बडी प्रतिमा - 9 Sudha Trivedi द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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बडी प्रतिमा - 9

बडी प्रतिमा

(9.)

दोपहर बाद हाॅस्टल में जयलक्ष्मी मैम, फजली सर और कुमुद मैम के साथ एक मौलाना आए । वे कोई पीर फकीर नहीं, बल्कि फजली सर के फुफेरे भाई ही थे ।अभिनय के बडे पक्के निकले वे । इतना बडा गेम प्लान करने के लिए सरोज शर्मा की सहमति आवश्यक थी। काफी मशक्कत के बाद फजली सर उनको योजना में शामिल करने में सफल रहे थे।

मौलाना ने आते ही बरामदे में एक जगह झाडू लगवाई, पानी का छिडकाव करवाया। फिर एक दरी बिछवाकर उस पर बैठ गए। अपने सामने एक शीशा रखा । मोरपंख का गट्ठर और फिर खूब सारा लोबान जलाकर उंची आवाज में कुछ कलमा सा पढने लगे। फिर एक कजरौटे में काजल सेंका। अपने सामने नेपाली दरबान की छोटी लडकी को बिठाया। उसके बाएं हाथ के अंगूठे के नाखून पर काजल लगाकर जोर जोर से वही कलमा जैसा पढने लगे। उनके सामने किसी को खडा रहने की इजाजत नहीं थी। मौलाना के पीछे कुर्सियां डालकर फजली सर, सरोज शर्मा और अन्य शिक्षिकाएं बैठीं। उनके पीछे छात्राओं का झुंड अर्धचंद्राकार घेरा बनाकर खडा हो गया। योजना से अनभिज्ञ होने के कारण छात्राएं भयमिश्रित कुतूहल से सब कुछ देख रही थीं।

मौलाना कुछ बुदबुदाते हुए थोडी उंची आवाज में दरबान की छोटी लडकी से बोलेे – “अपने अंगूठे को ध्यान से देखो, देखती रहो । और फिर मंत्र सा कुछ पढकर लोबान और डालते हुए बोले -कुछ दिखा ? ”

लोबान के धुंए में आंखें मिचमिचाकर वह सात आठ साल की बच्ची सिर हिलाकर बोली – “हां दिखा ! ”

मौलाना –“क्या ? ”

बच्ची- “एक आदमी है।”

मौलाना – “उसे कहो, झाडू लगाए। लगा रहा है ? ”

बच्ची – “हां, लगा रहा है। ”

मौलाना – “उसे कहो, इस चावल को फूंक दे ।”

कहते हुए उन्होंने एक नक्काशीदार कटोरे में रखे चावलों को लडकी की ओर बढाया और पूछा – “फूंक दिया ? ”

बच्ची उस धुएं में क्या देख पा रही थी अपने नाखून पर, कह नहीं सकते, पर उसने जवाब में “हां” कहा ! मौलाना ने उसके सिर पर मोरपंखी झाडू दो चार बार फिराकर उसके नाखून में लगे काजल को अच्छी तरह साफ कर दिया और उसे जाने को कह दिया । फिर कमरे में चले गए। उनके पीछे-पीछे जयलक्ष्मी मैम और सरोज शर्मा के साथ फजली सर भी गए। लडकियों से लाइन बनाकर खडे होने को कहा गया। फिर एक एक करके उन्हें अंदर बुलाया जाने लगा। उन्हें थोडा चावल खाने को कहा जाता था और फिर बाहर भेज दिया जाता। सबसे पहले बेबी, मीरा और नर्मदा ही गईं, ताकि दूसरी लडकियों की हिम्मत बढे। ये लडकियां चोर नहीं थीं, पर फिर भी वे चावल खाने में डर रही थीं। किसी किसी को चक्कर भी आने लगा। अभी चार पांच छात्राएं ही अंदर जा पाई थीं कि जोर का हल्ला हुआ। पता चला कि फील्ड में किसी ने हजार हजार के दो नोट फेंक दिए हैं!

योजना सफल होती दिख रही थी। चोर पर इस सारे अभिनय का खौफ साफ दिखने लगा था। विभा ने नोट उठाकर जाकर फजली सर को दे दिए। इसके बाद चार पांच छात्राएं और अंदर गईं जिनमें स्वयं विभा और सुभद्रा भी शामिल थीं। अगली बारी गीतू की थी। इस सारी घटना का याोजना के अनुरूप ही उस पर गहरा मनोवैज्ञानिक असर पडा। अंदर जाते ही वह फूट फूटकर रोने लगी । उसने चावल खाने से मना करते हुए अपना गुनाह कबूल कर लिया। उसने बताया कि अभी दो ही हजार बाकी बचे थे उसके पास । बाकी दो हजार घर जाने के बाद नए कपडे आदि बनवाने में उसने खर्च कर दिए थे। फजली सर ने उससे बहुत सारी बातें पूछीं, पर वहां उपस्थित शिक्षिकाओं के अलावा इन बातों की भनक किसी को न लगी।

इसके बाद नाम के लिए कुछ और लडकियों को अंदर बुलाया गया । फिर सभी यह कहते हुए वापस चले गए कि शाम हो जाने के कारण अब टोटके का असर खत्म हो चुका है। चोर पकड में नहीं आया।

क्रमश..