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इंतजार दूसरा - 2

"तभी तुम बेलगाम घोड़ी की तरह इधर उधर घूमती फिरती हो"।
"क्या मतलब?"दामोदर की बात सुनकर माया को गुस्सा आ गया,"तुम मुझ पर लाछंन लगा रहे हो?"
"मेंरे कहने का आशय वो नही है,जो तुम समझ रही हो?"माया का उग्र रूप देेखकर दामोदर घबरा गया।
"तो तुम क्या कहना चाहते हो?"
"तुम जैसी हसीन पत्नी से कौन कम्बख्त दूर रहना चाहेगा । लेकिन तुम्हारा पति फ़ौज़ में है।बेचारा चाहकर भी तुमहारे पास नही रह सकता।"दामोदर ने दिल में आयी बात माया को बता दी।
"बेेेचारी का पति हैै कन्हा?"कमरे में आते समय दामोदर की बात चन्द्रकान्ता ने सुन ली थी।इसलिए माया बोलती उससेे पहले चन्द्ररकांता बोली थी।
"क्या मतलब?"चन्दरकान्ता की बाते सुनकर दामोदर चोंका था।कंही उसे भृम तो नही हुआ।अपना भृम दूर करने के लिए उसने सामने बैठी, माया को ध्यान से देखा था।मांग मे भरा सिंदूर,माथे पर बिंदी,पैरो में बिछुए।भारतीय पत्नी के सुहागचिन्ह माया के शरीर पर सुशोभित थे।फिर भृम का कोई सवाल नही था।
चन्दरकान्ता,दामोदर के मनोभाव ताड गई थी,"तुम शायद माया को सुहागिन के रूप में देखकर चोंक रहे हो।माया का पति दिनेश इकहत्तर की लड़ाई में लापता हो गया था।जिसकी सूचना सरकार ने उसे दे दी थी।"
"लड़ाई खत्म हुई चार साल हो गए।क्या अभी तक दिनेश का कोई पता नही चला?"दामोदर ने पूछा था।।
"अब क्या पता चलेगा?दिनेश के माता पिता को तो विश्वास हो गया है,उनका बेटा अब नही लौटेगा।लेकिन माया अभी भी यह मानने के लिए तैयार नही है।उसे विश्वास है कि उसका पति एक दिन ज़रूर लौटेगा।इसी उम्मीद में सुहागिन की तरह रह्ती है।ससुराल वालों को माया का इस तरह रहना पसंद नही है।इसलिए उन्होंने इसे मायके भेज दिया है"।चन्दरकान्ता ने दामोदर को माया के अतीत के बारे में बताया था।
दिनेश का जिक्र आने पर माया का चेहरा मुरझा गया ।उसकी आंखें नम हो गई।ऐसा लगा मानो, चांद को बादलो ने घेर लिया हो।उसके होंठो पर थिरकने वाली मुस्कान न जाने कन्हा गायब हो गई?व्यथित नारी के विश्वास को देखकर दामोदर को उससे सहानुभूति हो गई।
"सॉरी माया।मेरा इरादा तुम्हारा दिल दुखाने का नही था।" सांत्वना देने के लिए दामोदर ने अपना हाथ माया के कंधे पर रख दिया था।माया को देखकर ऐसा लग रहा था।अगर उसे ज्यादा छेड़ा गया,तो वह रो देगी।इसलिए दामोदर उठकर चला गया।
छब्बीस जनवरी भारत का गणतंत्र दिवस।इस दिन दिल्ली में परेड निकलती है ।जिसकी सलामी राष्ट्रपति लेते है।सैनिक साजो सामान के प्रदर्शन के साथ विभिन्न प्रदेशों की झांकिया भी निकलती है।कोई विदेशी राष्ट्राध्यक्ष इस दिन खास मेहमान होता है।देश के विभिन्न प्रदेशो से लोग परेड देखने के लिए दिल्ली आते है।
छब्बीस जनवरी का दिन बहुत सुहाना था।वे सब लोग परेड देखने के लिए घर से निकल गए थे।माया ने सुर्ख लाल रंग की साड़ी पर काला कार्डिगन पहना था।लाल कपड़ा में माया खिले गुलाब सी लग रही थी।उसके इस रुप को देखकर दामोदर बोला,"बुरा न मानो तो तुमसे एक बात कहूं?"
"क्या?"माया ने प्रश्न सूचक नज़रों से दामोदर को देखा था।
"तुम स्वर्ग से उतरी अप्सरा सी लग रही हो।जी चाहता है, तुम्हे अपने सामने बैठाकर अपलक नेत्रों से निहारता रहूँ?"
"मना किसने किया है?तुम्हारे साथ ही चल रही हूँ।जब तक जी चाहे निहारते रहना।'
अपनी बात कहकर माया खिलखिलाकर हंस पड़ी।उसकी हंसी सुनकर ऐसा लगा, मानो फूल झड़ रहे हो।


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