कर्म पथ पर - 54 Ashish Kumar Trivedi द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कर्म पथ पर - 54




कर्म पथ पर
Chapter 54


जय और मदन कमरे में लेटे हुए थे। आज दोनों ही बहुत थक गए थे। पूरा दिन भागदौड़ से भरा रहा।
मदन हिंद प्रभात की प्रतियों के वितरण के लिए गया था। कुछ देर के लिए अपने घर भी गया था। लौटते हुए शाम हो गई थी।
जय को विष्णु के काम से अचानक मौरांवां जाना पड़ा। पूरा दिन वहीं लग गया। वह बहुत थक गया था।
भुवनदा के घर खाना खाकर दोनों कुछ ही समय पहले अपने कमरे में लौटे थे। आते ही अपना अपना बिस्तर डाल कर लेट गए।
भुवनदा ने यह कमरा दिलवा दिया था। भुवनदा के मकान से कुछ दूर गांव के बाहरी छोर पर था। इसके मालिक नवल किशोर विधुर थे‌। एक लड़का था। वह गुजरात में एक कपड़ा मिल में काम करता था। वहीं का होकर रह गया था।
कमरा ऊपर की मंजिल पर था। बड़ा और हवादार था। किराया भी वाजिब था। नीचे आंगन में कुआं था। नहाना धोना वहीं हो जाता था। एक खाना बनाने की समस्या थी। कुछ दिन उसने जैसे तैसे काम चलाया। तब मदन ने कहा कि वह खाना बना लेता है। जय उसे अपने साथ रख ले वह खाना बना दिया करेगा। दोनों एक साथ ही रहने लगे। आज भुवनदा ने कहा कि खाना उनके साथ ही खा लें। इसलिए खाकर आए थे।
जय को नीचे आंगन में कुछ हलचल सुनाई पड़ी। उसने उठकर कमरे दरवाज़ा बंद कर लिया। नवल किशोर की आदत थी कि जब मन होता था आकर उनके कमरे में बैठ जाते थे। फिर देर तक अपनी ही कहा करते थे। जवानी के दिनों में पहलवानी करते थे। उसी के किस्से सुनाते थे। भूलने की आदत थी। इसलिए एक किस्सा कई कई बार सुनाते थे।
आज जय के पास उनके किस्से सुनने की क्षमता नहीं थी। इसलिए उसने दरवाज़ा बंद कर दिया था। उसे सीढ़ियों पर नवल किशोर के पैरों की आहट सुनाई पड़ी। मदन लेटते ही सो गया था। उसने तय कर लिया कि खटखटाने पर भी दरवाज़ा नहीं खोलेगा। सोए रहने का नाटक करेगा।
कुछ ही क्षणों में दरवाज़े की कुंडी खड़की। नवल किशोर ने आवाज़ लगाई,
"आदित्य बाबू...."
कोई जवाब ना मिलने पर फिर से कुंडी खड़काई। दो एक बार आवाज़ लगाई। पर जय चुप रहा। उसे नवल किशोर के सीढियां उतरने की आहट मिली। वह नीचे चले गए थे।
भुवनदा ने आदित्य वर्मा के नाम से जय का परिचय दिया था। उन्होंने गांव वालों से कहा कि बच्चों की पढ़ाई अच्छी तरह से हो इसके लिए नया मास्टर लाए हैं। जय अब बच्चों को अंग्रेजी पढ़ाता था। इसके अलावा वृंदा की तरह उन्हें और भी कई बातें बताता था।
अब छात्रों की संख्या बीस हो गई थी। सभी छात्र उसे आदित्य भइया कह कर बुलाते थे। बच्चों को पढ़ाने के साथ साथ जय गांव के नौजवानों को भी समाज व देश के लिए कुछ करने को प्रेरित करता था। गांव के बड़े बुजुर्गों से मिलकर वह गांव की समस्याओं पर बातचीत कर उन्हें हल करने की कोशिश करता था। कुछ ही दिनों में गांव वाले उसे पसंद करने लगे थे। अब उसे कुछ संतोष था कि वह जो चाहता था वह कर रहा है।
यहाँ आकर उसने जाना था कि ग्रामीण लोग बहुत सरल ह्रदय होते हैं। वह भले ही पढ़े लिखे ना हों किंतु उनमें व्यवहारिक बुद्धी बहुत होती है। समस्याओं के समाधान में वह शहर वालों को बहुत पीछे छोड़ देते हैं। आवश्यकता है कि उन्हें सही मार्गदर्शन देने वाला कोई हो।
एक और बात जो उसे बहुत अच्छी लगती थी वह थी कि गांव के लोग आभाव का रोना नहीं रोते थे। जो है उसमें खुश रहने का प्रयास करते थे।
इन अच्छाइयों के साथ कुछ बुराइयां भी थीं। सबसे बड़ी बुराई यह थी गांव वाले अपनी पुरानी परंपराओं को जल्दी बदलने को तैयार नहीं होते थे। जो सदियों से चला आ रहा है वहीं उनके लिए सही था। अपनी पुरानी मान्यताओं और परंपराओं के विरुद्ध कुछ भी नहीं सुनना चाहते थे।
यही कारण था कि वृंदा और उसके समझाने के बाद भी वो लोग अपनी लड़कियों को पढ़ने नहीं भेज रहे थे। पर जय ने अभी हिम्मत नहीं हारी थी। उसे लगता था कि इस मामले में यदि जल्दबाजी ना की जाए। उन पर ज़ोर डाले बिना अगर धैर्य से समझाया जाए तो इस मामले में भी सफलता मिल सकती है। उसने वृंदा को समझाया कि वह कुछ दिन धैर्य रखे। लड़कियों को स्कूल तक लाने का रास्ता निकल आएगा।
जय को प्यास लगी थी। वह उठा। कमरे में एक पीतल का घड़ा रखा था। उसने उसमें से पानी लेकर पिया। कुछ गर्मी सी महसूस हो रही थी। उसने कमरे का दरवाज़ा खोल दिया। बाहर निकल कर उसने नीचे आंगन में झांक कर देखा। नवल किशोर आंगन में खटिया डाल कर लेटे हुए थे।
उन्हें देखकर जय को बुरा लगा। वह जानता था कि नवल किशोर अपने अकेलेपन से घबरा कर उसके पास अपने मन को शांत करने आते थे। आज उसने उनकी आवाज़ को अनसुना कर दिया। इस बात से उसे मन ही मन अपराधबोध हो रहा था।
वह सीढियां उतर कर नीचे आंगन में पहुँचा। नवल किशोर धीरे धीरे कबीर का गीत झीनी बीनी चदरिया गुनगुना रहे थे। जय ने कई बार उन्हें यह गीत गुनगुनाते हुए सुना था। खासकर जब वह अकेलापन महसूस करते थे।
उनके पास पहुँच कर जय ने आवाज़ लगाई,
"चाचा...अभी तक जाग रहे हैं।"
आवाज़ सुनकर नवल किशोर उठकर बैठ गए।
"आदित्य बाबू.... मैं सीढियां चढ़ कर ऊपर आया था। पर आप शायद सो गए थे।"
जय को मन ही मन ग्लानि हुई। उसने बात बदलते हुए कहा,
"आज आप आंगन में लेटे हैं।"
"अंदर मन घबरा रहा था। सोंचा खुले में लेट लें। कुछ नहीं तो तारों का साथ रहेगा। अब कौन है मेरा। बेटे ने तो जैसे जीते जी श्राद्ध कर दिया है।"
जय जानता था कि अगर उन्होंने अपने बेटे की बात शुरू कर दी तो रात भर सो नहीं पाएंगे। उसने कहा,
"आजकल रात में ठंड बढ़ जाती है। खुले में सोएंगे तो बीमार हो जाएंगे।"
नवल किशोर को बात ठीक लगी। पर वह कमरे में नहीं जाना चाहते थे। जय ने कहा,
"मैं आपकी खटिया बरामदे में डाल देता हूँ। खुला भी है। ऊपर से ओस भी नहीं गिरेगी।"
नवल किशोर मान गए। जय ने उनकी खटिया बरामदे में डाल दी। भीतर से एक लोई लाकर दी कि अगर ठंड लगे तो ओढ़ लें। उसके बाद वह अपने कमरे में जाकर सो गया।
गांव के बाहर मिट्टी का एक टीला था। इस जगह जल्दी कोई आता नहीं था। अक्सर जय और वृंदा वहाँ बैठकर बातें करते थे।
सूरज पूरब से चलते हुए अब पश्चिम में आ गया था। कुछ ही देर में वह आज की यात्रा समाप्त कर डूबने वाला था। वृंदा टीले पर मिट्टी के एक ढेर पर बैठी थी। जय उसके सामने खड़ा था। उसने जो कुछ कहा था वृंदा उस पर विचार कर रही थी। वह बोली,
"विचार तो तुम्हारा अच्छा है। मुझे सिलाई कढ़ाई आती है। अगर हम कहेंगे कि अपनी लड़कियों को सिलाई कढ़ाई का हुनर सीखने भेजिए तो गांव वालों को लगेगा कि वह गृहस्थी से जुड़ा काम सीख रही हैं। इससे शायद वह उन्हें भेजने को तैयार हो जाएं। फिर हम उन्हें धीरे धीरे पढ़ना भी सिखा सकते हैं।"
"हाँ पर इस काम में भी हमें धैर्य रखना होगा। तुम घर घर जाकर लड़कियों की माताओं को समझाओ कि यह हुनर शादी के बाद उनके काम आएगा। अगर लड़कियां ‌आने लगें तो आगे कदम बढ़ाएंगे।"
वृंदा ने उत्साहपूर्वक कहा,
"मैं कल से ही कोशिश शुरू करती हूँ।"
"हाँ पर याद रखना। बातचीत में केवल यह कहना कि यह सब उन्हें कुशल गृहिणी बनने में मदद करेगा।"
वृंदा ने कुछ सोंच कर कहा,
"पर लड़कियों के लिए अलग जगह रखनी पड़ेगी।"
"उसके लिए मैंने सोंचा है कि नवल किशोर चाचा से बात करूँ। मुझे उम्मीद है कि वह मान जाएंगे। ना माने तो फिर देखेंगे। तुम अपना काम करो। मैं चाचा से बात करता हूँ।"

रात को जय नवल किशोर के पास गया। उन्होंने फिर अपने अकेलेपन की बात कही। जय ने उन्हें समझाया कि जो नहीं है उस पर मलाल करने से कोई लाभ नहीं। उन्हें अपने अकेलेपन से बचना है तो खुद को घर में बंद रखने की जगह बाहर निकल कर लोगों से मिला करें।
जय ने बातों ही बातों में उन्हें लड़कियों के सिलाई कढ़ाई सीखने की जगह के बारे में बात की। उसने कहा कि यदि वह इस काम के लिए अपने घर में जगह दे दें तो अच्छा होगा।
नवल किशोर इस बात के लिए तैयार हो गए कि लड़कियां उनके घर के आंगन में सिलाई कढ़ाई सीख सकती हैं।