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सफर और Suffer

सफर और Suffer


यह कहानी गुजरात के एक व्यापारी के सफर से शुरु होती है। व्यापारी का नाम था करसनदास, वह जब भी विमान यात्रा करते भगवान से प्रार्थना करके ही घर से निकलते थे। उनको भगवान में बहुत आस्था थी या कहो विश्वास था की उनके सारे अच्छे काम भगवान की कृपा से ही होते है। उनका इस बार का सफर गुजरात से लंदन का था। लंदन में किसी सम्मेलन में जा रहे थे। सम्मेलन में २ दिन रहे थे, इन दो दिन में उन्होंने देखा की वहां सभी लोग खुश थे सिवाय के अल्बर्ट-जी। अल्बर्ट-जी जिस कंपनी में काम करते थे उसी कंपनी ने इस सम्मेलन का आयोजन किया था। करसनदास ने जब अल्बर्ट-जी से पूछा सब ठीक है ना? अल्बर्ट-जी बोले जी हाँ सब कुछ ठीक है, सम्मेलन का आयोजन की थोड़ी चिंता लगी रहती है।

जब सम्मेलन ख़तम हुआ करसनदास निकलने ही वाले थे तब उन्होंने अल्बर्ट-जी को अपने कमरे में बुलाया और फिर से पूछा देखो अब तो सम्मेलन ख़तम हो गया फिर भी तुम चिंतित लग रहे हो। में एक व्यापारी हूँ मेरा बहुत जगह आना जाना लगा रहता है अगर तुम मुझे अपनी परेशानी बताओ तो शायद में तुम्हारी कुछ मदद कर सकता हूँ।

अल्बर्ट-जी ने सोचा चलो यह इंसान सच में मेरी मदद करना चाहता है, भले वह मेरी मदद कर पाए या ना कर पाए मुझे अपनी परेशानी बतानी चाहिए। अल्बर्ट-जी ने कहा मेरे घर में मेरे अलावा मेरी पत्नी और मेरी पौत्री लवीना रहते है। मेरी पौत्री की तबियत ठीक नहीं रहती है। बीमारी कोई बड़ी नहीं है पर हर १५ दिन में सर्दी, झुकाम और बुखार हो जाता है। इसी कारण उसके अंदर कमज़ोरी सी आ जाती है, फिर उसे न तो कोई काम करने की इच्छा रहती है न स्कूल जाने की इच्छा रहती है। कई डॉक्टर को दिखाया पर जब तक दवाई चालू रखो तब तक ठीक, दवाई बंध करते ही फिर से वही तकलीफ़। जब भी डॉक्टर के

पास ले जाते है डॉक्टर फिर से सारे रिपोर्ट निकलवाते है, बार बार नन्ही सी जान को इंजेक्शन लेते हुए अब हमसे देखा नहीं जाता।

करसनदास बोले मेरी तुमसे एक सलाह है की अपनी पौत्री का इलाज आयुर्वेदिक से करवाए। आयुर्वेदिक के लिए उत्तम जगह भारत से बढ़कर कोई नहीं है। अल्बर्ट-जी बोले भारत? इतनी दूर हम लोग कैसे जाएंगे? करसनदास बोले भारत में एक व्यक्ति है जो आयुर्वेदिक का अच्छा ज्ञान रखते है और इलाज भी एकदम कम पैसों में करते है। भारत में कई लोग होंगे जो आयुर्वेदिक उपचार के बारे में जानते होंगे पर में जिन्हे जानता हूँ वह कोल्हापुर, महाराष्ट्र राज्य में रहते है। वहां आपको कोई दिक्कत नहीं आएगी। वहां रहने के लिए एक आश्रम है और एक भोजनालय भी जहाँ आपको बहोत कम खर्चे में रहना और खाना भी मिल जाएगा। आप एक बार सोचिये और मेरे सेक्रेटरी को बताइये वह आपको कब कहा कैसे जाना है पूरी जानकारी देगा। यह रहा मेरा कार्ड जिसमे सारे नंबर है। में भी अपने सेक्रेटरी को आपके बारे में बता दूँगा ताकि आपको कोई दिक्कत न हो।

अल्बर्ट-जी तो बड़ी सोच में पड़ गए। घर जाकर उन्होंने अपनी पत्नी से बात की पत्नी ने तो साफ़ साफ़ मना कर दिया। एक अनजान देश जहाँ हमें कोई जानता भी नहीं है वहां हम इलाज के लिए कैसे जा सकते है? एक दो दिन बाद फिर उन्होंने इस बात पर विचार किया की आखिर अपनी लवीना का इलाज तो करना ही है और अभी स्कूल की छुट्टी भी है। आखिर दोनों ने मन बना लिया की भारत जाना है।

उन्होंने फिर करसनदास के सेक्रेटरी से बात की, सेक्रेटरी ने कहा आप सिर्फ लंदन से मुंबई का हवाई टिकट निकाल ले और उस टिकट को मुझे ईमेल कर दीजिए। जब भी आप भारत आएँगे आगे का सफर कैसे करना है हम आपको यहाँ से बता देंगे। अल्बर्ट-जी जानते थे लवीना का इलाज १-२ दिन में नहीं होगा कम से कम २५-३० दिन तो जाएंगे। इसलिए जाने से पहले पूरी तैयारी करके ही निकले थे। अपने काम से छुट्टी ले ली, लवीना के सारे चिकित्सा रिपोर्ट, पैसो का इंतज़ाम कर लिया, कुछ ख़रीददारी कर ली। भारत पहुँचते ही एयरपोर्ट पर उनके लिए एक गाड़ी की व्यवस्था की गई थी। गाड़ी से उनको एक घर ले गए वहां उनका खाने पिने का और आराम करने की व्यवस्था की गई थी और उनको कहा गया की आप थोड़ा आराम कर ले आपकी ट्रेन रात के समय है।

रात में फिर उनको रेलवे स्थानक ले गए और उनको कहा गया की आपको कोल्हापुर स्थानक पर उतरना है, वहां से आगे एक बस पकड़ना है, बस स्टॉप का नाम और आयुर्वेदिक वाले व्यक्ति का पता हमने इस कागज़ पर लिख दिया है। आपको पूरी जानकारी ३ भाषा में लिख कर दी है कोई पूछे तो उनको आप यह कागदपत्र दिखा देना। ट्रेन के आते ही उनको ट्रेन में बिठा दिया। सभी लोग उनको देख रहे थे और वे सभी को देख रहे थे। अपने अड़ोस पड़ोस वालो से थोड़ा हेलो बोल कर फिर बैठे रहे। करीब १ घंटे के बाद टिकट चेकर आया जब इनसे टिकट पूछा गया तो वे अपनी बैग ढूंढ रहे थे जो उनको मिल ही नहीं रही थी। उनको ख्याल आ गया की बैग चोरी हो गई है। आँख में आँसू आ गए उनके, क्योंकि उसी बैग में कुछ पैसे भी थे। वे रोते रोते टिकट चेकर से सब बताने लगे की उनके पास टिकट था उन्होंने बैग में रखा था और बैग ही चोरी हो गया। एक व्यक्ति जो यह सब देख रहा था वह उस टिकट चेकर के पास आया और बोला क्या हो गया है?

टिकट चेकर ने सारी बात बताई। उस व्यक्ति का नाम विट्ठलजी था, उसने टिकट चेकर से दरख्वास्त की और कहा जाने दो इन्हे जो भी दंड है में भर देता हूँ और आगे कोई भी परेशानी होगी तो उसका जिम्मेदार में रहूँगा। टिकट चेकर ने पावती बनाकर दी और कहा ध्यान रखना इनका पहली बार सफर कर रहे है भारतीय रेलवे में। विट्ठलजी ने कहा जी वो में रखूँगा ही आप सिर्फ इनसे कह दीजिये की में भी कोल्हापुर ही जा रहा हूँ तो मेरे साथ चले में इनको सही सलामत पहुंचा दूँगा। टिकट चेकर के जाते ही अल्बर्ट-जी और उसकी पत्नी को थोड़ी राहत मिली। विट्ठलजी लवीना से बात करने की कोशिश कर रहे थे पर लवीना उनके तरफ देख नहीं रही थी। सुबह होते ही विट्ठलजी सभी को गुड मॉर्निंग गुड़ मॉर्निंग बोलते हुए तीनों के लिए चाय ले आए।

कोल्हापुर स्थानक आते ही विट्ठलजी उनको अपने साथ लेकर नीचे उतरे। जब सब लोग नीचे उतरे तो अल्बर्ट-जी ने देखा की विट्ठलजी के साथ एक लड़का भी था। छोटे लड़के को देख उनको लगा की यह इंसान हमें धोखा नहीं देगा। सभी को विट्ठलजी अपने साथ बस में ले गए। पहले तो वह सभी को अपने घर ले गए। अल्बर्ट-जी ने कहा क्या यह वही जगह हे जो इस पते पर लिखी है। विट्ठलजी कुछ समजे नहीं। उन्होंने महेश को आवाज़ लगायी महेश उनका पौता। महेश से कहा तू तो अंग्रेजी जानता है ना देख जरा क्या बोल रहे है। महेश भी ज्यादा नहीं पर थोड़ी बहोत अंग्रेजी बोल लेता था। जैसे तैसे विट्ठलजी ने उनको समझाया की कुछ दिन उनको यहाँ रुकना पड़ेगा फिर उनको सही पते पर ले जाएंगे।

दूसरे दिन शाम को वह आयुर्वेदिक वाला व्यक्ति खुद ही विट्ठलजी के घर आया। विट्ठलजी ने अल्बर्ट-जी को बुलाकर कहा यह लीजिए हम जिसके पास जानेवाले थे वो खुद ही यहाँ आ गया। अल्बर्ट-जी कुछ बोल नहीं रहे थे फिर विट्ठलजी ने कहा अरे यह मेरा चचेरा भाई श्याम है और यह आयुर्वेदिक पद्धति से सबका इलाज करता है। श्यामजी बोले अरे विट्ठल यह कौन है। विट्ठलजी ने सभी का परिचय करवाया और सारी बाते भी बताई। श्यामजी बोले घबरा ने की कोई बात नहीं है आप सही जगह पर आए है और आप हमारे मेहमान है तो आश्रम में रहने की जरुरत नहीं आप यहीं पर रहिए इतना बड़ा घर है। श्यामजी बोले में अब यहाँ २ दिन रहूँगा लवीना के बीमारी के बारे में जान लेता हूँ फिर हर दो दिन में आकर मिलूंगा।

श्यामजी ने लवीना से मुलाकात करके कुछ काढ़ा बनाकर दिया और कहा २ दिन यह काढ़ा दीजिये बाकी में आने के बाद देखूँगा। अल्बर्ट-जी का परिवार घर में बैठे बैठे परेशान ना हो इसलिए विट्ठलजी सभी के लिए कुछ रोज नया करने की सोचते थे जिससे उनका मन लगा रहे। कभी सभी को बाजार में ले जाते वहां लवीना को भी कहते जाओ अब तुम उस महिला से सब्जी खरीदो। कई महिलाएँ अपने साथ बच्चे को भी ले आती थी सब्जी बेचने उनसे लवीना को दोस्ती करने को कहते थे। आसपास कहीं मेला लगा हो तो सभी को मेला दिखाने ले जाते थे। साथ ही साथ में श्यामजी अपने दवाई में बदलाव करते गए। लवीना में अब काफी बदलाव आ गए थे, अब वो सबसे खुलके बाते करती थी, पुरे घर में भाग दौड़ मचाती थी, जोर शोर से चिल्लाना, खुश होने पर जोर जोर से हसना यह सब अल्बर्ट-जी और उनकी पत्नी ने कभी देखा ही नहीं था। महेश के साथ मजाक मस्ती करती थी। कभी बेलन दिखाकर पूछती की इसे अंग्रेजी में क्या कहते है, महेश तुरंत सर पर हाथ घुमाता था और लवीना जोर से हसती थी।

एक दिन विट्ठलजी सभी को दोपहर का खाना खाने थोड़े दूर एक कैंटीन पर ले गए जो उनके मित्र का ही था। कैंटीन के मालिक का नाम विनायक था। विट्ठलजी आगे चल रहे थे और उनके पीछे बाकी लोग। विट्ठलजी ने आवाज़ लगायी अरे विनायक, उतने में तो विनायकजी ने विट्ठलजी को कहाँ तुम दूर हटो, आज पहली बार मेरे कैंटीन पर विदेशी मेहमान आए है। तुम्हेंं जो चाहिए वो लेकर वहां बैठ कर खाओ। विनायकजी ने खुद एक टेबल अच्छे से साफ़ करके उनको बैठने को कहा। सभी लोग विट्ठलजी को देख रहे थे, विट्ठलजी ने इशारा किया बैठ जाओ। महेश और लवीना को साथ में देखकर विनायकजी समझ गए यह मेहमान मेरे नहीं पर विट्ठलजी के है।

विट्ठलजी ने विनायकजी को पूरी बाते बताई। विनायकजी मराठी में बोले काळजी करु नका हे सर्व ठीक होईल मतलब की घबराये नहीं सब ठीक हो जाएगा। विनायकजी को लवीना बहोत पसंद आई इसलिए उन्होंने विट्ठलजी से कहा देखो रोज दोपहर का खाना आप लोग मेरे कैंटीन में ही खाओगे। विट्ठलजी ने हाँ कर दिया। कैंटीन पर कुछ चॉकलेट और बिस्कीट भी मिलती थी। महेश जो भी चॉकलेट या बिस्कीट लेता था वही लवीना को दो मिलती थी। महेश पूछता मुझे एक और उसे दो क्यों? विनायकजी कहते उसके लिए ऑफर है एक पर एक मुफ्त।

श्यामजी की दवाई का असर अच्छे से हो रहा था। लवीना के सेहत में होता हुआ सुधार देखकर सभी लोग बहोत खुश थे। पर २-३ दिन बाद लवीना फिर बीमार हुई, यह देखकर सभी हैरान हो गए इतना अच्छा सबकुछ चल रहा था फिर भी बीमार हो गई। विट्ठलजी बोले फिक्र मत करो सब ठीक हो जाएगा, पर अब अल्बर्ट-जी का भी मन थोड़ा उदास हो गया था। दो दिन बाद लवीना ठीक हो गई। यह देखकर सभी को अच्छा लगा। अल्बर्ट-जी ने कहा जब भी यह बीमार होती तो पूरा एक हफ्ता लग जाता था इसे ठीक होने में पर इस बार २ ही दिन में ठीक हो गई। विट्ठलजी बोले दवाई का असर होने में समय लगेगा आगे जाकर एक दो बार और वह बीमार हो सकती है पर उससे उसके सेहत पर ज्यादा असर नहीं होगा।

अल्बर्ट-जी बोले पर कुछ दिनों बाद तो हमें जाना पड़ेगा। विट्ठलजी बोले कोई दिक्कत नहीं होगी, श्यामजी ने दवाई कैसे बनानी है यह आपकी पत्नी को सीखा दिया है। अब से रोज वही दवाई बनाएगी। दवाई का सारा सामान में आपको दे दूंगा जो ३ महीने तक चलेगा उसके बाद इसकी जरुरत नहीं रहेगी। हकीक़त तो यह है की उसे दवाई की जरुरत कम है और शारीरिक हलनचलन की ज्यादा है। लंदन में उसका पूरा समय एक जगह बैठकर निकल जाता था। किसी से कोई बात चित नहीं करती थी। यहाँ उसका पूरा दिन खेल कूद में निकल जाता है। उसने कई कितने नए मित्र बना लिए है। जब भी बाजार जाते है सभी लोग लवीना की ही राह देखते रहते है। यहाँ आने के बाद वो सभी लोगो के बारे में सोचती है की बच्चे कैसे विद्यालय से सीधे अपनी माँ के पास आकर अपनी माँ को मदद करते है, खिलोने बेचने वाले बच्चो के बारे में सोचती है, क्या इनको इन खिलोने से खेलने का मन नहीं करता होगा? अल्बर्ट-जी बोले जी हाँ यह सब तो बहोत बड़ा परिवर्तन आया है उसमे। अल्बर्ट-जी बोले और एक बात अब रोज जैसे आपने कहा था रोज वह सुबह ५ मिनिट धुप में खड़ी रहती है और सूर्य को नमस्कार करती है, यहाँ आने से पहले तक सूर्य का हमारे लिए कोई ज्यादा महत्व नहीं था पर अब लवीना सूर्य को भगवान ही मानती है। आप रोज सूर्य को जल अर्पण करते है यह देख देख कर उसने यह सब सीखा है।

विट्ठलजी ने कहा अगर आपको एक बात कहूं तो बुरा तो नहीं लगेगा। अल्बर्ट-जी बोले जी नहीं, बताइये क्या बात है। अब आपके जाने का समय हो रहा है तो आपकी हवाई टिकट निकालनी चाहिए। अल्बर्ट-जी बोले में भी आपसे यही कहने वाला था। विट्ठलजी बोले आज शाम को ही साथ चलेंगे मेरा एक मित्र है वो यह काम कर देगा। १५ दिन बाद की टिकट निकाली ताकि और थोड़ा समय यहाँ बिता सके।

जाने से पहले विट्ठलजी ने सारी दवाई का सामान उनको लाकर दे दिया और जाने के एक दिन पहले उन्होंने सोचा की क्यों न आज का खाना सभी लोग खेत में मिलकर खाये। विनायकजी और श्यामजी को भी बुलाया जाए, एक यादगार मुलाकात बन जाएगी। विट्ठलजी ने इस मुलाकात को यादगार बनाने के लिए खाने में पुलाव, बाजरे की रोटी, बैगन का भरता, लसुन की चटनी, कांदा, आचार, सलाड और मिठाई में मोदक का इंतज़ाम किया और यह सारा खाना केले के पत्ते में सजाया था। सभी को खाना बहोत पसंद आया, मोदक देखते ही लवीना ने महेश से पूछा इसे अंग्रेजी में क्या कहते है? महेश फिर सर पर हाथ घुमाने लगा और सभी लोग हंस पड़े।

दूसरे दिन सभी लोग तैयार होकर रेलवे स्थानक पहुंचे। ट्रेन से मुंबई पहुँचकर करसनदासजी के ऑफ़िस पहुंचे वहाँ करसनदासजी थे नहीं तो फ़ोन पर ही शुक्रिया किया और बाकी सभी लोगो का भी शुक्रिया किया जिन्होंने उनकी मदद की थी। फिर गाड़ी से एयरपोर्ट के लिए रवाना हुए। एयरपोर्ट पहुँचते ही सभी की आंखे भर आयी। अल्बर्ट-जी ने विट्ठलजी से उनका पत्ता ले लिया था ताकि लंदन से वे उनको पत्र लिख सके। लंदन पहुँचने के कुछ दिनों बाद अल्बर्ट-जी ने विट्ठलजी को पत्र लिखा और बताया की हम लोग सभी बहोत खुश है लवीना की तबियत भी अब अच्छी है। उम्मीद करता हूँ वहाँ आप लोग भी सभी खुश होंगे सभी को मेरा प्यार देना और अपना ख्याल रखना। पत्र मिलते ही विट्ठलजी खुश हो गए पत्र लेकर वह तुरंत विनायकजी के पास गए क्योंकि महेश तो मुंबई चला गया था तो सोचा विनायकजी के बेटे से ही पूछता हूँ क्या लिखा है। लंदन में सब कुछ ठीक था और लवीना को भी कोई तकलीफ़ नहीं थी यह जानकर सभी लोग खुश हुए।

फिर उस दिन बाद दोनों परिवार में कोई बातचीत नहीं हुई। करीब पंद्रह साल बाद लंदन से पत्र आया। पंद्रह साल में बहोत कुछ बदल चुका था। विट्ठलजी का देहांत हो चुका था और महेश अपनी पढ़ाई पूरी करके कोल्हापुर आ गया था और विदेश में नौकरी की तलाश में था और इसीलिए उसने अपना पासपोर्ट भी बनवा रखा था। महेश ने पत्र पढ़ा उसमे लिखा था में अल्बर्ट-जी का वकील हूँ और यह पत्र उन्होंने ही लिखने को कहा था। तुम्हेंं यह जानकर दुःख होगा की अब अल्बर्ट-जी इस दुनिया में नहीं रहे। अल्बर्ट-जी अपने जीवन की जो कुछ भी जमा राशि थी सब तुम्हारे नाम करके गए है। उनकी पत्नी और पोत्री लवीना की ३ साल पहले एक कार अकस्मात में मृत्यु हो गयी थी, इसीलिए उन्होंने सब कुछ तुम्हारे नाम कर दिया है। लवीना के मौत की खबर पढ़ते ही महेश के हाथ से पत्र ही छूट गया। समय ज़रुर बीत चुका था पर महेश को उनके साथ बिताया हुआ हर एक पल याद था। आगे लिखा था में इस पत्र में अपना नाम, पता और नंबर भेज रहा हूँ, तुम जब भी लंदन आना चाहोगे तब मुझे बता देना। तुम्हेंं इन सब बात का विश्वास हो इसलिए में इस पत्र के साथ अल्बर्ट-जी के सारे ज़रुरी कागजपत्र की एक ज़ेरॉक्स भी भेज रहा हूँ।

कुछ दिनों तक महेश को समझ ही नहीं आ रहा था की क्या करे और क्या ना। फिर उसने सोचा अगर में नहीं जाऊँगा तो यह सारा पैसा सरकारी खज़ाने में चला जाएगा और अल्बर्ट-जी का मेहनत का पैसा ऐसे नहीं जाने देना चाहिए उसे किसी अच्छे काम में लगाना चाहिए। महेश ने वकील से बात की और बताया में ७ दिन बाद लंदन आ रहा हूँ। जब महेश लंदन पहुंचा तब वकील खुद उसे लेने एयरपोर्ट आया था। वकील महेश को अपने साथ उसके घर ले गया। घर पहुँचने के बाद वकील सारे पत्र दिखा कर महेश से कुछ बाते घुमा फिराकर समजा रहा था पर महेश को कुछ समझ में नहीं आ रहा था। वकील ने कहा अल्बर्ट-जी ने जैसे कहा था मेने वैसे ही उनका घर, गाड़ी और गैराज की नीलामी की और इसमे से आया हुआ सारा पैसा उनके बैंक खाते में जमा भी कर दिया।

यहाँ तक कोई दिक्कत नहीं है पर अब सवाल यह आता है की उन्होंने जो लोन ले रखे है वो कौन भरेगा? महेश बोला लोन? वकील ने कहाँ हाँ लोन वो भी १-२ नहीं पूरे ४ लोन है अल्बर्ट-जी के नाम पर। कुछ समय पहले उनका बहोत बुरा हाल था उनकी पत्नी की तबियत ख़राब हो गयी थी काफी समय तक अस्पताल खर्च बढ़ता रहा, लवीना की तबियत तुम तो जानते ही थे उसके इलाज का खर्च, गैराज पहले भाड़े पर था फिर उन्होंने उसे खरीदने के लिए एक लोन लिया था फिर अंत में उनके अस्पताल का खर्च। महेश तो सब सुनकर हैरान हो रहा था। वकील बोला और भी कई खर्च हुए उनका सारा सामान नीलामी का खर्च, मेरी फीस। वकील बोला तुम यह समझ लो की तुम्हेंं सिर्फ २० प्रतिशत पैसे मिलेंगे बाकी सब लोन की भरपाई में चले जाएंगे और तुम कल मेरे साथ बैंक में चलना वहां कुछ कागजपत्र पर हस्ताक्षर कर देना तुम्हें २० प्रतिशत पैसे मिल जाएंगे और रही बात लोन की तो वो में सब देख लूँगा।

महेश कुछ बोल ही नहीं पा रहा था। वकील ने पूछा क्या हुआ? महेश बोला इतना खर्च? वकील तुरंत बोला अरे भाई भारत हो या लंदन तुम तो अच्छी तरह से जानते हो अस्पताल का खर्च कितना हो जाता है और यहाँ तो एक नहीं ३-३ सदस्य एक ही परिवार से तो इतना खर्च तो होगा ही ना? वकील बोला तुम्हें शायद विश्वास नहीं हो रहा है तुम यह सारे लोन के और बाकी के कागजपत्र देखो में तुम्हारे लिए कुछ खाने पिने का बंदोबस्त करता हूँ। महेश ने सारे पेपर देख लिए तब वकील आया और बोला अब तो यकीन हो गया ना की में झूठ नहीं बोल रहा हूँ। महेश बोला मुझे थोड़ा सोचने का वक्त दीजिए। वकील बोला हाँ हाँ मुझे भी कोई जल्दी नहीं है। तुम जितना जल्दी फैसला करोगे उतना जल्द तुम्हें पैसा मिल जाएगा। वकील ने कहा हम कल मिलते है तुम तब तक सोचो क्या करना है और हाँ मेने तुम्हारे रहने के लिए यहाँ पास में होटल है वहीँ कर दिया है, तुम उन्हें मेरा यह कार्ड दिखा देना तुम्हें बिल में कुछ छूट भी मिल जाएगी। महेश बोला, शुक्रिया इन सब के लिए में कल आपसे मिलता हूँ।

महेश घर से बहार निकला और चलते ही जा रहा था उसे खुद पता नहीं था की वह कहाँ जा रहा है। थोड़ी दूर जाने के बाद वह एक पार्क में बैठा और सोच रहा था की कोई पैसे के लिए इतना कैसे गिर सकता है वो भी जब पैसा किसी के मेहनत का और एक परिवार का जो इस दुनिया में नहीं है। उनकी अंतिम इच्छा से भी धोखा करना? महेश सारे कागजपत्र देखते ही समझ गया था की सारे कागज़ झूठे है, उसने देखा था की सारे कागजपत्र एक ही जैसे है और सभी कागज़ पर एक लाल रंग का निशान था। महेश अपने आप से कह रहा था की अगर लोन सभी अलग अलग बैंक से लिए थे तो सभी बैंक एक जैसे कागज़ का इस्तेमाल थोड़ी करते होंगे। महेश समझ गया था की वकील को पैसे का लालच हो गया है और ८० प्रतिशत पैसे उसे चाहिए।

महेश ने सोचा क्यों न में किसी और वकील से बात करुं, पर लंदन में अच्छा वकील तुरंत कैसे मिलेगा और किस पर विश्वास करे और किस पर विश्वास ना करे। थोड़ी देर बाद वहां कुछ बच्चे मोबाइल लेकर आए थे जिसमे वो लोग भारत और इंग्लैंड का क्रिकेट मैच देख रहे थे। महेश ने उनसे पूछा यह मैच कहा चल रहा है बच्चे ने कहा यही ३ किलोमीटर दूर स्टेडियम है, वहीँ यह मैच चल रहा है। महेश ने यह सोचा था की किसी भारतीय से मिलता हूँ उसे सारी बाते बताता हूँ और वह मुझे किसी अच्छे वकील से ज़रुर मुलाकात कराएगा। स्टेडियम से कुछ दूर महेश मैच ख़तम होने का इंतजार कर रहा था, मैच ख़तम हुआ सभी लोग बाहर आने लगे थे पर महेश की समझ में नहीं आ रहा था किसके साथ बात करुँ। देखते ही देखते सभी लोग चले गए और महेश की चिंता बढ़ते जा रही थी।

तभी अचानक एक कार महेश के पास आकर रुक गई। कार में एक लड़की बैठी थी, जिसका पहनावा भारतीय था। महेश तुरंत कार के पास जाकर बोला मैडम मुझे आपकी मदद चाहिए। लड़की ने कहा गाड़ी में बैठ जाओ। महेश खुश हो गया चलो आखिर कोई तो भारतीय मिल गया। महेश गाड़ी में बैठते ही बोला जी में भारत से आया हूँ और थोड़ी परेशानी में हूँ इसलिए आपकी मदद चाहिए। लड़की बोली ठीक है, थोड़ी देर रुको में गाड़ी आगे पार्क करती हूँ फिर बात करते है। गाड़ी पार्क करने के बाद महेश उतरने ही वाला था की लड़की बोली बैठो बैठो यही बोलो जो भी बोलना है।

महेश बोला आप पहले यह कागजपत्र देख लीजिए फिर में बोलता हूँ। लड़की ने सारे कागजपत्र देखने के बाद बोली अच्छा तो तुम्हें लोटरी लगी हे। महेश बोला ऐसा ही कुछ समझो, पर वकील लालच में आकर ८० प्रतिशत पैसे अपने पास रखकर बाकी के २० प्रतिशत मुझे दे रहा है। लड़की बोली ८० प्रतिशत किस बात के? महेश बोला अल्बर्ट-जी ने बहोत सारे लोन ले रखे है, उसे भरने में ८० प्रतिशत पैसे चले जाएंगे। लड़की बोली तो लोन होंगे अल्बर्ट-जी के। महेश बोला जी नहीं कोई लोन नहीं मेने सारे लोन के कागज़ देखे सभी उस वकील ने खुद बनाए है। लड़की बोली तुम यह कैसे कह सकते हो? महेश बोला सभी बैंक एक जैसे कागज़ का इस्तेमाल नहीं कर सकते है, सभी बैंक के प्रिंट फॉर्मेट और लिखावट एक जैसी नहीं हो सकती है। लड़की बोली अगर में यह कहूं की यहाँ सभी लोग एक ही तरह का प्रिंटर और कागज़ इस्तेमाल करते है तो? महेश बोला जी नहीं यह नहीं हो सकता। लड़की बोली क्यों? महेश बोला अगर ऐसा होता तो जो कागजपत्र मुझे वकील ने भेजे थे वह और वकील के पास जो कागजपत्र है वह एक समान होने चाहिए थे।

लड़की बोली काफी समझदार हो। अब बताओ में तुम्हारी क्या मदद कर सकती हूँ? महेश बोला कोई अच्छा वकील है जो मेरी मदद कर सके? लड़की बोली हां वकील तो है, पहले में उस से बात करती हूँ। तुमने सुबह से कुछ खाया नहीं है ऐसा लग रहा है, देखो पास में ही एक अच्छा सा भारतीय होटल है वहां तुम कुछ खा लो तब तक में अपना काम करके आती हूँ, एक घंटे बाद हम यहीं मिलेंगे। महेश होटल से बहार निकला वहां तो वह लड़की गाड़ी लेकर आ गई। लड़की ने महेश से पूछा रहने का इंतज़ाम कहाँ किया है? महेश बोला जी नहीं अभी तक कोई इंतज़ाम नहीं किया, आप ही कोई मदद कर दो। लड़की बोली कोई बात नहीं हो जाएगा। कुछ दूर जाने के बाद लड़की ने गाड़ी रोकी और महेश से कहा वो सामने बिल्डिंग दिखाई दे रही है वहाँ तुम्हें एक अच्छा सा कमरा मिल जाएगा। महेश उतरने ही वाला था की लड़की बोली रुको २ मिनिट बैठो। लड़की बोली तुम जैसे ही वहां जाओगे वो तुमसे पूछेंगे सिंगल या शेयरिंग कमरा चाहिए, तुम सिंगल बोलना और बोलना सिर्फ आज की रात के लिए चाहिए सुबह ७.३० तुम कमरा खाली कर दोगे। महेश बोला सिर्फ एक दिन? लड़की बोली कल की कल देखेंगे और तुम्हारे खाने का इंतज़ाम हो जाएगा तो उनको खाने के लिए मना कर देना। ठीक ८ बजे तुम अपने कमरे का दरवाजा खोलना बहार एक बैग होगा वो ले लेना और खाने के बाद फिर से बैग बाहर रख देना और तुम्हें यह खाने के पैसे किसी को नहीं देने है। महेश बोला पैसे क्यों नहीं देने है? लड़की बोली इस वक्त तुम मेरे मेहमान हो तो खाना मेरी तरफ से समझो। एक बार कमरे में गए फिर कहीं घूमने जाने की या होटल देखने की या लंदन नाइट्स देखने की कोशिश मत करना अपने कमरे में से जो दिखे वह देख लेना।

महेश के चेहरे पर अब भी चिंता साफ़ नजर आ रही थी। लड़की बोली और हाँ काळजी करु नको हे सर्व ठीक होईल (डरो मत होगा अब ठीक) मराठी सुनते ही महेश बोला ताई आप महाराष्ट्रियन हो? लड़की बोली नहीं में कुछ साल महाराष्ट्र में रही हूँ तो थोड़ी बहोत मराठी आती है। महेश को एक बढ़िया सा कमरा मिला जो सातवे मजले पर था जहा से बहोत ही सुन्दर लंदन का नजारा देखा जा सकता था। महेश कमरे से लंदन का नजारा देख रहा था और बहोत कुछ सोच रहा था तभी अचानक डोर बेल बजी महेश ने बाहर देखा तो एक बड़ी सी बैग थी जिसमे खाने के डिब्बे थे। महेश को भूख भी जोरो की लगी थी तो तुरंत डिब्बे खोलकर देखने लगा क्या है खाने में। जैसे जैसे डिब्बे खुलते गए महेश भावुक होता गया क्योंकि खाने में पुलाव, बाजरे की रोटी, बैगन का भरता, लसुन की चटनी, कांदा, आचार, सलाड और मिठाई में मोदक यह सब वही खाना था जो महेश और लवीना के पुरे परिवार ने साथ में बैठकर खाया था। सभी डिब्बे तो खुल गए पर थाली नहीं थी। खाना कैसे है सोच रहा था फिर उसने बैग देखा तो बैग में एक कागज़ में कुछ लिपटा हुआ था, कागज़ खोला तो उसमे केले के पत्ते थे। महेश यह सब देखकर भावुक और हैरान भी हो रहा था की लंदन जैसे शहर में यह सब खाना कैसे मिल सकता है।

खाने के बाद फिर खिड़की से लंदन का नज़ारे का आनंद ले रहा था। सुबह ७ बजे फिर डोर बेल बजी महेश समझ गया नास्ता आया होगा। नाश्ते में भी पोहा थे। महेश को तो यकीन ही नहीं हो रहा था की वो लंदन में है। नाश्ता ख़तम करके जैसे लड़की ने कहा था वैसे उसने कमरा खाली कर उसी जगह पहुंचा जहाँ वह लड़की ने मिलने को कहा था। महेश के पहुँचते ही लड़की गाड़ी लेकर आई। महेश कुछ बोले इस से पहले लड़की बोली देखो आज हमें बहोत सारे काम करने हे सबसे पहले एक वकील के पास जाना है। महेश बोला वकील मिला? लड़की बोली हाँ एक वकील है जो तुम्हारी मदद करेगा।

कुछ दूर जाने के बाद गाड़ी रुकी लड़की बोली इस बिल्डिंग में दूसरे मजले पर टेलर का ऑफ़िस है तुम वहाँ जाओ और सारी बाते बताओ। महेश बोला हमें टेलर नहीं वकील से मिलना है ना? लड़की बोली उस वकील का नाम टेलर है। महेश बोला वो तो ठीक है पर सिर्फ में? तुम साथ नहीं चलोगी? लड़की बोली जी नहीं, तुम्हें ही जाना होगा और अब तो तुम अच्छी अंग्रेजी बोलते होंगे? महेश बोला अब तो का क्या मतलब में तो बचपन से ही अच्छी अंग्रेजी बोलता हूँ। लड़की मुस्कुराई और बोली ठीक है तो जाओ अब देर मत करो। महेश ने वकील से बात की वकील भी थोड़ा भावुक हो गया क्योंकि वह वकील अल्बर्ट-जी का खास मित्र था।

टेलर ने कहाँ बहोत बुरा लगा उसके बुरे वक्त मे में उसके साथ नहीं था। में किसी कारण वश यहाँ नहीं था इसलिए उसकी मदद नहीं कर पाया लेकिन अब में आ गया हूँ देखते है मेरे होते हुए अल्बर्ट-जी का एक पैसा भी कोई ले सके। टेलर ने कुछ कागजपत्र बनाकर दिया और कहा यह सब लेकर तुम इस पोलिस स्टेशन जाओ वहां तुम्हारा काम हो जाएगा। महेश बहोत बहोत शुक्रिया बोल कर बाहर आया। लड़की बोली हो गया काम? महेश बोला हाँ काम तो हुआ पर अब हमें पोलिस स्टेशन जाना होगा? लड़की बोली कोई बात नहीं, अगर तुम्हारा काम हो रहा है तो जाने में क्या दिक्कत है।

पोलिस स्टेशन पहुँचते ही महेश ने फिर लड़की से पूछा तुम यहाँ भी नहीं आओगी? लड़की बोली तुम सच में समझदार हो। महेश थोड़ा डरते डरते पोलिस स्टेशन के अंदर गया। उसे बैठने को कहा गया कुछ देर बाद उसे बुलाया और पूछा क्या हुआ है। महेश ने सोचा कुछ बोलू इस से अच्छा वकील ने दिया हुआ कागजपत्र ही दे देता हूँ। पोलिस ने सारे कागजपत्र पढ़े और महेश को बाज़ू के कमरे में बैठने को कहा।

समय बितते जा रहा था और महेश की चिंता भी बढ़ते ही जा रही थी क्योंकि करीब २ घन्टे से वह बैठा था। इस २ घंटे में पोलिस ने अल्बर्ट-जी के वकील को अपने सारे कागजपत्र लेकर पोलिस स्टेशन आने को कहा। अल्बर्ट-जी का वकील हैरान हो गया की यह मामला पोलिस स्टेशन कैसे पहुँच गया मेने नीलामी तो ठीक से की थी और सारे पैसे भी बैंक में जमा कर दिए है।

पोलिस ने अल्बर्ट-जी के वकील को कहा अल्बर्ट-जी के सारे कागजपत्र हमें दे दो आगे का काम हम करेंगे। पहले तो वकील ने मना कर दिया लेकिन बाद में जब पोलिस ने दूसरे वकील का पत्र अल्बर्ट-जी के वकील को दिखाया तो वह समझ गया अब कुछ नहीं कर सकता मामला कोर्ट में जाएगा और मेरी पोल खुल जाएगी उसने सारे कागजपत्र पोलिस को दिए। पोलिस ने उसे कहा आज शाम तक सारी कार्यवाही हो जाएगी तुम कल आकर सभी कागजपत्र की कॉपी ले जाना तुम्हारे रिकॉर्ड के लिए। वकील अपना मुँह टेढ़ा करके वहां से चला गया। पोलिस ने महेश को बुलाया और कुछ साइन करने को कहा और उसके बाद सारे कागजपत्र महेश को दे दिए और तुरंत बैंक जाने को कहा।

महेश के चेहरे पर ख़ुशी की लहर छा गई। महेश दौड़ते हुए बहार आया और लड़की से बोला ताई(बहन) देखो सब कुछ ठीक हो गया सारे कागजपत्र मिल गए, अब हमें बैंक जाना है। लड़की बोली यह तो बहुत अच्छी बात है, चलो अब बैंक चलते है। बैंक में जाने के बाद महेश को बैठने को कहा और वहाँ की कर्मचारी ने पोलिस स्टेशन में फ़ोन किया। पोलिस का नाम सुनते ही महेश फिर डर गया अब फिर से पोलिस? बैंक कर्मचारी ने महेश से कहा हमें एक बार पूछना पड़ता है की सारे कागजपत्र उन्होंने ने चेक किये है या नहीं क्योंकि ऐसे मामले में वकील ही सब कुछ करता है पर इस पर पोलिस के साइन और सिक्का है।

आखिर महेश को पूरे १०० प्रतिशत पैसे का चेक मिल गया उसके ख़ुशी का कोई अंदाजा नहीं लगा सकता था। लड़की से आकर बोला ताई आज में बहोत खुश हूँ। कल इसी समय में कितना परेशान था और आज सिर्फ २४ घंटे में सारे काम हो गए और यह सब सिर्फ और सिर्फ आपकी महेरबानी से हुआ है। लड़की बोली नहीं नहीं मेने कुछ नहीं किया यह तो सब अल्बर्ट-जी के आशीर्वाद से हुआ।

लड़की ने गाड़ी एक ट्रैवल एजेंट के ऑफ़िस के पास रोकी और कहा देखो वहां से तुम्हें भारत जाने की टिकट मिल जाएगी पता करो शायद आज शाम की ही टिकट मिल जाए। महेश भी बोला हाँ आज की ही टिकट मिल जाए तो अच्छा है। महेश को उसी दिन की टिकट मिल गयी और लड़की ने कहा चलो अब तुम्हें में एयरपोर्ट छोड़ देती हूँ तो मेरा काम भी पूरा। एयरपोर्ट उतरते वक़्त महेश ने लड़की से पूछा ताई में कब से आपके साथ हूँ पर आपका नाम पूछना तो भूल ही गया। लड़की बोली मेने अपना कार्ड तुम्हारे बैग में रखा है बाद में देख लेना अभी तुम जाओ एयरपोर्ट पर भी एक बढ़िया कैंटीन है कुछ खा लो और सही सलामत भारत पहुँच जाना।एयरपोर्ट पर महेश ने लड़की ने दिया हुआ कार्ड देखा तो उस पर सिर्फ “लवीना जोशी” लिखा था और कुछ नहीं। महेश बोला ये कैसा कार्ड ना पत्ता, ना नंबर और ना ईमेल ? फिर उसे ख्याल आया अरे यह लड़की का नाम भी लवीना ही था।

महेश काफी थका हुआ था, घर पहुँचते ही सो गया। सुबह देर से उठा तो उसने सोचा विनायकजी के कैंटीन पर जाकर ही चाय नाश्ता कर लेता हूँ। कैंटीन पर पहुँचते ही विनायकजी बोले आओ महेश बहोत दिन बाद मुलाकात हुई। महेश बोला विनायकजी आपसे बहोत सारी बाते करनी है लेकिन पहले आप एक चाय पीला दीजिए। विनायकजी बोले ये लो तुम्हारे लिए स्पेशल चाय और २ मिनिट रुको में आता हूँ फिर बाते करते है। चाय की पहली चुस्की लेते वक़्त उसकी नजर कैंटीन पर लगे हुए बोर्ड पर गई जिस पर लिखा था जोशी कैंटीन। यह बोर्ड देखते ही महेश के हाथ से चाय का गिलास छूट गया और वह तुरंत अपने खेत की और दौड़ पड़ा। विनायकजी भी उसके पीछे दौड़े। महेश खेत में उसी पेड़ के पास जाकर बैठा जहाँ उन्होंने मिलकर खाना खाया था, थोड़ी देर में विनायकजी भी वहां पहुंचे और बोले अरे महेश क्या हुआ और तुम रो क्यों रहे हो। महेश बोला काका आपको याद हे कुछ साल पहले लंदन से एक परिवार हमारे घर आया था? विनायकजी बोले हाँ हाँ लवीना बेटी को में कैसे भूल सकता हूँ।

महेश बोला वो पूरा परिवार आज इस दुनिया में नहीं रहा। विनायकजी बोले लवीना की तबियत तो ठीक हो रही थी फिर वहां जाकर और बिगड़ गयी थी क्या? महेश बोला हाँ वो ठीक हो गई थी पर उसकी मौत एक कार अकस्मात में हुई। विनायक जी बोले पर तुम्हें यह सब कैसे पता चला। में कल रात को ही लंदन से वापस आया हूँ वहां मुझे लवीना मिली थी। विनायकजी बोले बेटा, तुमने अभी तो कहा की उसकी मौत एक अकस्मात में हो गई फिर वो कैसे मिली?

महेश बोला में आपको विस्तार से सब बताता हूँ। कुछ दिन पहले एक खत आया था जो अल्बर्ट-जी के वकील ने भेजा था जिसमे लिखा था की लवीना और अल्बर्ट-जी के पत्नी की एक कार अकस्मात में मृत्यु हो चुकी है करीब ३ साल पहले और उसके बाद अल्बर्ट-जी की तबियत भी कुछ ठीक नहीं थी और कुछ दिनों पहले उनकी भी मृत्यु हो गई है और उन्होंने अपनी सारी जमा राशी तुम्हारे नाम कर दी है इसलिए तुम लंदन आकर मुझसे मिलो। में लंदन गया पर वहां जाकर पता चला सारे पैसे वकील खुद ही लेना चाहता है, में परेशान था तब मुझे लवीना मिली। लवीना की मदद से सिर्फ २४ घंटे में सारा काम हो गया। बेटा यह सब तो ठीक है पर तुम यह कैसे कह सकते हो की वो लड़की लवीना ही थी।

महेश बोला बहोत खूबसूरती से वह मुझे समय समय पर इशारा करती रही पर में बेवकूफ कुछ समज ही नहीं पाया। पहला इशारा उसने मुझे तब दिया था जब मेने उससे पूछा था की अल्बर्ट-जी की एक गाड़ी थी जो नीलाम हो गई तब वो तुरंत बोली थी यही तो है वो गाड़ी इसका मतलब जिस गाड़ी में उसका अकस्मात हुआ था वही गाड़ी में हम बैठे थे। फिर महेश बोला काका आपको याद है जब भी वो आपके कैंटीन पर आते तो आप उनको क्या बोलते थे। विनायकजी बोले हाँ याद है न में उनको यही बोलता की काळजी करु नका हे सर्व ठीक होईल। हाँ बराबर, लवीना जब यहाँ थी तब वह भी यह बोलने की कोशिश करती थी पर वो सिर्फ काळजी करु नका तक ही बोल पाती थी। दूसरा इशारा उसने यही बात पूरी मराठी में बोलकर दिया। और काका आपको याद है, उनके जाने के एक दिन पहले यहीं बैठकर सबने खाना खाया था? विनायकजी बोले हाँ याद है ना। महेश ने फिर पूछा और क्या खाया था वो याद है? विनायकजी बोले नहीं बेटा इतना सब तो याद नहीं। महेश बोला मुझे याद है जो खाना हमने यहाँ खाया था उसने वही खाना उस दिन रात में मुझे खिलाया।आप ही सोचो लंदन जैसी जगह पर मोदक और केले के पत्ते में खाना इतनी आसानी से कैसे मिल सकता है।

तीसरा इशारा उसने यह बोलकर दिया की अब तो में अच्छी अंग्रेजी बोल सकता हूँ क्योंकि वो जानती थी जब छोटा था तब थोड़ी गड़बड़ होती थी। चौथा इशारा उसने तब दिया जब हम दूसरे वकील के पास गए थे। दूसरे वकील को मिलकर में वापस आया तब मेने उसे कहा की वकील ने पुलिस स्टेशन जाने को कहा है पर मेने उसे कौन से पोलिस स्टेशन जाना यह तो बताया ही नहीं था पर उसने गाड़ी बराबर वही ले गयी जहाँ वकील ने कहा था। और आख़िरी इशारा उसने दिया हुआ कार्ड जिसपर उसने अपना नाम और विनायकजी आपका उपनाम लिखकर मुझे दिया। लवीना को आप बेटी और वो आपको पिता मानती थी। विनायकजी के आँखों में भी आँसू आ गए। महेश बोला बहोत गुस्सा भी आ रहा हे लवीना पर इतने सालो बाद मिली अपने भाई से पर एक बार भी बोली नहीं की में तुम्हारी बहन लवीना ही हूँ। थोड़ी देर बाद विनायकजी बोले अरे पगले अगर वह बोल देती की वह लवीना ही है तो तुम डर के मारे उससे बात ही नहीं कर पाते समझे? फिर दोनों मुस्कुराये और विनायकजी बोले अब यह सोचो इन पैसो का क्या करना है। महेश बोला इसी गांव में एक बढ़िया सा अस्पत्ताल बनाऊंगा और अस्पताल का नाम अल्बर्ट एंड विट्ठल रखूँगा। सभी गरीब परिवार को हो सके उतनी इस अस्पताल के जरिए मदद करुंगा।

कहानी में सफर और Suffer दोनों परिवार के हिस्से में आया और कहानी आस्था और विश्वास से शुरु हुए थी और आस्था और विश्वास पर ही ख़तम हुई। उम्मीद है आपको कहानी पसंद आई होगी।

जय हिन्द

नरेंद्र राजपूत

मुंबई

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