11. प्रार्थना श्री यशपाल जी महाराज (परम पूज्य भाई साहब जी) द्वारा आध्यात्मिक कथा में हिंदी पीडीएफ

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11. प्रार्थना

इति मार्ग की साधना पद्धति

 

11. प्रार्थना

 

हे दीनबन्धु दयालु भगवन दुःख भय संशय हरण ।

जग मोह जाल कराल है आया प्रभू तेरी शरण ।।

मैं पतित हूँ तुम पतित पावन, दास मैं तुम नाथ हो।

दिन रात सोते जागते प्रभु तुम हमारे साथ हो ।।

भव जाल से अति त्रसित हूं, कर्ता बने हो हे पिता ।

कर जोड़कर अति दीनता से नाथ यह वर मांगता ।।

गुरु के चरण में प्रेम और गुरु भक्ति मुझको दीजिये।

श्रद्धा बढ़े गुरुदेव में ऐसा अनुग्रह कीजिये ।।

सर्वस्व अर्पण कर सकूं प्रीति बढ़े गुरुदेव पर ।

ज्योंहि भूमि पर गुरुचरण हों आंखें बिछाऊं दौड़कर ।।

बोलूं तो गुरु चर्चा करुं और मौन पर गुरु ज्ञान हो ।

सोते में गुरु का स्वप्न और जगते में गुरु का ध्यान हो ।।

पापी अधर्मी कुटिल कामी जानते आश्रय दिया ।

गृहवासी गुरुदेव जी निज दास मुझको कर लिया ।।

अन्तिम विनय है आप से पूरण गुरू पूरण पिता ।

तव चरण पर हो शीश जिस दिन प्राण हों तन से जुदा ।।

हे दीनबन्धु दयालु भगवन दुःख भय संशय हरण ।

जग मोह जाल कराल है आया प्रभू तेरी शरण ।।

 

 

रामधुन

 

ध्यान मूलम्‌ गुरुमूर्ति पूजा मूलम्‌ गुरु पदम्‌ ।

मन्त्र मूलम्‌ गुरुवाक्यम्‌ मोक्ष मूलम्‌ गुरुकृपा ।।

रघुपति राघव राजाराम, पतित पावन सीताराम ।

ईश्वर अल्लाह तेरे नाम, सबको सन्मति दे भगवान ।।

रामहि केवल प्रेम पियारा,

जान लेउ जो जाननिहारा ।

विनय प्रेम बस भई भवानी,

खसी माल मूरति मुसुकानी ।।

राम रघुबर राम रघुबर राम रघुबर रक्ष माम्‌,

राम रघुबर राम रघुबर राम रघुबर त्राहि माम्‌ ।

राम रघुबर राम रघुबर राम रघुबर पाहि माम्‌।।

राम रघुबर की दुआओं का असर है आज भी ।

कल्ब में उनकी निगाहों की खबर है आज भी ।।

श्री बृजमोहन जी की कृपा से व्यापक है विवेक ।

नूर से मामूर हर तारीक घर है आज भी ।।

सन्त श्री यशपाल जी की गुरुनिष्ठा है अनूप ।

निष्काम सेवा भाव से कल्याणरत हैं आज भी ।।

रोशन किये है आपने अध्यात्म के घर-घर चिराग ।

विश्व में फैला रहे सत्ज्ञान का अनुपम प्रकाश ।।

 

 

गुरु वंदना

 

हे मेरे गुरुदेव करूणा सिंधु करूणा कीजिए,

हूँ अधम आधीन अशरण अब शरण में लीजिए।

खा रहा गोते हूं मैं भवसिंधु के मझधार में,

आसरा है दूसरा कोई न अब संसार में ।

मुझमें है जप तप न साधन और ना ही कुछ ज्ञान है,

निर्लज्जता है एक बाकी और बस अभिमान है ।

पाप बोझों से लदी नैया भंवर में जा रही,

नाथ दौड़ो और बचाओं जल्द डूबी जा रही ।

आप भी यदि छोड़ देंगे फिर कहाँ जाऊंगा मैं,

जन्म दुख से नाव कैसे पार कर पाऊंगा मैं।

सब जगह मैंने भटक कर ली शरण प्रभु आपकी ।

पार करना या न करना दोनों मरजी आपकी ।।

हे मेरे गुरुदेव करूणा सिंधु करूणा कीजिए,

हूँ अधम आधीन अशरण अब शरण में लीजिए।

 

 

भजन

 

हमारे गुरु दीन्हीं एक जरी ।

काटे कटे न बांटे बटे, निश दिन रहति हरी ।।

जाको मरम सन्त जन जानत, हरदम गुप्त धरी ।। 1।।

एक भुंजगम पांच नागिनी, सूंघत तुरत मरी ।

डायन एक सकल जग खायो, सोऊ देखि डरी ।। 2 ।।

तीन ताप तन ही में नासे, दुरमति दूरि करी ।

जाको डरे एक पापी जन, साधुन कुंभ भरी ।। 3 ।।

निसि बासर तेहि नाहिं बिसारों, छिन पल एक धरी ।

कहत कबीर सुनो भाई साधो, सकलहु व्याधि टरी ।। 4।।

 

 

भजन

 

नाथ रघुनाथ चरणन शरण चाहूं,

शरण में लेकर शरण पालक कहाओ ना ।।

मानव तन राखो या पशु पाषाण करो,

निज चरण तल तले ही ठौर बकसाओ ना ।।

दीन की पुकार दीन बन्धु विन सुनै कौन,

दीन अपनाकर दीना-नाथ कहलाओ ना ।।

द्वार बुलाके दिखा दो अनोखी छटा,

प्रेम के पयोनिधि में गहरे डुबाओ ना ।।