तुम ना जाने किस जहां में खो गए..... - 12 - बारिश की बूंदें Medha Jha द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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तुम ना जाने किस जहां में खो गए..... - 12 - बारिश की बूंदें



सुबह जब आंखें खुली तो देखा मम्मी चाय पी रही थी। अभी एक पूरे दिन की यात्रा शेष थी। रात्रि ८बजे के करीब ट्रेन पहुंचेगी भुवनेश्वर। बिहार से निकल कर हम पश्चिम बंगाल में प्रवेश कर चुके थे और उड़ीसा आना बाकी था अभी। देश के इस हिस्से की ट्रेन खाली - खाली सी थी और नोन एसी होने के बावजूद साफ सुथरी भी। वैसे भी रेल यात्रा मुझे बहुत पसंद है खास कर खुली खिड़की वाली - लगता है उस जगह को, उसकी धरती को, हवा को -आप महसूस कर रहे हों। और जगह - जगह पर चढ़ते स्थान विशेष के खाद्य पदार्थों को चखना - मुझे हमेशा प्रिय रहा है।

मम्मी भी बाहर ही निहार रही थी। बहुत दिनों बाद दिन के इस समय बैठने का मौका मिला था उन्हें बिना किसी काम के। नहीं तो सप्ताह के ६ दिन ऑफिस और १दिन घर में - वही भाग- दौड़ वाली जिंदगी रही है इनकी भी। सौरभ की चर्चा की मैंने मम्मी से। मेरे मित्रों को मम्मी का भी स्नेह प्राप्त रहा है। मेरी मनःस्थिति समझ रही थी वो। खाना खा कर लेट गई मम्मी। और मैं उनके बगल में बैठ कर फिर से बाहर देखने लगी।

एक ही सीट था कन्फर्म हमारा। मम्मी का टिकट लिया ट्रेन चढ़ने से १०मिनट पहले , पर कन्फर्म नहीं हुआ। तो हमलोग एक ही सीट पर थे। थकी - मांदी मम्मी सो रही थी अभी। और उनके पास बैठी मैं एकटक उन्हें निहार रही थी। कैसे कर लेती है मम्मी इतना। सुबह ७बजे की निकली शाम ५बजे घर पहुंची हैं और हमने ६बजे की ट्रेन भी पकड़ ली। अगर मम्मी ने हिम्मत नहीं की होती, तो मैं तो जा भी नहीं पाती उस नए शहर - जहां किसी को नहीं जानती थी मैं और अभी अकेले होटल में रहना सीखा था नहीं।

बारिश शुरू हो गई। मम्मी के तरफ वाला खिड़की बंद कर दिया मैंने। अपने तरफ का खुला रखा था मैंने। मेरे हर पल में पता नहीं कैसे ,कब तुम शामिल होते चले गए। तुम्हें याद करना, तुम्हीं को सोचना - आदत सी हो गई थी अब तो। अचानक ये पंक्तियां याद आईं और मुस्कुराहट भी।

"मेरी खुशियों से वो रिश्ता है तुम्हारा अब तक,
ईद हो जाए अगर ईद - मुबारक कह दो।"
- नोमान शौक़

बारिश की बूंदों ने फिर उस दिन की याद दिला दी मुझे - कॉलेज से निकल रही थी मैं। हर्ष बाहर इंतजार कर रहा था। बड़ा रजिस्टर हाथ में ही था मेरे। हर्ष ने ले लिया मेरे हाथ से। उलट पुलट कर देखने लगा - "तो ये टॉपिक चल रहा। "

तभी अचानक वो हंसने लगा - "तुम इंग्लिश में एम ए कर रही हो ना। देखो तुम्हारी स्पेलिंग गलत है यहां। "

ये तुमने क्या कह दिया। तुम्हारा हंसता चेहरा हमेशा प्रिय रहा मेरा , लेकिन मेरे पर हंसता हुआ - ये कैसे बर्दाश्त कर सकती थी मैं। तारीफों की तो आदत थी मुझे। पर मजाक - कभी स्कूल या कॉलेज में शिक्षकों ने भी मेरा मजाक नहीं उड़ाया। किसी तरह खुद पर नियंत्रण रख कर बाहर निकली मैं । ऑटो लिया हमने और तभी बारिश शुरू हो गई। मैं लगातार बाहर देख रही थी । बारिश की बूंदे मेरे चेहरे पर आ रहे थे और साथ ही आ रहा था अब तक रोके हुए निरंतर बहते हुए आंसू। तुम भूल भी चुके थे बात और मैं पूरे रास्ते रोती आई । जब अपने मोड़ पर उतर कर भागी मैं, मैंने तुम्हारी तरफ देखने की जरूरत भी नहीं समझी। घर पहुंचते ही मम्मी ने देखा। घबरा कर पूछा कि क्या हुआ। तो रोते हुए बताया मैंने कि तुमने मेरा मजाक उड़ाया।

संयोग से अगले दिन आए थे तुम हमारे घर और मम्मी से डांट पड़ी थी तुम्हें।

अचानक याद आया वह दिन भी, जब अगले दिन तुम बहुत बड़ा चॉकलेट का पैकेट लेकर आए थे हमारे घर। मैंने चाहा छुपा देना, पर मम्मी सामने थीं, तो देख ही लिया। तुम्हें घर में सब पसंद करते थे। मम्मी पूछी - " क्या है ये? " मेरे बताने पर बोल पड़ी कि बहुत खर्चीला है ये लड़का, तुम्हारे पापा की तरह। इसकी पत्नी भी दुखी ही रहेगी।

क्या मम्मी को अंदाज हो रहा था हमारे बारे में? दोस्त तो बहुत सारे थे मेरे।

भुवनेश्वर

ट्रेन लगभग खाली हो चुकी थी। भुवनेश्वर स्टेशन पर अब रुकने वाली थी। अपने सामान को लेकर हम लोग तैयार थे। नया शहर, रात का समय और सुनसान प्लेटफॉर्म। इक्का दुक्का लोग नजर आ रहे थे प्लेटफॉर्म पर। प्लेटफॉर्म पर उतर कर हमलोग सोच ही रहे थे कि कहां जाएं कि तभी कोई हमारी तरफ बढ़ते दिखे। परिचित मुस्कुराहट के साथ एक भद्र पुरुष , साथ में कोई अर्दली था , पूछ रहे थे - " आप लोग पटना से आए। फोन आया था आपके लिए। " मेरी मित्र ने फोन करवा दिया था और नई जगह पर दो अनजान महिलाएं रात को पहुंच रही हैं - इसलिए अपना कर्त्तव्य मान वो भद्र लोक ऑफिस से सीधे वहां पहुंचे थे। बिहार सरकार के उच्च पद पर आसीन मेरी मम्मी के साथ मैं हमेशा ज्यादा ही निडर और सुरक्षित महसूस करती रही हूं। और उनकी वही निर्भीकता मेरे अंदर भी रही है। बाहर उनकी गाड़ी खड़ी थी - नीले रंग की उनकी जीप देख कर पता चल रहा था कि वे उड़ीसा सरकार के प्रतिष्ठित पद पर हैं। हम उनकी गाड़ी में बैठे। उन्होंने बताया कि उनकी पत्नी और पुत्री बाहर गए हैं तो इसलिए वो हमें घर आमंत्रित नहीं कर रहे। मम्मी वैसे भी एक नितांत अपरिचित के घर जाती भी नहीं।

बहुत साफ और सुव्यवस्थित शहर दिख रहा था भुवनेश्वर। हमलोग शायद किसी अच्छे इलाके से गुजर रहे थे। उनकी गाड़ी १०मिनट के बाद किसी शानदार होटल के सामने रुकी। करीब ९.३० बज रहा था। उन्होंने कहा कि ये बहुत प्रतिष्ठित होटल है और सुरक्षित भी। आप लोग हमारे शहर में हैं और ये हमारी जिम्मेदारी है कि आप लोग को सही जगह ठहराया जाए।

देख कर समझ में आ गया हमें कि महंगा होटल है ये तो। पर वे भद्र पुरुष दृढ़ प्रतिज्ञ थे हमें ठहरा कर जाने को। जाकर सारी औपचारिकता पूरी की उन्होंने और हमें कमरे तक छोड़ कर गए वो, सुबह आने का वादा करके।

जिस जल्दबाजी में आए थे हमलोग, जो घर में था उतना ही कैश था पास। और तत्काल टिकट में भी पैसा लग गया था। और अब यहां फंसे थे हमलोग। रूम में हमारा आधा पैसा जाने वाला था। मैंने मीनू उठाया और रख दिया - हरेक आइटम सामान्य से ४-५ गुना ज्यादा महंगा था। घर से लाया कुछ खाया हमने और सो गए। सुबह इंटरव्यू और ग्रुप डिस्कशन था मेरा १२ बजे के करीब। इस शहर, खास कर लिंगराज मंदिर के बारे में काफी पढ़ा था मैंने और इच्छा थी दर्शन की। सुबह मम्मी और मैंने तय किया कि उस भद्र पुरुष के आने से पहले हम निकल लेंगे। बिना मतलब हमारा पैसा इस होटल में बर्बाद हो रहा था।

नहा कर मां - बेटी निकले और ऑटो कर सीधे लिंगराज मंदिर पहुंचे । जीवन में कभी बहुत पूजा नहीं की मैंने। पर मंदिर खींच रहा था मुझे। जब अंदर ज्योतिर्लिंग के सामने पहुंची, लगा सारे कष्टों का अंत हो गया। अंतर से आवाज आयी कि सब अच्छा ही होगा। सामने के एक साफ रेस्तरां में हमने डोसा खाया और कॉफी पीकर निकले अपने संस्थान के लिए।

वहां पहुंचते ही मम्मी का ध्यान गया कि मेरे बाल बिखरे से हैं। बाथरूम जाकर ठीक करवाया उन्होंने। पता चला सामने के कमरे में पहले ग्रुप डिस्कशन है फिर इंटरव्यू। मम्मी को प्रणाम करके गई अंदर मैं। करीब आधे घंटे बाद बाहर निकली , दरवाजे पर मम्मी खड़ी थी। उन्होंने आश्वस्त किया कि मेरा सेलेक्शन हो जाएगा। अब इंटरव्यू था। जब बढ़ी कमरे की तरफ तो मम्मी भी नजदीक आ गई। १०मिनट के इंटरव्यू में सहज सा रहा मेरा मन।

निकलते ही मम्मी ने कहा - "तुम्हारा हो जाएगा। "

" आप कैसे आश्वस्त हैं?"

" तुम्हारा चेहरा बता रहा कि अच्छा हुआ है।"

अब हमें याद आया कि अगर आज रात रुके हम उसी होटल में तो हमारा बिल दुगुना हो जाएगा। जल्दी से पहुंचे हम। पता चला रिसेप्शन पर कि हमें लेने आए थे वो परिचित, अपनी तरफ से वो काफी कर रहे थे और हम लोग उनसे भागने की कोशिश में लगे थे।

हमने कहा कि हमें अभी निकलना है। बिल चुकता कर हम लोग बाहर आए। नया शहर, सुनसान इलाका - हमने ऑटो रोका और स्टेशन पहुंचाने को कहा। ९बजे करीब स्टेशन पहुंच चुके थे। गिनती के लोग नजर आ रहे थे देश के इस पूर्वी लगभग अन्तिम छोर पर। जाकर टिकट के लिए पूछा तो पता चला कि सुबह अब ट्रेन है ५बजे, यानी पूरी रात बाकी थी। हमने प्रतीक्षालय में जाकर रात बिताने को सोचा तो पता चला कि अभी वहां प्रतीक्षालय है ही नहीं। रात बढ़ रही थी और वो गिनती के लोग भी दिखने बंद हो गए। हमलोग उसी प्लेटफॉर्म पर बैठें जहां ट्रेन आती सुबह ५बजे। बीच - बीच में सिर्फ एक कुत्ते के भौंकने की आवाज नीरवता भंग कर रही थी। मां बेटी इस सन्नाटे से थोड़ा घबरा रहे थे तभी दो - चार मनचले किस्म के लड़के प्लेटफॉर्म पर आए। बात बेबात पर जोर जोर से हंसना एक दूसरे के पीठ पर धौल जमाना - उस रात के सन्नाटे को और भयानक बना रही थी। अभी सिर्फ ३बजा था। दो घंटे शेष थे। मम्मी ने मेरा हाथ जोर से पकड़ रखा था। शिव शिव करके ५बजा और ट्रेन के आगमन के साथ हमारी बची हुई सांस भी आई ।

कुछ दिनों बाद लिंगराज का आशीर्वाद फलीभूत हुआ। मम्मी की भविष्यवाणी सही रही। १०० लोगों का चयन हुआ था , जिसमे मेरा स्थान दूसरा था।