भी पड़ रहा है . इस तरह की बर्बादी विकसित देशों में तो ज्यादा होती ही है अब हमारे देश में भी उच्च वर्ग , उच्च मध्यम और कुछ हद तक मध्यम वर्ग में भी देखने को मिलती है .


कुप्रभाव


अधखाये या अनखाये खाद्य सामग्री को हम फेंक देते हैं . वर्ल्ड रिसर्च इंस्टिट्यूट ( WRI ) के एक नवीन आंकड़ें के अनुसार ऐसे वेस्टेज वातावण में 8 % ग्रीन हाउस गैसेज के लिए जिम्मेवार हैं . 25 % कृषि योग्य पानी और कनाडा जैसे विशाल देश की भूमि जैसे साधन , ऐसे वेस्टेड फ़ूड , जो खाने की जरूरत से ज्यादा थे , के उपजाने में व्यर्थ हो जाते हैं .


फ़ूड वेस्ट से काले रंग का विषैला रसायन तरल पदार्थ लीचेट निकल कर मिट्टी में जाता है जिससे मिट्टी के अतिरिक्त अंडरग्राउंड वाटर ( भूमिगत जल ) भी विषैला हो जाता है .

इतना ही नहीं ऐसे फ़ूडवेस्ट वातावरण में अमेरिका और चीन को छोड़ अन्य किसी देश से ज्यादा ग्रीन हाउस गैस उतपन्न कर वातावरण को प्रदूषित करते हैं जो जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेवार है . जमीन के अंदर भी ऐसे खाद्य पदार्थ सड़ कर विषैला गैस मीथेन वातावरण में छोड़ते हैं जो ग्लोबल वार्मिंग और क्लाइमेट चेंज के लिए बुरे हैं .


फ़ूड वेस्ट पर नियंत्रण रख कर हम अपने वातावरण को प्रदूषण से कुछ हद तक बचा ही सकते हैं और साथ में इनके उत्पादन पर होने वाले साधनों - ऊर्जा , खाद , पानी, खेत आदि पर बचत कर सकते हैं . इसके साथ घरेलु खर्चों पर भी लगाम लगा सकते हैं .


फ़ूड वेस्ट एक अंतर्राष्ट्रीय समस्या है . अमेरिकन कृषि विभाग ( USDA ) के अनुसार अमेरिका अपने फ़ूड सप्लाई का लगभग 40 % प्रतिवर्ष बर्बाद करता है . WRI के अनुसार किसान , होटल व रेस्टोरेंट्स , भंडारण , वितरण से लेकर सरकार और अन्य संस्थाएं और यहाँ तक कि हर घर फ़ूड वेटेज के नियंत्रण में अहम रोल अदा करने में सक्षम हैं और इन्हें इस दिशा में कदम आगे बढ़ाना होगा .


बचाव


खाद्य सामग्रियों की बर्बादी रोकने के लिए कुछ आसान तरीके हम खुद घर से ही शुरू कर सकते हैं , जैसे -


अपनी आवश्यकता के अनुसार ही सामान खरीदें और खाना पकाएं . ग्रोसरी करते समय ध्यान रखें कि जो खाद्य सामग्री हम जितने दिनों के लिए खरीद रहे हैं , वे उतने दिनों तक के लिए इस्तेमाल लायक हों . ऐसा न हो कि सामान की खपत के पहले उनकी एक्सपायरी डेट बीत जाए . बल्कि ग्रोसरी खरीदने के पहले अपनी आवश्यकता के अनुसार लिस्ट बना लें . ग्राहकों को लुभाने के लिए अक्सर प्रोसेस्ड और पैक्ड फ़ूड पर डिस्काउंट या बाइ वन गेट वन आदि ऑफर या डिस्काउंट दिए जाते हैं जो अक्सर सही माने में फायदेमंद नहीं होते हैं .


फ्रिज में स्टोर करते समय भी ध्यान दें कि जल्द ख़राब होने वाले खाद्य पदार्थ फ्रिज के ऊपरी खाने में हों . फल और सब्जियां ह्यूमिडिटी नियंत्रित क्रिस्पर में रखें . हरी सब्जियां पेपरटॉवल में लपेट कर रखने से ज्यादा सेफ रहते हैं .


अक्सर पैक्ड खाद्य सामग्री का उपयोग हम सेल बाई और यूज बाई डेट को ध्यान में रख कर करते हैं . इन डेट्स का मतलब हमेशा ऐसा नहीं होता है कि ठीक अगले दिन से वे खाने लायक नहीं रहते हैं . इसके बाद भी इनके रंग, स्वाद , टेक्सचर , गंध आदि परख कर कुछ और दिनों के लिए सावधानी बरतते हुए इस्तेमाल कर सकते हैं .


ओवरईटिंग ( ज्यादा खाना ) सिर्फ खाने की बर्बादी ही नहीं है , यह अन्य बीमारियों को भी निमंत्रण दे सकता है .

इसलिए अपने खानपान पर सही नियंत्रण रख कर आप भी वातावरण को प्रदूषण से बचाने में अपना सहयोग दे सकते हैं .


बच्चों को शुरू से खाने का महत्त्व और उसकी बर्बादी के कुप्रभाव की जानकारी दें .

अगर आपके पास खुद की जमीन है तो बचे खाद्य पदार्थ का कम्पोस्ट बनाकर अपने किचेन गार्डन में प्रयोग करें .

हमारे यहाँ शादी और अन्य समारोहों में अक्सर काफी खाना बच जाता है . इसके ख़राब होने के पहले इसे खुद या किसी एन जी ओ द्वारा जरूरतमंद लोगों तक पहुंचा दें . इससे एक पंथ दो काज हो जायेंगे - भूखों का पेट भरेगा और वातावरण को प्रदूषित होने से बचाएंगे .


कुछ विकसित देशों में कानूनन होटल या रेस्टॉरेंट्स को बचे हुए खाने को किसानों या चैरिटी संस्थाओं को देना होता है ताकि वे उससे खाद बना सकें या अन्य जरूरतमंद को दे सकें . कुछ देश इसे रीसाईकल कर इसका एक छोटा हिस्सा ही लैंडफिल ( कचरा भराव क्षेत्र ) में भेजने की अनुमति देते हैं और बाकी से ऊर्जा उत्पादन करते हैं .

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