इंतज़ार दूसरा - 3 Kishanlal Sharma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

इंतज़ार दूसरा - 3

गणतंत्र दिवस की परेड देझने वालो की खासी भीड़ थी।लोग मिलो तक सड़क के दोनों तरफ खड़े थे।वे भी एक जगह खड़े हो गए थे।परेड शुरू होने पर फौजी जवानों को देखकर माया की आंखे पति को याद करके नम हो गई।
परेड देखकर वे घर लौट आये थे।अगले दिन चन्द्रकान्ता, दामोदर और माया घूमने के लिए गए थे। कुतुब मीनार,लालकिला,ज़ू घूमते समय वे यह भूल गए थे कि मौसी भी उनके साथ है।वे एक दूसरे का हाथ पकड़कर ऐसे चल रहे थे मानो दो प्रेमी हो।
उसी दिन शाम को वे सभी उपकार फ़िल्म देखने गए थे।सिनेमा हॉल में माया और दामोदर पास पास बैठे थे।फ़िल्म देखते समय माया भावविभोर हो गई थी।लड़ाई के दृश्य देखकर उसे पति की याद आ गई और वह रोने लगी।
"तुम बहादुर, समझदार औरत होकर रो रही हो।?"दामोदर ने जेब से रुमाल निकालकर माया के आँसू पोंछे थे।दामोदर के सांत्वना देने पर उसका रोना थमा था।माया ने मासूम बच्चे की तरह अपना सिर उसके कंधे पर रख दिया था।दामोदर प्यार से उसके बालो में हाथ फेरने लगा।
अगले दिन दनोदर,माया मोसी के साथ बिड़ला मंदिर देखने गये थे।मोसी आगे चल रही थी।माया और दामोदर एक दूसरे से सटकर बातें करते हुए काफी पीछे चल रहे थें।एज जगह एकांत पाकर दामोदर ने अपना हाथ माया के वक्ष पर रख दिया था।
"तुम्हे यह अधिकार नही है,"माया,दामोदर का हाथ हटाते हुए बोली,"मेरे तन पर सिर्फ दिनेश का अधिकार है।तुम उसके अधिकार को छीनने कि अनाधिकार चेष्ठा मत करो" ।
कुछ दिनों में ही दामोदर,माया के इतना करीब आ गया था कि उसे विश्वास था कि माया ऐसा करने पर बुरा नही मानेगी।लेकिन जब माया ने टोका तो वह शर्मिंदा होते हुए बोला,"सॉरी"।
जब वह दिल्ली से वापस लौटने लगे,तब माया,चन्द्रकान्ता से बोली थी,"मौसी हमारे घर भी चलो"।
"अगर दामोदर तैयार हो तो मुझे ऐतराज नही है।"माया की बात सुनकर चन्द्रकान्ता बोली थी।माया ने दामोदर से कहा था।दामोदर तैयार हो गया ।
चन्द्रकान्ता और दामोदर,माया और उसकी मां के साथ फरीदाबाद आ गए थे।माया के पिता सुलझे हुए समझदार और मिलनसार व्यक्ति थे।दामोदर उनसे घुल मिल गया था।
माया के पिता मान चुके थे कि दिनेश अब नही लौटेगा।उनकी इच्छा बेटी का पुनर्विवाह करने की थी।लेकिन बेटी का विश्वास तोड़ने का साहस नही कर पा रहे थे।
वे दो दिन माया के घर रहे थे।उनके घर से चलते समय दामोदर,माया से बोला था,"माया,मैं तुम्हारे विश्वास को तोड़ना नही चाहता।फिर भी जाने से पहले एक बात कहना चाहता हूँ।"
"क्या?"माया बोली थी।
"अगर कभी तुम्हारा विश्वास टूट जाये तो मेरे पास चली आना।"
"क्यों?"माया ने पूछा था,"आखिर तुम कहना क्या चाहते हो?"
"माया मैं तुम्हे चाहने लगा हूँ।मुझे तुमसे प्यार हो गया है।तुम्हे अपना बनाकर मुझे खुशी होगी।"दामोदर, माया से बोला,"मै तुम्हारा इंतज़ार करूँगा।"
माया ने दामोदर की बात सुनकर कुछ नही कहा था।
औऱ वह गांव लौट आया था।गांव आकर भी वह माया को नही भुला था।दामोदर को नाटक,रामलीला,ड्रामे में भाग लेने का शौक था।गांव की रामलीला में वह कोई न कोई पार्ट निभाता था।उसके इसी शौक ने उसे फिल्मी कलाकार बनने की प्रेरणा दी।वह अपना भाग्य आजमाने के लिए मुम्बई जा पंहुचा।
फिल्मी दुनिया मे प्रवेश करना इतना आसान नही है।।काफी ठोकरे खाने के बाद भी उसे फिल्मों में काम नही मिला।तब वह एक दुकान पर नौकरी करने लगा।

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Kunal Doon

Kunal Doon 3 साल पहले

Sanjeev

Sanjeev 3 साल पहले

Minakshi Singh

Minakshi Singh 3 साल पहले

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